कल कि पोस्ट का मूल प्रश्न था कि जो लोग निरंतर नारी के लिये क्या अच्छा हैं और क्या बुरा हैं , विवाह नारी के लिये कितना सुरक्षात्मक हैं , कितना जरुरी हैं इत्यादि पर निरंतर टिप्पणी देते हैं बहस करते हैं ,
क्या उन्होने अपने विवाह मे अपना सहचर खुद चुना था ,?
क्या उन्होने शादी के समय दहेज़/ स्त्री धन या अन्य प्रकार का व्यय किया था ?
क्या अपने विवाह का निर्णय उनका अपना था , ?
लेकिन अफ़सोस किसी भी ब्लॉगर ने अपनी स्थिति से परचित नहीं कराया ।
जितने भी विवाहित ब्लॉगर हैं जब तक वो अपने कारणों से अवगत नहीं कराते हैं हम कभी भी बहस को किसी भी निष्कर्ष तक नहीं ले जा सकते । और वो जितने भी नारी को ये समझते हैं कि शादी से बेहतर नारी के लिये कुछ नहीं हैं अपने समय मे उन्होने क्या निर्णय लिया था ये कभी नहीं बताते ।
पर उपदेश कुशल बहुतरे वाली स्थिति हैं
और शब्दों के छलावे से इतर ही दुनिया हैं
नारी से सम्बंधित एक पोस्ट मैंने आज ही डाला है....यह हो सकता है मेरा पूरा कमेन्ट....
ReplyDelete...नारी की समस्याएं सुलझने में वक्त लग सकता है....लेकिन सुलझना ही है....
........................
भविष्य में नारियाँ शक्तिशाली होती जायेंगी ......पुरुष कमजोर होते जायेंगे....
http://laddoospeaks.blogspot.com/
रचना जी,
ReplyDeleteआपने अक्सर देखा होगा कि ब्लॉगजगत हो या कहीं और औरतें अपने अनुभवों के बारे में जितने धड़ल्ले से बता लेती हैं, पुरुष नहीं. क्या कारण है इसका. हाँ, सच है मानव अपने अनुभवों से सीखता है, लेकिन सिर्फ़ अपने नहीं दूसरों के अनुभवों से भी. मैं सिर्फ़ अपने अनुभवों के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाल लेती. मैंने बहुत फ़ील्डवर्क किया है, वहाँ की औरतों और हॉस्टल में सैकड़ों लड़कियों से मिली हूँ. उन सभी के अनुभवों को सुना है. इन सब से बढ़कर ये बात होती है कि आप कितने संवेदनशील हैं किसी मुद्दे को लेकर. मैं संवेदनशील थी, इसलिये सबकी परेशानियाँ सुनती थी. लोगों को ये बात समझनी चाहिये. विवाह संस्था को मैं औरतों के शोषण का माध्यम मानती हूँ, पर मैं जानती हूँ कि इसका उन्मूलन अभी संभव नहीं है, इसीलिये मैं उसे अन्तरिम व्यवस्था के रूप में स्वीकार करती हूँ, पर अगर कोर्ट ने लिव इन को कानूनी रूप दे दिया, तो मैं उसे सही व्यवस्था मानूँगी.
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ReplyDeleteमै नारी पर आयी अधिकतर पोस्ट से सहमत रहता हूँ
ReplyDeleteआज की पोस्ट से भी सहमत हूँ
पिछली पोस्ट का जिक्र किया गया है उसे पढ़ नहीं पाया मगर आपज की पोस्ट से ही अंदाजा लग गया कि वहा क्या लिखा मिलेगा
लिव इन. के परिणाम क्या होंगे वो तो भविष्य के गर्त में हैं
आज इस मंच पर यही पूछना है कि खुलापन और भौंडापण में बहुत कम अंतर है खुला पण अपनाने के चक्कर में भौंडापन हांथ लगे और खुलापन दूर से और दूर होता जाये तो क्या समाज का भला हो सकता है ?
अभी तो मै तो खुद की शादी को लेकर असमंजस में हूँ करूँ या नहीं (?)
