बेटे की चाहत हर दादा-दादी को होती है क्यूंकि बुजुर्गों का मानना है कि वंश तो लड़कों से ही चलता है। और लड़कियां तो पराया धन होती है जो शादी करके दूसरे घर चली जाती है। ३० साल पहले तो आज से भी ज्यादा बेटे की इच्छा लोगों मे होती थी और बेटी का जन्म होना यानी एक और खर्चा माना जाता था। और ये बात ३०-३२ साल पहले की है और दिल्ली के जिस परिवार की हम यहां बात कर रहे है उसमे पति २ भाई है और पत्नी अकेली बेटी है। और इस दंपत्ति के ३ बेटियाँ है ।उस समय तक ३ बच्चे होना सी बात थी।और जैसा की हर परिवार मे बेटे के चाहत होती है ठीक वैसे ही इस परिवार को भी बेटे की चाहत थी।
शादी के २ साल बाद जब इस दंपत्ति की पहली बेटी पैदा हुई तो सास कुछ ज्यादा खुश तो नही हुई पर निराशा भी नही हुई क्यूंकि एक तो ये पहला बच्चा था और दूसरे सास के दिल मे कहीं ये उम्मीद थी कि हो सकता है की अगली बार बेटा हो जाए।अभी बेटी ढाई साल की हुई ही थी कि उन्होंने एक और बेटी को जन्म दिया। अब दूसरी बेटी के पैदा होने पर सास-ससुर बहुत दुखी हुए । ससुर जी ने तो कुछ नही कहा पर सास एक और बेटी के पैदा होने से बिल्कुल भी खुश नही थी। उन्हें ये लग रहा था की दो लड़कियां हो गई है अब उनके बेटे का नाम कैसे आगे चलेगा क्यूंकि वंश का नाम तो बेटे से ही होता है। बेटे से तो माँ कुछ नही कहती थी पर वो यदा कदा अपनी बहु को कुछ कुछ सुनाती रहती पर बहुत ज्यादा वो कुछ नही कह पाती थी क्यूंकि उनका बेटा इस तरह की बातों को ज्यादा तवज्जोह नही देता था।और बेटे के सामने ना तो वो ज्यादा बोलती थी और ना ही उनकी बेटे के सामने ज्यादा चलती थी।
दो साल और बीते और उनकी सास हर समय पोता देख लूँ तो धन्य होऊं वाली बात दोहराती रहती। और इसी बीच एक बार फ़िर से वो माँ बनने वाली थी। इस बार सास को यकीन था की उनकी बहु के बेटा ही होगा। पर इस बार भी उन्हें बेटी हुई तो सास बहुत ही ज्यादा निराश हो गई क्यूंकि उनकी पोते को देखने की उम्मीदों पर पानी फ़िर गया था।हालांकि अगर सास का बस चलता तो बेटे की चाहत मे शायद १-२ बच्चे और इस दंपत्ति के हो गए होते।
पर इस बार पति -पत्नी ने तय कर लिया था की बेटा हो या बेटी अब वो और बच्चे पैदा नही करेंगे। अपनी बेटियों को ही वो पढा -लिखा कर इस लायक बनायेंगे कि उन्हें बेटे की कमी कभी महसूस ही ना हो।और उस दंपत्ति ने किया भी वही।उन्होंने अपनी तीनो बेटियों को अच्छे स्कूल और कॉलेज मे पढाया और आज तीनो बेटियाँ पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी कर रही है ।इस दंपत्ति ने हमेशा अपनी बेटियों को अपना बेटा माना । और अब तो इन बेटियों की दादी भी अपनी पोतियों की तारीफ करते नही थकती है।
सही फैसला है यह बेटियाँ अब किसी से कम नही हैं .हाँ कुछ अभी पुराने विचार हैं जो यह सोचते हैं कि बेटे का होना जरुरी है ..और आज सिर्फ़ इस बात को समझना दूर दराज़ के इलाके के लिए भी उतना ही जरुरी है जहाँ या तो एक बेटे कि चाह में जाने कितनी जनसंख्या बदती चली जाती है या बेचारी मासूम कलियों को एक बेटे की चाह में कोख में ही कब्र दे दी जाती है ..
ReplyDeletesahi waqt par sahi faisla kiya hai un couple ne aur aj 3 betiyaan garv hai unki,bahut achhi baat rahi.
