अगर महिलाए समानता की बात करे तो उन्हे अपने अभिभावकों से इन अधिकारों के विषय मे सबसे पहले बात करनी चाहिये
१ जब आपने हमे इस लायक बना दिया { पैरो पर खड़ा कर दिया } की हम धन कमा सकते हैं तो हमारे उस कमाये हुए धन पर आप अपना अधिकार समझे और हमे अधिकार दे की हम घर खर्च मे अपनी आय को खर्च कर सके । हम विवाहित हो या अविवाहित पर हमारी आय पर आप अधिकार बनता हैं । आप की हर जरुरत को पूरा करने के लिये हम इस धन को आप पर खर्च कर सके और आप अधिकार से हम से अपनी जरुरत पर इस धन को खर्च करे को कह सके।
२ आपकी अर्थी को कन्धा देने का अधिकार हमे भी हो । जब आप इस दुनिया से दूसरी दुनिया मे जाए तो भाई के साथ हम भी दाह संस्कार की हर रीत को पूरा करे । आप की आत्मा की शान्ति के लिये मुखाग्नि का अधिकार हमे भी हो ।
३ आप हमारा कन्या दान ना करे क्युकी दान किसी वस्तु का होता हैं और दान देने से वस्तु पर दान करने वाले का अधिकार ख़तम हो जाता हैं । आप अपना अधिकार हमेशा हम पर रखे ताकि हम हमेशा सुरक्षित रह सके।
जिस दिन महिलाए अपने अभिभावकों से ये तीन अधिकार ले लेगी उसदिन वो समानता की सही परिभाषा को समझगी । उसदिन समाज मे "पराया धन " के टैग से वो मुक्त हो जाएगी । समानता का अर्थ यानी मुक्ति रुढिवादी सोच से क्योकि जेंडर ईक्वलिटी इस स्टेट ऑफ़ माइंड { GENDER EQUALITY IS STATE OF MIND }
रचनाजी
ReplyDeleteआपकी बातो से पूरी तरह सहमत |आंशिक रूप हे ही सही किन्तु काफी परिवारों में ये सोच आने लगी है |इन बातो को लेकर महाराष्ट्रियन समाज में काफी बदलाव आये है |इसका उदाहरन मै देना चाहूंगी शायद इस विषय से अलग हो कितु मिलता जुलता ही है |अभी मै पूना एक शादी में गई थी मेरी सहेली की बेटी की |अंतरजातीय विवाह था |दूल्हा महाराष्ट्रियन परिवार से है |कुछ महीने पूर्व ही उसके पिता को ब्रेन ट्यूमर हुआ ओपरेशन इत्यादि हुआ डाक्टर ने कुछ महीने की ही सीमा दी है जीवित रहने की |वे पूरा समय व्हील chair पर ही रहते है जीवन के कोई लक्ष्ण नहीं दीखते कितु बावजूद उनकी पत्नी ने हिम्मत से काम लेकर उनकी जगह खुद ही अकेली मंडप में बैठकर सारी रस्मे पूरी की और पूरी तरह से सजकर जिसे वहां के उपस्थित लोगो ने भी उनके इस काम को सराहा |और हाँ एक बात वहां पर कुछ महिलाये ऐसी भी थी जो अपने पति को खो चुकी थी किन्तु उनका रहन सहन भी सुहागिनों की तरह ही था जिसे वहां पर किसी ने भी नोटिस नहीं किया सब कुछ सामान्य और शांतिपूर्ण माहोल था |शायद हमारा (मेरा )समाज होता तो कानाफूसी ही चलती
होती और टोका टोकी भी |
१- इस मामले में अब काफी बदलाव आया है शहरो और पढ़े लिखे घरो में बेटिया अपनी मर्जी से अपने घर में खर्च करती है और उसे ज्यादा बुरा नहीं माना जाता है और विवाहित लड़किया उपहार के रूप में अपने माँ पिता और भाई बहनों को कुछ देती रहती है | हा पर ये सब बेटी की इच्छा पर निर्भर है माँ बाप मंगाते नहीं , कही कही आर्थिक परेशानी होने पर ही कोई माता पिता बेटी से लेते है | कुछ सामाजिक मान्यता है कुछ लोगों को डर रहता है की जब बेटी चली जाएगी तो क्या करेंगे कही उसके पैसे की हमें आदत ना लगा जाये | इस बात को बेटिया खुद हाल कर सकती है घर की जरूरते खुद बिना कहे पूरी करके |
