November 13, 2009

हाथ बढाएं

पिछले कुछ दिनों से ' नारी ' का अवलोकन कर रही हूँ पर आज पहली बार कुछ लिख रही हूँ । सबसे पहले तो मैं सुमन जी तथा आप सभी का भारतीय महिला को यह विचार मंच देने के सराहनीय प्रयास के लिए अभिनन्दन करती हूँ । आज भारतीय नारी की बहुत उपलब्धियां हैं पर आज भी कई समस्याएँ उसकी उड़ान को रोक रही हैं ।
कभी कभी सोचतीहूँ कि आज भारतीय नारी ने एक बड़ी लडाई जीत ली है उसे कानूनी और सामाजिक रूप से समानता भी प्राप्त है पर एक लडाई जो नारी की नारी से है और जो युगों से चली आ रही है शायद उससे ही नारी कहीं मात खा रही है। अपने आस पास देखिये ,बहुधा नारी ही नारीकी प्रगति में बाधक होजाती है । कविता जी ने अपनी पोस्ट में नारी केअबला होने का मिथक तोड़ने की बात कही है पर अक्सर आप देखेंगे कि परम्परा और रीति रिवाजों की दुहाई महिलायें ही देती हैं और कई बार येही परम्पराएँ बेडियाँ बनकर नारी को अबला बनाती हैं । लीक से हटकर कुछ भी करने पर सबसे बड़ी आलोचक महिलाएं ही होती हैं ।
फिर घर परिवार की महिलाओं के संबंधों को लीजिये । क्यों है इतनी कटुता सास बहू के रिश्ते में ?ननद भाभी या देवरानी जिठानी में भी बहुधा मधुरता नहीं रहती । घर के तनाव, अवांछित अपेक्षाएं एक नारी के कदम आगे बढ़ने से रोकने को पर्याप्त होते हैं । रेखा जी ने 'दरकती विवाह संस्था के कारक 'में जिस परिस्थिति का उल्लेख किया है वैसी अन्य घटनाएं भी हमने आपने देखी हैं ।एकबहू से इतनी अपेक्षाएं करना ,उसे इतना परेशान करना कि उसे 'विवाह'या 'नौकरी'में से एक विकल्प चुनने को मजबूर होना पड़े?तो फिर कैसे आगे बढेगी नारी?इस समस्या के मूल में सास के रूप में एक महिला ही तो हैं।
आज नारी बहुत बदल गई है पर फिर भी शायद हमें अपने अन्दर झांकने की आवश्यकता है।एक बहुत बड़ा नारी वर्ग अपनी कुंठाओं के कारण दूसरी नारी के बढ़ते कदमों को रोक रहा है, आज यदि नारी नारी को कुछ अधिक संबल दे या फिर दूसरी नारी की प्रगति में रोडे न अटकाए तो शायद बहुत कुछ बदल सकता है ।आइये आज हम सभी अपने घर परिवार आस पास और अपने कार्य क्षेत्र की महिलाओं से अपने संबंधों का पुनर्वालोकन करें और उसे मधुरता देने की कोशिश करें तथा दूसरी महिलाओं तक भी ये मित्रता का संदेश पहुंचाएं । नारी की नारी से दोस्ती हो जाएतो फिर तो चारों ओर मुस्कुराहटें बिखर जायेंगी और यदि सास बहू में दोस्ती हो जाए तब तो दुनिया ही बदल जायेगी ।
आज इस मंच के मध्यम से मैं यही आव्हाहन करना चाहूंगी कि हर नारी दूसरी नारी के कदमों को गति दे और मित्रता का हाथ बढ़ाकर जीवन में एक सुनहरी आभा बिखेरे । हम आप यह संदेश अधिक से अधिक महिलाओं तक पहुचाएँ तो शायद नारी की उड़ान कुछ आसान हो जाए ।

9 comments:

  1. नारी ब्लॉग पर आप का स्वागत हैं । लिखती रहे ।
    कंडिशनिंग एक ऐसा शब्द हैं जिसको नारी जितनी जल्दी समझ ले उतना अच्छा होगा । हमारे समाज मे औरतो को तैयार किया जाता हैं की वो "फिट " हो सके इस समाज मे । वो मान सके की पुरूष प्रधान हैं और औरत उसके नीचले दर्जे पर हैं । सदियों से ये हो रहा हैं और इसी वज़ह से हर माँ अपनी बेटी को तैयार करती हैं की वो अपने पति के अनुसार जीने की इच्छा रखे और हर सास तैयार रहती हैं हर बहू को ट्रेन करने के लिये ।

    जितनी जल्दी महिलाए अपने मोल्ड से बाहर निकल कर अपने वजूद को पहचाने की और एक दूसरे के लिये बोलना शुरू करेगी उतनी जल्दी समाज बदलेगा । नारी नारी की दुश्मन नहीं हैं ये एक मिथ हैं ऐसा मेरा मानना हैं ।

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  2. bilkul sahi kaha aapne....poorntah sahmat hun aapse...

