September 17, 2008

स्त्री के अलावा समाज का हर व्यक्ति जानता है कि स्त्री की क्या आवश्यकताएँ हैं

कल एक पुरानी पोस्ट देखते हुए Mired Mirage का एक कमेन्ट पढा जो नीचे दिया हैं
quote
स्त्री के अलावा समाज का हर व्यक्ति जानता है कि स्त्री की क्या आवश्यकताएँ हैं, उसे क्या मिलना चाहिए क्या नहीं, उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं, उसे कितना कमाना चाहिए, कितनी इच्छाएँ रखनी चाहिए,कितनी उन्नति करनी चाहिए, कितनी प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए,क्या विशेषताएँ होनी चाहिएँ,क्या उसका गहना है (जैसे लज्जा, सहनशक्ति, शील आदि आदि)। एक बेचारी वह स्वयं है जो यह सब अपने लिए जान समझ नहीं सकती, निर्धारित नहीं कर सकती। ऐसे में समाज को उसके लिए सबकुछ निर्धारित करना पड़ता है। यह भी कि वह कैसा मनोरंजन करे,कितना करे,किसके साथ करे और कितने बजे तक करे।
unquote
कमेन्ट पढ़ कर मन मे आया की आप सब राय लूँ कि
किस उम्र तक स्त्री बालिग़ हो पाती ?
किस उम्र तक आ कर हम स्त्री को इस लायक समझ सकते हैं की वो अब परिपक्व हो गयी हैं ?
किस उम्र पर आकार स्त्री को हम ये अधिकार दे सकते हैं की वो फैसला ले सके की उसके लिये सही और ग़लत क्या हैं ?
हर जवाब का स्वागत हैं । दे दे ताकि सब को पता लगे कि हमारे समाज के लिए सही और ग़लत क्या हैं ??

5 comments:

  1. 1. स्त्री 18 वर्ष में वयस्क हो जाती है।
    2. वह इसी उम्र में अपने बारे में सोचने में सक्षम और परिपक्व हो जाती है, यदि उसे विकसित होने के समान अवसर प्राप्त हों।
    3. हम जिस उम्र में लड़कों को अपने बारे में सोचने समझने का अधिकार दे सकते हैं, उसी उम्र में यह अधिकार लड़कियों को दे सकते हैं।

    वैसे विशेषज्ञों की राय यह है कि स्त्री पुरुषों से दो तीन वर्ष पूर्व परिपक्व हो जाती है। यही कारण है कि कानून ने उस के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष निर्धारित की है।

    ReplyDelete
  2. नारी को अपने फ़ैसले करने का अधिकार उसी उम्र से मिलना चाहिए जिस उम्र से पुरुष को मिलता है। लेकिन कई पुरुष भी ऐसे मिल जायेगे जिन्हें ये अधिकार जिन्दगी भर नहीं मिलता, उसके मां बाप उसे बच्चा समझते रहते हैं और उसके सारे फ़ैसले खुद लेते हैं।

    ReplyDelete
  3. मैं शर्मिंदा हूँ कि‍ अपनी स्‍त्री के लि‍ए इनमें से कुछ चीजें थोपने की गल्‍ती करता हूँ, (मसलन-उसे क्या मिलना चाहिए क्या नहीं, उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं,वह कैसा मनोरंजन करे,कितना करे)
    ऐसा क्‍यों करता हूँ मैंने कई बार सोचा भी है, सोचकर फि‍र वही गल्‍ती करता हूँ।
    इसलि‍ए आपने जि‍न सवालों पर राय मॉंगा है, उसपर राय देने का मुझमें न दंभ है न काबि‍लि‍यत! ये सवालों से कतराना भी नहीं है, कुछ गोल-मोल राय भी दे सकता था, पर आजकल झूठ बोलने पर शीशे में दो मुँह दि‍खाई देने लगा है। शीशे में अक्‍श धुँधला पड़ते ही मैं राय देने जरुर आऊँगा, और बताऊँगा कि‍ ऑकडों के आधार पर इन सवालों का जवाब नहीं दि‍या जा सकता। वि‍श्‍वास करें, मैं चाहूँ भी तो मेरे साथी इस शीशे को कभी धुँधला नहीं पड़ने देंगे, इस जनम में तो बि‍ल्‍कुल नहीं!!

    ReplyDelete
  4. पुरूष की तरह स्त्री भी एक व्यक्ति है. उस के बारे में निर्णय करने का अधिकार उसी का होना चाहिए. कोई दूसरा कैसे यह तय कर सकता है कि स्त्री की क्या आवश्यकताएँ हैं, उसे क्या मिलना चाहिए क्या नहीं, उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं, उसे कितना कमाना चाहिए, कितनी इच्छाएँ रखनी चाहिए,कितनी उन्नति करनी चाहिए, कितनी प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए,क्या विशेषताएँ होनी चाहिएँ,क्या उसका गहना है (जैसे लज्जा, सहनशक्ति, शील आदि आदि)?

    ReplyDelete
  5. कानूनी तौर पर 18 साल की व्यस्क स्त्री को परिपक्व शायद ही समझा जाता है..पहले पिता और भाई फिर पति और पुत्र उसकी जीवन दिशा निर्धारित करने के लिए तैयार रहते हैं. दरअसल वह खुद ही अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए पुरुष का ही मुँह देखती है.. समाज के स्त्री वर्ग का बहुत कम प्रतिशत अपने बलबूते पर अपनी जीवन धारा को बदलने में सक्षम है.

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.