November 30, 2009

" ईश्वर करे बेटा हो "

रेखा श्रीवास्तव जी की पोस्ट को पढ़ कर मन मे कुछ सवाल उठे हैं जो हमेशा निरुतर ही रह जाते हैं
  1. लोग बेटियाँ क्यूँ नहीं चाहते ??
  2. वो कौन कौन से कारण हैं की कन्या भूंण ह्त्या जैसे कार्य को आज भी किया जाता हैं ?
पिछले २० साल मे भी , कोई खास बदलाव नहीं आया हैं इस सोच मे की लडकियां / बेटियाँ नहीं चाहिये जबकि पिछले २० साल मे लड़कियों ने अपने पैरो पर खड़े हो कर , शिक्षित हो कर अपनी बराबरी को निरंतर सिद्ध ही किया हैं फिर क्यूँ आज आम धारणा यही हैं " ईश्वर करे बेटा हो "

अगर सच और निसंकोच भाव से अपने अपने विचार रखे जाए तो शायद अपने अन्दर का सच निकल कर सामने आये ।
ये कहना " हम बेटे - बेटी मे फरक नहीं करते " एक ऐसा भ्रम हैं जो अपने आप मे फरक ले ही आता हैं । क्यूँ ये कहना पड़ता है की हम फरक नहीं करते ।

8 comments:

  1. हमारी हिंदू धर्म की मान्यताये ,सामाजिक सुरक्षा ये सब बाते ही ये कहने पर मजबूर करती है की भगवान करे बेटा ही हो |पर अब बहुत कुछ बदल रहा है और फ़िर सदियों से चली आ रही मान्यताओ को बदलने में वक्त लगेगा ही इसके लिए भी नारी को ही प्रयत्न करना होगा और टी .वि .धारावाहिकों की तर्ज तोडनी होगी जो की समाज से बुराई मिटाने का दावा करते हुए उस बुराई की जीत को ही प्रकाश में लाते है |

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  2. शोभना जी ने सही कहा इस काम के लिए हम स्त्रियों को ही अपने को समझाना होगा ...अगर हम ही कन्या की हत्या करेंगी तो बचाएगा कौन ....एक दिन तो हम इस जीत के साझीदार होंगे ही ...

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  3. bahut sahi jagah par apni baat rakhi hain aapne

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  4. बेटे-बेटी में फर्क करना लोगों ने छोड़ा, पर अपने पैरों पर खड़े होने के बावजूद सामाजिक धरातल पर कोई बदलाव नहीं......लडकी की शिक्षा से लड़के की शिक्षा, नौकरी ऊपर हो(वरना लड़के को बर्दाश्त नहीं होता), .......इसमें परिवर्तन नहीं आएगा......इस मानसिकता को बदलना आसान नहीं.
    कथनी और करनी में आज भी असमानता है............दहेज़(कैश)की मांग आज भी है...........रूप, रंग.......गुण से ऊपर! यह विरोधाभास बना रहेगा .
    इसीलिए मध्यमवर्गीय परिवार लडकी की पैदाइश से घबराता है, और कम अक्ल वाले उसे ख़त्म कर डालते हैं

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  5. घर की दादी ही ज्यादा चाहतीं हैं कि बेटा हो, नई पीढ़ी के साथ-साथ बुजुर्ग महिलाओं को भी समझाया जाए कि लडकिया भी परिवार का नाम आगे बढ़ातीं हैं.

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  6. लडकियों की सुरक्षा, दहेज और सदियों से चली आ रही वन्शवृद्धि या कंधा देने जैसी मान्यताएं ही इसके मूल में हैं. शादी के बाद लडकी का कुल गोत्र सब बदल जाता है, ऐसे में अपने कुल का नाम चलाने वाले की चिन्ता ही लडकी के जन्म पर शोक का कारण बनती है.

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  7. वन्दना अवस्थी दुबे
    chaliyae aap ne karan to bataye yahii jaruri tha
    ab koi baataye gaa ki aap jo karan dae rahee hae unko theek kaese kiya jaaye ???

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