जानी-मानी फोटोजर्नलिस्ट सर्वेश ने अपने एक टीवी इंटरव्यू में जोरदार टिप्पणी की।
टीवी ऐंकर का आम-सा सवाल था कि एक महिला होने के नाते इस प्रोफेशन में कोई अड़चन नहीं आती जब उन्हें रात-बिरात अनजानी-अजीब सी जगहों पर भी कवरेज के लिए जाना पड़ता है?
इस पर सर्वेश ने कहा कि रात में भी अकेले काम पर निकलना पड़े तो डर उन्हें बिल्कुल नहीं लगता। सर्वेश के आगे के तर्क लाजवाब कर देने वाले थे- "यह डर वास्तव में समाज-परिवार जबर्दस्ती स्त्री के मन में भरता है। किसी भी वक्त घर जाना या घर से निकलना, कहीं भी जाना हर व्यक्ति का मानवाधिकार है। विना तकनीकी वजह के किसी के लिए ये पाबंदियां मजबूरी में या जबर्दस्ती सोची या लागू की जाती हैं तो यह उसके मानवाधिकार पर चोट है।"
“बलात्कारी के डर से घर से मत निकलो, ऐसा कहने की बजाए बलात्कारी को क्यों नहीं रोका जाता कि तुम बलात्कार न करो?!”
सही है, इसी तरह बु्र्का भी महिलाओं पर लादा जाता है फिर उसे उन की स्वेच्छा बताया जाता है।
ReplyDeleteआप ने सही कहा कि बलात्कारी को क्यों नहीं रोका जाता????
ReplyDeleteयह समाज ही ऐसा है....कानून बनाने वाले भी पुरुष ....तोड़ने वाले भी वहीं ....
नारी फिजीकली कमजोर होती है लेकिन मानसिक तौर पे वो पुरुषों से बलवान है....
एक विधवा नारी अकेली अपना जीवन बिता लेगी पर पु्रुष झट से दूसरी शादी कर लेतें है....बहाना...रोटी पकती हो गई...
हाँ तो बात हो रही थी ....नारी के घर से अकेले निकलने की....
अगर बलात्कारी को सजा़ का डर हो...
woman have equal rights given by law and constitution but the society still believes in its own laws and woman are made to realize time and again that they are "second grade citizens "
ReplyDeleteांअपसे शत प्रतिशत सहम्त हूँ। बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने... ऐसे ही हमलोगों का हॉस्टल गेट शाम को ही बंद हो जाता था...कारण लड़कों का डर ...लड़कों की बदतमीजियों पर रोक लगाने के बजाय लड़कियों को शाम से ही हॉस्टल में बंद कर दिया जाता था...वो कोचिंग भी नहीं जा सकती थी ...विरोध करने पर कहा जाता था कि लड़कियाँ आवारा हो गयीं हैं.
ReplyDeleteआपने सही कहा कि बलात्कारी को क्यों नहीं रोका जाता है पर परेशानी ये है कि यह बात किसी के सर पर नहीं लिखी है कि वह बलात्कारी है तो अपराध होने से पहले पकड़ा किसे जाये और हर गली नुक्कड़ पर पुलिस मौजूद हो ये भी जरुरी नहीं है जो आप कि सुरक्षा करे इसलिए यदि रात में बाहर निकलना है तो अपनी सुरक्षा के लिए जो उपाय किये जा सकते है वो खुद ही करके निकले तो ही ठीक है | क्योकि कई बार होता ये है कि कुछ लोग अँधेरी रात, सुनसान रास्ते और किसी लड़की के अकेले होने पर छेड़ छाड़ और बलात्कार करने कि हिम्मत कर जाते है जबकि वो दिन में या भीड़ भाड़ में ऐसा करने कि सोच भी नहीं सकते तो ऐसे लोगों को कैसे पकड़ा जाये | और एक बात और कि लड़किया तो ऐसी घटनाओ से घर के अन्दर भी सुरक्षित नहीं है जो उनके अपनों द्वारा किया जाता है तो क्या उनका घर में भी रहना बंद कर दिया जाये निश्चित रूप से ये सम्भव नहीं है इसलिए अच्छा होगा कि उन्हें हर जगह अपनी सुरक्षा करना सिखाया जाये|
ReplyDelete“बलात्कारी के डर से घर से मत निकलो, ऐसा कहने की बजाए बलात्कारी को क्यों नहीं रोका जाता कि तुम बलात्कार न करो?!”
ReplyDeleteमैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ. हम लोग अपने घर दरवाजों पर मोटे मोटे ताले लगते हैं चोरों के डर से. कोई चोरों से क्यों नहीं कहता कि तुम चोरी ना करो.
जैसे हम चोर को सिर्फ कहकर नहीं रोक सकते वैसे ही एक बलात्कारी को रोका नहीं जा सकता. रक्षा के उपाय तो करने ही होंगे. हो सकता हैं कि हम कड़े कानून बनाये पर क्या फिर भी बलात्कार शुन्य हो पाएंगे. तो क्या करना होगा? हमें अपना बचाव तो खुद ही करना पड़ेगा ना.
Kanoon se jyada ummeed nahi ki ja sakti.samaaj ko hi apni maansikta badalni hogi. lekin usse pahle kya hona chahiye isi par vichar hona chahiye.
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