अगर महिलाए समानता की बात करे तो उन्हे अपने अभिभावकों से इन अधिकारों के विषय मे सबसे पहले बात करनी चाहिये
१ जब आपने हमे इस लायक बना दिया { पैरो पर खड़ा कर दिया } की हम धन कमा सकते हैं तो हमारे उस कमाये हुए धन पर आप अपना अधिकार समझे और हमे अधिकार दे की हम घर खर्च मे अपनी आय को खर्च कर सके । हम विवाहित हो या अविवाहित पर हमारी आय पर आप अधिकार बनता हैं । आप की हर जरुरत को पुरा करने के लिये हम इस धन को आप पर खर्च कर सके और आप अधिकार से हम से अपनी जरुरत पर इस धन को खर्च करे को कह सके।
२ आपकी अर्थी को कन्धा देने का अधिकार हमे भी हो । जब आप इस दुनिया से दूसरी दुनिया मे जाए तो भाई के साथ हम भी दाह संस्कार की हर रीत को पूरा करे । आप की आत्मा की शान्ति के लिये मुखाग्नि का अधिकार हमे भी हो ।
३ आप हमारा कन्या दान ना करे क्युकी दान किसी वस्तु का होता हैं और दान देने से वस्तु पर दान करने वाले का अधिकार ख़तम हो जाता हैं । आप अपना अधिकार हमेशा हम पर रखे ताकि हम हमेशा सुरक्षित रह सके।
जिस दिन महिलाए अपने अभिभावकों से ये तीन अधिकार ले लेगी उसदिन वो समानता की सही परिभाषा को समझगी । उसदिन समाज मे "पराया धन " के टैग से वो मुक्त हो जाएगी । समानता का अर्थ यानी मुक्ति रुढिवादी सोच से क्योकि जेंडर ईक्वलिटी इस स्टेट ऑफ़ माइंड { GENDER EQUALITY IS STATE OF MIND }
जो तीन 'अधिकार' आपने सुझाए हैं उनसे कोई वास्तविक परिवर्तन न हो कर मात्र 'कॉस्मेटिक' परिवर्तन ही होना है। वास्तविक परिवर्तन के लिये
ReplyDeleteये तीन अधिकार आवश्यक हैं:-
1-पुरुष मित्र बनाने का अधिकार
2-पारिवारिक संपत्ति में बराबर हिस्से का अधिकार
3-अपना मनचाहा जीवन-साथी चुनने का अधिकार
तीनो अधिकार पुत्रियों को मिलने चाहिए!
ReplyDeleteहिंदू धर्म की कुरीतियों के खिलाफ कार्य करना ही होगा , एक और अधिकार माता पिता के पैर भी , कई जगह पर लडकी को नही छूने दिए जाते ! वह भी एक ख़राब रीति है !
adhikaar kisi ko bhee bheekh me nahi milate. usake liye sata pryaas karana padataa hai. ye 1-2-3 yaa 100 ki list bhee banaa di jaay to bhee, mujhe lagataa hai ki ye haasyaaspad hee hai.
ReplyDeletejeevan kaa ek sampoorn nazariyaa, jisame har insaan ke liye sammaan ho, baraabaree ho, viksit karane kee jaroorat hai.
Stree swatantrtaa bhee puruSh kee har achchee-booree baat kee nakal yaa barabaree karake nahee haasil honewalee.
agar pitrsattak values itanee he follow karane laayak hotee to sadiyon kaa itihaas itane maar-kaat aur khoon kharabe se nahee bharaa hota
Too some respect we should develope female viewpoint.
कुछ छूट गया सा लग रहा है..
ReplyDeleteबस इतने ही अधिकार काफी नहीं होंगे..
वैसे डा.अमर जी ने भी सही कहा है..
नारी शक्ति की, महिला सशक्तिकरण की सबसे बड़ी जीत होगी. इस तरह की लड़ाई महिलाओं को ताकत देगी और उन पुरुषों को मुँहतोड़ जवाब देगी जो एक महिला-माँ-के द्वारा जन्म लेकर भी उसको हतोत्साहित करते हैं. आपको बधाई.....नारी से ऎसी ही हिम्मत की अपेक्षा है.
ReplyDeleteमैं इन अधिकारों की मांग के पीछे से झांक रही भावनाओं से पूर्णतः सहमत हूँ.
