हम "बाजारवाद" को अपनी सब समस्याओं के लिये जिम्मेदार मानते हैं । बहुत से लोग नारी को विज्ञापनों मे देख कर आपत्ति करते हैं क्युकी उनको महसूस होता हैं की नारी का शरीर का नंगा प्रदर्शन होता हैं ।
लोग अभिनेत्रियों और मोडेल्स के विरूद्व एक सोच ले कर चलते हैं की वो समाज मे वेस्टर्न कल्चर लाती हैं ।
हिन्दी ब्लॉग मे ना जाने कितने ब्लॉग हैं जहाँ चित्र होते हैं महिला के लेकिन उस चित्र का कोई भी तारतम्य नहीं होता लेख से । लोग इन्टरनेट से चित्र उठा कर अपनी पोस्ट पर लगाते हैं लेकिन बिना किसी प्रसंग के ।
हम किस मानसिकता के तहत ऐसा करते हैं ?? क्या हैं जरुरत नारी शरीर को { वस्त्र के साथ या बिना वस्त्र के } टूल बना कर अपनी पोस्ट को आकर्षित बनाना ।??
शब्दों मे ताकत क्या कम होती हैं जो मातृशक्ति की जरुरत पड़ती हैं ??
जब तक नारी को व्यक्ति के स्थान पर वस्तु समझा जाता रहेगा तब तक ऐसा तो होगा ही। सवाल वेस्टर्न या ईस्टर्न कल्चर का नहीं है। यदि कुछ अभिनेत्रियां/मॉडल्ज़ अपने शरीर का प्रदर्शन करके पैसा कमाने को स्वतन्त्र हैं तो बाकी लोग भी उनके बारे में भली या बुरी राय बनाने के लिये स्वतन्त्र हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा है.......
ReplyDeleteशुक्र है फूलों की ज़बान नही है वर्ना कोई धतूरे का फूल इस बात पर भी शिकायत करता की हमने अपने ब्लाग पर सुंदर फूलों के चित्र लगाए हैं.
ReplyDeleteबहुत से लोग सुन्दरता से ऊपर नहीं उठ पाते
ReplyDeleteरही बात धतूरे के फूल की ना बोल सकने की
तो याद रहे जो मौन की भाषा सुन सकते हैं वही
संवेदन शील कहलाते हैं .
धतूरे के पत्तों का धूँआ दमा को शाँत करता है | तथा धतूरे के पत्तों का अर्क कान में डालने से आँख का दुखना बंद हो जाता है | धतूरे की जड सूंघे तो मृगीरोग शाँत हो जाता है | धतूरे की फल को बीच से तरास कर उसमें लौंग रखे फिर कपड मिट्टी कर भूमर में भूने जब भून जावे तब पीस कर उसका उडद बराबर गोलीयाँ बनाये सबेरे साँझ एक -एक गोली खाने से ताप और तिजारी रोग दूर हो जाय और वीर्य का बंधेज होवे | धतूरे के कोमल पत्तो पर तेल चुपडे और आग पर सेंक कर बालक के पेट पर बाँधे इससे बाल का सर्दी दूर हो जाती है | और फोडा पर बाँधने से फोडा अच्छा हो जाता है | बवासीर और भगन्दर पर धतूरे के पत्ते सेंक कर बाँधे स्त्री के प्रसूती रोग अथवा गठिया रोग होने से धतूरे के बीजों तेल मला जाता है |
रचना जी ये पोस्ट किसलिए है विवाद सुलझाने के लिए या विवाद बढ़ाने के लिए।
ReplyDeleteआपका यही सवाल बताता है कि औरत ने अपने आपको कैसे एक उत्पाद में बदल लिया है। अब यदि यह एक महिला ही करे तो जायज क्योंकि उसका शरीर और यदि कोर्द आदमी ऐसा कर दे तो नाजायज??????
फिर सोचिए पोस्ट किसलिए??????
विवाद बढाने के लिये
ReplyDeleteएक बात तो आपको मानना ही पड़ेगा कि शब्दों से ज्यादा शक्ति चित्रों में होती है.. तभी तो बच्चों को 'ए' फॉर एप्पल बोलकर उसके नीचे 'सेब' का चित्र बना देते हैं.. जिससे बच्चों को उसे को-रिलेट करके याद करने में सुविधा हो.. ठीक वैसे ही आप चित्र में किसी को भी दिखायें, स्त्री को या पुरूष को, कपड़ों के साथ या बिना कपड़ों के.. वह शब्दों से ज्यादा प्रभावशाली होता ही है..
ReplyDeleteमेरे ख्याल से "शब्दचित्रण" शब्द कि उत्पत्ती भी यहीं कहीं से हुई होगी.. वैसे इस बारे में कोई भाषाविद्य ही बता सकते हैं..
ओह.. कमेंट पोस्ट करने के बाद मैंने पढ़ा कि यहां बात विवाद बढ़ाने के लिये किया जा रहा है.. सो मेरे कमेंट को गौण मान कर ही चला जाये.. :)
ReplyDeleteबहुत ही सही कहा है.......
ReplyDeleteजब तक नारी को व्यक्ति के स्थान पर वस्तु समझा जाता रहेगा तब तक ऐसा तो होगा ही। सवाल वेस्टर्न या ईस्टर्न कल्चर का नहीं है।
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