December 05, 2009

नारी धार्मिक नहीं , धर्म भीरु हैं

जाकिर रजनीश जी की पोस्ट अमूमन नहीं पढने से छूटती हैं पर इस बार देर से पढ़ पाई । उनकी इस पोस्ट अंधविश्वास से जूझे बिना क्या नारीवाद कामयाब होगा? मे कुछ सवाल हैं
  1. क्या नारीवादी चिंताओं पर महिलाओं द्वारा दिखाई जाने वाली चिन्ताओं का वास्तव में कोई अर्थ है?
  2. क्या महिलाएँ इस बात को समझने में अस्मर्थ हैं कि अंधविश्वास महिलाओं को पुरूषवादी बंधनों में बाँध कर रखने का एक कारगर अस्त्र है?
  3. क्या अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद पूरी तरह से सफल हो सकता है?
  4. क्या नारीवादियों के पास अंधविश्वास से जूझने का वास्तविक हौसला नहीं है?
  5. क्या महिलाओं में धार्मिक भावनाएँ ज्यादा गहरी होती हैं और वे नारीवादी उददेश्यों की तुलना में अपने विश्वास/अंधविश्वास को ज्यादा महत्व देती हैं?
इन सब प्रश्नो के उत्तर आप उनके ब्लॉग पर जा कर देगे तो शायद बात कुछ आगे जायेगी । हम सब खासकर महिलाए इन प्रश्नों को अपने अन्दर और अपने को इन प्रश्नों के अन्दर टटोले तो खंगाल कर कुछ न कुछ जरुर निकाल लायेगे ।
व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना हैं की नारीवाद से धर्म का कोई लेना देना ही नहीं हैं { ध्यान दे की मै नारीवाद को आज की समय मे केवल नारी सशक्तिकरण से ही जोडती हूँ । शब्दों की परिभाषाए समय से बदल जाती हैं इस लिये आज जो जवाब मिलते हैं वो पारंपरिक नारीवाद से नहीं जोड़े जा सकते }

हर महिला नारीवादी ही होगी क्युकी ऐसी कोई भी महिला नहीं हैं जो स्त्री को समाज मे बराबरी का स्थान दिलाने की बात ना करे , हां सबके कहने का नजरिया अलग अलग हैं कुछ को लगता हैं जब ज़रा से compromise कर के सब कुछ मिल सकता हैं तो दो बात सुनो और मस्त रहो , एक चुप मे सौ भलाई हैं तो कुछ को लगता हैं जो हमारा हैं उसके लिये हम क्यूँ compromise करे . अपने अधिकार के प्रति सजगता दोनों मे हैं पर रास्ता अलग अलग होता हैं ।

धर्मं क्या हैं ? मेरी नज़र मे हर वो व्यक्ति धार्मिक हैं जो अपना धर्म यानी कर्तव्य पूरा करता हैं । धर्म के प्रति , प्रतिबधिता का मतलब होता हैं जब जिस चीज़ की ज़रूरत हैं हम वो सफलता से पूरा करे । मुझे सबसे बड़े अधर्मी वो लोग लगते हैं जो अपने काम से जी चुराते हैं या अपने काम को करने के लिये जिनके रास्ते ग़लत होते हैं । काम का पूरा होना ही जरुरी नहीं होता , जरुरी हैं की हम सही और सच्चे रास्ते पर चल कर काम पूरा करे और अपने धर्म को निभाए

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई केवल और केवल हमारी आस्था हैं । आस्था इस लिये जरुरी हैं क्युकी हम मनुष्य हैं और जब हम संकट मे होते हैं तो हम को कोई ना कोई चाहिये जिसके आगे नत मस्तक हो कर हम अपनी रक्षा की गुहार लगा सके बिना अपना अहम् खोये । आस्था किसी की कोई भी हो सकती हैं , मै हिंदू हो कर बाइबल कुरआन या गुरुग्रंथ साहिब पढ़ कर भी हिंदू ही रहूगी क्युकी मेरी आस्था हिंदू होना हैं ।

अंध विश्वास का स्त्री या पुरूष से कोई लेना देना नहीं हैं क्युकी ये दोनों मे होता हैं । अंध विश्वास जैसी बात हमारी मन की परिकल्पना ज्यादा हैं क्युकी हम विश्वास को बार बार पुख्ता करते रहना चाहते हैं ।

ज्योतिष का अंधविश्वास से कोई लेना देना नहीं हैं हाँ जो लोग ज्योतिष से भविष्य को अपने हाथ मे कर लेना चाहते हैं वो अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं क्युकी उनका मानसिक बल कम होता हैं और उनको बेवकूफ बनाना आसान होता हैं । ज्योतिष जहाँ ख़तम होता हैं साइंस वहाँ से शुरू होती हैं और साइंस जहाँ ख़तम होती इंसान वही से ज्योतिष की तरफ़ मुड़ता हैं इन दोनों को हम अलग नहीं कर कर सकते हैं । और इन दोनों मे स्त्री - पुरूष दोनों तकरीबन समान व्यवहार करते हैं ।