ReplyDeleteस्वप्नदर्शी जी ने बिल्कुल सही कहा है। अधिकार भीख में नहीं मिलते। उनके लिये प्रगतिकामी स्त्री व पुरुष दोनों को मिल कर प्रयास/संघर्ष करना होगा।
ReplyDeletehttp://swapandarshi.blogspot.com/2008/04/blog-post_24.html
ReplyDeleteswapndarshi aap nae is post par jo kehaa wo aap ki upar kahii hui post sae kaffi farak haen . par shayad samay kae saath vichaar badeltey rehtey haen aur paripakv hotey jaatey haen
स्वप्नदर्शी जी को अधिकार कभी मांगने नहीं पड़े, मुफ्त में मिले, और बराबरी में भी वो खुद को ऊंचा रखते हैं। बराबरी की बात तब जरूर उठेगी जब एक ही घर की रसोई से बेटी की कटोरी में कम सब्जी और बेटे की कटोरी में ज्यादा सब्जी परोसी जाती है। बाकी लड़ाई बराबरी की नहीं अपने हक़ की है।
ReplyDeleteरचना जी सही लिखा है आपने।
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी बात रचना यह ..पर बहुत वक्त लगेगा अभी इस लड़ाई को जीतने में
ReplyDeletesammj mai is jagrati ko laane mai wakt lgega.....lakin iske liye pahal to karni hogi....
ReplyDeleteकन्यादान पर एक पोस्ट जल्द ही दूँगा। वैसे रचना जी को सूचित करना था कि आपके समाज में आ गया हूँ।
ReplyDeleterachanaji..ek nayi disha kel iey dwaar khola hai apane.. sab milke koshish kare ki ye dwaar pura khul jaaye aur woh 3 adhikaarm il jaye.. bahut shukriya aapka nayi disha mai naya raasta dikhane keliye..shaayd kahi na kahi iss jyot k iasar ho jaaye
ReplyDeleteसमान अधिकार की बात में ये अधिकार सम्मिलित हैं।
ReplyDelete@ varsha
ReplyDeletekuch had tak aapakee baat sahee hai, mere maata-pitaa ne mere palaan, aur shiksha me koee bbhedbhaav nahee kiyaa. Infect ham dono bahane Ph.D. hai, aur bhaee sirf masters.
par isee samaaj me ham bhee baDe huye hai. aur yahan tak pahunchane ke liye hamane bahut jyaadaa mehanat kee hai.
Individual efforts aur ek sakriy samajik bhaageedaaree dono hee level par efforts kee jaroorat hote hai.
par manav jeevan viraat hai, ek tarah kee problem solve hogee to usase badee samane aayegee.
डा अमर जी की बात से सहमत हूँ। आप ने जिन तीन अधिकारों की बात की है वो मेरे परिवेश में ऑलरेडी नारियों के पास हैं। हम श्मशान भी जाती हैं, हमारे माता पिता अब हमसे पैसा लेने में सकोंच नहीं करते( मेरे तो माता पिता अब रहे ही नहीं, सहेलियों की बात कर रही हूँ) और रजिस्टर्ड शादियों का प्रचलन है तो कन्यादान का सवाल ही नहीं उठता। हां , डा अमर जी के सुझाए प्रस्तावों पर काम होना चाहिए। पहले तो ऑनर किलिंग्स बंद हों।
ReplyDeleteमैं अधिकार को कर्तव्य के साथ मिला कर सोचता हूँ. समाज और परिवार में पुरूष और नारी को समान अधिकार मिलने चाहियें और उन्हें अपने कर्तव्यों को भी समान रूप से निभाना चाहिए.
ReplyDeleteआपके बिन्दुओं के समझने की कोशिश कर रहा हूँ । -
ReplyDelete१ जब आपने हमे इस लायक बना दिया { पैरो पर खड़ा कर दिया } की हम धन कमा सकते हैं तो हमारे उस कमाये
हुए धन पर आप अपना अधिकार समझे और हमे अधिकार दे की हम घर खर्च मे अपनी आय को खर्च कर सके । हम
विवाहित हो या अविवाहित पर हमारी आय पर आप अधिकार बनता हैं । आप की हर जरुरत को पुरा करने के लिये
हम इस धन को आप पर खर्च कर सके और आप अधिकार से हम से अपनी जरुरत पर इस धन को खर्च करे को कह
सके।
- यह अधिकार प्राप्त करने की बात है या कर्तव्य निर्वहन करने की इच्छा - अनुच्छेद का तात्पर्य समझ में नहीं आया ।
२ आपकी अर्थी को कन्धा देने का अधिकार हमे भी हो । जब आप इस दुनिया से दूसरी दुनिया मे जाए तो भाई के
साथ हम भी दाह संस्कार की हर रीत को पूरा करे । आप की आत्मा की शान्ति के लिये मुखाग्नि का अधिकार हमे भी
हो ।
