February 07, 2009

कर सकती हैं थाने जाने से इनकार

पिछले दिनों पुणे शहर में देर शाम यह हादसा हुआ। खुद को सादे कपड़ों में पुलिस का आदमी बताने वाले एक बदमाश ने एक युवा जोड़े की कार रुकवाई और कागज़ात दिखाने को कहे। वे दोनों अपने ड्राइविंग लाइसेंस नहीं दिका पाए। उस आदमी ने युवक को लाइसेंस लाने भेज दिया और युवती को थाने चलने को कहा।

युवती को थाने ले जाने की जगह कहीं और ले जाया गया जहां उसके खिलाफ भयानक दुष्कर्म हुआ।

हममें से कम ही लोग ऐसे हालात से बचने का कानून जानती हैं। कानून साफ कहता है कि कोई भी महिला शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक पुलिस थाना जाने से इनकार कर सकती है, भले ही उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ हो।

कानूनन किसी महिला को सुबह 6 से साम 6 बजे के बीच ही गिरफ्तार किया जा सकता है। उसकी भी शर्तें साफ हैं-

कोई महिला पुलिस अधिकारी उसे गिरफ्तार करे और महिला पुलिस थाना ले जाए, या
अगर पुरुष पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी करे तो यह साबित करना होगा कि उस समय कोई महिला पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के समय ड्यूटी पर थी।

और आधारभूत नियम तो यह है कि बिना वारंट के कोई पुलिस वाला या ट्रैफिक पुलिस वाला किसी को डिटेन नहीं कर सकता।

हमें यह बात जाननी और याद रखनी चाहिए। साथ ही ज्यादा से ज्यादा औरतों तक पहुंचानी चाहिए ताकि ऐसे हादसे आने की नौबत ही कम आए। ये कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने हैं, इनका भरसक इस्तेमाल करना चाहिए।

एक अपराध का आरोपी होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि व्यक्ति न्यायव्यवस्था के नाम पर हर अनाचार को झेले। कानून और न्याय प्रणाली अपराधी को दंड देने के लिए नहीं बल्कि अपराधों को रोकने, कम करने और अपराधियों को बेहतर रास्तों पर चलने को प्रेरित करने के लिए है।

8 comments:

  1. एक अपराध का आरोपी होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि व्यक्ति न्यायव्यवस्था के नाम पर हर अनाचार को झेले।

    सहमत हूँ आप से अनुराधा , कानून को जानना बहुत जरुरी हैंआप काफी दिन बाद पर नारी पर पोस्ट ले कर आयी हैं एक जागरूक पोस्ट

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  2. वाकई अपने एक अनमोल जानकारी नारीओं के लिए उपलब्ध कराई है. मेरे ब्लॉग की पहली पोस्टिंग मैं एक पंक्ति है, -- दिल दुखता है जब राह चलती किसी लड़की को कोई सीटी मारता है या रास्ता रोकता है .... कभी- कभी सोचता हूँ कि कैसे-कैसे लोग हमारे बीच में रहते है... ये सब करते समय उन्हें तनिक भी ये बहन नहीं रहता कि हमारे घर में भी ..... नारी रहती है.

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  3. ऐसी घटनाओं को अंजाम देनेवाले वास्‍तव में दरिंदे है.... बात है कि सभी कानून....सभी नियमों की जानकारी हम पढी लिखी महिलाओं तक को ही हो पाती है....सबसे पहले महिलाओं को साक्षर बनाए जाने की जरूरत है....तभी उनपर अत्‍याचार होना कम हो सकता है।

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  4. सच तो ये है की महिलाओं को वास्तव में अपने कानूनी अधिकारों का ज्ञान नहीं है!जबकि सभी को ये कानून मालूम होने ही चाहिए! ये पोस्ट महिलाओं की जागरूकता बढाने वाली है!

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  5. bahut hi achhi jankari di hai, hamesha yaad rahega.

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  6. Anuraadha, aapka bahut bahut dhanywaad itni mahtvapurn jaankari ke liye, mujhe nahi pata tha is kanoon ke baare main.
    Dil dehel jaata jab aise hadse sunne ko milte hain.

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  7. पुलिस थाने में भी महिलाओं के साथ उचित व्यवहार नहीं होता है। पुलिस थाने में दुर्व्यवहार (बलात्कार) से जुड़े एक केस जो कि मथुरा बलात्कार केस के नाम से जाना गया के कारण तो पूरा कानून ही बदलना पड़ा।

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  8. घरेलू हिंसा क्या सिर्फ शारीरिक उत्पीड़न से ही समझी जा सकती है, सबको संस्कार अपने परिवार से ही मिलते हैं लेकिन इसके बाद भी मनुष्य कि संगति भी उसके आचरण और व्यवहार के लिए जिम्मेदार होता है. यह उत्पीड़न पत्नी के खिलाफ तो होता ही है क्योंकि पुरुष सर्वोपरि है यह तो उनको घुट्टी में ही पिला दिया जाता है और रहा सहा घर की दादी और माँ उन्हें कुलदीपक और घर का चिराग बता कर उनके आचरण को हवा देती हैं.
    कितने घरों की बात करें, अच्छे सम्पन्न घरों में यही होता है. मेरे अर्तिक्ले अनदेखा उत्पीड़न में यही बात मैंने उठाई थी. वह हर चीज उत्पीड़न की सीमा में आती है, जहाँ अनिच्छा से समजौता करके की जाया क्योंकि वह कभी बच्चों के बारे में सोचती है और कभी परिवार के सम्मान के बारे में. यह नहीं कि अब यह मात्र महिलाओं के साथ ही होता है, इस उत्पीड़न कि दिशा में महिलाओं ने भी कदम रखने शुरू कर दिए हैं. परिवार संस्था का विखंडन होता जा रहा है. शादी के बाद वह पत्नी कि इच्छा के विरुद्ध माँ से बात भी नहीं करे, उसके लिए कुछ भी खर्च करे तो पत्नी से पूछ कर , उसकी बीमारी में सेवा अगर बेटे को करनी हो तो करे अन्यथा पत्नी यह सब नहीं करेगी.
    यह भी संस्कार परिवार के परिवेश से ही मिलते हैं, जहाँ पर घर की महिलायें शासन करने के नाम पर पति को
    कठपुतली बना लेती हैं, उस परिवार की लड़कियों को भी यही शिक्षा मिल जाती है. अगर मांएं यह सिखाती हैं की सहनशीलता उसके लिए जरूरी है, तो ऐसी भी माँओं की कभी नहीं है की जो अपनी लड़कियों की आचरण की शिक्षा देती हैं और ससुराल में भी दखल करती हैं.
    ऐसे मामले सदैव कानून और पुलिस से नहीं निपटते हैं बल्कि इसके लिए काउंसिलिंग की जरूरत होती है. किरण बेदी जैसी महिला जो इस दिशा में कर रही हैं, वह प्रशंसनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है.
    आवाज हम सुनें तो , उसको सुलझाने की कोशिश करें , अपनी संस्कृति के प्रतिमानों की रक्षा करने के लिए एक मंच तैयार करे, उनको समझाएं, पीड़ित कोई भी हो सकता है और जो भी पीड़ित है वह न्याय का हकदार है.

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