अगर आप टी.वी. धारावाहिकों में औरतों का रोना-धोना, उनकी पारिवारिक समस्याओं, उनके शोषण आदि को देख-देखकर ऊब चुके हों तो कुछ नये धारावाहिक शुरू हुए हैं, जो नारी को एक नए रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. ये धारावाहिक हैं यशराज बैनर के, जो कि करण जौहर का फ़िल्म-निर्माण का बैनर है और गुडी-गुडी फ़िल्में बनाने के लिये जाना जाता है. जब इनका प्रचार सोनी चैनल पर आना शुरू हुआ था, तो मैंने सोचा था कि उन्होंने अपनी फ़िल्मों की तरह ही धारावाहिक भी बनाये होंगे. फिर कुछ दिन धारावाहिक देखकर प्रतीक्षा की कि ऐसा न हो कि एक-आध एपिसोड के बाद कहानी वहीं आ जाये. वही रोना-धोना, पतियों को पाने, सहेजने या छीनने के लिये लड़ती औरतें. ऐसा लगता है कि औरतों के जीवन में एक ही काम है- पति को प्राप्त करना और फिर उसे किसी दूसरी औरत की ओर आकर्षित होने से बचाए रखना. शुक्र है, कि यशराज के तीन धारावाहिकों में मुझे ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला.
इन धारावाहिकों में एक है "माही वे", जो सोनी पर शनिवार आठ बजे आता है. इसकी मुख्य पात्र माही, एक पच्चीस साल की, आम लड़कियों से थोड़े अधिक वजन की लड़की है. एक फ़ैशन मैगज़ीन में माही वे नाम का कॉलम लिखती है. उच्च-मध्यमवर्गीय परिवार की है. उसके सपने भी आम लड़कियों जैसे ही हैं. चाहती है कि उसका भी एक ब्वॉयफ़्रैंड हो. लेकिन वो कैसा होगा, इसका निर्णय वह खुद करेगी. ये आम लड़की माही, धता बताती है-औरतों के लिये बनाये उन सौन्दर्य-मानकों को, जो बड़ी-बड़ी सौन्दर्य-प्रसाधन बनाने वाली कम्पनियों द्वारा बनाये जाते हैं और फिर लड़कियों में उन मानकों में फ़िट होने की ललक जगायी जाती है.
दूसरा धारावाहिक है "रिश्ता डॉट कॉम". इसकी मुख्य पात्र ईशा एक आधुनिक, आत्मनिर्भर लड़की है, जो अपनी आधुनिक सोच के साथ-साथ मानवीय मूल्यों में विश्वास करने वाली है. वह किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्त्व को आन्तरिक गुणों से तौलती है, न कि शारीरिक आकर्षण से. वह अपने पार्टनर रोहन के साथ ये कम्पनी चलाती है और बहुत अच्छे से सबको डील करती है. इन दोनों ही धारावाहिकों में बड़ी ही नेचुरल कॉमेडी है.
तीसरा और मेरा मनपसंद कैरेक्टर है वृंदा साहनी का, जो "पावडर" नाम के धारावाहिक की मुख्य पात्र है. वृंदा एन.सी.बी.(नेशनल क्राइम ब्यूरो) में काम करती है, जो पुलिस का एक विशेष दस्ता है. एन.सी.बी. अन्सारी नाम के ड्रग डीलर के पीछे है. वृंदा का रोल मुझे इसलिये अच्छा लगा क्योंकि वह एक ऐसे फ़ील्ड में अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष कर रही है, जो मर्दों की कही जाती है. उसका एक सहकर्मी उससे कहता है "क्राइम और पुलिस मर्दों की फ़ील्ड है, औरतें आयेंगी, तो पिटेंगी." ये सब सहकर भी वो डटी है. उसने नशे के सौदागरों को खत्म करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है.
ये धारावाहिक थोड़े नाटकीय ज़रूर लगते हैं, पर इतना न हो तो फिर इसे मनोरंजन नहीं, ज्ञान कहेंगे. लेकिन फिर भी इनका निर्देशन अन्य सीरियल्स से अच्छा है. जब औरतें बाहर निकलकर काम कर रही हैं और उन्हें वर्कप्लेस पर भी बहुत कुछ झेलना पड़ता है, तो प्राइम टाइम पर आने वाले लगभग सभी धारावाहिकों में औरतों को सिर्फ़ घर की समस्याएँ झेलते ही क्यों दिखाया जाता है? ये धारावाहिक औरतों की घर से बाहर की ज़िन्दगी और वहाँ की चुनौतियों को दिखाते हैं, इसलिये ये धारावाहिक कुछ हटकर लगते हैं.
चलो अच्छा है ना कुछ तो देखने लायक आने लगा बुद्धू बख्से पर. दर्शक भी अपनी रुचि का थोड परिस्कार करे.
ReplyDeleteहरि शर्मा
०९००१८९६०७९
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har dharaavahik ghum phir kar naari ki uplabdhi ki jagah rudhivaaditaa ka glamorization kartaa hi lagtaa haen
ReplyDeleteyae teeno hin nahin daekhae haen so comment nahin kar saktee par "udaan " jaese serial bantey to achcha hotaa
बहुत सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteलाजबाब रचना
बधाई स्वीकारें
shai kaha mukti ji, Thank God Sony ke paas serials kuch alag hatkar hai warna starplus ne rula rula kar pareshaan kar rakha hai... :)
ReplyDeleteGood point !
muktee jee ye jug byavasayeek hai yaha pise ke liye kuch bhi dikhaya ja sakata hai un baton ko nahi dikhaya jayega jisase unke byavasayeek hiton par chot phuche
ReplyDeleteइनके साथ ही लागी तुझसे लगन, सजन घर जाना है, इस देश न आना लाडो, उतरन, जैसे धारावाहिकों का भी जिक्र जरूरी था??????
ReplyDeleteइनमें भी महिलायें हैं और महिलाओं का भला (?????????????????) सोचती दिख रहीं हैं.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड