महिलाए बहस या डिस्कशन से क्यूँ बचती हैं ?
नारियां बिना भावनात्मक हुए और बिना पर्सनल हुए क्यों बहस या डिस्कशन नहीं कर पाती है ?
किसी भी बहस को करने का अन्तिम उदेश्य क्या होना चाहिये ?
कम्युनिकेशन या दो तरफा बातचीत मे नारी क्यों वक्ता कम और श्रोता ज्यादा रहती है ?
आज की नारी किसी भी दशा किसी भी दिशा में पुरूष से कमतर नही है तो ऐसे सवाल करने का क्या औचित्य है
ReplyDeleteलद गए वो दिन
आज नारी सर्वेसर्वा है
उदाहरण के लिए हमारी प्रिय रास्ट्रपति महोदया
वीनस केसरी
इस सवाल को नारियाँ स्वयं भी हल करें तो बेहतर है।
ReplyDeleteप्रश्न क्रमांक तीन तो यहाँ 'सेलेक्ट द औड वन आउट' टाइप की पहेली का हिस्सा लग रहा है. प्रश्न अपनी जगह वाजिब है पर बाकी तीन के बीच में कुछ असंगत सा है. अनरिलेटेड सा.
ReplyDeleteकुल मिलाकर बहुत बढ़िया प्रश्न उठाये हैं. महिलाओं की ओर से ही जवाब आयें तो बेहतर है. जरूर जानना चाहेंगे इनके बारे में उनके विचार.
सवाल भी सही हैं और यह भी सही है कि नारियों को ही इस का जवाब खोजना होगा. बैसे मेरी राय में बहस में पूरी संजीदगी से भाग लेना चाहिए.
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