November 13, 2009

तकनीकी विकास और औरतें

   मुझे हमेशा से ही इस बात की शिकायत रही है कि शादी के बाद पतियों के दोस्त तो बने रहते हैं, लेकिन पत्नियाँ अपनी सहेलियों से दूर हो जाती हैं. वे बेचारी पति, सास-ससुर और बच्चों की सेवा करते-करते भूल जाती हैं कि कभी वे भी सखियों-सहेलियों के साथ हँसती-खिलखिलाती थीं. उनसे अपने सुख-दुःख बाँटती थीं और उनके साथ घूमती-फिरती थीं. शादी जैसे उनके लिये एक बन्धन बन जाती है. ये अलग बात है कि वे उस बन्धन में खुश रहती हैं, पर जब अपने बचपन की याद आती है तो मन में एक पीर सी उठती है. इस विषय पर अनेक लोकगीत और फिल्मी गीत भी बने हैं.
    पर आज तकनीकी विकास ने तस्वीर काफी बदल दी है. मुझे अक्सर मेरी एक शादी-शुदा सहेली की बहुत याद आती रहती थी, पर उससे किसी भी तरह संपर्क नहीं हो पा रहा था. अभी कुछ दिनों पहले ऑरकुट पर वो मुझे मिल गयी तो जैसे कोई खजाना हाथ लग गया. उसने मुझे मेल भेजकर मेरा फोन नम्बर माँगा और मुझे फोन किया. तब मुझे पता चला कि उसके दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं. मेरे कहने पर उसने अपने बच्चों की फोटो भी अपलोड की. तो अपने घर बैठे-बैठे मैंने उसके परिवार से मुलाकात कर ली. इसके बाद मैंने जब खोज करनी शुरू की तो हॉस्टल की कई सहेलियों, जूनियर्स और सीनियर्स से संपर्क हुआ. उनमें से कई विदेश में हैं. अधिकतर की शादी हो चुकी है और वे ही सबसे अधिक प्रोफाइल अपडेट करती हैं.
    लोग चाहे जितना कहें कि इन्टरनेट हमें अपने परिवार से, पड़ोसियों से और समाज से दूर कर रहा है, पर मुझे ऐसा नहीं लगता. मुझे लगता है कि इसने औरतों के लिये, विशेषकर हाउसवाइव्स के लिये एक महत्त्वपूर्ण संचार के साधन का काम किया है. इसके पहले मोबाइल फोन भी एक चमत्कार की तरह अवतरित हुआ था, पर मुझे लगता है कि इन्टरनेट अभी तक कि सभी प्रौद्योगिकियों में औरतों के लिये सबसे अधिक सहायक हुआ है. हालाँकि अभी इसे बहुत लम्बा सफ़र तय करना बाकी है. मैं तब इस सफ़र को पूरा मानुँगी जब मुझे नेट पर अपनी सारी सहेलियाँ मिल जायेंगी.

8 comments:

  1. आपकी बात सही है । इंटरनेट औरतों और उन लोगों के लिए तो एकदम वरदान साबित हुआ है जिनके लिए बाहर निकलना बिल्‍कुल मुश्किल होता है ।

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  2. सही कहा आपने | शुरू में आपकी बात को

    पढ़ते हुए अमीर खुसरो की पंक्तियाँ याद आ

    गयीं ---------

    '' तारों भरी मैंने गुडिया जो छोड़ी
    छूटा सहेली का साथ |
    ...अरे लाखिया बाबुल मोरे |
    .......काहे को व्याहे विदेश , अरे लाखिया बाबुल मोरे |''

    अच्छी पोस्ट ...
    शुक्रिया ... ...

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  3. आपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ ..एक गृहणी होने के नाते मैं इसकी उपयोगिता से भली भांति परिचित व लाभान्वित भी हूँ ...इन्टरनेट एक समान विचारधारा के लोगों को आपस में मिलाने का एक बहुत ही अच्छा व् सुलभ साधन है ....!!

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  4. इन्टरनेट से जुड़ ही गयी हैं तो तकनीक को भी समझे । ईमेल हीडर पढ़ना सीखे , गूगल वेब मास्टर टूल्स मे अपना खाता बनाये । आप को कौन कहा से मेल भेजता हैं इसको जाने । जो भी तकनीक नयी होती हैं उसके लूप होल सीखना बहुत जरुरी होता हैं ताकि कोई हमको बेवकूफ ना बना सके

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  5. इंटरनेट का इस मामले में प्रयोग दुरुस्त है।

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  6. पुरानी सहेलिया कि क्यों?नए सम्बन्ध भी तो बने है इसके जरिये, जिनसे हम अपनी पुरानी यादो को नये अंदाज के साथ बाँट सके है |
    और हर विषय पर कितने ही विचार एक ही समय पा सकते है |

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  7. स्त्री होने का सबसे बड़ी हानि यही रही है कि अपनों से सम्पर्क टूट जाता है, अपना शहर, अपने मित्र आदि। फिर यदि कोई नाम पट्टी भी लगी दिखे तो आप कैसे पहचानेंगी कि यह सुशीला नय्यर आपकी वाली सुशीला सेठ है?
    घुघूती बासूती

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