महिला दिवस के बाद कुछ आत्म मंथन करे । देखा गया हैं कि हिंदी ब्लॉग जगत मे नारी विषय पर ना जाने कितना कुछ लिखा जा रहा हैं । महिला जो लिख रही हैं वो एक संघर्ष कि तरह इसको ले रही हैं और अपनी बात को पुरजोर तरीके से रख रही हैं । एक दूसरे से जुड़ कर वो अपनी बात को एक "ताकत " कि तरह कह रही हैं । ज्यादातर ब्लॉगर चाहे पुरुष हो या महिला वो रुढ़िवादी सोच से अलग एक "खुली " हवा मे सांस लेने कि बात करते हैं जो कि अपने आप मे एक अच्छी पहल हैं । कुछ हैं जो निरंतर रुढ़िवादी सोच के साथ ही जुड़े हैं और जब भी कही कोई पोस्ट आती हैं वो रुढ़िवादी सोच को आगे ले आते हैं और नारी को क्या क्या करना है और क्या नहीं इस पर जोर देते हैं । ठीक हैं उनका ब्लॉग उनका हैं , उनको अधिकार हैं वो जो चाहे लिखे और अपने को जैसा चाहे दिखाये लेकिन वो जो दिखा रहे हैं क्या वो वाकयी वही हैं यानी एक रुढ़िवादी ।
कुछ को जिनके ब्लॉग मे निरंतर पढ़ती हूँ क्युकी वो रुढ़िवादी हैं अपने लेखन मे , उनके ब्लॉग से उनके परिवार के विषय मे भी पता चलता हैं । इनमे से बहुतो कि बेटियाँ और पत्नियां नौकरी करती हैं । अकेली आती जाती हैं और बेटियाँ सो कोल्ड western outfit भी पहनती हैं । जो बात ये ब्लॉग जगत मे कहते हैं उससे बिलकुल अलग इनके घर मे होता हैं और ये उसको भी अपने ब्लॉग पर फक्र से लिखते हैं ।
अब इससे क्या निष्कर्ष निकाला जाए या तो क्युकी ये घर पर वो सब नहीं कलह पते इस लिये ब्लॉग जगत मे अपनी बात को पुरजोर तरीके से कहते हैं और अपनी कुंठा यहाँ निकलते हैं
या
इनके नियम केवल दुसरो के लिये हैं
यानी दूसरे कि पत्नी और बेटी को कैसे रहना चाहिये जो इस पर होता हैं इनकी पत्नी और बेटी कैसे रहती हैं उस पर बस नहीं चलता
इसके अलावा अगर ये दोनों ही बाते गलत हैं तो क्या केवल मौज और मनोविनोद के लिये ये बहस करते और लम्बी लम्बी बहस करते हैं ताकि नारी सशक्तिकरण का जो मुद्दा हैं वो कभी बहस का मुद्दा ही ना बने अगर ये सच हैं तो फिर इस मानसिकता को क्या कह सकते हैं
लोगो को ब्लॉग पर महिला के सुंदर चित्रों मे , जिन पर फ़ोन नंबर भी होता हैं कोई आपत्ति नहीं होती क्यूँ ?? आज इतने सेक्स रैकेट उजागर होते हैं क्या इनको सही समय पर रोक कर अपना सामाजिक धर्म पूरा नहीं किया जा सकता । क्यूँ नहीं मिशन कि तरह ये काम किया जाए ताकि समाज मे कहीं इंच भर का भी बदलाव आये तो हम मुस्करा कर कह सके हाँ हमने आँख खुली रखी थी इस लिये ये हुआ । सेक्स रैकेट कि शुरुवात ऐसे ही होती हैं लोग लड़कियों को मोडलिंग , एक्टिंग और मसाज के बहाने ना जाने कितने रास्तो का पता बताते हैं ।
शरीर को बेच कर कोई अपना घर चलाती हैं समझ आता हैं क्युकी सरकार या हम उसके लिये कोई दूसरा रास्ता नहीं बना पाये हैं लेकिन शरीर बेच कर कोई एक सबसे आसान रास्ता चुनती हैं कमाई का तो लगता हैं कि काश कहीं किसी नए सही समय पर इनको { बेचने और खरीदने वाले दोनों को } बे नकाब कर दिया होता तो शायद इतनी बात आगे नाहीं जाती ।
ब्लॉग लिखने से क्या होगा कुछ ब्लॉगर पूछते , बाहर आप क्या कर रही हैं ? कोई कहां क्या करता हैं इसका हिसाब किताब रखना क्या जरुरी हैं और उस हिसाब को मांगने का अधिकार भी आप को हैं या नहीं ये भी सोचना जरुरी हैं ।
मंथन जारी हैं शेष फिर कभी
यानी दूसरे कि पत्नी और बेटी को कैसे रहना चाहिये जो इस पर होता हैं इनकी पत्नी और बेटी कैसे रहती हैं उस पर बस नहीं चलता
ReplyDeleteइससे पता चलता है कि नारी ही नारी की दुश्मन होती है । यहाँ जितनी महिलाएं लिखती है नारी सशक्तिकरण को लेकर वे या तो अपने घर में अपने पती , अपने बेटे , पिता के प्यार से वंचित होती है या अपनी व्यक्तिगत झुझंलाहट को यहाँ लिखती है । इनका जमिनी अस्तर से कोई वास्ता नहीं है , जिस नारी सशक्तिकरण के लिए आप लोग चिल्ल पों करती रहती है आपने जमीनि स्तर पर कितना किया नारी विकास के लिए ये तो आप लोगों को ही पता होगा ।
