tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post810438067846454444..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: समाजरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-29673923595712244422011-02-24T17:19:06.042+05:302011-02-24T17:19:06.042+05:30ओ. के.......... रचना दीदी के मुद्दे पर बात करने क...ओ. के.......... रचना दीदी के मुद्दे पर बात करने की बात को ध्यान में रखते हुए .......मैं अपने जिज्ञासा से भरे कमेन्ट नहीं कर रहा हूँ :)) <br /><br />@आज तक किसे ने नहीं कहा कि पुरुष ही पुरुष का दुश्मन है क्यो????????<br /><br />उत्तर ( शायद है ): अगर समाज स्त्री प्रधान कहा जाता होता तो ये कहा जाता की "पुरुष ही पुरुष का दुश्मन है"<br /><br />शायद अगला प्रश्न हो : अभी समाज पुरुष प्रधान है या स्त्री प्रधान ????<br />उत्तर : No Comments !!! ये विभाजन ही गलत है और सारी समस्या की जड़ है , पर समझाए कौन ????? :)<br /><br />नाम का लोजिक : पूरे ग्लोब को फॅमिली मानने वाली ग्लोबल संस्कृति के एक ग्लोबल फंडे वसुधैव कुटुम्बकम जुडा है , सभी बहनों के स्नेह को ध्यान में रखते हुए अगली बार "गौरव" नाम को ही हाईएस्ट प्राथमिकता पर रखा जायेगा .. इस स्नेह से अभिभूत हूँ .. आभारएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-23717589245624261142011-02-24T17:10:28.630+05:302011-02-24T17:10:28.630+05:30बहस को सही पिच पर लाने के लिये धन्यवाद.मेने जहाँ त...बहस को सही पिच पर लाने के लिये धन्यवाद.मेने जहाँ तक देखा हैं सास बहू या ससुर दामाद में कभी मतभेद होता है तो कहा ये ही जाता है कि दोनों में बनती नहीं है न कि ये कि दोनों में दुश्मनी है परंतु बात एक सीमा से आगे बढ जाये तो दोनों के लिये ही दुश्मनी वाली बात कह दी जाती है या फिर कुछ इस तरह कि दोंनो ही एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते या व्हाटऐवर.हाँ सास बहू के बारे में हो सकता है ये थोडा ज्यादा कहा जाता हो क्योंकि ससुर दामाद थोडा दूर रहते है उनमें आये दिन उस तरह के मतभेद नहीं हो पाते.परंतु दूसरे पुरूषों के बारे में कह दिया जाता है जैसे कि दोनों बाप बेटे एक दूसरे के दुश्मन है या दोनों भाईयों की आपस में दुश्मनी है.महिलाएँ भी कह देती है तो खुद पुरूष भी कह डालते है फिर भी ये मेरी सोच है आपका अनुभव मुझसे अलग या ज्यादा हो सकता है इसलिये आपकी बात मान लेता हूँ हालाँकि मुझे नही लगता कि पोस्ट में प्रश्न भी ये बात ध्यान में रखकर पूछा गया हैँ जो आप कह रही है.अन्यथा जब मैं पाता हूँ कि मैं गलती पर हूँ अपने विचार बदलने में देर कभी नहीं लगाता.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-26682545550311899412011-02-24T17:00:04.477+05:302011-02-24T17:00:04.477+05:30depends on situation , not always.depends on situation , not always.G.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-69952835650024430312011-02-24T15:56:41.060+05:302011-02-24T15:56:41.060+05:30rajan
