मुंबई ब्लॉगर मीट कि रिपोर्ट कई ब्लॉग पर पढ़ी ।विषय था " मेरी रचना, मेरी कलम और ब्लोगकी दुनिया " अनीता कि पोस्ट पर पढ़ा । साथ साथ ये भी पढ़ा "घुघुती जी का कहना था कि ब्लोगिंग से पहले उनकी अपनी कोई पहचान नहीं थी, उनकी पहचान उनके पति से थी, उनका सामाजिक दायरा पति के सहकर्मियों से जुड़ा था और वो खुश हैं कि ब्लोगिंग ने उन्हें अपनी एक पहचान दी है और अपने मित्र दिये हैं। "
ब्लॉग लिखने मे अपने अस्तित्व की तलाश करती नारियों को एक नया माध्यम मिला हैं अभिव्यक्ति का और अपने सरोकार बढाने का ।
वो लोग जो महिला के ब्लॉग पर विद्रूप , विषय से हट कर हास्य पूर्ण , और अश्लील कमेन्ट देते हैं या व्यक्तिगत कमेन्ट मे लेखक के परिवार , उसके रहन सहन पर आक्षेप करते हैं वो एक बार जरुर सोचे।
बहुत सी गृहणियां जिनके पास अब समय हैं अपने को अभिव्यक्त करने का और जिनके पास अब एक ऐसा माध्यम हैं जो उनके विचारों को देश विदेश तक ले जाता हैं उन सब को लिखने दे । बढ़ावा नहीं दे सकते तो कम से कम गलत कमेन्ट दे कर उनका उत्साह तो ना ख़तम करे ।
आज के लिये बस इतना ही ।
ब्लॉग्गिंग से जुड़ने का मेरा अनुभव ,स्वयं को दोबारा खोजने जैसा रहा, विद्यार्थी जीवन में कलम चलाई ,विवाह के बाद कलछी/की-बोर्ड में इतनी व्यस्त हुई की लगा अब कभी नहीं लिख पाऊँगी.. जी तो रही थी पर जिंदा होने का एहसास अब हुआ है
ReplyDeleteसही है !!
ReplyDeleteआपने सही कहा है...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है। पूरी तरह सहमत है।
ReplyDeleteसही है !आपसे सहमत।
ReplyDeleteblog to bas ek medium hai na jane aaj kitne star par mahilayen personal ko political bana rahi hai unki aawaj ko aaj koi bhi ansuna nahi kar sakta
ReplyDeleterachna ji 'kanpur ki vyatha katha' wala link to khul hi nahi paya
ReplyDeletekanpur ki vyatha katha post woman related nahin thee hataa di kshma chahtee hun aap ko pareshani hui
ReplyDeleteब्लॉग लिखने मे अपने अस्तित्व की तलाश करती नारियों को एक नया माध्यम मिला हैं अभिव्यक्ति का और अपने सरोकार बढाने का ।
ReplyDeleteआपसे पूर्णतय सहमत।
बिलकुल सही कहा है। आपसे पूर्णतय सहमत।
ReplyDeleteमेरा ख्याल है कि अभिव्यक्ति के लिए असीम आकाश से हो गए हैं ब्लॉग ...यूं तो आकाश में कोई विभाजन रेखायें नहीं पर सबके सम्मानजनक सहअस्तित्व की गुंजायश जरुर है ! दुःख केवल एक है कि यहां उन्मुक्त उड़ान भरते मासूम परिंदों के साथ कुछ गिद्ध भी मंडरा रहे हैं जिन्हें इस बात का शऊर नहीं कि जीवितों की गरिमा और सम्मान किसे कहते हैं !
ReplyDeleteअभिव्यक्ति ka esse achha madhayam aur kahan....
ReplyDeleteAapki baat se purn sahmat
रचना जी, बहुत अच्छा टॉपिक लिया है आपने. मैं भी जब रश्मि जी के ब्लॉग पर इस मीट की रिपोर्टिंग पढ़ रही थी, तो यही बात दिमाग में आयी थी. ब्लॉगिंग ने उन औरतों की भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है, जो घर से बाहर नहीं निकलती हैं. अब घर में बैठे-बैठे ही वे अपने अनुभव, दुःख-सुख, भावनाएँ सभी कुछ श्र्यर कर सकती हैं.
ReplyDeleteA nice effort .Congratulations
ReplyDeleteAsha
beshak bahot khoob alfaaz rakam kiye hai
ReplyDeleteSochna to jaroor chahiye par dusaron ke bare mein achchha kaun soche, jab apni vidroopata se furast mile tab to!
ReplyDeleteएक वर्ष की पूर्णता पर बधाई ।
ReplyDeleteस्तुत्य विचार ।
एक सराहनीय मंच नारी को मिला है ब्लॉग के माध्यम से .... अब कोई मंथन न हो , अब कोई बंधन न हो ...
ReplyDeleteजब भी कोई अच्छा काम या सोच सामने आती है तो कुछ लोग उसका विरोध करने व कहने में अपने को महत्व देने की कोशिश में सामने आते हैं.
ReplyDelete*जबकि वे नहीं जानते कि ये कार्य उनको स्वयं खुद की ही नहीं दूसरों कि नजर में भी नीचा दिखाता है. तो ऐसे कम बुद्धि लोगों पर ध्यान देने कि जरुरत नहीं.*
हमारी महिला शक्ति अपने नव-निर्माण में संपूर्ण स्फूर्ति+शक्ति से सहभागिता में लगी रहें .व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे को नहीं जानते हुए भी ब्लॉगिंग के माध्यम से हमारे विचार कितने एकमत हैं ,
यही है इसकी महत्ता एवं उपयोगिता.
स्वागत है सभी का ,मन के विचारों का.
बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ .
अलका मधुसूदन पटेल ,लेखिका-साहित्यकार
सही है !आपसे सहमत।
ReplyDeleteएक वर्ष की पूर्णता पर बधाई ।
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