March 05, 2010

नारी... ना री

काफी दिनो बाद कुछ आप सबसे बाटने की इच्छा जागृत हो रही है। बात चाहे मेरी अपनी हो या नारी समुदाय की हो, कई दिनो से जैसे मौन सी हो गयी थी... कारण की मै समझ रही हूँ कि सिर्फ बोलने से क्या होगा? स्थिती कुछ ऐसी है कि तुम लाख चिल्लाओ हम तो वही करेंगे जो करना है।

पर आज इसलिये बोलना चाहती हूँ क्योंकि सिर्फ अब बात सिर्फ बोलने की नही है... अब बताने की है...

तुम अगर नही मानोगे तो मत मानो हमने अपना रास्ता देख लिया है... हम वो करेंगी जो काफी पहले करना चाहिये था...

पहला उदाहरण दे रही हूँ मेरे ऑफिस की सफाई कर्मचारी राजेश की...

राजेश सीधी साधी.. बेवकुफ सी लगने वाली महिला है। पर वो कितनी बेवकुफ है वो कुछ इस तरह समझ मे आया।

राजेश एक दिन बोली दीदी मुझे कुछ ज्यादा पैसे दे दोगी। मुझे ना परीक्षा देना है... समय हो गया है पर मेरे पास फीस के पैसे नहीं हैं। वो क्या है की अभी तक मैने ना अपने घरवाले को नही बताया था कि मै पढ़ाई कर रही हूँ। तो जो कमाती थी उसमे से बचाकर फीस भर लेती थी। लेकिन उसको पता लग गया तो उसने मुझसे पैसे छिन लिया... और अब मै...

राजेश ने और भी बहूत कुछ कहा जो यहां बताना कोई बहूत जरूरी नही लग रहा है... क्योंकि बाकि जो बाते बताई वो आमतौर पर पारिवारिक कलह रूदन के अलावा कुछ नही था... पर जो खास था वो ये कि वो इस सबको अपनी किस्मत नही मान बैठी है... बल्कि जो वो कर रही है सभी शायद ना करें...

मै बस उसके आत्मविश्वास से भरे चेहरे को देखकर प्रफ्फुलित हुए बिना ना रह सकी...

नारी... अबला, वगैरह वगैरह उदाहरण तो खूब देखे... पर ना री नारी का ये रूप भी है।

एक और सफाई कर्मचारी रानी...
रानी कुलमिलाकर १००० रुपये कमाती है... और अपनी मेहनत की कमाई का आधे से भी ज्यादा पैसा अपनी दोनो बेटियों को पढ़ाने मे लगा रही है। कारण कि वह नही चाहती कि उसकी बेटी उसकी तरह अनपढ़ रह जाये। वो हमेशा कहती है कि दीदी मेरे बच्चे पढ़ जायेंगे तो फिर वो भी आपकी तरह सर उठा के इस समाज मे जी सकेंगी।
ये भी एक रूप है...

मेरी एक क्लाईंट अपनी बेटी के लिये मार्शल आर्ट की क्लास तलाश कर रही हैं... हालांकि बाकि औरते उनके इस निर्णय पर उनका मजाक ही उडा़ती थी.. लेकिन उनका कहना है की एक लड़की हमेशा नाजुक कमसिन सी ही क्योंकर दिखे... उसे तो और ताकतवर होना चाहिये ताकि उसे छोटी छोटी होने वाली अवांछित घटनाओ को भी इग्नोर ना करना पड़े, ना ही अपनी सुरक्षा के लिये दुसरो पर निर्भर होना पड़े...
आखिरकार इस तरह की बाते अन्य महिलाओं को भी समझ मे आ ही गयीं... मार्शल आर्ट तो नही मिला कहीं पर हां अब यहीं सेन्टर पर जो कुछ भी उप्लब्ध हो सका है उससे फिजिकर ट्रेनिंग शुरू हो गयी है।

मेरी एक ट्रेनी कान्हु कहती है कि दीदी... ये तो हम सब जानते हैं कि आये दिनो हम किस किस तरह के प्रताड़नाओ से गुजरते है... इसके बारे मे क्या बोलना... अब तो समय है कि हम ये बतायें कि मान तुम नही सुधरोगे...पर हम बदल रहे हैं।
उदाहरणार्थ...

