" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
November 17, 2009
क्या बच्चे पैदा करना औरतों की कमज़ोरी है?
कल एक समाचार सुनकर मन प्रसन्न हुआ था. खबर थी कि एक कुश्ती मुकाबले में एक महिला पहलवान ने पुरुष पहलवान को पटखनी दे दी. सोचा कि "नारी" ब्लॉग पर एक आलेख लिखुँगी कि यह एक मिथक है कि महिलाएँ शारीरिक रूप से कमज़ोर होती हैं. यदि उनका पालन-पोषण भी लड़कों की तरह हो, उन्हें बचपन से शारीरिक श्रम कराया जाये, उनका खान-पान अच्छा हो तो वे भी शारीरिक रूप से पुरुषों की तरह मजबूत हों. जो बातें जैविक रूप से अपरिवर्तनीय हैं वो तो हैं ही, पर जिन बातों पर हमारा वश है उसे तो कर ही सकते हैं... ... ... पर ये आलेख लिखने का मेरा उत्साह जाता रहा, जब आज एयरफ़ोर्स के एक बड़े अधिकारी को यह कहते सुना कि वे सुखोई विमान उड़ाने के लिये महिला पायलटों को इसलिये प्रशिक्षित नहीं कर रहे हैं क्योंकि जब वे अपना परिवार बढ़ाने के लिये नौ-दस महीने की छुट्टी लेंगी तो उतना वक्त बेकार जायेगा... इस बात ने मुझे सोचने पर मज़बूर कर दिया कि कोई औरत जब एक बच्चा पैदा करती है तो क्या सिर्फ़ अपने लिये? क्या वह बच्चा समाज और देश की सम्पत्ति नहीं होता? तो क्या बच्चा पैदा करने की क्षमता उसकी शारीरिक कमज़ोरी मानना सही होगा? यह बात सही है कि कोई बाहर कार्य करने वाली महिला अपना परिवार बढ़ाने लिये छुट्टी लेती है तो वह उतने दिन अपनी कार्य की ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाती, पर क्या वह एक दूसरी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी नहीं निभा रही होती है? यदि हमारे देश के महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग ऐसी सोच रखेंगे तो कौन सी महत्त्वाकांक्षी औरत शादी करना या परिवार बढ़ाना चाहेगी. और जब वो ऐसा करेगी तो ये ही लोग कहेंगे कि आजकल की औरतें तो ऐसी हो गयी हैं... तो बात यहीं खत्म करके मैं आप सभी से यह पूछना चाहती हूँ कि क्या बच्चा पैदा करना औरत की कमज़ोरी है? क्या सिर्फ़ इसीलिये औरत को पुरुष से कमज़ोर मान लिया जाये?
matrayav naari ka sabsey sundar aur gauravshali paksh. yeh kamjori nahin taakat hai.
ReplyDeleteसटीक लेखन। उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।
अच्छा लिखा है आपने। कथ्य और शिल्प दोनों स्तरों पर रचना प्रभावित करती है।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
मेरी कविताओं पर भी आपकी राय अपेक्षित है। कविता का ब्लाग है-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
"क्या बच्चे पैदा करना औरतों की कमज़ोरी है?"
ReplyDeleteये भी कोई पूछने की बात है ।
बिलकुल नही ।
ReplyDeletekuchh isi tarah ke sawal NARI ko kamjor banaate hain aur sabhi NARIYON ko shak ke ghere men khadaa kar dete hain.
ReplyDeleteयह उसकी कमजोरी नहीं उसकी ताकत है.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteयह कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है जो मर्द के पास नही है , औरत घर ,बाहर की जिम्मेवारियों को निपटाते हुए मर्द को भी यही पैदा करती है, बहुत कुछ लिखने का मन है पर बस इतना ही...
ReplyDeleteये हमारी ताकत है। हम मर्दों वाले काम कर सकते हैं लेकिन मर्द हमारे काम नहीं कर सकते।
ReplyDeleteकिसी के व्यक्तिगत सोच पर ना जाएँ. व्यवसाय और तकनीकी बातों से इसको जोड़ना ठीक नहीं है.