behas ki disha haen ki samaan paristhitiyon...rajan <br />behas ki disha haen ki samaan paristhitiyon mae ham samaan baat kyun nahin kehtey <br /><br />jaese agar bahu aur saas mae matbhedh hota haen to dono ko ek dusrae ki dushman kehaa jaataa haen <br /><br />vahin agar sasur aur damaad mae matbhedh hota haen to wo kewal matbhedh hota haen usmaey dusmani jaesi baat nahin hotee haenरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-27516042604995901892011-02-24T15:48:13.822+05:302011-02-24T15:48:13.822+05:30प्रज्ञा जी क्या आपने महिलाओं को पुरूषों की दुश्मन ...प्रज्ञा जी क्या आपने महिलाओं को पुरूषों की दुश्मन बनते देखा हैं?कोई ये क्यो नहीं कहता कि महिला ही पुरूषों की दुश्मन होती है.@रचना जी मैं इस टैग की बात नहीं करता यहाँ बात सिर्फ ये थी कि स्त्री मुक्ति की राह में कुछ महिलाएँ भी रोडा बनती है हाँ इसके कारणों पर मतभेद हो सकता है आपके मेरे गौरव जी या अंशुमाला जी के अलग अलग विचार हो सकते हैं.और ये बात आप बेकार ही कर रही हैं कि पुरूष क्यों नहीं पुरूष को दुश्मन बताते.क्योंकि मैंने तो कई पुरूषों को ऐसे तर्क करते हुए देखे है जो कहते हैं कि जब कोई पुरूष अपने से कमजोर पुरूष पर भी उसी तरह से अत्याचार करता है यानी पुरूष तो पुरूष का भी दुश्मन है तो महिलाओं के प्रति अत्याचारों को ही मुद्दा क्यों बनाया जाता है .तो आप क्या चाहती है मान ले उनकी बात?जबकि आपको याद हो मैने खुद आपके ब्लॉग पर ये कहा था कि यदि महिला अपने महिला होने के कारण ही समाज में भेदभाव सहती है तो अलग से बात करने की जरूरत पडेगी.लेकिन अब आपके तर्क तो खुद उन लोगों के तर्क को ही बल दे रहे है जो कहते है कि इन मुद्दों को स्त्री पुरूष में भेद कर देखने की जरूरत नहीं है.हाँ आप बात को समग्र रूप से देखने के बजाय केवल टैग का विरोध करना चाहती है तो मैं आपसे सहमत हूँ कि इसका प्रयोग करने वाले गलत है फिर चाहे वो महिला हो या पुरूष.आप मेरे विचारों में कमी देखेंगी तो मार्गदर्शन भी करेंगी इसलिये यहाँ कह जाता हूँ अन्यथा मेरी और मेरे जैसों की ये धारणा बनी ही रह जाएगी.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-77311884533246237222011-02-24T14:41:47.217+05:302011-02-24T14:41:47.217+05:30पुरुषों के मामले में ऐसा क्यों नहीं कहा जाता ये तो...पुरुषों के मामले में ऐसा क्यों नहीं कहा जाता ये तो नहीं जानती लेकिन महिलाओं को कई बार महिलाओं की दुश्मन बनते देखा है...कई माँओं (माँ) को देखा है खुद किसी स्थिति में पिसते हुए भी अपनी बेटी को उसी में पिसने के लिए कहते..और उसके ऐसा न करने पर उसे ये सुनाते कि 'औरत हो, औरत की तरह रहो, नहीं तो न मर्द बन पाओगी न ही औरत बन पाओगी'...पता नहीं ये बात अपने पति को खुश करने के लिए कही जाती है या कोई और मकसद होता है..अभी तक नहीं समझ पाई...इस बात को भी और ऐसी माँओं को भी....pragyahttps://www.blogger.com/profile/04688591710560146525noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-10856257145928131752011-02-24T14:17:12.142+05:302011-02-24T14:17:12.142+05:30सभी टिपण्णी कारो से अनुरोध हैं इस पोस्ट के प्रश्न ...