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  3. कैसे आएं इस मोल्ड से बाहर?

    कोई महिला अगर अपनी बेटे से ज्यादा ही लाड़ रखती है तो, बेटे-बहू के बीच ग़लतफ़हमी में उसे स्वाभाविक रूप से बहू की ही गलती दिखेगी. ननदें तो भाभी से इसीलिए खुन्नस रखती हैं, की एक बाहरी लड़की ने आते ही उनके प्यारे भाई पर कब्ज़ा कर लिया.

    आदमी में कभी भी इतनी हिम्मत नहीं रही की वह बिना औरत की मदद के औरत को परेशान कर सके. औरतों से इस तरह के अत्याचार उनसे पुरुष नहीं बल्कि पितृसत्ता के संस्कार कराते हैं, जैसे की दबे कुचले वर्ग से निकल कर उच्च वर्ग में शामिल हो जाने वाला इन्सान अपनी पृष्ठभूमी भूलकर अपने ही लोगों का खून चूसने लगता है.

    दुनिया के सभी मुख्यधारा के नारीवादी आन्दोलन पितृसत्ता में अपना हिस्सा चाहते हैं, पर कोई भी पूरे निजाम को मातृसत्तात्मक करने की बात नहीं करता. महिलाएं अपनी आवाज़ उठाती भी हैं तो उन्हें अपना स्वर और अंदाज़ मर्दाना रखना होता है, यही पितृसत्ता की विजय का प्रतीक है.

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    इस मंच पर वे महिलाएं जिनके बेटों का विवाह हो चुका है शायद ज्यादा अच्छे से बात साफ़ कर पाएं.

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  4. "नारी ही नारी की दुश्‍मन होती है" यह कथन भी पुरुषों की सत्ता को स्‍थापित करने के लिए ही बना है। हमने कभी गम्‍भीरता से अध्‍ययन नहीं किया। नारी का कार्यक्षेत्र घर है और पुरुष का घर से बाहर। क्‍या पुरुषों के कार्यक्षेत्र में झगड़े नहीं होते? जब हम घर में रहते हैं तो स्‍वाभाविक अहम् टकराते ही हैं। क‍ल तक जिस माँ का आधिपत्‍य घर पर था अचानक ही बहु के आने पर यदि बदल जाए तो यह नारी और नारी का झगड़ा नहीं है, यह सत्ता का ही झगड़ा है। घर में कितना भी सास और बहु या अन्‍य रिश्‍ते झगड़ा करें फिर भी साथ रहते हैं। क्‍या कभी दामाद और ससुर को साथ निभाते देखा है? या साले और जीजा को? सारे झगड़े की जड़ में सत्ता है। पति और पत्‍नी युग्‍म ह‍ैं तो दोनों में यही झगड़ा है कि सत्ता पुरुष्‍ा की रहेगी या नारी की? और परिवार में जब नारी और नारी है तब भी झगड़ा सत्ता का ही है। परम्‍पराओं के नाम पर भी हम झगड़ा करते हैं वो भी कार्यक्षेत्र के झगड़े के समान ही हैं। यदि और गहराई में जाएंगे तब देखेंगे कि कई झगड़े डर के कारण पैदा होते हैं। नारी ने डर देखा है, पुरुष की नजरों को सहा है तो वह नूतन पीढ़ी को उनसे बचने के लिए पाबंद करती है और फिर वह सुनने को मजबूर होती है कि नारी ही नारी को प्रतिबंधित करती है। आज ऐसे कितने पुरुष हैं, जो वास्‍तव में नारी का सम्‍मान करते हैं? या वे मौके की तलाश में नहीं रहते? यही डर हमें प्रतिबंधित करता है।

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  5. इसकी वजह ज्‍यादातर नारियों का पुरुष मानसिकता का शिकार होना है ।

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  6. नए रिश्तो के जुड़ने पर अन्य रिश्तों का प्रभावित होना स्वाभाविक प्रक्रिया है ...दोनों पक्षों को ही बहुत सावधानी और नेकनीयती से व्यवहार करने पर ही परिवार में सुख शांति बनी रह सकती है ...!!

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  7. Rachna ji aapki baat se sahmat hun...magar ek dusara -pahalu bhi hai..link dekhiyega...फेमिनिस्ट

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  8. अजित गुप्ता दीदी और रचना जी से पूर्ण सहमति हैं

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