" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
"The Indian Woman Has Arrived "
एक कोशिश नारी को "जगाने की " ,
एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
October 22, 2009
आप को क्या लगता हैं "तपस्या" की बिदाई के बाद कहानी को क्या मोड़ दिया जायेगा ।
धारावाहिक "उतरन " कहानी का अगला मोड़ क्या होगा ? क्या आज आप अपनी कल्पना शक्ति से उस मोड़ को यहाँ मुझ से बाँटेगे ।
आप को क्या लगता हैं "तपस्या" की बिदाई के बाद कहानी को क्या मोड़ दिया जायेगा ।
सुमन , इस कहानी की तरह से एक और कहानी चल रही है, " छोटी बहू" बस परिवेश और थोड़े से हालत बदल जाते हैं, लेकिन बिल्कुल वही सब चीजें चल रही हैं . मुझे लगता है कि हम अपने दिशा बदल रहे हैं क्या? इन सीरिअल के सहारे हम अपने उद्देश्य को भूल तो नहीं रहे हैं. यथार्थ के साथ जुड़ कर हमें अपनी दिशा और लक्ष्य निर्धारित करना है.
क्या ऐशा नहीं लगता की हमें गलत तरीके से जीने मैं आंनंद आता हैं, और हम उसे ही अच्छा मान कर उसी पर बहश करने को तैयार हो रहे हैं. आप लोगो ने ध्यान से देखा होगा कैसे नए नए रिवाज पैदा किये जा रहे हैं शादी के मंडप मैं और तो और शादी के मंडप मैं लड़के और लड़की की तरफ से ज्यादा से ज्यादा १० आदमी और औरत हमें नजर आये मगर क्या ? ऐसा शम्भव हैं लोग दुल्हन को पहचान न पाए, क्या ऐसा संभव हैं की एक माँ और एक बाप अपनी बेटी को गले लगाये और उसे पहचान न पाए क्या ऐसा संभव हैं की घर मैं शादी हो रही है और तपस्या अपने कमरे मैं लेटी रहे और उसके माँ बाप दुसरो की बातो मैं आते रहे, मैं भी देखता हूँ मगर समय काटने के लिए . आपने ब्लॉग पर बहेस के लिए इस बिषय को रखा है क्या ऐसा नहीं लगता की आप लोग उस धारावाहिक का और प्रचार -प्रसार कर रहे हैं, आप ऐसे धारावाहिक निर्माता के खिलाफ बहस का मुद्दा रखिये की समाज को ध्यान मैं रख कर के ही समाज को सजाएँ . धन्यवाद्
उतरन का अगला मोड़ क्या होगा ?ये तो नही जानते न ही क ह सकते है क्योकि टी. वि वाले कुछ भी कर सकते है जो अविश्वसनीय है |पता नही सारे धारावाहिक समाज को किस दिशा में ले जारहे है | बाल विवाह को कुरीति दिखाकर बाल विवाह को मजबूत दिखाते है |अपनी बेटी कि उम्र कि लड़की से शादी करने के विरोध के नाम पर उसे कब मान्यता दे देते है समझ से परे है |महिलाये आज हर क्षेत्र में उन्नति कर रही है अपने हक़ कि लडाई लड़ रही है समाज में कितु धारावाहिकों में लगता है लड़कियों कि सिर्फ शादी और शादी ही करना माँ बाप का मकसद है | तपस्या का घुंघट में मंडप में आना ,और बार बार उसकी माँ का कहना कि दुल्हन का घुंघट ससुराल में ही खुलेगा आज के जमाने में हास्यास्पद है आज सब जगह शादी के बाद रिसेप्शन होता है जिसमे कोई घुंघट नही होता | तपस्या को उसके माँ बाप द्वारा न पहचानना असंभव है |ऐसे धारावाहिकों का विरोध होना ही चाहिए |
उतरन की कहानी में तपस्या की शादी होने पर नया मोड़ आ गया है...आज के ज़माने में लगता है की बिना सोचे ही कहानी को आगे बढा दिया जाता है..जो असल ज़िन्दगी में संभव नहीं होता.. जहाँ तक माँ - पिता के न पहचानने की बात है वो सौ फीसदी सही है कि ऐसा तो संभव ही नहीं है कि माँ के गले लगने पर भी माँ बेटी को न पहचान सके...इस कहानी से एक ये भी गलत सन्देश जाता है की जो अच्छा होता है उसको ही दुःख उठाने पड़ते हैं... ..आगे की कहानी में तपस्या के साथ वीर को समझौता नहीं करना चाहिए. ....यदि बुराई की ही जीत दिखायेंगे तो लोग बुराई की तरफ ही आकर्षित होंगे......दूरदर्शन वालों को आम जनता की सोच के साथ कार्यक्रम दिखाने चाहिए.
