December 04, 2009

हम अपनी सोच बदले या अपने विचारों से अपने लडने की ताकत से दूसरो की सोच बदले।

एक ब्लॉग पर एक टिप्पणी पढ़ी नारी ब्लॉग पर हो रही पोस्ट के बारे मे "शिक्षा ने समाज को बहुत बदल दिया है -अतः अब ऐसी बहसें बेमानी हैं और केवल नारी ब्लॉग पर अन्टीक वेलू है इनकी !"
अरे हम तो इस भ्रम मे थे की लोग हम को mod समझते हैं !!! क्युकी इस ब्लॉग पर जितने भी कमेन्ट आते हैं मेरी पोस्ट पर उन सब मे यही ध्वनि होती हैं ।
अब कमेन्ट देने वाले एक बार इस ब्लॉग की पोस्ट पढ़ कर कमेन्ट करते तो देखते की हम सब तो बार बार नारी की शिक्षा और स्वाबलंबी होने की बात ही करते हैं ताकि वो अपने पैरो पर खड़ी हो सके । शिक्षा ही उसको अपने अधिकारों के प्रति सचेत कर सकती हैं ।

एक और ब्लॉग पर पढ़ा एक कमेन्ट नारी ब्लॉग के बारे मे "एक सामूहिक ब्लॉग का मालिक भी होता है, हैरानी हुई"
अब बताईये साझा ब्लॉग क्या कोई सरकारी कंपनी हैं जिसका कोई मालिक ही नहीं होता !!!!!! बड़ी ही सिंपल बात हैं ब्लॉग तो जो बनाता हैं मालिक वही होता हैं ताकि ब्लॉग सुचारू रूप से चलता रहे । और भाई हमने तो अपने ब्लॉग पर कोई एड भी नहीं लगाया की पैसा मिले और उस वजह से एक जोइंट वेंचर मान लिया जाए । हाँ कमेन्ट मोद्रशन के लिये सूत्रधार बदलते रहते हैं और सदस्यता प्रदान करने और रद्द करने के किये भी सूत्रधार जरुरी होते हैं ।

अब साझा ब्लॉग की सदस्यता एक निमन्त्रण की तरह होती हैं सूत्रधार किसी को भी निमन्त्रण भेज देता हैं कोई बेक ग्राउंड चेक की सुविधा तो नेट पर होती नहीं । ना जाने कितनी बार पता लगता हैं की छद्म नाम से जो लिख रहा हैं वो वास्तव मे पुरूष हैं !!!

इसके अलावा सदस्यता कभी कभी उन्लोग को भी दे दी जाती हैं जिनको कोई और सदस्य जानता हैं पर सूत्रधार नहीं जानता । उनकी पोस्ट या आलेख आने पर पता चलता हैं की विचार धारा मे दो किनारों का फरक हैं या ये पता चलता हैं की वो कुछ ऐसे ब्लोग्स के भी सदस्य हैं जिन को प्रतिबंधित करें की मांग ब्लॉग जगत मे कई बार उठ चुकी हैं । सो उनकी सदस्यता रद्द कर दी जाती हैं । कारण बताने की क्या जरुरत हैं ?? क्या जब निमन्त्रण दिया गया था उससे पहले कोई ईमेल गयी थी की "सदस्यता ले लो , बंट रही हैं " । शिष्टाचार की बात करे तो किसी भी जगह से हम को निमंत्र्ण मिलता हैं तो हम उस घर जाए या नहीं हम को भी सोचना होता हैं । जितना जो हमे बुलाता हैं हमे बुलाने के लिये जिम्मेदार हैं उतना ही हम ख़ुद जिम्मेदार हैं कही बुलावे पर जाने के लिये । हमे भी खोजबीन करके ही निमंत्र्ण स्वीकार करना होता हैं । चुनना होता है की हम किस के घर जाए किसके नहीं ।
और अगर हम अपने घर किसी को बुलाते हैं और बुलाने के बाद हमे महसूस होता हैं की नहीं इनको बुला कर हमने ठीक नहीं किया तो क्या दुबारा हम उनको निमन्त्रण देने से पहले उनको चिठ्ठी / ईमेल भेज कर ये कहेगे की भाई अब इस बार नहीं बुलायेगे आप को , क्या ये शिष्टाचार होगा या ये अशिष्टता होगी ???

नारी ब्लॉग पर आज तक किसी की भी कोई भी पोस्ट एडिट या डिलीट नहीं हुई हैं । मैने अब तक केवल और केवल एक पोस्ट डिलीट की हैं और वो भी इस लिये क्युकी उस मे लिखा था की "नारी को सब कुछ ज़रा सी तिकड़म { आप चालाकी कह ले , कोम्प्रोमैज़ कह ले } से मिल सकता सो वो अधिकार की बात क्यूँ करती हैं ऐश से रहे । "

जो हमारा अधिकार हैं उसके लिये हमे चालाकी क्यूँ करनी पडे ???

