" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
"The Indian Woman Has Arrived "
एक कोशिश नारी को "जगाने की " ,
एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
May 11, 2010
लड़की के अधिकार
एक २१ वर्षीया अविवाहित आर्थिक रूप से अपना जीवन यापन करने मे पूर्णता सक्षम लड़की / महिला के अधिकार और जिम्मेदारियां क्या क्या हैं ??
...वही अधिकार जो हिन्दुस्तानी क़ानून ने उसे दे रखे हैं... और वही ज़िम्मेदारियां जिसे निभाना एक नागरिक का नैतिक और सामाजिक दायित्व है... बहरहाल, कई अधिकारों को हासिल करने की महिलाओं की जंग जारी है...
mai fir dous khan ji baato se sahamat hun.avivahit ho ya vivahit samaj ke kanoon aur jimmedariyan to sabhi ko nibhani padti hai .yahi ek sachche nagarik ka kartavya bhi hai. poonam
ऐसी लड़की के अधिकार और कर्तव्यों के बारे में विधि सम्मत राय देना ही उचित है. वह इतनी परिपक्व भी नहीं कही जा सकती है कि वह नियंब्त्रणहीन स्वत्रन्त्र जीवन जीने की अधिकारिणी बन जाए. उसके लिए भी परिवार का संरक्षण और माँ बाप के साथ चिन्तन आवश्यक होगा.
क़ानून ने चाहे उसे जो भी अधिकार प्रदान किये हों, रूढ़िवादी और दकियानूसी समाज के नीति नियमों का पालन करना ही उसकी नियति है फिर उसका आर्थिक रूप से सक्षम होना या वयस्क होना भी कोई मायने नहीं रखता ! अगर ऐसा न होता तो निरुपमा तथा उसीकी तरह अन्य शिक्षित एवं बालिग़ लडकियों की ऑनर किलिंग के मामले घटित ना होते, हरियाणा की खप पंचायतों के अमानवीय फैसले अस्तित्व में नहीं आते ! सवाल अधिकारों को लिख कर क़ानून की किताबों में संकलित करने का नहीं है उन्हें वास्तविक रूप में खुले दृष्टिकोण के साथ लडकियों को प्रयोग करने देने के लिए सार्थक पहल करने का है ! साधना वैद http://sudhinama.blogspot.com http://sadhanavaid.blogspot.com
अधिकार तो उसे कानून और संविधान से मिले हुये हैं. रही बात ज़िम्मेदारियों की तो हम जिस समाज में रहते हैं, उसके प्रति और अपने परिवार के प्रति उसकी वहीं ज़िम्मेदारियाँ हैं, जो एक सामाजिक व्यक्ति की होती हैं. ये इस पर भी निर्भर करता है कि लड़की का परिवार कैसा है? अगर परिवार अपेक्षाकृत उदार विचारों वाला है, तो उसे बहुत सी छूटें मिल जाती हैं, पर अगर परिवार परम्परावादी है, तो उसके ऊपर बहुत से बन्धन लग जाते हैं. और इस पर भी निर्भर करता है कि वह लड़की मानसिक रूप से कितनी मजबूत है. कुछ लोग इक्कीस साल की उम्र में ही काफ़ी मैच्योर हो जाते हैं, जबकि कुछ में बचपना रहता है. मुझे लगता है कि हमें अपने बच्चों को मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाना चाहिये कि वे अपने निर्णय खुद ले सकें, फिर चाहे वो लड़का हो या लड़की.
स्त्री हो या पुरुष,इक्कीस का हो, इक्कतीस का , इकतालीस का या इक्यावन का.....जब तक समाज में व्यक्ति अधिकार से अधिक कर्तब्यों को तरजीह नहीं देगा,समाज स्वस्थ नहीं रह सकता... बाकी रही बात पुरुषों द्वारा स्त्रियों को कमतर तथा अधीनस्थ समझने की...तो मैं तो यही देख रही हूँ कि समय बदल रहा है और स्त्रियाँ अपनी कर्मठता ,अपने आचरण से स्वयं ही अपना स्थान बनाने और महत्व स्थापित करने में तेजी से सफलता पाती जा रही हैं...
...वही अधिकार जो हिन्दुस्तानी क़ानून ने उसे दे रखे हैं... और वही ज़िम्मेदारियां जिसे निभाना एक नागरिक का नैतिक और सामाजिक दायित्व है...
