हम सब का प्रयास यही होगा कि आगे आने वाली पीढी स्त्री और पुरूष बाद मे हो मनुष्य पहले । प्रतिस्पर्धा ना रहे दोनों मे । अगर भारतीय समाज को "परिवार " को बचाना हैं तो उसे ये मानना होगा कि नारी पुरूष बराबर हैं नहीं तो अब परिवार और जल्दी टूटेगे क्योकि आज कि पीढी कि स्त्री आर्थिक रूप से सक्षम हैं और उसे अकेले रहने और अकेले तरक्की करने से परहेज नहीं हैं ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
November 12, 2010
अगर भारतीय समाज को "परिवार " को बचाना हैं तो उसे ये मानना होगा कि नारी पुरूष बराबर हैं नहीं तो-----
साहित्य मे बार बार जो नारी को अबला कह जाता हैं क्या सही हैं ?? क्या नारी जो ख़ुद भी आज भी यही लिखती हैं कि वोह अबला हैं , ये पुरूष प्रधान समाज हैं सही कर रही हैं ? क्या इस प्रकार का साहित्य आज के समय मे भी सही हैं जहाँ बार बार ये लिखा जाता हैं कि समाज मे नारी को केवल घुटन मिलती हैं ?? आज से ६० साल पहले जब देश आजाद हुआ तब स्थिती और थी , औरत के लिये समाज मे जो स्थान था उस समय उसके अनुकूल जो नारियाँ लेखिका बनी उनका रचना साहित्य उस समय के लिये था { नहीं मे ये नहीं कह रही साहित्य obselete हो जाता हैं } क्योकि उनके पास आगे बढने के लिये , घुटन से निकालने के लिये कोई और रास्ता नहीं था । किताबे पढ़ना और किताबे लिखना और इतना बढिया लिखना की कोई भी नारी पढे तो रिवोल्ट करने के तैयार हो जाए यही मकसद था उनके लेखन का पर आज के समय मे नारी के पास घुटन से आज़ादी अर्जित करने के बहुत साधन हैं । आज कि नारी का विद्रोह पुरूष से नहीं , समाज कि कुरीतियों से हैं जो नारी - पुरूष को एक अलग लाइन मे खडा करती हैं । ६० साल पहले कि नारी विद्रोह कर रही थी शायद पुरूष से और इसीलिये वह बार बार कहती थी " हमें आजादी दो " लेकिन आज कि नारी अपने को आजाद मानती हैं और उसका विरोध हैं उस नीति से जो उसे पुरूष के बराबर नहीं समझती ।
यकीनन बराबरी जरूरी है
ReplyDeleteजरूरी है और है भी...
ReplyDeleteअबला कह कर उसे कमजोर बनने की कोशिश की जाती है | रही बात बराबरी की तो जब हम मानते है की हम उनके बराबर है तो फिर किसी और चीज की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है आज नहीं मना रहे है एक समय आयेगा जब वो भी मानने लग जायेंगे |
ReplyDeleteआपने बहुत सही लिखा है. पर समस्या तो यह है की पुरुष ही नही नारी खुद भी स्वयं को कमजोर मानती है. समानता और सम्मान पाने के लिए पहले उसे भी अपने रूढ़िवादी संस्कारों से मुक्त होना होगा
ReplyDeleteनारी की महिमा का वास्तविक व्याख्यान तो दुर्गासप्तसती में मिलता है , नारी किसी भी युग में कमजोर नही थी । ये अलग बात है कि अक्सर हम अपनी ताकत भूल जाते है ।
ReplyDeleteहम तो इस धरती पर जीवन का आधार है , फिर हम कमजोर कैसे है??
इस ब्लॉग पर पढी हुई अब तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट्स में से एक मानना चाहूँगा इसे ।खरी खरी और बहुत सटीक ।ऐसे समय में जबकि परिवारों के टूटने के लिए सिर्फ नारी को दोषी माना जा रहा है, इसकी जरूरत भी थी । अंशुमाला जी और पूनम जी से भी सहमत ।
ReplyDeletebahut sateek likha hai....
ReplyDeletenari ko abla manne walon ki aankhen kholna Zaroori hai
sirf komalta pradarshan se nahi apne bal ke pradarshan se baat banegi....
mahan nari "sabla" wo hai jo apni kshamta ko siddha kar ke bhi prem,daya,mamta, kshama, tyag adi komal gunon ko dharan kare, na ki vo jo "abala" hone ke karan in gunon ko dharan kare
nareetva ko punah paribhashit karne ki zaroorat hai.....