सभी टिपण्णी कारो से अनुरोध हैं इस पोस्ट के प्रश्न को पुनह पढ़े<br />पोस्ट मे पूछा गया हैं कि पुरुष भी पुरुष के खिलाफ बहुत कुछ करता हैं पर कभी भी ये नहीं कहा जाता हैं कि पुरुष पुरुष का दुश्मन हैं . जबकि नारी अगर किसी नारी के खिलाफ कुछ कह भी दे तो उसको " औरत , औरत कि दुश्मन का टैग" दिया जाता हैं . ऐसा क्यूँ हैं ??? इस प्रश्न का जवाब दे अगर किसी के पास हो तो . यहाँ औरत ही औरत के दुश्मन होने के कारन का पता नहीं करना हैं जैसा कि ज्यादा लोगो ने किया हैं . विषय परिवर्तन होगया हैं क्या हम फिर एक बार विषय पर आकर बहस कर सकते हैं कि क्यूँ औरत को औरत का दुश्मन कहा जाता हैं जबकि उन्ही कृत्यों और कारणों मे, परिस्थितियों मे पुरुष को पुरुष का दुश्मन ना कह कर difference of opinion कहा जाता हैं<br /><br />और गौरव जी आप का नाम इतना सुंदर था इस को बदल कर "ग्लोबल" करना पडा जरुर बड़ा कारन होगा वैसे ग्लोबल से मेरे भारत का "गौरव" बने रहते तो मुझे व्यक्तिगत ख़ुशी होतीरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-72340227106442098922011-02-24T12:51:58.217+05:302011-02-24T12:51:58.217+05:30अंशुमाला जी,
ऐसे पुरूषों का कभी समर्थन किया हो तो ...अंशुमाला जी,<br />ऐसे पुरूषों का कभी समर्थन किया हो तो बताइये.आप खुलकर इस सोच का विरोध कीजिये मुझे इस पर कतई आपत्ति न रही है न रहेगी.मेरा पिछला कमेंट पढें तो मैं कह चुका हूँ की इस मानसिक अनुकूलन के साथ साथ व्यक्ति की खुद की सोच भी है जिसका विरोध होना ही चाहिये.लेकिन जिस तरह की महिलाओं की मैंने बात की उनमें भी पढी लिखी महिलाओं की संख्या भी अच्छी खासी है और उन पर भी ये वाली बात (मानसिक अनुकूलन के साथ साथ सोच) लागू होती है.बल्कि ज्यादा क्योंकि कहा जाता है कि एक महिला दूसरी महिला का दर्द बेहतर समझ सकती है(पहले बता चुका हूँ).हाँ ये मैं मानता हूँ कि महिलाओं की सोच पुरूषों की तुलना में ज्यादा तेजी से बदली है इसकी सराहना की जानी चाहिये मैने भी इसे रेखांकित किया था पहले ही कमेंट में.पर कुछ महिलाओं की तरफ से यदि दिक्कत है तो उन पर बात हो जाए तो गलत नहीं.वैसे उम्मीद करता हूँ आपको मेरी कोई बात गलत नहीं लगी होगी अन्यथा थोडा खतरा तो रहता है गलतफहमी का इस तरह के मुद्दों पर बोलते हुए.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-62521564934933330452011-02-24T12:02:59.850+05:302011-02-24T12:02:59.850+05:30राजन जी
आप के दोनों बिन्दुओ से ...राजन जी <br /><br /> आप के दोनों बिन्दुओ से सहमत हूँ हा महिलाओ का दोष तो है ही कहते है की जुल्म करने वाला जितना दोषी होता है उतना ही चुपचाप जुल्म सहने वाला भी दोषी होता है इस मामले में महिलाए भी दोषी है उन्हें खुद अपने लिए आवाज उठानी होगी दुसरे उसके बाद ही उनका साथ दे सकते है | और दूसरी बात भी सही है की यही बाते पुरुषो के मन में भी भरी जाती है किन्तु शिकायत उनसे ये है की उनमे से ज्यादातर पढ़ने लिखने और समझदार होने के बाद भी इन बातो को अपने दिमाग से बाहर नहीं निकालते है और महिलाओ के लिए वही पुराणी सोच रखते है जिसे वो आसानी से पीछे छोड़ सकते है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-34895478310136528132011-02-24T03:37:25.819+05:302011-02-24T03:37:25.819+05:30वैसे इस जुमले का समर्थन मैंने भी नहीं किया है बल्क...वैसे इस जुमले का समर्थन मैंने भी नहीं किया है बल्कि कोई करता है तो उस पर मेरा भी विरोध दर्ज कर लीजिये लेकिन ये नहीं मान सकता कि खुद कुछ महिलाओं की तरफ से कोई समस्या है ही नहीं.यदि उस पर भी कुछ बात हो जाए तो इसमें गलत क्या है?