नारी धार्मिक नहीं हैं नारी धर्म भीरु हैं क्युकी भारत मे नारी की दशा के लिये धर्म { हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई } के ठेकेदार जिम्मेदार हैं । हमारे देश मे नारी किसी भी आस्था को क्यूँ ना माने उसको धर्म का नाम ले ले कर डराया जाता हैं । २००९ मे भी विधवा , तलाकशुदा और सिंगल नारी की स्थिति विवाहित नारी से दोयम हैं क्युकीविवाहिता के पास एक पुरूष हैं जिसको हर धर्म उस विवाहिता का " रक्षक " मानता हैं । यानी अगर उस पुरूष को विवाहिता की जिंदगी से हटा दिया जाये तो सब नारियां समाज मे बराबर हो जाए । यही बात एक विवाहिता को धर्म भीरु बनाती हैं और उसको पुरूषवादी बंधनों में बाँध के रखती हैं । बाकी तीनो यानी सिंगल , तलाकशुदा और विधवा भी इसी लिये धर्म भीरु होती हैं क्युकी वो सब देखती हैं की मात्र "एक पुरूष " उनकी जिंदगी मे ना होने से उनकी स्थिति समाज मे कमतर हैं ।


मुझे यह सहज विश्वास है की धर्म एक निजी मामला है और हम सभी को कोई न कोई आस्था चाहिए कभी कभार के संकटों से उबरने के लिए

शिक्षा आप द्वारा इंगित सभी समस्याओं का निर्मूलन कर सकती है क्योंकि शिक्षा नयी राहें दिखाती है और हमें सक्षम बनाती है की हम खुद जिस व्यवस्था का अनुसरण कर रहे हैं उसके दोषों -अच्छाईयों या बुराईयों की समझ विकसित कर सकें और तदनुसार अपने फैसले ले सकें
औरतों में इन फैसलों को खुद लेने की समझ लानी होगी और उन्हें स्पष्ट रूप से अपनी पसंद और नापसंद का इजहार करना होगा !

नारियों को अपने डरो को जीतना होगा और अपनी सोच को विस्तार देना होगा । जरुरी होता हैं की हम जो कुछ देखते सुनते उसको अपनी सोच के हिसाब से सही करे ना की जो कुछ सही -गलत हो रहा हैं या होता आया हैं उसके हिसाब से से अपनी सोच को ढाले

9 comments:

  1. सही कहा है आपने धार्मिक होने से नारी वाद का कोई लेना देना नहीं है। असल मे आज कल लोग धर्म का मर्म भूल गये हैं इस लिये धर्म के खिलाफ विग्यान का सहारा लेते हैं विग्यान धर्म से पहले भी है और बाद मे भी धर्म ही है जो हमे सिखाता है कि विग्यान की विनाशकारी विकृितिओं से कैसे बचा जाये । नारी वाद से इसका सम्बन्ध हास्यास्पद सा लगता है। धन्यवाद और शुभकामनायें

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  2. अच्छी रचना। बधाई।

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  3. शिक्षा आप द्वारा इंगित सभी समस्याओं का निर्मूलन कर सकती है क्योंकि शिक्षा नयी राहें दिखाती है और हमें सक्षम बनाती है की हम खुद जिस व्यवस्था का अनुसरण कर रहे हैं उसके दोषों -अच्छाईयों या बुराईयों की समझ विकसित कर सकें और तदनुसार अपने फैसले ले सकें
    औरतों में इन फैसलों को खुद लेने की समझ लानी होगी और उन्हें स्पष्ट रूप से अपनी पसंद और नापसंद का इजहार करना होगा !

    सहमत हूं आपसे .. ज्ञान का प्रचार प्रसार सबसे आवश्‍यक है .. यह अंधविश्‍वास दूर करने के लिए सबसे कारगर उपाय !!

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  4. इस चर्चा पर अपने विस्तृत विचार रखने का शुक्रिया। जड़ता और अंधविश्वास विचार से ही टूटते हैं। हमें खुशी है कि इसकी शुरूआत हो चुकी है।

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    अदभुत है मानव शरीर।
    गोमुख नहीं रहेगा, तो गंगा कहाँ बचेगी ?

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  5. धर्म के नाम पर ना जाने कितना अधर्म होता हैं औरत के साथ और सब चुप रहते हैं । शिक्षा का प्रसार और नारी का स्वाबलंबन ही नारी को आगे ले जा सकता हैं

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  6. अविवाहित पुरुष का सामाजिक दर्जा भी विवाहित के आगे दोयम है. पर यहाँ लता मंगेशकर और मायावती हैं, तो अटल और कलाम भी हैं.

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  7. रचना,
    धन्यवाद, नारी के पक्ष को सुलझे हुये ढँग से रखने के लिये. यही बात मैं भी चाहती हूँ. बहस हो, एक सार्थक और सकारात्मक रूप में. वाद, प्रतिवाद से ही संवाद की उत्पत्ति होती है. अच्छे विचार सामने आते हैं. हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है. एक अच्छी रचना के लिये बधाई!

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  8. रचना जी ने अंतिम पैरा में सार कह दिया है जो सही और उचित है - राकेश कौशिक

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