वीनस
एक बात नारी के पाठकों से पूछना चाहता था कई दिन से
ReplyDeleteआज कल कुछ बढ़िया जोकरों के ब्लॉग पर ४० से ५० तक कमेन्ट आ जाते हैं तो यहाँ जब कमेन्ट करने की बारी आती है तो क्या सबको एक साथ नींद आने लगती है ???
रचना जी,
ReplyDeleteआपने अक्सर देखा होगा कि ब्लॉगजगत हो या कहीं और औरतें अपने अनुभवों के बारे में जितने धड़ल्ले से बता लेती हैं, पुरुष नहीं. क्या कारण है इसका. हाँ, सच है मानव अपने अनुभवों से सीखता है,
रचना
ReplyDeleteजैसे इमानदार आत्मकथा लिखने का साहस सभी में नहीं होता वैसे ही इतने बड़े मंच पर अपने आप को खोल कर रखने का साहस जुटाने में अभी समय लगेगा ...कविता,कहानी लिखना और बात है,मुक्ति की बात सही है औरते अपने आपको जितनी सहजता से सामने रख देती है वैसे कोई और नहीं...
तब तक.....
लड़की के पिता ने जो दिया वही. न तो पिताजी ने माँगा और हमारी मंशा ही नहीं रही थी. दहेज़ में मिला वो भी बता दें.................पलंग, ड्रेसिंग टेबल, अलमारी, टी वी, एक मोटरसाइकिल.
ReplyDeleteक्यूँ हमेशा लड़की के पिता कि देनदारी होती हैं ?? क्या ये असमानता नहीं हैं , भेद भाव नहीं हैं लडके और लड़की मे । ये सबसे सुविधाजनक बात हैं माँगा नहीं उन्होने दिया ।
एक मोटरसाइकिल
आज कि समय मे वो कार बन गयी हैं !!!!!!!!!!!! क्यूँ दी जाए किसी को शादी मे कार सिर्फ इस लिये क्युकी वो पुरुष बन कर पैदा हुआ हैं ।
स्त्री धन क्या है
कुछ दिन पहले कोर्ट ने एक निर्णय मे कहा हैं जो भी चीज़ शादी के समय मिलती हैं वर पक्ष को वो सब स्त्री धन हैं यानी अगर वो कार आप बेचना चाहे तो नहीं बेच सकते ।
आप महिलाओं को दिशा नहीं दे सकतीं तो कम से कम दिशा से भटकाव तो न करिए.
आप महिलाओ को कम अकल समझते ही क्यूँ हैं । हम क्या किसी को दिशा देगे हम तो केवल अपने सवालों को रख देते हैं और इंतज़ार करते हैं कि कितने विविध रंगों से शब्दों के जाल को बुन कर लोग हम को पुरुष विरोधी , असंस्कारी और ना जाने क्या क्या कहते हैं ।
वीनस केशरी
ReplyDeleteइस ब्लॉग मे कोई भी ऐसी पोस्र्ट आप बता दे जहाँ हम ने खुले पण कि पैरवी कि हो । हम बार बार ये कहते हैं कि लडको और लड़कियों के लिये एक से नियम बनाओ । आज कल कि नयी पीढ़ी कि लडकिया हर वो बात करना चाहती हैं जो लडके करते हैं सो अगर समाज चाहता हैं कि नगनता कम हो तो उसको लडको पर लगाम कसनी होगी ताकि उनको फोल्लो करने के कारण जिस नग्नता को लडकिया अपनी अपरिपक्व उम्र के कारण अपनाती हैं वो न अपनाये ।
हर जगह ओर हर स्थिति में विवाह पैसों पर टिका सम्बन्ध नहीं है, यह तो एक सामाजिक स्तर है जो नर ओर नारी दोनों को ही एक नयी पहचान देता है. संस्कृति ओर समाज की दुहाई सिर्फ मध्यम वर्ग के लिए बने हैं. उनको ही सामाजिक सुरक्षा ओर छत्रछाया जैसे विशेषणों की जरूरत से बांधा जाता है. आज वह स्वतन्त्र है ओर आत्मनिर्भर भी. दोनों ही आपसी सहयोग से जिम्मेदारी को उठा रहे हैं. अब दकियानूसी सोच को नारी के आत्मविश्वास ओर आत्मनिर्भरता ने बदल दिया है.
