हमने महिला दिवस मना लिया और उसमें कहीं भी पुरुषों ने उत्साह नहीं दिखाया क्योंकि वह महिला दिवस जो था. मैंने भी कुछ लोगों के भाषण सुने और पाया कि हम क्या अपनी उपलब्धियों को ही हर बार गिनाते रहेंगे. नहीं महिला दिवस हमारी उपलब्धियों को याद तो करने कि चीज है, लेकिन उन करोड़ों महिलाओं की ओर भी देखने कि जरूरत है, जो अपने अधिकारों और अपने जीने के हक़ से भी अनजान हैं. सुबह से शाम तक सिर्फ दूसरों को खुश करने के लिए खटते रहना ही उनका जीवन बन चुका है. उतने पर भी ठीक है, कि वे अपना स्त्री धर्मं निभा रही हैं लेकिन इसके बाद भी भी प्रताड़ित की जा रही हैं. हमें महिला दिवस मानना है कि हम उन लोगों को भी यह अहसास कर सकें कि वे भी मनुष्य हैं और जीवन के हर पल को अपने तरीके से जीने का हक़ है उनको. सम्मान पाने का हक़ है उनको.
सिर्फ वह वर्ग जो सुर्खियों में आता है संपूर्ण नारी समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. आज मात्र २५% महिलायें अपने जीवन को इच्छानुसार जी रही हैं, वे जो आज कमा रही हैं और अच्छे पदों पर हैं, वे भी उतनी स्वतंत्र नहीं है कि जीवन अपनी इच्छानुसार जी सकें. ऐसा नहीं है कि वे जीना नहीं चाहती है लेकिन वे जी नहीं सकती हैं।
नारी आज भी यदि इस देश में जन्म लेती है तो अपने संस्कारों और संस्कृति से विलग नहीं हो सकती है। अब इस महिला दिवस कि सार्थकता इस बात में है कि पुरूष भी उसके स्वरूप को सार्थक बनाने में अपन योगदान दे। आज नहीं कल ये सब जो नारी सहन कर रही है, कल इनका कुछ और ही होगा। आज की पीढी अपने स्वरूप और सत्ता को कायम रखने में समर्थ होगी। होना भी चाहिए।
वैसे ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है कि जो पुरूष अपनी पत्नी को बराबरी का हक़ देता है उसे जोरू का गुलाम या नौकर बीबी का कहने में नहीं हिचकते हैं। यही पुरुषवादी मानसिकता के ठेकेदार हैं । जिन्हें नारी आगे बढती हुई कभी अच्छी लगी ही नहीं है। अरे उसको भी अपना जीवन जीने दीजिये , फिर देखिये आप भी कितना शान्ति अनुभव करते हैं.
अब पुरुषवादी सत्ता के लिए चुनौती बन खड़ी होने वाली महिलाएं ऊपर तो कभी नहीं जन चाहती हैं लेकिन बराबरी के हक़ के लिए बराबर आगे बढती रहेंगी। सिर्फ अपने ही नहीं बल्कि उनके हकों के लिए भी जो इससे वंचित की जा रहीं हैं।
महिला दिवस की सार्थकता इसी में निहित है.