इस व्यवस्था को जिसने भी बनाया हो लेकिन इसमें कई ऐसी बातें जो स्त्री के विरोध में जाती है उन्हें खाद पानी देने का काम स्त्री पुरूष दोनों ने ही किया है (यदि जरूरत पडी तो इस पर विस्तार से बात की जा सकती है)ठीक वैसे ही जैसे इस जुमले को बनाया भले ही पुरूषों ने हो लेकिन इसका प्रयोग कुछ महिलाऐं भी करती है जिनमें कई पढी लिखी महिलाऐं भी आपको मिल जाएँगी.तो क्या इसीलिये उनकी गलती गलती नही है?मान लेते है कि महिलाएँ बचपन से ही मानसिक कंडीशनिंग के चलते कई बातों पर बँट जाती है लेकिन पुरूष क्या आसमान से टपका है वो भी तो इसी व्यवस्था के तहत पला बढा है मानसिक कंडीशनिंग(जाने अनजाने में) वाली बात उसके संदर्भ में भी तो उतनी ही तीव्रता से लागू होती है फिर तो कई मामलों में आपको उसे भी छूट देनी होगी.लेकिन नहीं ऐसा हमेशा नहीं होता है मेरा खुद का मानना है कि व्यक्ति की खुद की सोच भी कहीं न कहीं दोषी होती है.यदि पुरूष की भी गलत है तो आप उसकी आलोचना कीजिये लेकिन बात जब महिलाओं की गलती की आए भले ही वह कुछ प्रतिशत ही हो बार बार ये मानसिक अनुकूलन वाली बात आगे मत कीजिये वो भी तब जबकि ये भी माना जाता हो कि एक महिला ही दूसरी महिला को बेहतर समझ सकती है.और फिर ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ मैं कह रहा हूँ खुद मनोविज्ञान भी मानता है कि थोडी गलती तो महिलाओं की भी है.अन्यथा पुरूषों को इतनी आसानी कभी न होती.साथ ही मैं तो खुद कह रहा हूँ कि महिला खुद को सबसे पहले एक स्त्री समझे लेकिन यदि आप लोग इस तरह से उनकी गलती पर पर्दा डालते रहे तब तो हो लिया सुधार.खैर...राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-1288225177489258132011-02-24T00:24:21.783+05:302011-02-24T00:24:21.783+05:30महिलाएं महिलओं की दुश्मन हैं यह जुमला मुझे भी बड़ा...महिलाएं महिलओं की दुश्मन हैं यह जुमला मुझे भी बड़ा अजीब लगता है...... पर समाज में ऐसे उदाहरणों की कहाँ कमी है जहाँ महिलाएं ही महिलाओं का सहारा बन एक दूसरे को आगे बढ़ा रही हैं .......एक दूसरे का शक्ति स्तंभ बन रही हैं......... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-24230839936989944732011-02-24T00:01:38.977+05:302011-02-24T00:01:38.977+05:30इसका दूसरा पहलू नहीं देखा, किसी पुरुष को किसी गलती...इसका दूसरा पहलू नहीं देखा, किसी पुरुष को किसी गलती के लिए सिर्फ महिलाओं को कोसते नहीं देखा होगा. जबकि महिलायें किसी भी घटना का जिम्मेवार सिर्फ और सिर्फ पुरुषों को तो ठहराती हैं. ये तो गनीमत है कि आंधी, तूफ़ान, दिन रात के लिए भी पुरुष को दोष नहीं दिया गया.....राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगरhttps://www.blogger.com/profile/16515288486352839137noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-76304613053699868332011-02-23T23:39:01.833+05:302011-02-23T23:39:01.833+05:30राजन की बात से सहमत हूँ की ये व्यवस्था के कारण है ...