ReplyDelete२- मुखाग्नि हो या अन्य अंतिम संस्कार साक्षात् रूप से भले बेटिया ना करती हो पर उन सब कामो में हाथ बटा कर वो अप्रत्यक्ष रूप से उसमे शामिल तो होती ही है हा जब भाई ना हो या भाई नालायक हो तो वो उस हक़ को ले सकती है किसी और को देने के बजाये | जीवित माँ बाप की सेवा करना ज्यादा आत्म संतोष देगा बेटी को भी और माँ बाप को भी |
३- कन्या दान सिर्फ और सिर्फ एक रस्म है अन्य रस्मो की तरह उससे ज्यादा उसको मै महत्व नहीं देती हु मेरे माँ बाप का मुझ पर हक़ सिर्फ एक रस्म से ख़त्म नहीं होगा | कहने को तो पति भी उस समय साथ वचन देता है पत्नी को पर निभाते कितने पति है |
कन्यादान अब एक पारंपरिक शब्द मात्र रह गया है। उस का अर्थ अब विवाह पर माता-पिता की सहमति के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
ReplyDeleteअगर पहली बात ही हम दिल से स्वीकार लें तो बाकी कि बातें तो खुद ही हो जाएँगी.
ReplyDeletebahut sahi kaha aapne !
ReplyDeletemain naari blog se kaise ek lekhika ke roop me jud sakti hun? mere blog [shikhakaushik666.blogspot.com]par batayen.
दीदी ,
ReplyDeleteअवस्थ और सुरक्षित व्यक्ति ही अपनी स्वतंत्रता या समानता को महसूस कर सकता है | मुझे ऐसा क्यों लगता है की अब स्वतंत्रता या समानता को पाने के भ्रम में इसी के साथ सबसे पहले समझौता किया जा रहा है | संस्कृति त्याग से मिली स्वतंत्रता सच्ची स्वतंत्रता नहीं है बल्कि परतंत्रता है
शमशान के वातावरण में मृत शरीरों की वजह से कई विषेले कीटाणु मौजूद रहते हैं जो कि स्त्रियों को तुरंत ही बीमार कर सकते हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से शमशान में जाना वर्जित किया गया है।
http://religion.bhaskar.com/article/why-women-not-allowed-in-the-shamshan-ghat-1581303.html
शमशान भूमि पर लगातार एक ही कार्य होने से एक नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है जो कमजोर मनोबल के इंसान को हानि पहुंचा सकता है। स्त्रियाँ पुरुषों के मुकाबले कमजोर ह्रदय की होती हैं, इसलिये उनका शमशान भूमि में प्रवेश वर्जित है |
कन्यादान का वास्तविक अर्थ है जिम्मेदारी को सुयोग्य हाथों में सोंपना। मतलब यह कि, अब तक माता-पिता कन्या के भरण-पोषण, विकास, सुरक्षा, सुख-शान्ति, आनन्द-उल्लास आदि का प्रबंध करते थे, अब वह प्रबन्ध वर और उसके कुटुम्बियों को करना होगा।