रचना जी ,
ReplyDeleteये बिल्कुल ठीक बात है कि अतिवाद किसी भी तरह को और किसी भी रूप में हो वो अच्छा नहीं होता , जिसे आप रुढिवादिता कह रही हैं उन्हें बहुत लोगों ने परंपरा माना हुआ है अभी भी भारतीय संस्कृति में , कहीं कहीं पर आप खुद अंतर्द्वंद में फ़ंसी लगी हैं , अब देखिए न आपका ही कहना है कि मौडल, मसाज पार्लर ,और इसी तरह के क्रियाकलापों में उलझा कर महिलाओं का शोषण किया जाता रहा है , तो यहां फ़िर प्रश्न उठ जाता है कि ये सब कौन कर रहा है आधुनिकता का जामा पहनने वाली महिलाएं । मगर यहां बहुत दृढता से ये बात कहता चलूं कि जो सबल है सशक्त है वो ठीक है , समाज उसका कुछ नहीं बिगाड सकता , सीधी सी बात है कि नारी शक्ति को अपने अंदर की छुपी ताकत को पहचानना होगा , यदि हर घर में इंदिरा, किरन बेदी, कल्पना चावला, जैसी बेटियां पैदा होंगी तो किस मर्द के बच्चे , किस व्यक्ति या किस समाज की इतनी हैसियत है कि वो कोई भी सवाल उठा सके । हां सोच को संकुचित रखना मुझे कतई पसंद नहीं है ..फ़िर चाहे वो पुरूष हो या महिला .....
अजय कुमार झा
यहाँ सब अपनी बात कहने के लिये स्वतंत्र हैं, पर हमें आपत्ति इस बात से है कि नारी के पहनावे से संस्कृति के दूषित होने जैसी बातें लिखने से नारी-सशक्तीकरण के मुद्दे से सबका ध्यान हट जाता है. शीर्षक में "नारी" शब्द डालकर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के प्रयास में ये भूल जाते हैं कि ये वास्तव में क्या कर रहे हैं? इनका उद्देश्य क्या है? क्या औरतों के रहन-सहन पर लिखकर ये उसे बदलना चाहते हैं या बदल सकते हैं? नब्बे प्रतिशत औरतों की समस्याओं के स्थान पर इन्हें ५-१० प्रतिशत औरतों का रहन-सहन ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगता है. खैर, ब्लॉग इनका है, जो मन में आये लिखें. पर अगर टिप्पणी का विकल्प है, तो हम भी अपनी बात रखेंगे.
ReplyDeletetime pass ke liye thik hai lekin nirarthak post hai
ReplyDelete@मुक्ति जी
ReplyDeleteपहनावें की बात कहकर हम ये बताने की कोशिश करते हैं कि हम नारी विकास के बाधक नहीं हैं , हमारा विरोध उस विकास से है जो भारतीत संस्कृति , भारतीय सभ्यता को कुचलकर पाने की चेष्टा कर रहे हैं । हिटलर ने कहा था कि " जिस देश को नष्ट करना हो वहाँ की संस्कृति, सामाजिक ढाँचे को नष्ट कर दो " । यहाँ से हमारी चिन्ता शुरु होती है , आगे आप खुद समझदार हैं , समझती होंगी ।
रचना जी ,
ReplyDeleteये बिल्कुल ठीक बात है कि अतिवाद किसी भी तरह को और किसी भी रूप में हो वो अच्छा नहीं होता , जिसे आप रुढिवादिता कह रही हैं
रूढ़िवादिता का मतलब हैं समाज के बनाये वो नियम / परम्पराए जिनमे स्त्री और पुरुष को समान अधिकार नहीं हैं और जो संविधान कि समानता कि परिभाषा मे नहीं आते हैं
ReplyDeleteअतिवाद नारी कि नज़र मे नारी को आगे ना आने देने कि भरकस कोशिश
ReplyDeleteअतिवाद पुरुष कि नज़र मे नारी का निरंतर आगे आने का दुस्साहस
हमारी संस्कृति उस दिन से नष्ट होनी शुरू हुई जिस दिन से पुरुष जी ने धोती व विभिन्न आभूषण पहनने बन्द किए। ऐसा क्यों किया? क्यों पश्चिमी सभ्यता, वेश भूषा का अंधा अनुकरण किया आर्यपुत्रों ने? अब तो वे धोती पहनना भी भूल गए हैं। शायद अब कुछ नहीं हो सकता। चचचच्!
ReplyDeleteहमारे कमजोर कंधे यह बोझ उठाने में अक्षम हैं। क्षमा करना।
घुघूती बासूती
घुघूती बासूती जी
ReplyDeleteएक बात आपको मालूम ही होगा कि घर में कुछ गलत होने पर घर के मुखिया को ही इंगिता किया जाता है , कारण उन्हे वरियता प्राप्त होती है और वह श्रेष्ठ होता है । इसी तरह हमारे समाज में , हमारे संस्कृति में नारी उच्च स्थान प्राप्त है । जिस कार्य को नारी पहले अपना कर्तव्य समझ किया करती थी अब उसे बेड़ियो से पूकारा जा रहा है ।