राजन की बात से सहमत हूँ की ये व्यवस्था के कारण है | किन्तु इस व्यवस्था का निर्माण किसने किया है और स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है जैसे जुमलो का निर्माण किसने किया है और महिलाए बट इस लिए जाती है की उनके दिमाग में बचपन से ये भर दिया जाता है की तुम्हे पिता , भाई , पति और बेटे के पीछे चलना है बिना सवाल किये, तो ऐसे मुद्दों पर भी वो बस उनका अनुसरण करने लगती है बिना सवाल किये |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-84278077658878775232011-02-23T21:51:21.055+05:302011-02-23T21:51:21.055+05:30बहुत सुन्दर ! सारगर्भित बात कही है राजन भाई नेबहुत सुन्दर ! सारगर्भित बात कही है राजन भाई नेएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-32193085767011604632011-02-23T21:30:24.678+05:302011-02-23T21:30:24.678+05:30जन्म से न तो पुरूष स्त्री विरोधी होता है और न ही स...जन्म से न तो पुरूष स्त्री विरोधी होता है और न ही स्त्री स्त्री विरोधी.जो कुछ कराती है ये व्यवस्था कराती है यही पुरूष को मर्द बने रहने की ट्रेनिंग देती है और ये ही एक महिला को दूसरी महिला के खिलाफ खडा करती है .हालाँकी ये जरूर देखने को मिलता है कि जब इस व्यवस्था में ही सुधार की बात की जाती है या स्त्री के अधिकारों की तो पुरूष चाहे दूसरे मामलो में लाख असहमत हों विरोध में तुरंत एक हो जाते है क्योंकि उन्हें अपना दायरा कुछ सिमटता दिखता है जबकि महिलायें बँटी हुई नजर आती है.ये बात आपने भी नोट की होगी इसलिये यदी कहीं सुधार की जरूरत है तो वो होना चाहिये.स्त्री को याद रखना होगा कि वो सबसे पहले एक स्त्री है माँ बहन बेटी या पत्नी बाद में.शिक्षा के चलते एक महिला द्वारा दूसरी महिला को देखने के नजरीये में कुछ हद तक फर्क अब आया है जो कि स्वागत योग्य है परंतु इसमें अभी और परीवर्तन आना चाहिये.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-55191749280569630402011-02-23T19:32:22.962+05:302011-02-23T19:32:22.962+05:30@Pratibhaji,
"पुरुष ही पुरुष का दुश्मन है&q...@Pratibhaji, <br /><br />"पुरुष ही पुरुष का दुश्मन है"... ye kaise kahenge wo? Inse unke purushatv ka apmaan nahi hoga...? :-)<br /><br /><br />rgds.रेवा स्मृति (Rewa)https://www.blogger.com/profile/13005191329618003468noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-14763455168582572692011-02-23T17:06:25.284+05:302011-02-23T17:06:25.284+05:30प्रतिभा जी,
किसी एक बात को गलत ठहराने या विरोध ...प्रतिभा जी, <br /><br />किसी एक बात को गलत ठहराने या विरोध करने की कोशिश करते हुये हम वही गलती करते हैं जो उसे पूरी तरह सही ठहरा के की गयी ..इसे इग्नोर कर देना चाहिए<br /><br />@औरत ही औरत की दुश्मन है<br /><br />मुझे लगता है ये वाक्य एक "नजरिया" भर है जो तब विकसित हुआ होगा जब पुरुष को स्त्री ने अपना दुश्मन घोषित किया होगा ........ <br /><br />सीधा सा हिसाब है..... आप किसी अन्याय का विभाजन जेंडर के आधार पर करेंगे तो कोशिश दूसरी ओर से भी होती है ओर आने वाली पीढियां इसी तरह उलझ कर रह जाती हैं की ऐसा क्यों कहा जाता है <br /><br />इस तरह दोनों पक्ष कभी सही नतीजे पर नहीं पहुँच पाते ....जिसका फायदा दुर्जन (स्त्री/पुरुष) उठाते हैं ..<br /><br />बेसिकली फंडा है ..... जो संस्कारी है वो सबका मित्र है .....स्त्री हो या पुरुष ....... क्या फर्क पड़ता है ? :) वसुधैव कुटुम्बकम .. बात ख़त्मएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.com