सीताजी को लेकर आजकल काफी बहस चल रही है। सीता और राम के संबंधों का विवेचन किया जा रहा है। राम ने सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ली और धोबी के कहने पर राम ने सीता का परित्याग क्यों किया, बहस का मुद्दा है और गंभीर मुद्दा है। इसलिए पक्ष और विपक्ष में बहुत सारी दलीले दी जा रही हैं, निश्चित रूप से सीता माता फेसबुक पर हो रही इस बहस से बहुत खुश होंगी कि चलों, इतने दिनों बाद ही सही, सतयुग में न सही कलयुग के मानवों ने ही उन पर हुए अत्याचारों पर ध्यान दिया और राम को कटघरे में खड़ा किया। पर मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही कि इस समय जब मँहगाई आम जनता का गला दबोचे हुए है, नक्सलवादी दंतेवाड़ी में इतने कम अंतराल में दो हत्याकांड कर चुके हैं, झारखंड में राजनीतिक फांदेबाजी और बंद का आतंक जारी है ऐसे समय में राम-सीता पर बहस कितनी सामयिक है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान हटा कर सिर्फ बहस करने के लिए बहस कर रहे हैं।
अगर हम सचमुच महिलाओं की समस्याओं को लेकर गंभीर हैं तो गरीब राज्यों की महिलाओं की खरीद फरोख्त की बात क्यों नहीं करते। ये एक बड़ी समस्या है जिसका सामना इन राज्यों की गरीब महिलाओं को करना पड़ रहा है। दलाल और कुटनियां तो इस काम में लगे ही हैं साथ ही इन बच्चियों और महिलाओं के तथाकथित पति, प्रेमी और भाई भी इसमें अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। इसके अलावा प्लेसमेंट एजेंसियों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इन्हें दिल्ली या अन्य बड़े शहरों में भेजा जाता है प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से इन्हें सो काल्ड बड़े घरों में घरेलू नौकर का काम दिया जाता है। इन घरों का अभिजात्यपूर्ण वातावरण ही इन गरीब परिवार की महिलाओं का जीना हराम कर देता है। छोटी-छोटी बातों पर इन्हें सजा देना आम बात है। सजा भी ऐसी कि सुनने वाले की रूह कांप उठे। अपने घर में सजा देने वाली या वाले वह लोग होते हैं जो सामाजिक मंचों पर गरीब, दबी-कुचली महिलाओं की दशा पर घड़ियाली आँसू बहाते है और अखबार के रिपोर्टर को विशेष रूप से ताकीद किया जाता है कि उनकी न्यूज पहले पन्ने पर नहीं, तो सिटी न्यूज पर अवश्य लगाई जाए लेकिन घऱ में गरीबों के इन अम्बरदारों का व्यवहार कुछ और ही होता है। चाय ठंडी हो जाने पर उसे नौकरानी के चेहरे पर फेंक देना ये अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है। क्योंकि ऐसी घटिया हरकत करते समय वो उनके लिए एक ज़र ख़रीद गुलाम के अतिरिक्त और कुछ नहीं होती।
कन्या भ्रूणहत्या की वजह से लड़के-लड़कियों के अनुपात में आई कमी की वजह से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विवाह योग्य लड़कों के लिए लड़कियां का अभाव सा हो गया। इस अभाव की पूर्ति भी ये लड़कियां ही करती हैं, जिन्हें अपनी वंश बेल बढ़ाने के लिए कुछ पैसों में खरीद लिया जाता है। एक-दूसरे की भाषा न जानने के कारण पति-पत्नी के बीच संवाद की स्थिति नहीं होती। ये लड़कियां दिनभर घर का काम करती हैं और रात में अपने मालिकों को यौन सुख देती हैं। बस यही इनकी जिंदगी है........
-प्रतिभा वाजपेयी
as always a very thought provoking post
ReplyDeleteआपके इस लघु आलेख के तीनों पैराग्राफ तीन स्थितियों को दर्शाते हैं...........
ReplyDeleteलड़कियों की स्थिति सो काल्ड बड़े घरों में.......==== किसके कारण बेकार है?
लड़कियां खरीद कर क्यों लाइ जा रहीं हैं?
कन्या भ्रूण हत्या यही सो काल्ड पढ़ा लिखा वर्ग ज्यादा कर रहा है....
मंच पर भाषण देने का काम भी लगभग इसी वर्ग का है....
समस्या खुद आपने सुझाई है और कही न कहीं इसका समाधान भी आपने दिखाया है बस हम लोगों को समझने की जरूरत है.....