कन्या नये घर में जाकर परायेपन का अनुभव न करे, उसे प्रेम, अपनापन, सहयोग, सद्भाव की कमी अनुभव न हो, इसका पूरा ध्यान रखना चाहिये। कन्यादान का अर्थ यह नहीं कि जिस प्रकार कोई सम्पत्ति, किसी को बेची या दान कर दी जाती है, उसी प्रकार लड़की को भी एक सम्पत्ति समझकर किसी न किसी को चाहे जो उपयोग करने के लिए दे दिया है। हर मनुष्य की एक स्वतन्त्र सत्ता एवं स्थिति है। कोई मनुष्य किसी मनुष्य को बेच या दान नहीं कर सकता। फिर चाहे वह पिता ही क्यों न हो।करते थे, अब वह प्रबन्ध वर और उसके कुटुम्बियों को करना होगा।
http://religion.bhaskar.com/article/kanyadan-1118874.html?PRV=
हमें अपनी संस्कृति को समझना होगा क्योंकि उसी के पास मानव स्वतंत्रता या समानता का अचूक फ़ॉर्म्युला है
कमेन्ट टुकड़ों में नहीं किया है :)
मेरे कमेन्ट में
ReplyDelete"अवस्थ और सुरक्षित व्यक्ति ही अपनी स्वतंत्रता या समानता को महसूस कर सकता है"
----को ये पढ़ें-------
"स्वस्थ और सुरक्षित व्यक्ति ही अपनी स्वतंत्रता या समानता को महसूस कर सकता है"
गौरव आज सबसे पहले आप के कमेन्ट का जवाब दे रही हूँ
ReplyDeleteमेरी पोस्ट का शीषक देखा "मुक्ति रुढ़िवादी सोच से "
धर्म यानी रेलिजन को आधार मान कर आप जब तक जवाब देते रहेगे मै अपने को अक्षम मानती रहूँगी आप के कमेन्ट के जवाब मे कुछ भी कहने के लिये क्युकी धर्म और आस्था सबकी अपनी होती हैं
अब बात करते हैं साइंस कि वहाँ भी पुरातन काल से औरत को कमजोर ही माना जाता हैं और आज भी हिंदी ब्लॉग जगत मे असे ही आलेख दिख जाते हैं जो निरंतर औरत को दोयम मानते हैं ।
अब आते हैं कन्यादान कि प्रथा पर अपने अल्प ज्ञान के आधार पर जानती हूँ कि ये प्रथा इस लिये शुरू हुई थी क्युकी मोक्ष प्राप्ति के लिये कोई ऐसा दान करना जरुरी था ,
मेरी पोस्ट मे पहले ही कहा गया हैं पढ़ा लिखा कर सक्षम कर दिया , फिर कोई औचित्य ही नहीं रह जाता कि उसका भरन पोषण करने के लिये सुयोग्य हाथो मे सौपा जाए
समानता और स्वतंत्रता का अर्थ हैं कि हम स्वतंत्र हैं और समान हैं हमारे अधिकार वही हैं जो संविधान मे दिये गए हैं नाकि धर्म ग्रंथो मे या साइंस कि किताबो मे । कानून कि नज़र मे जो सही हैं हम उसका पालन करे चाहे पुरुष चाहे स्त्री ।
धर्म , संस्कृति और साइंस कि दुहाई दे कर नारी को कमजोर मानना गलत हैं
@अंशुमाला
ReplyDeleteमैने बहुत सी महिला से बात कि हैं हर उम्र कि और सब मे एक ललक देखी हैं पुत्र रतन के लिये , नाती के लिये , पोते के लिये क्यूँ ?? ताकि उनका दाह संस्कार हो सके सुयोग्य हाथो से । पुत्र इस लिये नहीं चाहिये क्युकी वो बच्चा हैं अपितु इसलिये क्युकी वो वंश को आगे ले जाता हैं और आप का दाह संस्कार भी करता हैं ।
आपका ये कहना "जब भाई ना हो या भाई नालायक हो तो वो उस हक़ को ले सकती है किसी और को देने के बजाये " समानता कि नहीं विभेद कि बात करता हैं अगर बेटा नालायक हो तो ही बेटी करे या बेटा न हो तो ही बेटी करे । ये बात दोनों बच्चो को अलग अलग समझना हुआ जबकि चाहे बेटा हो या बेटी दोनों के कर्तव्य और अधिकार सामान होने चाहिये जो कानून और संविधान देता हैं
आशा हैं मेरी बात को अपनी बात का कटना नहीं समझेगी !!!
