" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
August 03, 2008
ऒरत की जिन्दगी इतनी सस्ती क्यों?
हमारे धर्म में परम्पराओं, रीति-रिवाजों ऒर व्रत-त्यॊंहारों की भरमार हॆ। परन्तु एक बात जो मुझे हमेशा कचोटती हॆ वो यह कि पुरुष की लम्बी आयु, स्वास्थ्य ऒर उन्नति के लिये तो बहुत से व्रत हॆं परन्तु ऒरत के लिये एक भी व्रत नहीं। क्या पुरुषों को अपनी पत्नी की लम्बी आयु, जन्म-जन्म का साथ ऒर उत्तम स्वास्थ्य नहीं चाहिये। पत्नी अपने पति के लिये दिन भर भूखी रह लेती हॆ, वह घर से बाहर जाता हॆ तो हमेशा ईश्वर से उसकी रक्षा करने की प्रार्थना करती हॆ परन्तु पति को अपनी पत्नी के लिये यह सब करने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती। यदि ये सब व्रत करने से वाकई में पति की आयु बढती हॆ तो क्या ऒरत की जिन्दगी इतनी सस्ती हॆ कि उसके लिये इन सब चीजों की कोई जरूरत नहीं, भले ही ऒरत जिये या मरे। कहते हॆं कि जब ऒरत संतान को जन्म देती हॆ तो मॊत उसके सिरहाने खडी होती हॆ, मॊत का दांव कब पड जाये कु्छ पता नहीं चलता परंतु उस कठिन समय में भी ऒरत के लिये कोई व्रत या पूजा नहीं की जाती, हां बच्चे के लिये जरूर प्रार्थना की जाती हॆ लेकिन वो भी इस कामना से कि बेटा होगा। ऒरत हमारे समाज के लिये हमेशा से इस तरह एक 'मूल्यहीन वस्तु' क्यों हॆ? क्या उसके अस्तित्त्व का कोई महत्त्व नहीं? उसके लिये कोई करवा चॊथ क्यों नहीं? उसके लिये क्यों नहीं कोई भूखा रह सकता?
मेरे विचार से नास्तिकता का प्रसार इन बेड़ियों को तोड़ने के इस मकसद में ज़्यादा कामयाब रहेगा, अच्छा होगा की यह धर्म नाम का अधर्म दुनिया से मिट जाए. और इससे यह व्रत, उपवास, प्रार्थना का ढोंग-ढकोसला भी अपने आप मिट जाएगा. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.
ReplyDeletesachh to je hai ki purusho ke liye jo b wawashta hai....
ReplyDeleteusme uske liye majhe hi majhe hisse mai aate hai...
jo b niyam hai...we purush ke hak mai hai...
je wawashta ka dosh hai...usse ab badalne or theek se perbhaashit karnae ka samya aa rha hai...
is baat par me ab inconvenienti ke saath hoon. ye cheeze stree purush dono ke liye bekaar hai
ReplyDeleteMaano to devta nahi maano to patthar! Isliye ye sab kuch khud per depend hai. Dil kare karo na kare mat karo...waise ajkal ke patidev log bhi bibi-bhakti shuru kar diye hein, yani bibi ke sath-2 upwas rakhna shuru kar diye hein...iska example paas jhakiyen mil jayega, na mile to mere paas hai main de dungi:-)
ReplyDeletewww.rewa.wordpress.com
पुरुष प्रधान समाज में ऐसी रीति की अपेक्षा करना ही बेकार है। मगर वक्त आ रहा है जब नारी की उम्र के लिए व्रत रक्खे जाएँगे।
ReplyDeleteपहले आप अपनी कद्र करना ख़ुद सीखे , मानसिक गुलामी से अपने आप को आजाद करे . संरक्षण के लिये पुरूष का साथ मत ले . तपती धुप मे , जिन्दगी की , चलना सीखे और समानता अगर करे तो सब चीजों मे करे . हर उस काम को निपुणता से करे जिसको आप इसलिये नहीं करती की ये आदमियों का काम हैं फिर आप की जिन्दगी इतनी सस्ती नहीं रहेगी . गहने पहनना या ना पहना आप का निर्णय हो
ReplyDeleteआपने सही कहा. जिस तरह पत्नी को अपने पति की लम्बी आयु, जन्म-जन्म का साथ ऒर उत्तम स्वास्थ्य चाहिये, उसी तरह पति को अपनी पत्नी की लम्बी आयु, जन्म-जन्म का साथ ऒर उत्तम स्वास्थ्य चाहिये. बागवान फ़िल्म में पति भी करवाचौथ के दिन व्रत रखता है. यह बहुत सुंदर बात है कि पति-पत्नी एक दूसरे के लिए ईश्वर से मंगल कामना करें. इसके लिए व्रत रखना जरूरी नहीं है.
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