एक दिन ऐसे ही "स्त्री को स्मान अधिकार मिले" इस पर बहस हो रही थी हम लोगो के बीच मे... कि अचानक एक यहां के नामी व्यक्तित्व ने प्रवेश किया और कहा की वैसे तो आप लोग जो कह रही हैं कुछ ऐसा लग रहा है जैसे जूते को सर पर पहना जाये।
मेरी बहन ने तुरन्त जवाब दिया... सर हमको समझ मे नही आया... मेरे ख्याल से यह फैशन भी बुरा नही है...
बात बढ़ गयी तकरार हो गयी जबरजस्त... अन्ततः उन्होने अपना जूता उठाया सर पर रखा और कहा की देखो ये तुम लोग हो और उसे ऐसे सर पर रखना हमारे बस का नही है... लड़किया भी बोल उठी जर रख के दिखाईये। और उन्होने जोश मे रख भी लिया... और हम सब ताली बजा के हंस पड़े... चलो कम से कम आपने जूता सर पर रखा तो सही...
नतीजा ये हुआ कि बस वो मुझे काफी धमकी दे गये... ऑफिस बन्द करवा देंगे वगैरह वगैरह। ये अलग बात है कि अभी तक वो कुछ कर नही पाये... आगे देखेंगे...

इस तरह के और कई उदाहरण हैं मेरे पास... जो एकदम सटीक है.. सही है... जिन्हे सोचकर ये कहना पड़ता है कि नारी... अब वो नही है... जिसकी छवि सर्वविदित है... अब बदलाव आ रहा है...

और मै चाहती हूँ कि सिर्फ वो ना कहूँ कि कितना जुल्म हुआ... वो बताऊँ की कैसे उसके प्रति खिलाफ उठाया जा रहा है।

आगे से मेरी यही कोशिश होगी कि इस तरह के सच्चे उदाहरण जो की मेरे इर्द गिर्द घट रहे हैं... उन सबसे आप सबको रूबरू करवाती रहूँ..

खामोशी तोडो और बताओ कि अब नारी मे बदलाव आ गया है...

नारी अबला... ना री

9 comments:

  1. बिटिया गरिमा, नारी उन्‍नयन की जो मिसाल दी गई हैं, अच्‍छी हैं। अपनी दैनंदिनी और अहसासों से प्राप्‍त अन्‍य प्रेरक प्रसंगों को भी ब्‍लॉग जाहिर करती रहा करो। इससे नारी शक्ति के विकास का बोध और उसकी दशा और दिशा की सच्‍ची जानकारी मिलती है।

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  2. उदाहरण रखना और ऐसे संस्मरण बांटना एक श्रेष्ठ कार्य है.
    आप जारी रखें. यही जन जागरण है.

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  3. good to have you back garima and i hope now we can continue with the health series again

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  4. बहुत अच्छी पोस्ट. सही है, अब नारी अबला ना री.

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  5. बहुत अच्छी एवं प्रेरणादायक आलेख. ऐसे उदाहरण कुछ सिखा जाते हैं. उस रूप को जाहिर करते हैं जो ऊपर आने के लालायित है या फिर अपने प्रारब्ध से सीख कर आने वाली पीढ़ी के लिए नया मार्ग खोज रही हैं.

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  6. ये कथन ही बहुत कुछ कहता है........................
    खामोशी तोडो और बताओ कि अब नारी मे बदलाव आ गया है...
    नारी अबला... ना री................इसे अब बदल कर इस तरह कहा जाए
    नारी ----- ना (हा) री
    नारी ----- हाँ री
    प्रेरक उदाहरण, ऐसे उदाहरणों से सीख लेने की जरूरत है..........स्त्री पुरुष दोनों को...........बधाई
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  7. बहुत अच्छी एवं प्रेरणादायक आलेख. ऐसे उदाहरण कुछ सिखा जाते हैं.

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  8. यह सही है कि सूचना के इस युग में नव जवान पीढ़ी अपने बारे में सोचने लगी है सवाल उठाने लगी हैं, परंतु परिवार के भीतर होने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार से पार पाने के लिए तो ठोस कदमों की आवश्यकता है।व्यवस्था तो इस जागरूकता से ही इतना भयभीत है कि वह टीवी सिरियलों के माध्यमों से नारी की जगह दोयम ही बनाए रखने की पुरजोर कोशिश करती है। गोपा

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  9. गरिमा बिटिया को फिर से खूब सारी शुभकामनाएं। आज दिनांक 13 मार्च 2010 को दैनिक जनसत्‍ता के संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में यह पोस्‍ट बदलाव की राह शीर्षक से प्रकाशित हुई है।

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