ReplyDeleteमहिलायें तन और मन से कितनी ताकतवर और सहनशील हैं इसे बताने की कोई जरुरत ही नहीं है.
मातृत्व सबसे बड़ी सेवा है. हर व्यक्ति सर्वप्रथम अपनी माँ का ही ऋणी है.
- सुलभ
कुछ 'पहरेदारों' को मेरे विचारों पर आपत्ति होगी, उनसे पहले ही विनम्र क्षमा याचना.
ReplyDeleteअच्छा कदम है नियोक्ताओं का, वैसे भी जनसंख्या हद से ज्यादा बढ़ रही है. महिलाओं को करियर में तब तक व्यस्त रखा जाए जब तक की वे माँ बनाने की आयु पार न कर जाएं. महिलाएं भी इसे अपना नैतिक कर्त्तव्य मानते हुए परिवार और मातृत्व के फेर में न पड़कर देश की आर्थिक उन्नति में अपना योगदान दें.
फिर ये नवयुवतियां चाहें तो किसी अनाथ या गरीब बच्चे को गोद ले सकती हैं, इस तेज़ रफ़्तार दुनिया में खुद बच्चे पैदा करके मूल्यवान समय और उर्जा बर्बाद करना किसी भी प्रकार से सही नहीं है.
क्या ज़रूरी है की हर महिला माँ बने? या विवाह करे? बच्चे की सही परवरिश कम से कम सोलह से अट्ठारह वर्ष तक काफी समय और उर्जा मांगती है, आज डबल इनकम सिंगल किड्स फैमली के दुष्परिणाम हर कहीं दिख रहे हैं. व्यस्त अभिभावकों के ये बच्चे बारह तेरह की उम्र में ही हार्ट अटैक. डिप्रेशन, मधुमेह, हायपरटेंशन, ओबेसिटी का शिकार हो रहे हैं. क्यों की माँ भी बिज़ी और बाप भी बिज़ी. बच्चे व्यावसायिक क्रेश और होस्टल्स में सामूहिक रूप से बड़े होते हैं, जो कुछ ज्यादा कमा पाते हैं उनके बच्चों को कामवाली आया पालती है.
मैंने ऐसे लड़के भी देखे हैं जिसके पिता एक बहुरष्ट्रीय कंपनी में बड़े अधिकारी हैं, सातों दिन कम से कम तेरह चौदह घंटे काम करते हैं. माँ अंतर्राष्ट्रीय रूट पर एयर होस्टेस हैं, जो साल के ग्यारह महीने ऑन बोर्ड ड्यूटी पर बिताती हैं. उसके लिए माता पिता केवल बैंक एकाउंट हैं, जिसके माध्यम से उसे इफरात जेबखर्च हर महीने मिल जाता है. पर अपने अभिभावकों को साल दो साल में ही देख पाता है, वह भी ज़्यादातर एकसाथ नहीं. दीवाली वगैरह भी उसकी होस्टल में ही बीतती है.
जिन दम्पत्तियों के पास बच्चे को सही ढंग से पालने के लिए समय और सही भौतिक और मानसिक संसाधन नहीं हों उन्हें बच्चे पैदा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए.
ऐसे में आज समय की ज़रूरत है की सरकार जीवन भर अविवाहित रहने का फैसला करने वालों को या संतान न चाहने वाले दम्पत्तियों को पोत्साहन दे, और विवाह व गर्भधारण को हतोत्साहित करे. क्योंकि अगर काम हाथ में लिया है तो ज़रूरी है की उसे अंजाम तक भी पहुंचाया जाए. वर्ना बच्चे को ऐसे पैदा करके इस तरह पलने के लिए छोड़ देने से अच्छा है की माँ बनाने की इच्छा दबा ली जाए, या ज्यादा अच्छा होगा की किसी गरीब बच्चे को स्पोंसर किया जाए.
There is no point of taking only half measures.
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ab inconvenienti से सहमत !
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