February 07, 2009

एक लड़की

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5 comments:

  1. पर कोई नहीं देखता
    उसकी आँखों में
    जहाँ प्यार है, अनुराग है
    लज्जा है, विश्वास है !!
    ........बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति. वाकई यह कविता दिल को छूती है.

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  2. आकांक्षा जी! आपने बहुत सही दास्ताँ पेश की है. दुर्भाग्य से हम अपनी प्रगतिशीलता का कितना भी दंभ ठोंक लें, पर जब विवाह-शादी की बात आती है तो प्रगतिशील समाज भी रुढिवादी हो जाता है.

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  3. मान गए आकांक्षा जी की लेखनी की धार को. 'शब्द-शिखर' ब्लॉग के बाद अब 'नारी' ब्लॉग पर भी आपकी रचनाओं से रु-ब-रु होने का मौका मिलेगा. आपकी यह कविता एक हकीकत को अपनी धार से प्रस्तुत करती है..

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  4. " नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "....उस कड़ी में आकांक्षा जी की यह कविता एक दर्द को बयां करती है. पर किसी लड़की को "चीज" बनाने में पुरुष के साथ-साथ नारी भी उतनी ही भागीदार है. पुरुषों से ज्यादा नारियां ही रंग-ढंग देखने में कभी-कभी ज्यादा विश्वास करती है.

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  5. गजब ....सटीक लिखा है....बिल्‍कुल यथार्थ का प्रस्‍तुतीकरण।

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