- सोच रहा हूँ वो दिन जब हमारे गाँव में घर के बुढ़े स्वामी के मरने पर उसकी पत्नी, दो बेटी और लोगों के साथ राम-नाम सत्य करते हुए बाँस के खाट पर नदी के किनारे पर लाश लाऐंगे - लाश के पुरे कपड़े उतारकर उसे नहाऐंगे - फिर पुरे देह पर धी -सुगंध लगाऐंगे । फिर लकड़ी से उससे देह को सजाऐंगे, फिर रो-रोकर 2-3 घंटे तक पुरी तरह से पहले बाल - फिर चमड़ा - फिर माँस - फिर हड्डी को जलाऐंगे । पता है - सिर की हड्डी जल्दी नहीं जलती है - बड़े बाँस से पिट-पिटकर उसे जलाया जाता है । और यह कमबख्त लाश ठीक से जलती भी नहीं होगी तो बेटी बाप के लाश को उलट-पलट करके जलाएगी । फिर उसका भस्म लेकर घर आऐंगे । घर में बाकी शोक संतप्त संबंधी लोग उनके खाने-पीने का प्रबंध करेंगे ।
धत् मैं भी क्या बात कर रहा हूँ - यह सब तो गाँव में होता है । बुद्घिजीवी शहर में तो गाड़ी में अर्थी डाल दो - बाकी का काम तो वहाँ बिजली का चुल्हा 1700 डिग्री फारेनहाईट में यह सब खुद कर देगा । लकड़ी आग का झमेला नहीं - तो बेटी - बेटा - दामाद - बहू - सास - ससुर ( अगर जिंदा है तो) - साला साली - मौसा -मौसी - फुआ - फुफा सब साथ आऐंगे । जब तक अस्थिकलश नहीं आता है - तब तक सब कुर्सी पर बैठेंगे ।
३ आप हमारा कन्या दान ना करे क्युकी दान किसी वस्तु का होता हैं और दान देने से वस्तु पर दान करने वाले का
अधिकार ख़तम हो जाता हैं । आप अपना अधिकार हमेशा हम पर रखे ताकि हम हमेशा सुरक्षित रह सके।
आपने कितने वैवाहिक मंत्रो का अध्यन किया है ? अगर नहीं तो जरुर करें उसमें वर को जिम्मेवारी का आभास कराया
जाता है । बेटी को गाजर-मुली की तरह दान नहीं किया जाता है । सबने देखा होगा एक अच्छे परिवार में दान की रस्म अदाकर शायद कोई पिताजी बेटी को प्यार देना बंद नहीं कर देता है - उसे अच्छी - अच्छी बातें बताना बंद नहीं करता है । अपने नाती-नातिन को गले से लगाना बंद नहीं करता है ।
और आपने जो यह लिखी है - "आप अपना अधिकार हमेशा हम पर रखे ताकि हम हमेशा सुरक्षित रह सके ।" - यह
नारी की सुरक्षा के लिए पुरुषों पर निर्भरता की आवश्यकता को बतलाता है । यह बाडीगार्ड रखने की मानसिकता कब खत्म होगी ?
आप किस चीज़ से नाराज़ हैं , प्सोत मे छुपी सचाई से या अपने अंदर छुपे डर से की अगर नारी का सश्क्तिकर्ण इस राह चला तो क्या होगा ? या वाकी ये बाते आप को समझ नहीं आई . और सुरक्षा की बात पुरूष के सम्बन्ध मे आप सोच रहे हैं यहाँ बात अभिभाव और बच्चे यानी बेटी की हैं . . ये बच्चे का अधिकार हैं और माता पिता की छत्र छाया जब तक होती हैं हम कितनी भी बड़े क्यों ना हो जाए सुरक्षित महसूस करते हैं . आप पोस्ट को दुबारा पढे और सब कमेंट्स को भी .
ReplyDeleteपहली बिन्दू तो समझ में मेरी आयी ही नहीं ।
ReplyDeleteआप अगली बार किसी के मैयत में जाकर कहें की मैं भी मुर्दे को जलाना चाहती हूँ । यह समानता का अधिकार है - आपको कोई मना नहीं करेगा । हास्यास्पद है कि अभिभावक से कहें कि आप मरने से पहले अधिकार दें कि आपकी लाश को मैं जलाउँगा या जलाऊँगी । यह महिला सश्क्तिकरण के लिए आवश्यक है ।
तीसरी बात यह कि एक तरफ तो अभिभावक के साथ बचपना का संबंध जोड़कर सुरक्षा का आभास पाना चाहती है और उसी समय महिला शसक्तिकरण की बात कर रहीं हैं ।
आगे मेरे लिए आप कुछ बौलें - मैं बता दूँ की मै भी एक ऐसे ही एक माँ का पुत्र हू - जो बिना भाषणबाजी के सब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है ।
आपके पोस्ट में आप खुद क्या चाहती हैं - स्पष्ट नही है ।
these condition of do s and dont is followed by either so called social or in other word aam aadame
ReplyDeleteotherwise those who make rules never follow the same
just see idustrial houses bollywood
regards
sir ji mai apse purnta sahmat hu. mai b isi soch ki ladki hu. mai puri koshish karugi ki har beti apne 3 adhikar paakar rahe
ReplyDeletesir ji mai apse puri tarah sahmat hu. mai b isi soch ki ladki hu. mai puri koshish karugi ki har beti apne 3 adhikar paakar rahe
ReplyDeleteapnaay bilkul sahi kaha shayad hum khud heen ahi jantay kee hamay kya cahiye aur aapnay jin adikaro kee bat kahi usko paney kee koshis shoro ho jani chahiye mainay tou shooroo kar dee hai.
ReplyDelete