" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
October 29, 2009
दरकती 'विवाह संस्था' के महत्वपूर्ण कारक!
'विवाह संस्था' अब नई पीढ़ी के मायनों में दरकने लगी है। इसके लिए वही सिर्फ दोषी हैं ऐसा मैं नहीं मानती। आज सबसे बड़ा पैकेज दिखाई देता है। इस पैकेज के लिए सबसे बड़ा चाहने वाला वर्ग 'मध्यम वर्ग'. मध्यम वर्ग के लोगों को भी सपने देखने का हक़ है और वे किसी भी तरह से बच्चों को उच्च शिक्षा दिला कर आत्म निर्भर बनने के लिए संघर्ष करते हैं। फिर संघर्ष करके जो लड़की पढ़ी - वह नौकरी करके अपने सपनों को भी साकार करना चाहती है। यही हाल लड़कों का भी है। अपने सपनों को सजाये ये लोग 'विवाह संस्था ' से जुड़ते हैं और तब सरोकार होता है परिवार संस्था से। मध्यम वर्गीय अभिभावक अपनी मानसिकता नहीं बदल पाते हैं। बहू पढ़ी-लिखी और कमाऊ मिले तो ये उनके लिए बड़े सम्मान की बात है लेकिन बहू तो बहू है न। उनके मानकों पर खरी उतरनी चाहिए। अगर नहीं उतरी तो लड़के और बहू दोनों के लिए सारी संस्थाएं बेमानी हो जाती हैं।
मेरे साथ एक M.Tech लड़की काम करने आई। यही पर काम करते करते उसकी शादी हुई। परिवार निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का था और लड़की उच्च मध्यम वर्गीय। लड़के की नौकरी अच्छी थी इसलिए उन लोगों ने शादी कर दी। ससुराल से शादी के बाद जब ऑफिस आती तो सभी ने पूछा की कैसी ससुराल है?
१। ससुर के सामने घूंघट करना है।
२। टीवी उनके सामने बैठ कर नहीं देखना है।
३। रात में सोने से पहले सास के पैर दबाने होंगे।
४। जब सास ससुर सोने चले जाएँ , तब आपको जाना है।
५। सुबह ऑफिस जाने से पहले खाना बना कर रख कर जाना है।
हास्टल में पढ़ने वाली लड़की से एकदम इतने साड़ी अपेक्षाएं हम कैसे कर सकते हैं? कई महीनों तक उसने संघर्ष किया और नौकरी भी संभाली लेकिन हार गई और फिर माँ-बाप के पास आ गई। पति से मुलाकात ऑफिस में होती , उसे ससुराल जाने की इजाजत नहीं थी। १ साल तक पिता के घर में रही और फिर समझदारी का परिचय देते हुए उसने नौकरी छोड़ दी। पति ने भी अपने ट्रान्सफर बाहर करवा कर परिवार संस्था को टूटने से बचा लिया ।
इसमें हम किसको दोष दें? हम प्रगतिशील होने का मुखौटा पहनाकर अन्दर से वही रुढिवादी होते हैं। समय और जरूरत के अनुसार अगर सामंजस्य नहीं करेंगे तो सारी संस्थाएं बिखर जायेगी। हमारी आने वाली पीढी हमें कभी माफ नहीं करेगी।
विवाह संस्था को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं - मानव मनोग्रंथियाँ। चाहे वे Superiority Complex ' हो या फिर 'inferiority Complex' । इतनी समझदारी विकसित करनी पड़ेगी कि क्या फर्क पड़ता है की कौन कम कम रहा है और कौन ज्यादा। घर दोनों का है, परिवार दोनों का है , फिर इसमें इनकी गुंजाइश ही कहाँ रह जाती है? यहाँ बात एक की नहीं दोनों की है। वैसे तो लड़कियाँ जन्मजात सामंजस्य करने वाली होती हैं लेकिन अगर नहीं हैं तो दोनों को इसको बचने के लिए सामंजस्य स्थापित करना होगा।
इसको बचाना ही पहला प्रयास होना चाहिए।
ek mtech ladki kaa naukri chodna ek durghatna haen
ReplyDeletekyaa option they us ladki kae pass iskae alaawa
kyun itna kam vikalp haen ladkiyon kae paas ki naukri aur shaadi mae sae kisi ek ko chunna unki vivshtaa ho jaata haen
बहुत अच्छा आलेख है और एनोनिमस के सवाल सही हैं। आखिर कब तक ये सवाल मुह बाये खडे रहेंगे। ऐसे समय मे लडके को भी तो कुछ निर्णय लेना चाहिये। बात वहीं आ जाती है समाज और माँ बाप की आपेक्षायें। लडकी तो पराई होती है । कितनी विडंवना है कि लडकी पढी लिखी नौकरी पेशा चाहिये मगर लडकी को क्या चाहिये इस पर सब मौन हो जाते हैम घर की जिम्मेदारी और नौकरी दोनो की आपेक्षाआ उसी से की जाती है। पता नहीं कब ये समाज औरत के बारे मे सोचेगा।
ReplyDeleteइसका मतलब टी वी मे जो धारावाहिक आते हैं वो बिल्कुल सही आईना हैं वैसी ही बहू तो सब खोज रहे हैं
ReplyDeleteसही कहा आपने
ReplyDeleteइसको बचाना ही सबसे पहला प्रयास होना चाहिए
दरअसल मधयम और निम्न मध्य वर्ग एक दोराहे पर खडा है.उसे दोनों चाहिए .शायद वक़्त ही बदले और बदलेगा .जी हाँ यह सब सिर्फ टीवी में ही नहीं होता .समाज में भी होता है. मानसिकता बदलने में वक़्त तो लगेगा पर बदलाव समाज का नियम है .बदलने की प्रक्रिया हम सब की ,पूरे समाज की जिम्मेदारी है.