सुमन ,
ReplyDeleteइस कहानी की तरह से एक और कहानी चल रही है, " छोटी बहू" बस परिवेश और थोड़े से हालत बदल जाते हैं, लेकिन बिल्कुल वही सब चीजें चल रही हैं .
मुझे लगता है कि हम अपने दिशा बदल रहे हैं क्या? इन सीरिअल के सहारे हम अपने उद्देश्य को भूल तो नहीं रहे हैं. यथार्थ के साथ जुड़ कर हमें अपनी दिशा और लक्ष्य निर्धारित करना है.
क्या ऐशा नहीं लगता की हमें गलत तरीके से जीने मैं आंनंद आता हैं, और हम उसे ही अच्छा मान कर उसी पर बहश करने को तैयार हो रहे हैं. आप लोगो ने ध्यान से देखा होगा कैसे नए नए रिवाज पैदा किये जा रहे हैं शादी के मंडप मैं और तो और शादी के मंडप मैं लड़के और लड़की की तरफ से ज्यादा से ज्यादा १० आदमी और औरत हमें नजर आये मगर क्या ? ऐसा शम्भव हैं लोग दुल्हन को पहचान न पाए, क्या ऐसा संभव हैं की एक माँ और एक बाप अपनी बेटी को गले लगाये और उसे पहचान न पाए क्या ऐसा संभव हैं की घर मैं शादी हो रही है और तपस्या अपने कमरे मैं लेटी रहे और उसके माँ बाप दुसरो की बातो मैं आते रहे, मैं भी देखता हूँ मगर समय काटने के लिए . आपने ब्लॉग पर बहेस के लिए इस बिषय को रखा है क्या ऐसा नहीं लगता की आप लोग उस धारावाहिक का और प्रचार -प्रसार कर रहे हैं, आप ऐसे धारावाहिक निर्माता के खिलाफ बहस का मुद्दा रखिये की समाज को ध्यान मैं रख कर के ही समाज को सजाएँ . धन्यवाद्
ReplyDeleteTarkeshwar Giri
ReplyDeleteनहीं नारी ब्लॉग किसी भी धारावाहिक का प्रचार नहीं कर रहा हैं । हम तो आईना ही देखा रहे हैं वरना ये ना लिखते
और क्या असली जिन्दगी मे भी ये सब सम्भव हैं ?
और आप की बात से पूर्ण सहमति हैं । पता नही हिन्दी ब्लॉग जगत मे ग़लत बातो का विरोध दर्ज कराने वाले इतने कम क्यूँ हैं । अच्छा लगा की आप ने खुल कर कहा
उतरन का अगला मोड़ क्या होगा ?ये तो नही जानते न ही क ह सकते है क्योकि टी. वि वाले कुछ भी कर सकते है जो अविश्वसनीय है |पता नही सारे धारावाहिक समाज को किस दिशा में ले जारहे है |
ReplyDeleteबाल विवाह को कुरीति दिखाकर बाल विवाह को मजबूत दिखाते है |अपनी बेटी कि उम्र कि लड़की से शादी करने के विरोध के नाम पर उसे कब मान्यता दे देते है समझ से परे है |महिलाये आज हर क्षेत्र में उन्नति कर रही है
अपने हक़ कि लडाई लड़ रही है समाज में कितु धारावाहिकों में लगता है लड़कियों कि सिर्फ शादी और शादी ही करना माँ बाप का मकसद है |
तपस्या का घुंघट में मंडप में आना ,और बार बार उसकी माँ का कहना कि दुल्हन का घुंघट ससुराल में ही खुलेगा आज के जमाने में हास्यास्पद है आज सब जगह शादी के बाद रिसेप्शन होता है जिसमे कोई घुंघट नही होता |
तपस्या को उसके माँ बाप द्वारा न पहचानना असंभव है |ऐसे धारावाहिकों का विरोध होना ही चाहिए |
उतरन की कहानी में तपस्या की शादी होने पर नया मोड़ आ गया है...आज के ज़माने में लगता है की बिना सोचे ही कहानी को आगे बढा दिया जाता है..जो असल ज़िन्दगी में संभव नहीं होता.. जहाँ तक माँ - पिता के न पहचानने की बात है वो सौ फीसदी सही है कि ऐसा तो संभव ही नहीं है कि माँ के गले लगने पर भी माँ बेटी को न पहचान सके...इस कहानी से एक ये भी गलत सन्देश जाता है की जो अच्छा होता है उसको ही दुःख उठाने पड़ते हैं... ..आगे की कहानी में तपस्या के साथ वीर को समझौता नहीं करना चाहिए. ....यदि बुराई की ही जीत दिखायेंगे तो लोग बुराई की तरफ ही आकर्षित होंगे......दूरदर्शन वालों को आम जनता की सोच के साथ कार्यक्रम दिखाने चाहिए.
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