दीदी,
ReplyDeleteमैं ये मानता हूँ की मेरे कमेन्ट की दिशा काफी हद तक अलग सी नजर आ रही है | मेरा मानना है शारीरिक रूप से कमजोर होते हुए भी स्त्री की क्षमता अद्भुद है ये बात मेरे लिए शब्दों में बाँध पाना मुश्किल ही है | जहां तक कन्यादान , मोक्ष और सुयोग्य वर प्राप्ति की बात है मैं तो अति अल्पज्ञानी हूँ , पर ये मानता हूँ की .........
1. मन ही बंधन और मन ही मुक्ति का कारण है इसलिए ये कहा जा सकता है की पुत्री के प्रति [ उसके जीवन साथी को लेकर भी ] मन में निश्चिन्तता का भाव रहना भी सही मुक्ति की और ले जाता होगा | धर्म आदि को लेकर रूढ़िवादिता एक बीमारी जैसा है जिसका इलाज धर्म का सही ज्ञान ही कर सकता है | पीड़ा धर्म की आड़ लेकर पहुंचाई जाती है तो आधुनिकता की आड़ में भी
2. मानव जीवन में कईं समय आते हैं जब की "सुयोग्य हाथो" में होने का बिलकुल सही आशय समझ में आता है जैसे मान लेते हैं किसी बीमारी या माना गर्भावस्था या वृद्धावस्था में [ आजकल तो बेराजगारी में भी ] पति द्वारा देखभाल | जहां तक "भरण पोषण" की शब्दावली की बात है वो तो टेक्स्ट कोपी पेस्ट करने में साथ आयी है |
3. ये बात सच है की नागरिक अधिकारों जैसी बातों में समानता होनी ही चाहिए लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण कुछ क्षेत्रों में स्त्री पुरुष में समानता असंभव है , और मैंने पाया है की हमेशा सबसे पहले उन्ही क्षेत्रों की ओर समानता हेतु कदम बढाए जाते हैं और सिर्फ यही वजह है की स्त्री के स्वतंत्रता [ जिसके दूरगामी परिणाम संतुष्टिजनक आते हों ] पाना मुझे असंभव ही लगता है
4. मैं प्रत्यक्ष और प्रमाण में यकीन रखता हूँ और उन बातों से भी यही ज्ञात होता है की जिन देशों में अधिकारों में ज्यादा समानता या स्वतंत्रता है वहां भी नारी अपराध, मानसिक रोग, अवसाद का ग्राफ बढ़ा हुआ ही है | अब इसकी क्या वजह हो सकती है ?
5. दोयम दर्जे वाली बात पुरुष पर भी लागू होती है
सार बात है : इस दुनिया में सिर्फ दो तरह के लोग होते हैं अच्छे और बुरे ... [ना की स्त्री और पुरुष ..ना ही ताकतवर और कमजोर] और भारत में परिस्थितियाँ सुधारी जा सकती हैं
आपके लेख की मूल भावना को समझ सकता हूँ, आपने मेरे कमेन्ट का उत्तर दिया ... मैं इसे सम्मान [पाठक होने के नजरिये से] और स्नेह [छोटे भाई के नजरिये से] का प्रतीक मानता हूँ :)
जिन तीन बातो पर ये पोस्ट आधारित हैं उनमे किस बात मे "आधुनिकता " कि बात कि गयी हैं । टिपण्णी देने का आशय क्या होना चाहिये ?? आप ने हर बात कि मीमांसा कि हैं गौरव जबकि तीन बातो से आप सहमत हैं या असहेमत ये कहीं भी स्पष्ट नहीं हुआ । निरंतर कमेन्ट करते हैं आप जिस का शुक्रिया पर पोस्ट पर सहमति या असहमति अगर नहीं मिलती तो कोई राय नहीं बन सकती ।
ReplyDeleteकिस देश मे कौन सा ग्राफ कितना बढ़ा और कितना घटा से जरुरी हैं कि हम मुलभुत बातो पर अपनी सहमति या असहमति व्यक्त कर दे ताकि हमारी सोच क्लीयर तरीके से लेखक और अन्य पाठक तक पहुचे ।
दीदी,
ReplyDeleteओह ! .... हाँ.. क्षमा चाहता हूँ ..
