July 11, 2009

जाकिर रजनीश कि पोस्ट पर पूछे हुए प्रश्नों के उत्तर

तस्लीम ब्लॉग पर आयी परिचर्चा को आगे बढाते हुए ..........
जाकिर रजनीश कि पोस्ट पर पूछे हुए प्रश्नों के उत्तर

बलात्कार क्या हैं
हिन्दी मे रेप का सीधा ट्रांसलेशन बलात्कार हैं । लेकिन बलात्कार का अर्थ हैं बलपूर्वक अपनी बात को मनवाना । इस मे यौन शौषण , रेप , सेक्सुअल हरासमेंट और क्रिमिनल अस्सुअल्ट सभी कुछ शामिल हैं । यहाँ तक कि किसी को एक ऐसी मेल भेजना जो उसको नहीं चाहिये भी बलात्कार होता हैं । परिभाषाये बदलते परिवेश से बदलती हैं ।

कोई इतना नीचे कैसे गिर जाता है कि बलात्कार जैसी घटना करने पर उतारू हो जाता है?
जाकिर आप श्याद केवल क्रिमिनल अस्सौल्ट कि बात कर रहे हैं जब "बलात्कार" शब्द का प्रयोग कर रहे हैं सो उसका सीधा जवाब हैं स्त्री को भोग्या / सम्पति / वस्तु मान कर जो बडे होते हैं वो बल पूर्वक स्त्री पर अपना स्वामित्व स्थापित करने के लिये बलात्कार करते हैं । और अगर व्यापक परिभाषा मे जाए तो जो लोग स्त्री को घर के अन्दर , अपने नीचे देखने के आदि हैं वो स्त्री के बदलते रूप से भयभीत हैं और बलात्कार { यानी यौन शोषण , अंतरंगता का दिखावा , गलत कमेन्ट , गलत मेल , और भी बहुत कुछ } कर के अपना स्वामित्व स्थापित करते हैं । अपनी इन्सेकुरिटी को जीतने के लिये स्त्री के मन , मस्तिष्क और शरीर पर चोट करके वो उसको निष्क्रिये करना चाहते हैं । वो जानते हैं कि भारतीये समाज व्यवस्था मे स्त्री को "चुप " रहना सीखाया जाता हैं और यही वो बार बार स्त्री को याद दिलाते हैं और इसको याद दिलाने के लिये वो स्त्री के शरीर को माध्यम बनाते हैं ।

बलात्कार पीडित स्त्री समाज की प्रताडना का शिकार क्यों होती है?
क्युकी समाज मे स्त्री का कोई वजूद नहीं हैं । सब दिखावा करते हैं मन मे सबके आज भी स्वामी पुरूष ही हैं , सो बलात्कार से पीड़ित स्त्री को समाज भी दोष देता हैं । और समाज केवल पुरुषों से नहीं बना , औरतो से भी बना हैं लेकिन औरतो को ऐसा "कन्डीशन " किया जाता हैं कि वो पुरूष के पैर कि जुती बन कर रह सकती हैं पर अकेले स्वाभिमान से अपनी जिंदगी नहीं जीना चाहती । पुरूष स्त्री को छोड़ दे तो स्त्री कुलटा , स्त्री पुरूष को छोड़ दे तो भी स्त्री कुलटा । यानी चरित्र हीन केवल और केवल स्त्री ही हैं ।

जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे समाज में ऐसी घटनाएं क्यों बढ़ती जा रही हैं?
नारी सशक्तिकरण से पुरूष insecured होगया हैं उसको लगता हैं औरत को उसकी सही जगह दिखाने के लिये "बलात्कार" सही रास्ता हैं { यहाँ बलात्कार का व्यापक अर्थ लिया जाए } । मेंटल एवोलुशन औरत का ज्यादा हो गया हैं क्युकी वो supressed रही हैं , बलात्कार उसको supressed रखने का आसान तरीका हैं ।
तकनीक , साइंस ने बलात्कार को रुपए कमाने का साधन बनाया हैं । fake बलात्कार के सी डी मार्केट मे ऊँचे दाम पर बिकते हैं । ये सी डी उन लड़कियों के होते हैं जो किसी वज़ह से पैसा कमाने कि अंधी दौड़ मे अपने श्री को माध्यम बनाती हैं । उसके अलावा बलात्कार के वो mms और सी डी भी मिलते हैं जाहाँ लड़की किसी पर विश्वास करती हैं और वो उसके विश्वास का दुरूपयोग करता हैं । गलती दोनों कि हैं पर समाज केवल और केवल लड़की को सजा देता हैं { हाँ कानून दोषी को सजा देता हैं }

इस तरह की घटनाएं जितनी गांवों और कस्बों में होती हैं, उससे ज्यादा घटनाएं आज नगरों और महानगरों में क्यों हो रही हैं?

नहीं ये मात्र भ्रम हैं गाँवों मे स्थिति बहुत ख़राब हैं पर वहां शिक्षा का आज भी अभाव हैं इस लिये बलात्कार को स्त्री को उसका स्थान दिखाने का जरिए मन जाता हैं । मात्र तीन दिन पहले बेटे के दूसरी जाति कि कन्या से विवाह के कारण बेटे कि माँ को सरे आम वस्त्रहीन अवस्था मे घुमाया गया पुरी गाव मे ।
घटनाएं पहले भी होती थी पर तब मीडिया इतना नहीं था और बात दबा डी जाती थी आज बात दबती नहीं हैं ।

बलात्कार से निपटने के लिए सरकारी एवं सामाजिक स्तर पर क्या प्रयास होने चाहिए?

सामाजिक स्तर पर हमे अपने बेटो को ये समझाना होगा कि स्त्री उसकी जूती नहीं हैं । पुरूष को स्त्री के सम्मान का रक्षक नहीं मानना चाहिये क्युकी यहीं से "सम्पति /चीज़ / भोग्या । वस्तु बन जाती हैं स्त्री । स्त्री / नारी को अपने सम्मान के लिये ख़ुद लड़ना चाहिये । हर लड़की को सीखना होगा कि किसी भी गलत हरकत का पुरजोर विरोध करे । समाज मे वो समानता लानी होगी जो संविधान और न्याय प्रणाली मे स्त्री को मिली हैं ।
समाज के नियम और संविधान और न्याय के नियम जब तक same and at par नहीं होगी पुरूष और स्त्री मे समानता नहीं होगी और तब तक पुरूष { और कहीं कहीं स्त्री } का अहम् उसको बलात्कारी बनाता रहेगा ।

क्या बलात्कार पीडिता को किसी तरह का मुआवज़ा मिलना चाहिए?
बिल्कुल , जैसा विदेशो मे भी होता हैं ।

बलात्कारी के लिए क्या सज़ा होनी चाहिए?
फांसी अगर क्रिमिनल अस्सुअल्ट हैं बाकी जो न्याय प्रणाली कहे
हाँ जो लोग विद्रूप मानसिकता के चलते स्त्री पर व्यंग करते हैं ,उसके कपड़ो पर ऊँगली उठाते हैं वो सब दुसरो को बलात्कार करने के लिये उकसाते हैं उनके लिये आप क्या सजा मुकरर करगे जाकिर ये आप पर निर्भर हैं ।

इस सम्बंध में बलात्कारी के प्रति समाज की क्या भूमिका होनी चाहिए?

