July 05, 2008

महिमा मायके की ----- आज फिर आप के विचार आमंत्रित हैं ..

हमारे समाज मे , हिंदू रीति रिवाजो के अनुसार अगर कोई भी काम करना हो तो लड़की के मायके से हमेशा नेग आता हैं । लड़की यानी बहु और बहु की सास भी ।
ये खर्चा के बहिन के बेटे / बेटी की शादी पर होता हैं ।
शादी के समय भात की रस्म होती हैं जिसमे मामा सारा खर्चा करता हैं और बहिन की ससुराल के हर सदस्य के लिये कपडे , जेवर , मिठाई { सामर्थ्य अनुसार पर जितनी सामर्थ्य उतनी ईज्ज़त का भी रिवाज हैं !!!! } लाता हैं।

ये खर्चा के बहिन के घर मे गमी पर होता हैं ।
अगर बहिन के ससुर , सास , देवर , जेठ मे से किसी की भी मृत्यु हो जाए तो फिर मायेके सेही कम से कम तेरही तक का खाने पीने का खर्चा आता हैं । इसके अलावा परिवार के कपडे और तेरही के कपडे भी मायके से ही होते हैं । जिसके भी पगडी बंधती हैं वोह भी मायके की ही होती हैं । और यहाँ एक समान भावः हैं की अगर बहु हैं घर मे तो उसके मायके से और सास के मायके से दोनों के यहाँ से आता हैं !! ।
अगर बेटी या बहिन विधवा हुई हैं तो उसके नये कपडे भी मायेके से ही आते है ।
और अगर बहिन / बेटी नहीं रही हैं तो भी ये मायके वालो का ही धर्म समझा जाता हैं की वोह बाकी सब के लिये विधि अनुसार कपडे इत्यादि भेजे ।

नाती । नातिन होने की शुभ सुचना आने पर भी मायके से ही छठी पर सबके कपडे इत्यादि जाते हैं ।
क्यों हर विधि विधान मे " मायके से आना " इतना अनिवार्य होता हैं और अगर नहीं आता हैं तो आज भी बहुत से घरो मे उन बहु / सास को सम्मान नहीं मिलता ।
कन्यादान किया तो किया... सारी उम्र दान देने और लेने की आदत ... ???? क्यो ??
आज आपके विचार फिर आमंत्रित हैं की दहेज़ से लेकर बेटी के मरने तक मे केवल मायके का ही दायित्त्व --- ये कब से शुरू हुआ और क्यों ??

4 comments:

  1. कन्यादान भी सिर झुका कर होता है...दान भी सिर झुका कर दिया जाता है...अब अगर सामने परोसी हुई थाली रखी जाएगी तो कौन मूर्ख लेने से इंकार करेगा... धीरे धीरे आदत पड़ना स्वाभाविक है.

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  2. स्त्रियों को मायके में जमीन जायदाद में हिस्सा नहीं दिया जाता था अतः इस तरह से वह कसर पूरी की जाती थी। यह बात और है कि इससे स्त्री का बिल्कुल भी भला न होकर हानि ही होती है। यदि मायके वाले दें भी तो सबको मिले बँटें कपड़ों आदि से उसे क्या लाभ? यदि न दें तो उसका अपमान ! जमीन जायदाद में हिस्सा तो पुरुष को तभी मिलता है जब जमीन जायदाद हो, स्त्री के मायके वालों के लिए वह हो या न हो देना अनिवार्य बन गया है। सो यह मायके से लपकने झपटने की प्रवृत्ति हानिकारक ही है। उससे तो बेहतर हो कि स्त्री को भी जमीन जायदाद में हिस्सा या उसके मूल्य की अचल सम्पत्ति दे दी जाए। विवाह के समय नहीं, तब जब बंटवारा हो।
    घुघूती बासूती

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  3. कभी कभी कुछ भलाई के लिए किया गया काम बाद में नासूर बना जाता है यह भी एक वह नासूर है जो समाज से हटने की बजाये बढता चला जा रहा है ... अभी तो इक्का दुक्का केस ही आते हैं सुनने में ....देखते है आगे आगे कैसे सब चलता है ..अभी यह खतम हो पायेगा इसकी उम्मीद नही है

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