बहुत दिनों बाद नारी पर अच्छा सार्थक आलेख...इसके लिए आभार... (क्षमा सहित क्योंकि हमें किसी के लेखन को अच्छा-बुरा बताने का अधिकार इस मंच पर नहीं है)
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
एक विचारनीय प्रश्न है, हम बहस वहाँ क्यों नहीं करते , जहाँ इसकी जरूरत है? वर्त्तमान से मुंह छुपा कर अतीत में क्या खोज रहे हैं? उसको तो हम नहीं बदल सकते हैं, जिसे बदला जा सकता है उसकी ओर ध्यान दें. बहस सार्थक हो न की आरोपों और प्रत्यारोपों की लम्बी कड़ी.
ReplyDeleteये प्लेसमेंट एजेंसियां भी सिर्फ अपने पैसे बनाने का काम करती हैं, उनको लेकर जानेवाले और जिसको लेकर जाना है उसकी कोई भी गारंटी नहीं होती है. सिर्फ और सिर्फ घरेलु नौकरों की खरीद फ़रोख्त होती है. अभी कानपुर में भी ऐसी ही घटना हुई थी की प्लेसमेंट सेल से लायी हुई लड़की को मालिकिन ने इतना सताया की वह घर से भाग कर पुलिस के पास पहुँच गयी. तब मालिक की पोल खुली. लड़कियाँ या औरतें जो भी हों, उनको यदि काम पर लगाया जाय तो उनको इंसान ही समझा जाय मशीन नहीं.
rekhaji ise bahas ka nam na dekar swavd khe to jayada prabhavi ho.
ReplyDeleteManoj Kumar
ज्वलंत विषय उठाया है आपने|
ReplyDeleteआज जरुरत है" बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय "राम और सीता के सन्दर्भ में |
देश काल और परिस्थियों के साथ अलग अलग तरह की समस्याए होती है और उसी के अनुसार ही हमे उन समस्याओ को का समाधान खोजना होता है |आपकी बातो से पूर्णत सहमत |
लकीर के फकीर कब तक बने रहेगे ?
बहुत अच्छी पोस्ट. एक पार्टी विशेष ने तो राम को वैसे भी अपना ब्रांड एम्बेसडर बना लिया है. अब सीता के बहाने महिलाओं का जायजा लिया जा रहा है, वो भी केवल बातों में. सीता ने क्या सहा या क्या अन्याय उनके साथ हुआ, ये साबित हो भी जाये, वैसे ये जगज़ाहिर है, तो क्या उन्हें न्याय दिलवाया जा सकेगा? आज की जीती-जागती सीताओं पर दृष्टिपात करें तो बेहतर हो.
ReplyDeleteIt is nice article.but what is the use
ReplyDeleteof going back in old mythological stories .Ram was a king who believed in
democracy ,did not leave Sita by his own will . He was to act according to
the wish of people .
Asha
बहुत सही लिखा है आपने. हमें इतनी पुरानी बातों को छोड़कर वर्त्तमान की समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए... और आपने जो घरेलू नौकरों वाला मुद्दा उठाया है, यह आजकल ज्वलंत मुद्दा है. अभी कुछ घटनाएं तो खबरों में भी थीं , पर न जाने कितनी बातें तो सामने ही नहीं आ पाती होंगी.
ReplyDeleteतमाम पुरानी बातें उठाई ही इसलिए जाती हैं कि वर्तमान से जनता का मुहँ मोड़ा जा सके।
ReplyDeleteइस अभाव की पूर्ति भी ये लड़कियां ही करती हैं, जिन्हें अपनी वंश बेल बढ़ाने के लिए कुछ पैसों में खरीद लिया जाता है। एक-दूसरे की भाषा न जानने के कारण पति-पत्नी के बीच संवाद की स्थिति नहीं होती। ये लड़कियां दिनभर घर का काम करती हैं और रात में अपने मालिकों को यौन सुख देती हैं। बस यही इनकी जिंदगी है....बेहद मार्मिक व सोचनीय...फिर भी हमारे नीति-नियंता सो रहे हैं.
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'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
aap ne samasyaa to uthai par us kaa koi thos samaadhan saamne nahin rakhaa.
ReplyDeletejahan tak ram ke dwaraa seetaa to tyagne kee baat hai to kripaa kar note kare kee Ram ne Seeta ka tyag ek purush ya pati ho kar nahin apitu ek rajaa ke nate kiya tha . kyon ke un kee maryada ke anusar praja raja se uper hotee hai atah us ke raay sarvopari mana jana chaahie.
बहुत सही लिखा है आपने. हमें इतनी पुरानी बातों को छोड़कर वर्त्तमान की समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए..
ReplyDeletederi se aane ki mafi chaunga...
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