नारी ब्लॉग अपने सभी पाठको को २००९ की बधाई देता हैं । २००९ मे भी हमारा प्रयास रहेगा की हम सामाजिक व्यवस्था मे नारी के लिये समान अधिकार की बात को जारी रखे और आप का परिचय उन नारियों से करवाते रहे जिन्होने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की हैं ।
नारी ब्लॉग का मकसद हैं नारी को जाग्रत करते रहना की जो अधिकार तुम्हारा जन्म से हैं उसको तुम्हे किसी से मांगने की जरुरत नहीं हैं ।
अगर नारी बराबरी की बात करे तो उसको अपने को इतना सशक्त करना होगा की वह बारबरी के अधिकार के साथ हर जिम्मेदारी को भी बराबरी से पूरा करने मे सक्षम हो ।
नारी सशक्तिकरण का अर्थ हैं समानता अधिकार और जिम्मेदारी मे ।
हिन्दी ब्लॉग जगत एक बड़ी दुनिया का छोटा सा हिस्सा हैं । हम निरंतर प्रयास करते रहेगे की इस छोटी सी इन्टरनेट की दुनिया मे नारी के प्रति शब्दों मे कहीं भी को अभद्रता ना हो ।
सादियों से अभद्र शब्द सुन कर चुप रहने को महिला अपनी नियति मानती हैं पर हमारी इस ब्लॉग पर निरंतर कोशिश रही हैं की हम इस "नियति " को बदल सके ।
व्यक्तिगत लड़ाई और व्यक्तिगत क्षमा से ऊपर उठ कर सामाजिक कुरीतियों और सामाजिक उत्थान का समय हैं और ये ब्लॉग केवल एक छोटी सी कोशिश हैं इस उत्थान मे अपना सहयोग देने की ।
हमारी हर सदस्य कोशिश करती हैं की अपना सहयोग इस मे दे , समय समय पर उनके भेजे लिंक से ही मै निरंतर पोस्ट कर पाती हूँ ।
इस के अलावा हमारेअन्य ब्लॉगर मित्र जो इस ब्लॉग के सदस्य नहीं हैं , निरंतर लिंक भेज कर इस ब्लॉग पर डालने के लिये अपना सहयोग देते हैं ।
जिन लोगो ने टिपण्णी दे कर कई बार हमारी सोच को "सही " किया हैं उनकी मै ह्रदय से आभारी हूँ । कई बार मुझे मेल देकर किसी पोस्ट को हटाने के लिये भी कहा गया हैं और वो पोस्ट हटाई भी गयी हैं क्युकी अगर हमारी पोस्ट मे कोई बात ऐसी हैं जिससे समाज मे अव्यवस्था हो सकती हैं तो उस पोस्ट को हटाने मे क्या आपत्ति होगी पर तर्क सही होना जरुरी हैं ।
स्त्री और पुरूष एक ही तरह से बने हैं और समानता के अधिकारी हैं । संविधान मे दिये गए हर समान अधिकार पर स्त्री का उतना ही अधिकार हैं जितना पुरूष का । कन्या भूण हत्या आज भी हमारे समाज मे स्त्री के प्रति समान अधिकार की सोच को झुठलाता हैं ।
जिस दिन हम अपने बच्चो को बच्चो की नज़र से देखेगे बेटे -बेटी मे विभाजित नहीं करेगे उसदिन से काफी बदलाव आयेगा ।
नारी की नियति नारी को ख़ुद बनानी होगी , अपशब्द का जवाब अपशब्द होता हैं इस लिये अगर आप आगे आने वाली पीढी मे संतुलन चाहते हैं , अगर आप "परिवार" बचाना चाहते हैं तो अपशब्द देना बंद करे । नारी को ये समझाना बंद करे की परिवार मे समझोता नारी की नियति हैं ।
समझोते से जिन्दगी कटती हैं जी नहीं जाती । अपने अपने घरो मे बस एक बार अपने घरो की महिलाओ से पूछ कर देखे " क्या वो जिन्दगी जी रही हैं या काट रही हैं " और आप को जो जवाब मिले उसको पूरी इमानदारी और सचाई से यहाँ बांटे । आप की माँ का जवाब आप की सोच को सही दिशा दे सकता हैं बस कुछ मिनट माँ के साथ इस प्रश्न को पूछने मे लगाए ।
आप सब को नया साल शुभ हो और नयी पीढी को जिन्दगी वो सब खुशियाँ दे जो पुरानी पीढी को नहीं मिली । इसी शुभकामना के साथ नारी ब्लॉग की २००९ पहली पोस्ट नयी पीढी के नाम ।
निश्चित ही यह पोस्ट और पहल उत्साहित करने वाली है। बधाईयां।
ReplyDeleteनये साल की पहली ही पोस्ट सकारात्मक और प्रेरणादायक रही.. आशा है नया साल पुरानी कुरितियो के बंधन से मुक्त होकर स्वच्छन्द रूप से उभर कर सामने आए..