ReplyDeleteअपनी स्थिति मैं बताती हूँ, आज से ३० साल पहले विवाह का निर्णय लड़कियाँ स्वयं बहुत कम ही ले पाती थी. मैंने भी नहीं लिया था, हाँ सहमति जरूर ली गयी थी. लेकिन अपने घर में मेरे पति ने जरूर इस विवाह के लिए अपनी मर्जी व्यक्त की थी और घर वालों को न चाहने के बाद भी विवाह करना पड़ा. सामान्य खर्च जो होते हैं किये गए .
परिवार के लिए समझौते जैसी स्थ्थी सबके लिए आती हैं. मैंने विवाह के बाद कई डिग्री लीं और इसमें मेरे पति का ही सहयोग था जो संभव हुआ. तमाम विषम परिस्थितियों के बाद भी मुझे कमजोर नहीं पड़ने दिया. ये संबल ही इस परिवार की नींव है.
kshama karen aapki kuC baate reality se kafi dur our purvaagrh se grasit hoti hai. .........
ReplyDeleteमेरे पति मेरा चुनाव थे, या हम दोनों एक दूसरे का चुनाव थे।
ReplyDeleteबहुत दूर दूसरे शहर से आए परिवार को होटल में ठहराया व उनकी आवभगत की थी। यह बारात नहीं थी बस एक परिवार था। दहेज नहीं दिया था।
निर्णय हमारा अपना था। बाद में परिवार भी सहमत हो गया था।
घुघूती बासूती
@ रचना जी खुलापन और भौंडापण की बात मैंने लीव इन रिलेशन शिप को लेकर कही थी
ReplyDeleteक्या इससे खुला पण बढ़ेगा या सामाजिक रिश्ते दरक जायेंगे ?
इस विषय को ध्यान में रख कर मेरा कमेन्ट आप पुनः पढ़े , निवेदन है
आप इस विषय में क्या सोचती हैं जानने की इच्छा है
-आपका वीनस केशरी
आपके इस कमेन्ट से भी सहमत हूँ :)
ReplyDeletevenus
ReplyDeleteaccording to me when two adults take a decision then we need to leave it to them . society means accepting the desicion of two matured adults and according to me maturity is when one starts earning and is finacially independent .
why should we question someone about their option to live in relationship ??? who are we to judge
why not let the court of law decide what is right or wrong
why should we inpose the laws of society over the laws of court ???
i dont promote live in relationship but i dont question why people do it either
no one has the right to dictate what two matured consenting adults do .
ReplyDeleteसबसे पहली बात तो ये कि जब आप ब्लोगजगत से रूबरू होकर कोई प्रश्न करते हैं तो जरूरी नहीं कि सभी बढचढ कर उसका जवाब देने आ जाएं , हालांकि आना चाहिए , मगर ये कोई शर्त नहीं होनी चाहिए इसलिए अफ़सोस की कोई बात नहीं होनी चाहिए ।
ReplyDeleteआपने कुछ प्रश्न पूछे हैं यदि उनका उत्तर मैं देना चाहूं तो कुछ इस तरह होगा
हां मैंने अपने मन से प्रेम विवाह किया , और माता पिता की भी पूरी सहमति रही उसमें ।
दहेज , .....पता नहीं ..इतना याद है कि अपने ही विवाह के लिए लिया गया लोन अगले कुछ महीनों तक निपटाता रहा था .....हां मगर इसके बावजूद मैं इस बात का फ़र्क नहीं बता सकता कि यदि माता पिता द्वारा चुनी गई किसी लडकी से विवाह किया होता तो क्या अंतर पडता
अजय कुमार झा
हर जगह ओर हर स्थिति में विवाह पैसों पर टिका सम्बन्ध नहीं है, यह तो एक सामाजिक स्तर है जो नर ओर नारी दोनों को ही एक नयी पहचान देता है
ReplyDeleteक्या विवाह सम्पूर्णता है ?... is par apne saarthak vichar vatvriksh ke liye preshit karen rasprabha@gmail.com per parichay, tasweer , blog link ke saath
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