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने ...मगर मैं इसके लिए ससुराल वालों से ज्यादा अभिभावकों को दोषी मानती हूँ ...वे अपने बच्चों को बेहतर आजाद वातावरण देकर पाल पोस कर बड़ा करते हैं ...मगर जब विवाह की बात आती है ...विशेषकर यदि एक दो रिश्तों के लिए मना हो जाए ...तो वे अपने बच्चों के मन और जीने के अंदाज को अनदेखा कर जाते हैं ...उनकी प्राथमिकता जैसे तैसे विवाह करना हो जाती है ...और तलाक़ के बढ़ते मुकदमों का मुख्य कारण भी यही है ...बच्चों को समन्वय करने की सीख दिए बिना उनके विवाह के लिए ऐसा वर घर चुनना जहाँ उसे हर कदम पर समन्वय करने की जरुरत हो ..!!
ReplyDeleteजब तक समाज मे स्त्री-पुरूष को बराबर नहीं माना जाएगा ना जाने कितनी लड़कियों का भविष्य शादी की वेदी पर होम होगा ।
ReplyDeleteशादी को अगर निभाने के लिये लड़की का नौकरी छोड़ना ही मात्र विकल्प हैं तो लड़कियों को पढाना बंद कर दे ।
१८ वर्ष की आयु होते हैं उनको शादी के लिये तैयार करे मन और तन से ताकि जो कुछ आप की MTECH मित्र से ससुराल वालो की अपेक्षा थी आप की बेटी उनको पूरा कर सके । बेकार है लड़कियों को बेसिक शिक्षा से आगे पढ़ना । उतने पैसे से तो उनका विवाह किया जा सकता हैं
नहीं उम्मीद थी की ऐसा कुछ इस ब्लॉग पर पढ़ने को मिलगा जहाँ हम बात कर रहे हैं " नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " ।
शायद इसीलिये कल्पना चावला जैसी युवतियां विदेशो मे ही जा कर रच बस जाती हैं ताकि अपनी " शक्ति और उर्जाओ " का सही उपयोग करे ।
शादी ना करना कोई विकल्प नहीं हैं ,
शादी तोड़ना भी विकल्प नहीं हैं
पर
क्या एक Mtech लड़की का ये विकल्प सही निर्णय हैं । मै असहमत हूँ
बदलती हुई परिस्थितियों में सभी को थोड़ा थोड़ा बदलना पड़ेगा .बदलाव की गति धीमी है पर है तो .व्यक्ति की सोच में बदलाव आएगा तो समाज बदलेगा .और उसको बदलने की ज़्यादा ज़िम्मेदारी हमारी है .लड़की का नौकरी छोड़ना ,मैदान छोड़ना ही हुआ .aise to soch pariwartan ki chal aur dheemi ho jayegi .
ReplyDeleteनोकरी छोड़ना कोई विकल्प नही है .हमारे एक परिचित थे अब वो इस दुनिया में नहीं है उनको कान्वेंट पढ़ी लिखी विथ घुघट वाली बहू चाहिए और वैसे मिली भी बैंक में सर्विस करती थी वो १० से ६ बजे तक |उनका बेटा एक टाउनशिप में रहता था और बहू को ७ कि . मीटर कायनातिक पर जाना होता था सिर ढंककर और सबसे बडा ये नजारा होता था कि जब ससुरजी को शापिग करनी होती तो वो आराम से बहू के साथ पीछे बैठकर जाते थे पर बहू ने इन परिस्थियों का सामना किया लोगो कि हंसी कि पात्र भी बनी ,ससुरजी को भी कुछ ताने सुनने को मिले फिर उन्होंने अपनी बहू को सलवार सुइट पहनने तक कि छूट दे दी |तो कुछ लोग अपनी मानसिकता को अपने हिसाब से बदल लेते है और बशर्ते कि उसमे अपना फायदा निहित हो |
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