माथे पर सुहाग की निशानी नहीं थी और ना ही आंखों में ज़िंदगी में आए सूनेपन को बयां करने वाले कोई आंसू.. हां, हाव-भाव में एक नरमी ज़रूर आ गई है..। नरमी भी ऐसी जो किसी बदलाव की तरफ़ नहीं बल्कि हालात के सामने बेबस हुई एक विधवा की तरफ़ इशारा करती है.. एक विधवा जिसके तीन बच्चे हैं.. और बच्चों के अलावा परिवार में एक बूढ़ी बीमार सास और जेठ हैं..।
मैं शालिनी वत्स की बात कर रही हूं.. जिन्होंने ‘पिप्ली लाइव’ में नत्था की पत्नी धनिया का किरदार निभाया है..।
पूरी फिल्म में मुझे सबसे ज्यादा जिस किरदार ने प्रभावित किया वो धनिया का था और जिस तरह से शालिनी वत्स ने धनिया के किरदार को पर्दे पर उकेरा वो सचमुच क़ाबिले तारीफ़ है..। कल ही फिल्म देखी.. और अभी तक धनिया की छाप ज़ेहन पर है..। (बाक़ी किरदारों को कमतर नहीं आंक रही हूं, बस धनिया ने कुछ ज्यादा ही प्रभावित किया)
लेख की शुरुआत में जिस दृश्य की बात मैं कर रही हूं.. उस दृश्य में धनिया पर से मेरी नज़रे हटी नहीं..
(धनिया और बाकी पूरी दुनिया को लगता है कि नत्था की एक हादसे में मौत हो चुकी है, जबकि ऐसा नहीं है ज़िंदगी और मीडिया के दम घोंटू माहौल की वजह से नत्था गांव से दूर शहर में चला गया है)
पति की मौत हो चुकी है लेकिन धनिया के चेहरे पर कोई शिक़न नहीं है.. वो आंगन में बैठकर कुछ काम कर रही है और तभी उसके जेठ घर वापस लौटते हैं.. नत्था की कथित मौत पर मुआवज़े की आस पर दर-ब-दर भटकने के बाद बुधिया खाली हाथ लौट आया है.. धनिया उसे पानी पीने को देती है और साथ ही मुआवज़े के बारे में पूछती है..। धनिया के बर्ताव में एक अपनापन और सवाल में विनम्रता नज़र आती है..। आप सोचेंगे अपनो के प्रति अपनापन और विनम्रता होना कौन सी बड़ी बात है.. लेकिन मुझे लगता है बड़ी बात है..। क्योंकि ये वही धनिया है जो ग़ुरबत और सास के तानों के बीच किसी तरह ज़िदंगी काट रही है और ज़िम्मेदारियों को संभाल रही है.. और उसके जबाबी शब्द बाण किसी फिदायीन से कम नहीं लगते थे..।
हादसे में पति की मौत (भले ही वो पहले ही आत्महत्या करने का ऐलान कर चुका हो और पूरा नेशनल मीडिया इस बात को कवर कर चुका हो) के बावजूद धनिया पर वो असर नहीं दिखता जो अमूमन पति के गुज़र जाने के बाद होता है या जिस तरह से फिल्मों में फिल्माया जाता है..। ऐसा लग रहा है मानों नत्था का होना न होना उसके लिए कोई मायने ही नहीं रखता.. या ग़रीबी का जाल कुछ ऐसा है कि उसे मुआवज़े के तेज़धार हथियार से ही काटा जा सकता है और उस हथियार को पाने के लिए पति की जान को दांव पर लगाना कोई महंगा सौदा नहीं..।
एक शादीशुदा औरत के लिए.. चाहे वो कितनी ही आत्मनिर्भर क्यों न हो, पति का साथ बहुत अहम होता है..। और फिर धनिया जैसी ग्रामीण महिला के लिए तो उसका सुहाग उसकी सबसे बड़ी दौलत होना चाहिए.. लेकिन ग़रीबी और बच्चों की चिंता ने उसे ऐसा घेरा है कि वो सिर्फ़ यही सोच पाती है कि कैसे उसकी और उसके बच्चों की ज़िंदगी कटेगी..।
इससे पहले निर्देशक बाल्की की फिल्म ‘पा’ में औरत के चरित्र का नया पहलु देखा था.. जब शादी से पहले ही गर्भवती हुई विद्या बालन को उनकी मां बेहिचक पूछती हैं कि तुम इस बच्चे को रखना चाहती हो या नहीं..। बेहद खुशी हुई थी.. मां के किरदार के इस नए रुप से (वजह चाहे जो भी रही हो)...
ऐसा ही कुछ अलग ‘पिप्ली लाइव’ में देखा जहां एक औरत के लिए ज़िंदगी की लड़ाई, सुहाग के न रहने पर खत्म नहीं हो जाती..।
औरत एक पत्नी होती है और फिर एक माँ. पति के न रहने पर उसके जेहन में पति का गम तो पीछे छूट जाता है उसको अपने बच्चे दिखलाई देते हैं. अपने मनोभावों को बखूबी धनियाँ ने प्रदर्शित किया है.
ReplyDeleteअभी देखी नहीं है फिल्म ... जब देखूंगी तो आपके इस नजरिये को ध्यान में रखते हुए देखूंगी...
ReplyDeleteफ़िल्म तो नहीं देखि है और यहां रहते देख भी नहीं पायेंगे पर आपके लेख से औरत के एक सशक्त चरित्र के बारे मे पता चला।
ReplyDeleteये फिल्म तो मैने भी नही देखी पर हाँ पा जरूर देखी है और मां का किरदार उसमें मुझे भी पसंद आया था ।
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