May 29, 2008

"दी शेम इस नोट माइन "

"नीता गोस्वामी" ने उस भारतीय समाज मे अपनी लड़ाई को लड़ा जहाँ बलात्कार का दोष भी , जिसका बलात्कार होता हैं उसकी का होता हैं । शिकारी नहीं दोषी शिकार होता हैं । "The shame is not mine" नाम हैं "अरुण चड्ढा की फ़िल्म का जो उन्होने "नीता गोस्वामी " के ऊपर बनाई थी । इस फ़िल्म मे दिखाया गया हैं की किस तरह "नीता गोस्वामी " ने अपने पर हुये बलात्कार के बाद " अपनी स्वतंत्र सोच " से अपनी लड़ाई को लड़ा और एक मिसाल कायम की । आज नीता गोस्वामी की पहचान एक लीडर के रूप मे होती हैं , एक बलात्कार से शोषित महिला के रूप मे नहीं क्योकि नीता गोस्वामी शर्मसार नहीं हुई अपने ऊपर हुए अमानवीय कृत्य से और उन्होने ये भी इंतज़ार नहीं किया की कोई आयेगा और उनको उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा वापस दिला जाएगा । जो लोग आज़ादी व्यक्तिगत से ज़्यादा एक सामाजिक क्वेस्ट है मानते हैं उन्हे "नीता गोस्वामी " के बारे जरुर पढ़ना और समझना चाहीये । मिसाल हैं नीता गोस्वामी क्योकि उसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की । और इसी को कहते हैं "The Indian Woman Has Arrvied "।
अगर ६० साल की आज़ादी के बाद भी ये पूछा जाए "मेरा तो सवाल है कि आप में से ऐसी कितनी महिलाएं हैं जो दावा कर सकती हैं कि खुद उनके साथ या उनकी सहेलियों, भतीजियों के साथ ऐसा कोई न कोई (छोटा ही सही, वैसे यह छोटा है क्या) वाकया नहीं हुआ जिनमें डॉक्टर, अंकल, चाचा, मामा वगैरह शामिल न रहे हों।" तो लेखक के मन की व्यथा तो उभरती ही हैं पर साथ साथ ये भी दिखता हैं की समाज मे इस प्रश्न का उत्तर कोई नही देता । जो समाज इस प्रश्न का उतर ही नही दे सकता ऐसे नपुंसक समाज से "सामाजिक क्वेस्ट " की बात करने से अच्छा हैं की "नीता गोस्वामी " की तरह अपनी लड़ाई को ख़ुद लड़ना शुरू किया जाए ।

4 comments:

  1. बहुत ही प्रेरक लेख।
    ऐसे ही बदलाव लायेंगे।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही प्रेरणा देने वाला लेख है यह .शुक्रिया इसको यहाँ शेयर करने के लिए !!

    ReplyDelete
  3. आप ठीक कहती हैं, यह शर्म बलात्कार की शिकार नारी की नहीं है. यह शर्म है उन बहुत सारे पुरुषों और कुछ नारियों की जो मिलकर ऐसा समाज बनाते हैं जहाँ नारी भोग की बस्तु के रूप में देखी जाती है.

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.