ख़ैर मुझे तो व्यक्तिगत खुशी हैं की नारी ब्लॉग बहाने लोग नारियों की बात तो करते हैं , उन विषयों पर बहस तो होती हैं जिन्हे बेकार कह कर छोड़ दिया जाता था । कम से कम नारियां ख़ुद बोल कर अपनी आपतियां तो दर्ज करने ही लगी हैं इस हिन्दी ब्लॉग जगत मे ।

बात तो शायद मुक्ति , मै , रंजना , रेखा , वाणी और भी बाकी सब एक ही बात कह रहे हैं बस सबके कहने जो मुद्दे उठते हैं वो एक दूसरे से कुछ भिन्न होते हैं जिनका कारण हैं हमारा अपना अपना व्यक्तिगत अनुभव , नजरिया और सोच । किसी की बहिन या बेटी अगर जलाई जाती हैं दहेज के लिये तो उसको स्त्री सुरक्षा सम्बन्धी दहेज कानून सही लगता हैं और अगर किसी के भाई या बेटे को इसी कानून की वजेह से सजा होती हैं पर उसका अपराध सिद्ध नहीं होता तो उसको ये कानून ग़लत लगता हैं ।

सबसे अच्छी बात हैं की आज इस ब्लॉग जगत मे नारी की आवाज उसकी टंकार बन गयी हैं । २००७ अगस्त तक इसी ब्लॉग जगत मे ब्लॉग लिखती महिला को ना जाने कितने जेंडर बायस युक्त कमेन्ट मिलते थे । कविता लिखो तो ठीक माना जाता था पर विमर्श करो तो कहा जाता था की "विष " फैला रही हैं ।

हर दिन कम से कम एक पोस्ट आती ही थी जिसमे भारतीये संस्कृति डूब जाती थी नारी के कपड़ो के चुनाव पर !!!!

बात चले क्युकी बहुत जरुरी हैं नारियों के अंदर जो चल रहा हैं वो बाहर आए , एक दूसरे से बात हो और अगर हम ग़लत हैं तो हम अपनी सोच बदले या अपने विचारों से अपने लडने की ताकत से दूसरो की सोच बदले।

13 comments:

  1. महिलाओं की स्थि‍ति में अवश्‍य सुधार होगा .. आपका प्रयास सराहनीय है !!

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  2. रचनाजी
    बहुत ही सशक्त आलेख | नारी के मन में उठते सवालों को .उनकी प्रतिध्वनियों को सुचारू रूप से शब्दों कि अभिव्यक्ति देने के लिए धन्यवाद |

    नारी के शिक्षित होने से उसका समाज में बराबरी का स्थान पाना अवश्यम्भावी है |

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  3. नारियां ख़ुद बोल कर अपनी आपतियां तो दर्ज करने ही लगी हैं इस हिन्दी ब्लॉग जगत मे ।

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  4. नारी की स्थिति में सुधर हो रहा है, होगा भी पर केवल पुरुष विरोध के बल पर नहीं. आलेख तो अच्छा है पर..............

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  5. शोभना जी बिलकुल सही, सुधार होना निश्चित है, हो रहा है और होगा. रचना जी - शुभकामनाएं.

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  6. "बात चले क्युकी बहुत जरुरी हैं नारियों के अंदर जो चल रहा हैं वो बाहर आए , एक दूसरे से बात हो और अगर हम ग़लत हैं तो हम अपनी सोच बदले या अपने विचारों से अपने लडने की ताकत से दूसरो की सोच बदले।" बहुत सही कहा है आपने रचना.
    लोग यह तो देखते हैं कि नारी की स्थिति पहले से बेहतर हो गयी है, इसलिये अब नारी-विमर्श की ज़रूरत ही नहीं रही, पर ये नहीं देखते कि आज जो ये स्थिति है, उसके लिये हम जैसी बहुत सी महिलाओं ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी है. आज औरतें बोलने लगी हैं अपने मन की बात कहने लगी हैं, यही कुछ कम नहीं. हमें अपना प्रयास जारी रखना चाहिये.

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  7. बात चले क्युकी बहुत जरुरी हैं नारियों के अंदर जो चल रहा हैं वो बाहर आए

    ek zarooree post

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  8. आपका प्रयास सराहनीय है !! अच्छी रचना। बधाई।

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  9. .
    .
    .
    रचना जी,
    लगे रहिये... आभार!

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  10. एक सही बात को सही तरह से रखना जरुरी होता हैं । मुक्ति जी की बात बहुत गंभीर हैं"सके लिये हम जैसी बहुत सी महिलाओं ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी है." जिस पर ध्यान देना जरुरी हैं

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  11. रचना,

    गुजरे कल की तरह से जैसे जो होता रहा था , उसको अब नहीं पचा पा रहे हैं, इसलिए विरोध दर्ज हो रहा है और होना भी चाहिए. सब लोग नारी के विरोधी हैं ऐसा नहीं है - हमें अपने परिवेश से जो मिल रहा है और गलत है, उसको बाहर लाकर सबसे विमर्श करना ही होगा. ऐसा तो नहीं है की जो गलत हो उसे पुरुष सत्य स्वीकार कर लें. ब्लॉग के जरिये हम लिख रहे हैं और वे पढ़ रहे हैं. आलोचना करें , समालोचना करे उनका स्वागत है किन्तु अगर भाषा की भूलभुलैया में वे कुछ भी कह सकते हैं तो इसकी अनुमति किसी को नहीं होगी.

    बहुत सरे मुद्दे हैं, यह समाज है तो samasyaayen hongi ही , unako lekar chalna है और sabse vichar karake उनका hal khojna है.

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  12. बात चले क्युकी बहुत जरुरी हैं नारियों के अंदर जो चल रहा हैं वो बाहर आए , एक दूसरे से बात हो और अगर हम ग़लत हैं तो हम अपनी सोच बदले या अपने विचारों से अपने लडने की ताकत से दूसरो की सोच बदले।

    BILKUL SAHI KAHA AAPNE....

    AAJTAK JO SABKUCHH CHUP RAHKAR AANSUON SANG PEE JAYA KARTEE THI,UNHE SHABDON ME DHAAL SAAMNE LAA RAHI HAIN,ITNA SARAL THODE NA HAI KI SAB ISE AARAM SE PACHA SAKEN....LEKIN ISE BAAR BAAR BATAYA DUHRAYA JAYEGA,TABHI SAMBHAV HAI KI LOGON KE JEHAN ME YAH GAHRE UTREGA AUR LOG STRIYON KE PRATI APNE SOCH AUR VYAVHAAR KO BADENGE....

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