स्त्री और पुरूष से समाज बनता हैं । स्त्री और पुरूष आज के परिवेश मे केवल पति पत्नी नही हैं और ना ही स्त्री / नारी का रोल बच्चे पैदा करने और पुरूष का रोल बाहर जा कर पैसा कमाने के लिये हैं । जितनी जल्दी समाज ये मान लेगा कि नारी और नर कि भूमिका केवल और केवल एक पूरक कि ही नहीं हैं अपितु दोनों कि अपनी पसंद / ना पसंद भी हैं , उतनी ही जल्दी आने वाली पीढी को ये समझ आये गा कि " पर्सनल चोइस " को आदर देना जरुरी हैं ।







आप सब भी अपनी राय दे । या लिंक देकर चर्चा को आगे बढाए

5 comments:

  1. फांसी अगर क्रिमिनल अस्सुअल्ट हैं बाकी जो न्याय प्रणाली कहे
    हाँ जो लोग विद्रूप मानसिकता के चलते स्त्री पर व्यंग करते हैं ,उसके कपड़ो पर ऊँगली उठाते हैं वो सब दुसरो को बलात्कार करने के लिये उकसाते हैं उनके लिये आप क्या सजा मुकरर करगे जाकिर ये आप पर निर्भर हैं ।
    यदि उपरोक्त कार्य स्त्री करती है तो क्या स्त्री को भी कोई सजा मुकर्रर होनी चाहिये रचना जी, क्योंकि स्त्री समान है और वह अपराध की दुनिआ में भी पीछे नहीं रहना चाहती. स्त्री भी पुरुष के साथ वह अपराध कर रही है जिनकी चर्चायें आप कर रहीं हैं और संभवतः पुरुष किसी से चर्चा करने का साहस भी नहीं जुटा पाता.

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  2. उम्दा तरीके से प्रश्नोत्तर रूप में बेहतर बातें उठाई गई हैं।

    यहां आकर अच्छा लगा, नारी विमर्श सही दिशा में है।

    अभी तो नहीं पर समय इस नारी विमर्श में संवाद के जरिए अपनी हिस्सेदारी जरूर करना चाहेगा।

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  3. डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर & डा.राष्ट्रप्रेमी
    aap dono is blog par kament dae rahey haen par taslim par aaye prshno kaa jwaab naa to aapnae ne yahaa diyaa haen naa taslim blog par . aur naa hee apnae blog par ???
    samaaj kae prati { naari aur purush dono} aap kae daaitav kaa kyaa ??

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  4. यह विषय अब बहुत ही विषम बन चुका है, जो तस्वीर हमने बनायीं थी और अब उसे नारी के विभिन्न रूपों ने धुंधला कर दिया है. समाज में दोनों ही तरीकों के लोग मिल रहे हैं. हम जितना आँखें खोल कर देख रहे हैं किसकी कितनी भागीदारी बन रही है समझ पा रहे हैं. यह बलात्कार शब्द तभी अधिक उछाला जाता है , जब पानी सर से गुजर जाता है. हेय दृष्टि का शिकार तो महिला ही बनती है और वह भी कमजोर तबके कि महिला वर्ना धनाढ्य परिवारों कि महिलायें कहाँ जा रही है और क्या कर रही हैं इससे न कोई सरोकार रखता और न ही यह चर्चा का विषय बनता है.
    हमारी लड़ाई किससे है? इस समाज से न, तो फिर हमें बदलनी होगी सोच और सोच बदलने कि लड़ाई बहुत छोटी नहीं तो बहुत लम्बी भी नहीं होगी. ये मान्यताओं और मूल्यों की चर्चा कौन करता है? जो फुरसत में होते हैं. न्याय के लिए लड़ना बहुत अच्छा है लेकिन यह लड़ाई सिर्फ महिलाओं की हो ऐसा भी नहीं है, पुरुषों में सभी एक तरह से नहीं होते हैं, कम से कम एक तिहाई पुरुष वर्ग में इस अन्याय के खिलाफ ही बोलता है. न्याय और अन्याय की परिभाषाएं लिंग के बदलने से बदला नहीं करती हैं.
    अन्याय हर हालत में अन्याय ही है, जरूरी नहीं कि वह बलात्कार ही हो. शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दोनों ही इसके ही रूप हैं.

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