ReplyDeleteममता जी आप ने जिस विषय को लिया हैं श्याद हर दिल करीब हैं । मुझे लगता हैं इन ३० ३२ सालो मे हम सब को इतना परीपक्व हो जाना चाहिये की हम बच्चो मे तुलनात्मक अध्यन ना करे । उस समय ये बात सही थी क्योकि तब सोच बहुत ही संकुचित थी । स्वतंत्र सोच का अर्थ होगा की हम ये माने की बेटा या बेटी दोनों का मतलब एक ही हैं । ये कहना ही अनुचित हैं की "हमारी बेटी तो बेटे से कम नहीं हैं " । क्यों हमेशा बेटी को तुलनात्मक तराजू मे तुलना होता हैं ?? बेटी हैं अपनी क्षमता से जो कर सकती हैं करेगी जैसे बेटा हैं अपनी क्षमता से जो कर पाटा हैं करता हैं । कभी क्या हमने किसिस को ये कहते सुना है "हमारा बेटा , किसी बेटी से कम नहीं हैं " । जिस कहानी का आप जिक्र कर रही वह ३० वर्ष पुरानी हैं और उस समय के लिये बहुत ही अनुकार्निये थी और ये मे इस लिये कह सकती हूँ क्योकि हम सब उस समय शायद १८-२० साल के रहे होगये यानी सबके माँ पिता ने कही ना कही इस बात को कहा होगा हम सब के लिये । पर आज हम सब उस जगह है जहा हमारे म पिटा थे पर अगर हम भी वही दोहरायेगे तो सोच वही हैं जहाँ थी । अगर सोच मे फरक नहीं हुआ तो मानसिकता भी वही रहेगी और तुलना भी वैसे ही होगी और फिर हम सब की बेटियों को बार बार अपनी क्षमता को prove करना होगा । नोर्मल जिन्दगी अगर बच्चो को देनी हैं तो हमे तुलना बंद करनी होगी ।
ReplyDeleteइतनी बदिया विषय पर इतना अच्छा लिखने के लिये आप को बधाई ।
रंजना जी का कहना बिल्कुल सही है।
ReplyDeleteमुझे ये देख कर बहुत ही अच्छा लग रहा है कि नारी ब्लोग पर बहुत सकारात्मक चर्चा हो रही है।
बहुत सही बात लिखी आपने.. पूर्णतया सहमत हू आपसे
ReplyDeleteममता जी
ReplyDeleteआज बहुत से परिवारों में ऐसी चेतना जग चुकी है। किन्तु अभी भी मंज़िल बहुत दूर है।
आपकी बात तो वाजिब है ,वैसे हमारा परिवार इक नन्ही परी को तरस रहा है ,मेरा भी इक सपना है पता नही पुरा होगा या नही ?बड़े भाई के दो बेटे है ,मेरे इक बेटा है ओर मेरे छोटे भाई के भी इक बेटा है ,ख़ुद हम भाई के कोई बहन नही है ....आप समझ सकती है हमारा परिवार किस कदर इक छुटकी कि जरुरत महसूस करता है ... वैसे बाज़ार भेदभाव करता है नन्ही बच्चियों के इतने सुंदर कपड़े बनता है उतने सुंदर लड़को के नही होते .....
ReplyDeleteआप सभी का धन्यवाद।
ReplyDeleteअनुराग आपकी पीड़ा हम समझ सकते है क्यूंकि हमारे भी दो बेटे है। इस बात से जुड़ी घटना का हम आगे किसी पोस्ट मे जिक्र करेंगे।
समाज में सदियों से चली आ रही ल्सके की चाह को एकाएक नहीं बदला जा सकता पर आज पढ़े-लिखे लोगों को, गाँवों के लोगों को समझाने की जरूरत है कि नेहरू जी के तो कोई पुत्र नहीं था, सरदार भगत सिंह ने, आजाद, सुखदेव जैसों ने तो शादी ही नहीं की पर उनका वंश चल रहा है. रानी लक्ष्मी बी ने तो ख़ुद अपने वंश को आज तक जीवित रखा है...........और लड़कों के बिना वंश कैसा चलना कहा जायेगा?
ReplyDeleteबेटो से वंश चलने की बात कहने वाले समाज में नयी सोच जागृत करने के उद्देश्य से डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सा ने बेटियों से वंश चलाने की एक नयी मुहीम का आगाज किया है और इस रीत को ''कुल का क्राउन'' का नाम दिया है । dailymajlis.blogspot.in/2013/01/kulkacrown.html
ReplyDelete