1. सिर्फ पहली बात से सहमत और माता पिता की संपत्ति पर पुत्र पुत्री दोनों का अधिकार समान होना चाहिए
2. "रूढ़िवादिता" से "आधुनिकता" की बात दिमाग में निकल आयी थी
गौरव इस पोस्ट मे कहीं भी ये नहीं कहा गया हैं कि लड़कियों को माता पिता कि संपत्ति मे सामान अधिकार चाहिये इस के विपरीत लड़कियों को चाहिये कि वो अपनी आय आपने माता पिता पर खर्च करे ज़रा दुबारा पढ़े इस पोस्ट को आप से विनिती हैं सम्पत्ति मे अधिकार कानून पहले ही दे चुका हैं
ReplyDeleteपोस्ट आधारित कमेन्ट हमको किसी नये रास्ते पर निकलने मे सुविधा देगे और दूसरी बाते जो मन मे आती हैं किसी भी पोस्ट को पढ़ कर उस पर अपनी पोस्ट लिख कर अपने ब्लॉग पर देने से बात दूर तक जायेगी !!!!!!!!!!!
इतने दिन से बच रही थी एक बच्चे से उलझाने से पर आज फस गयी क्युकी बच्चा लिखता सही हैं पर गलत जगह
और बच्चे हमेशा जीतते अच्छे लगते हैं गौरव बस सही रास्ते पर सही दिशा मे चल कर जीते
शुभ आशीष
@इस पोस्ट मे कहीं भी ये नहीं कहा गया हैं कि लड़कियों को माता पिता कि संपत्ति मे सामान अधिकार चाहिये
ReplyDeleteजानता हूँ .... ये मैंने अपनी तरफ से जोड़ा था ..पोस्ट को अच्छी तरह पढता हूँ .. सच्ची
मेरी दिशा हमेशा सही रहेगी और अब आपका आशीर्वाद भी साथ है .. और क्या चाहिए :)
दीदी,
ReplyDeleteजल्दी जल्दी में भूल गया था ये बताना रह गया था
१. कानून के सभी फैसलों कई भी पूरी जानकारी है :)
२. एक पाठक और एक आभासी भाई के तौर ये बच्चा [गौरव] हमेशा हारा ही है :(
लेकिन क्या फर्क पड़ता है ? :)
शुभकामनाएं :)
सस्नेह :)
गौरव
समानता का अर्थ रूढ़िवादी सोच से मुक्ति ...
ReplyDeleteसार्थक परिभाषा ....
अब कन्या दान मात्र शब्द है , सही है ...
शोभना जी के जैसे अनुभव मेरे भी हैं ...कई विवाह समारोहों में , शुभ कार्यों में विधवाओं को सज श्रृंगार कर भाग लेते देखा है .... अब पहले जैसी रोकटोक नहीं है ...सिर्फ टी वी धारावाहिकों के अलावा :)
अच्छी पोस्ट !