रेखा जी लेख अच्छा रहा । सब बातों पर मैं सहमत नहीं । महिला दिवस और आम दिवस में कोई फर्क नहीं जिनको आपने निशाना बनाया है । उन्हें तो इस दिन का पता तक न होगा । जीवन में जिस बदलाव की मैं या आप , या फिर जितने लोग बात करते हैं उसके लिए कितना प्रयास करते हैं यह आपने आप में एक सवाल है । पुरूष समाज में शासक रहा है पितृसत्तात्मक समाज इसका उदाहरण है । पर आज स्थिति कुछ बदली है लेकिन जरूरत है उन ७५ प्रतिशत के लिए काम करें जो की हम नहीं कर रहे हैं । महिलाएं पुरूषों का दोष देती हैं मैं भी मानता हूँ ये सही बात है पर उन पर जो जुल्म होता है उसके लिए कितना संघर्ष करती हैं । बुराई का साथ देना या फिर बुराई देखकर चुप हो जाना एक बराबर है ।
ReplyDeleteपरिवर्तन की लहर लाने के लिए आप हम और सभी एक को मिलकर काम करना होगा तब ये बातें सच हो सकती हैं वर्ना मात्र कल्पना होगी । शुभकामनाएं।
अगर मेरी आंखें धोखा खा गई हों तो मैं तो हाथ जोड़कर माफी मांगी मांगूगा पर मुझे कल महिला दिवस पर किसी भी अखबार में राष्ट्रीय महिला आयोग का विज्ञापन नहीं दिखा। रोज़ सुबह 8 अखबार पढ़ता हूं और किसी को पलटकर नहीं लगा कि राष्ट्रीय महिला आयोग को पता है कि आज महिला दिवस है। उन महिलाओं का दिवस जिनके लिये आयोग बनाया गया है और जिनकी समस्यायें दूर करने के नाम पर महिला आयोग मे बैठे लोगों की रोज़ी रोटी चल रही है। राज्य महिला आयोगों से लेकर नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली पुलिस, महिला और बाल विकास विभाग, आवास बैंक और पंजाब नेशनल बैंक की नारी शक्ति योजनाओं तक के विज्ञापन दिखे, लेकिन गिरिजा जी के राष्ट्रीय महिला आयोग का नहीं।
ReplyDeleteउम्मीद की जाती है कि महिला दिवस के दिन राष्ट्रीय महिला आयोग का विज्ञापन छपेगा, उसमें हेल्पलाइन नंबर छपेंगे, उपलब्धियां छपेंगी..वगैरह वगैरह। लेकिन सिर्फ हाई प्रोफाइल मामलों (जो टीवी पर दिखते हैं) में ही दखल देने वाला राष्ट्रीय महिला आयोग आम महिलाओं के दिन को भूल गया, शर्म की बात हो ना हो गौरव की तो कतई नहीं है। राष्ट्रीय महिला आयोग के पास मोटी तनख्वाह वाले लोगों का जनसंपर्क और प्रचार विभाग ज़रुर होगा, मोटा बजट भी होगा। लेकिन उनको याद नहीं रहा 8 मार्च को महिला दिवस होता है, संभव है संडे की वजह से याद ना रहा हो।
लेकिन बात सिर्फ विज्ञापन की नहीं है। बात है राष्ट्रीय महिला आयोग के कामकाज की। जिस काम के लिये वो बनाया गया है वहीं ना करे तो क्या फायदा उसका। मैं एक महिला को जानता हूं जो एक साल से महिला आयोग के चक्कर काट रही है, कुछ मदद नहीं मिली उसको। हाल ये है कि डाक से भेजी गई कोई शिकायत यहां दर्ज होती हो सुना नहीं। जैसे-तैसे शिकायत नंबर मिल भी गया तो जहां की शिकायत है वहां के कलेक्टर, एसपी को खत भेजकर महिला आयोग अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है और उस पर तुर्रा ये कि आयोग इसे अपनी तरफ से की गई कार्रवाई मानता है।
कलेक्टर, एसपी ने कोई कार्रवाई की या नहीं ये आयोग यदा-कदा ही पलटकर पूछता होगा। क्या फायदा ऐसे आयोग का, जो महिलाओं के नाम पर कुछ लोगों को मोटा वेतन देने और राजनीतिक तुष्टीकरण के लिये बना हो। बंद किया जाये इसे, देश की महिलाओं के लिये महिला दिवस का तोहफा होगा ये, या फिर इसकी कमान महिलाओं के हाथ से लेकर पुरुषों के हाथ में दी जाये। राष्ट्रीय महिला आयोग का रुख देखकर लगने लगा है कि महिलाओं के मामले में शायद पुरुष ज़्यादा संवेदनशील होते हैं बनिस्मत महिलाओं के।