ReplyDeleteबहरहाल, कई अधिकारों को हासिल करने की महिलाओं की जंग जारी है...
फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है, इसलिए फ़िलहाल मसरूफ़ियात की वजह से सभी का यहां ज़िक्र करना मुमकिन नहीं...
ReplyDeletemai fir dous khan ji baato se sahamat hun.avivahit ho ya vivahit samaj ke kanoon aur jimmedariyan to sabhi ko nibhani padti hai .yahi ek sachche nagarik ka kartavya bhi hai.
ReplyDeletepoonam
ऐसी लड़की के अधिकार और कर्तव्यों के बारे में विधि सम्मत राय देना ही उचित है. वह इतनी परिपक्व भी नहीं कही जा सकती है कि वह नियंब्त्रणहीन स्वत्रन्त्र जीवन जीने की अधिकारिणी बन जाए. उसके लिए भी परिवार का संरक्षण और माँ बाप के साथ चिन्तन आवश्यक होगा.
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रेखा श्रीवास्तव
http://kriwija.blogspot.com/
http://hindigen.blogspot.com
http://rekha-srivastava.blogspot.com
wo hi sare adhikar jinke liye ek mahila ko sangharash karna padta hai aur wo purushon ko janamjaat hi mile hote hai oj
ReplyDeleteक़ानून ने चाहे उसे जो भी अधिकार प्रदान किये हों, रूढ़िवादी और दकियानूसी समाज के नीति नियमों का पालन करना ही उसकी नियति है फिर उसका आर्थिक रूप से सक्षम होना या वयस्क होना भी कोई मायने नहीं रखता ! अगर ऐसा न होता तो निरुपमा तथा उसीकी तरह अन्य शिक्षित एवं बालिग़ लडकियों की ऑनर किलिंग के मामले घटित ना होते, हरियाणा की खप पंचायतों के अमानवीय फैसले अस्तित्व में नहीं आते ! सवाल अधिकारों को लिख कर क़ानून की किताबों में संकलित करने का नहीं है उन्हें वास्तविक रूप में खुले दृष्टिकोण के साथ लडकियों को प्रयोग करने देने के लिए सार्थक पहल करने का है !
ReplyDeleteसाधना वैद
http://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
अधिकार तो उसे कानून और संविधान से मिले हुये हैं. रही बात ज़िम्मेदारियों की तो हम जिस समाज में रहते हैं, उसके प्रति और अपने परिवार के प्रति उसकी वहीं ज़िम्मेदारियाँ हैं, जो एक सामाजिक व्यक्ति की होती हैं.
ReplyDeleteये इस पर भी निर्भर करता है कि लड़की का परिवार कैसा है? अगर परिवार अपेक्षाकृत उदार विचारों वाला है, तो उसे बहुत सी छूटें मिल जाती हैं, पर अगर परिवार परम्परावादी है, तो उसके ऊपर बहुत से बन्धन लग जाते हैं. और इस पर भी निर्भर करता है कि वह लड़की मानसिक रूप से कितनी मजबूत है. कुछ लोग इक्कीस साल की उम्र में ही काफ़ी मैच्योर हो जाते हैं, जबकि कुछ में बचपना रहता है. मुझे लगता है कि हमें अपने बच्चों को मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाना चाहिये कि वे अपने निर्णय खुद ले सकें, फिर चाहे वो लड़का हो या लड़की.
mukti ji ki baat se purn sahmat....
ReplyDeletemukti jee ki tippani ka samrthan karta hoon....
ReplyDeleteस्त्री हो या पुरुष,इक्कीस का हो, इक्कतीस का , इकतालीस का या इक्यावन का.....जब तक समाज में व्यक्ति अधिकार से अधिक कर्तब्यों को तरजीह नहीं देगा,समाज स्वस्थ नहीं रह सकता...
ReplyDeleteबाकी रही बात पुरुषों द्वारा स्त्रियों को कमतर तथा अधीनस्थ समझने की...तो मैं तो यही देख रही हूँ कि समय बदल रहा है और स्त्रियाँ अपनी कर्मठता ,अपने आचरण से स्वयं ही अपना स्थान बनाने और महत्व स्थापित करने में तेजी से सफलता पाती जा रही हैं...
bahut hi lambi list hai
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