रचना जी
ReplyDeleteमुखाग्नि को लेकर मेरा बस इतना सोचना है की वो भी कन्यादान की तरह एक रस्म भर है उसका ज्यादा महत्व मै नहीं देती हु | यदि हम अपने माँ बाप की उनके जीवित रहते सेवा नहीं कर रहे है चाहे बेटा हो या बेटी तो मुखाग्नि जैसे रस्म करके उन्हें कौन सा सुख उन्हें दे देंगे है | अच्छा हो एक रस्म में समानता की जगह हम माँ बाप की सेवा में समानता दिखाए | मुझे लगता है की हमें रस्म की बजाये उस के पीछे छुपे मानसिकता को बदलना चाहिए कि पुत्र के हाथ यदि मुखाग्नि नहीं मीली तो मोक्ष नहीं मिलेगा या पुत्र ही वंश चलाएगा अदि आदि |
इसके पहले इस पर पोस्ट आई थी तब भी मैंने कहा था कि धर्मिक रूप से कोई मनाही नहीं है अभी गिरीश जी से पता चला है कि गरुण पुराण में लिखा है की कोई भी बेटा या बेटी माँ पिता को मुखाग्नि दे सकता है | मतलब साफ है की ये मान्यता सामाजिक ज्यादा है धार्मिक कम | अब आप बताइये यदि माँ बाप की मृत्यु हो जाये और कोई बेटी कहे की भाई तुम नहीं मै मुखाग्नि दुँगी तो भाई की इच्छा और हक़ कहा गया तो ये कैसे तय होंगा की कौन देगा यही बात दी भाइयो में भी हो सकता है | सो इसके लिए एक सामाजिक परम्परा चली आ रही है उसे ही चलने देने की बात मैंने की है समानता ये है की अब भी लोग बेटे के ना होने पर किसी दूसरे पुरुष से ये करने के लिए कहते है उसकी जगह ये हक़ पुत्रियों को मिलाना चाहिए जैसे की बड़े भाई के ना करने पर छोटे भाई को ये हक़ मिल जाता है | मै भी आप की बात से सहमत हु की हक़ बराबर का होना चाहिए लोगों की मानसिकता बदलनी चाहिए | आशा है की मै अपनी बात ठीक से रख पाई हु |
अंशुमाला जी
ReplyDeleteक्या ये असंभव हैं कि जितने बच्चे हो सब हाथ लगाए मुखाग्नि के समय अगर वो चाहते हैं तो लेकिन लड़की को रोका जाता हैं और दामाद तोअर्थी को कन्धा दे दे तो लोग कहते हैं नरक मिलता हैं । मै केवल सामाजिक धरातल पर लड़कियों मै जागरूकता कि बात कर रही हूँ । ये जो मैने अधिकार कि बात कि है वो कर्तव्य हैं किसी भी संतान के लेकिन असमानता कि वजेह से लडकिया पराया धन कहलाती हैं और उनसे धन लेना माँ पिता को संताप देता हैं , लड़की से मुखाग्नि कि बात आज भी लोगो को समझ नहीं आती { आप से आशय नहीं हैं बात समाज कि हैं } ।
लडकियां अपने कर्तव्यों कि पूर्ति एक संतान कि तरह इसीलिये नहीं कर सकती क्युकी अभिभावक उनको बेटे जैसी मानते हुआ भी एक लाइन खीच कर रखते ही हैं
सस्नेह
रचना
रचना जी,
ReplyDeleteमुझे लगता है कि ज्यादातर भारतीय परिवारों में आज भी संतान के रूप में पुत्र की कामना इसलिये की जाती है कि वह कमाऊ साबित होगा,बुढापे का सहारा होगा बेटे के हाथों पिण्डदान से मोक्ष जैसी बातों पर अब लोग कम यकीन करते हैं वहीं दूसरी ओर बेटी को शादी के बाद अगले घर जाना पडता है उसे वहाँ की ही सदस्य मान लिया जाता है परंतु फिर भी आजकल कुछ बदलाव दिख रहे है शहरों में यदि लडकियाँ कमाती है तो घरवालों पर अपनी इच्छा से खर्च भी करती है शादी के बाद बेटियों को अलग नही माना जाता बेटी दामाद से छोटी मोटी आर्थिक मदद भी ली जाती है घर के हर छोटे बडे फैसले में उनकी राय भी ली जाती है (अब तो मोबाईल और आ गया है ).यदि सचमुच लोग कन्यादान का मतलब वो ही मानते जो इसके नाम से लगता हैं तो ये सकारात्मक बदलाव कभी नही आता यानी धीरे धीरे ये पराया धन वाली सोच बदल रही है और बदलनी चाहिये इसलिये आपने पहले पॉइंट में जो बात कही है वही मुझे सबसे महत्तवपूर्ण लग रही है इस ओर बदलाव आ रहा है और यदि ये ही नही आएगा तो आप ऐसी कितनी ही रस्मों को बंद करवाइये लडकियों की स्थिति नही बदलने वाली.
इस पोस्ट पर हुई चर्चा से बहुत कुछ जानने को मिला इसके लिए आप सभी को धन्यवाद
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