ReplyDeleteनारी ब्लॉग के इस प्रयास के लिए.. बधाई.
ReplyDeleteएक सार्थक आलेख ..
आपका यह मिशन रंग ला रहा है,
नूतन वर्ष के पदार्पण पर चोखेरबाली का अभिनंदन !
जब आपने यह मशाल जला ही दी है तो पूरा विशवास है कि आगत पीढी इसको न सिर्फ जलाये रखेगी बल्कि सार्थक बना कर सदियों से चली आ रही भ्रांतियों कि इति भी करेगी.
ReplyDeleteइस संकल्प को मेरा प्रणाम!
ReplyDeleteपुनःश्च - चोखेरबाली एवं नारी के एज़ेन्डा में क्या अंतर है,यह मैं आजतक समझ नहीं सका..
अतएव यहाँ चोखेरबाली का उल्लेख होगया !
@amar kumar
ReplyDeleteनारी पर जब टंच कसा जाता हैं तो उसको "चोखेर बाली " कहा जाता हैं . ये सोच समाज की दी हैं . फेमिनिस्म और नारीवादी कहो , चोखेरबाली कहो पर नारी नारी ही रहेगी और नारी , नर से कम तर नहीं हैं बस जिस दिन वो ख़ुद अपनी ताकत को पहचान कर ये सोच लेगी की मुझे जिंदगी जीनी हैं काटनी नहीं उसी दिन उसकी हर समस्या का अंत ख़ुद बा ख़ुद हो जायेगा . आप का स्नेह मिलता रहे इस ब्लॉग को यही कामना हैं
नारी ब्लाग के सभी सदस्यों और मेहमानों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआप सभी को नव वर्ष की शुभकामानाएँ !
ReplyDeleteनारी को सशक्त करना और जाग्रत करना न केवल आवश्यक है वरन आज की अनिवार्यता और अपरिहार्यता भी. यह सही भी है की नारी क्या सोचे, क्या पहने, किन नियमों का पालन करे, क्या करे क्या न करे, किन वर्जनाओं को नियति मान ले, किस सीमा तक विरोध कर सके, किस सीमा तक अभिव्यक्ति कर सके, कैसे कैसे अपराधबोध को अपनी जीवनशैली के रूप में स्वीकार कर ले, उसके लिए क्या उचित हो क्या अनुचित हो आदि अनेक पैमाने ऐसी असंतुलित मानसिकता द्वारा गढे गए है जो स्त्री को सही रूप में नही समझे है.
ReplyDeleteमगर यह मेरा निवेदन है कि नारी कि स्वतंत्रता इस रूप में होनी चाहिए कि वो अपने जीवन की दशा और दिशा को स्वयं निर्धारित करने में समर्थ हो सके, अपना जीवन उधार की शर्तो के स्थान पर अपने तरीके से जी सके पर इसका तात्पर्य यह नही होना चाहिए की पुरूष जिन बुराइयों को जीने में छद्म अहम् का अनुभव करते है स्त्री उन बुराइयों को अपनाना आज़ादी का पैमाना मान ले.
सामाजिक रूढ़ियों के विरुद्ध आपका संघर्ष नये वर्ष में सफ़लता के नये-नये कीर्त्तिमान बनाये ऐसी शुभकामना के साथ नये वर्ष की बधाई।
ReplyDeleteकन्या भूण हत्या आज भी हमारे समाज मे स्त्री के प्रति समान अधिकार की सोच को झुठलाता हैं ।
ReplyDeleteजिस दिन हम अपने बच्चो को बच्चो की नज़र से देखेगे बेटे -बेटी मे विभाजित नहीं करेगे उसदिन से काफी बदलाव आयेगा ।
नववर्ष की शुभकामनाएँ । आप अपने प्रयत्न में सफल रहें ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
रचना जी आपके ब्लाग पर पहली बार आई ...बहोत ही अच्छा सवाल उठाया है आपने-''आपके
ReplyDeleteघर की स्त्रियाँ जीवन जी रहीं हैं या काट रही हैं...?'' मेरा ब्लाग जगत के प्रेमियों से अनुरोध है कि
जरा रचना जी के इस सवाल को अपने अपने घरों में पूछ कर देखें ? कहते हैं कि जिस घर में औरत की
इज्जत नहीं होती उस घर से लक्ष्मी हमेशा के लिए रूठ जाती है , कहीं आपका घर ऐसा तो नहीं...?
एक बार...सिर्फ एक बार अपनी पत्नी को मान ,सम्मान और इज्जत दे कर देखें आपका घर खुशियों
से भर जायेगा। कर सकेगें ऐसा...? शायद नहीं.... फिर पुरूषत्व कहाँ दिखाया जायेगा...? है ना...??