May 01, 2009

विधवा ,विधुर से ज्यादा शक्तिशाली होती हैं क्या ???

एक विधवा का विवाह "क्रांति" क्यूँ माना जाता हैं ??
अगर एक विधुर की शादी होती हैं तो कभी क्रांति या विद्रोह या सामाजिक उद्धार जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि कहा जाता हैं कि
"इतनी लम्बी जिंदगी बेचारा बिना औरत के कैसे काटेगा ,
या बच्चो को माँ की जरुरत हैं ,
या बिन गृहणी घर भूत का डेरा । "
फिर विधवा विवाह के समय ये सब क्यूँ नहीं कहा जाता . उस समय ये क्यूँ मान लिया जाता हैं कि एक औरत बिना पुरूष के रह सकती हैं ?

और अगर ये मान ही लिया जाता हैं तो फिर अविवाहिता को क्यूँ समाज विद्रोहिणी मानता हैं ? जबकि वही समाज एक विधवा को इतना सशक्त मान लेता हैं कि उसको पुरूष कि जरुरत ही नहीं हैं ।

क्या पुरूष कमजोर होता हैं कि वो बिना स्त्री के नहीं रह सकता और स्त्री मे इतनी ताकत होती हैं कि वो बिना पुरूष के भी समाज मे रह सकती हैं ।

सदियों से ये अनुतरित प्रश्न हैं आप के पास कोई कारण या उत्तर हो तो बताये ।

9 comments:

  1. पुरुष नारी निर्भर है और स्त्री को पराधीन बनाता है। पुरुष प्रधान समाज नारी को संपत्ति समझता है, और वह भी ऐसी जिस का स्वामित्व अपरिवर्तनशील है।
    नारी और पुरुष दोनों ही समान रूप से सशक्त हैं लेकिन दोनों का अकेले रह सकते हैं। लेकिन अकेले रहना असहज बात है, प्रकृति विरुद्ध भी।

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  2. ऐसा क्यों है या क्यों होता है, यह कहना तो मुश्किल है लेकिन अक्सर देखा गया है कि यदि पति एक महीने के लिये टूर पर जाये तो पत्नी को अपेक्षाकृत कम तकलीफ़ होती है, बनिस्बत यदि एक महीने के लिये पत्नी मायके चली जाये तो पति को जितनी तकलीफ़ होती है…। इसीलिये तो नारी अधिक सशक्त होती है… Mentally भी और Biologically भी… हार्ट अटैक भी पुरुषों को ही अधिक होते हैं महिलाओं की तुलना में… :) :)

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  3. नर में दो मात्राएँ लगाने पर नारी बनती है... बेशक नारी किसी भी रूप में नर से शक्तिशाली है.. हाँ यह अलग बात है कि समाज में अपना प्रभुत्त्व बनाए रखने के लिए पुरुष नारी को अविवाहिता , बिन ब्याही माँ बनने पर या विधवा होने पर प्रताड़ित करता रहेगा. जिस दिन नारी अपनी शक्ति को पहचान लेगी समाज में स्वयं ही संतुलन आ जाएगा.

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  4. बड़ा ही मौजूं सवाल उठाया है पर कुछ कहने के पहले एक बात स्पष्ट करदें कि आज भी आदमी अपनी दम्भी मानसिकता से बाहर नहीं निकला है। वह चाहे जितना भी स्वयं को नारी समर्थक बताये (नारी समर्थक वह हो भी सकता है बषर्ते वह उसकी पत्नी न हो) पत्नी के मामले में वह ऐसा नहीं कर पाता।
    जहाँ तक विधवा की बात है तो स्त्री-पुरुष दोनों ही अकेले में कमजोर हैं। आपके द्वारा उठाये गये बिन्दु समाज आधारित व्यवस्था का अंग थे या कहें कि हैं। इस व्यवस्था को पुरुष ने बनाया और यदि नारी ब्लाग से जुड़ी महिलाओं को नारी समर्थकों को बुरा न लगे तो इसका पोषण महिलाओं द्वारा भी किया गया।
    हमारे पास उदाहरण हैं कहें तो भेज देंगे। पर कहीं फिर उसे छापने पर आपके ऊपर उंगली न उठा दी जाये। महिलाओं को इसी मानसिकता को छोड़ना होगा।

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  5. विदुर ---> विधुर

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  6. RC
    Thanks
    I did the correction in typing
    regds

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  7. bahut achchhi mudda uthaya aapne.comments bhi lajawab he

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  8. मै तो इस बात का पोषक हूं कि नर-नारी एक-दूसरे के पूरक है। बिना शकि्त के शिव शव तो बिना शिव के शकि्त शून्य।

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  9. जहाँ तक विधवा की बात है तो स्त्री-पुरुष दोनों ही अकेले में कमजोर हैं। आपके द्वारा उठाये गये बिन्दु समाज आधारित व्यवस्था का अंग थे या कहें कि हैं। इस व्यवस्था को पुरुष ने बनाया और यदि नारी ब्लाग से जुड़ी महिलाओं को नारी समर्थकों को बुरा न लगे तो इसका पोषण महिलाओं द्वारा भी किया गया।

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