tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post699930780864814407..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: प्रतिभा पाटिल , सुखोई , सिर पर आँचल या युनिफोर्मरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-75752288076398722202010-03-09T17:25:22.428+05:302010-03-09T17:25:22.428+05:30आपकी बात अपनी जगह सही लेकिन कोई बात कहना और उसे अम...आपकी बात अपनी जगह सही लेकिन कोई बात कहना और उसे अमल में लाना ये दो बाते हैं। आजादी का मतलब यह नहीं होता है कि आप सभ्यता की सारी लक्षमण रेखा पार कर दें। ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिये जो असभ्य लगे।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-73239299581348094052009-11-26T20:34:13.705+05:302009-11-26T20:34:13.705+05:30परिधान सुविधाजनक, सुरुचिपूर्ण, शालीन और अवसर के अन...परिधान सुविधाजनक, सुरुचिपूर्ण, शालीन और अवसर के अनुरूप होने चाहिए. मैं समझता हूँ कि आप भी इसका विरोध नहीं कर रही हैं, फिर यह बहस किस बात को लेकर है, कुछ समझ नहीं आता. जहाँ तक वस्त्रों के चयन के अधिकार की बात है तो यदि परिधान में उपर्युक्त गुण मौजूद हैं तो इस अधिकार से इंकार कौन रहा है? और रही समानता की बात कि पुरुष के वस्त्रों पर आपत्ति क्यों नहीं की जाती तो कृपया बताएं कि सलमान खान के शर्ट उतारने पर कितनी महिलाओं ने आपत्ति की या इसका विरोध किया? यदि आपको पुरुषों के किसी प्रकार के परिधान पर आपत्ति है तो खुलकर विरोध करें यह भी आपका अधिकार है परन्तु पुरुष और पाश्चात्य सभ्यता के प्रत्येक दुर्गुण को समानता और प्रगतिशीलता का पैमाना मानकर अपना लेना तो किसी भी प्रकार की बुद्धिमानी नहीं है.निशाचरhttps://www.blogger.com/profile/17104308070205816400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-30574957443913256842009-11-26T10:55:02.620+05:302009-11-26T10:55:02.620+05:30सुमन,
अवसर के अनुरूप परिधान का सबसे ...सुमन,<br /><br /> अवसर के अनुरूप परिधान का सबसे अच्छा उदारहण है, जहाँ जिस की जरूरत है वही होना चाहिए और पहनने वाले की सुविधा और गरिमा के अनुरूप भी. वैसे अब इस परिधान की चर्चा बहुत हो चुकी है. इसलिए हम लोगों को अब बंद कर देना चाहिए और अन्य सार्थक विषय हैं उनको उठा कर चर्चा का विषय बनाना है ताकि उनके भी सार्थक हल प्राप्त हो सकें.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-84061434380172391602009-11-26T01:03:42.032+05:302009-11-26T01:03:42.032+05:30मुझे लग रहा है कि हमारी बात को लोग ठीक ढँग से समझ ...मुझे लग रहा है कि हमारी बात को लोग ठीक ढँग से समझ नहीं पा रहे हैं. बात यहाँ यह नहीं है कि औरतें क्या पहनें या क्या नहीं पहने? बात ग़ैरबराबरी की है और औरतों के निर्णय लेने की स्वतन्त्रता की भी. मैं यहाँ दो बातें स्पष्ट करना चाहुँगी--<br />-पहली यह कि हम बिल्कुल भी इस बात का समर्थन नहीं कर रहे हैं कि औरतों को कम कपड़े पहनने चाहिये. हम यह कहना चाहते हैं कि परिधान की शालीनता की बात केवल औरतों के लिये ही क्यों होती है, जबकि यह तो स्वाभाविक सी बात है कि सभी लोगों को ऐसे कपड़े पहनने चाहिये जो सभ्य समाज में उठने-बैठने लायक हों.<br />-दूसरी बात यह कि परिधान के चयन का मुद्दा छोटा या बचकाना नहीं, है जैसा कि कुछ लोगों ने कहा है. कोई भी मुद्दा जो औरतों की चयन की स्वतंत्रता से जुड़ा है वह मेरे हिसाब से छोटा नहीं हो सकता. ऐसी ही छोटी-छोटी बातों का विरोध करके हम इस जगह पहुँचे हैं, जहाँ लोग यह मानने लगे हैं कि औरतों के साथ समाज में भेदभाव होता है, वर्ना कुछ साल पहले तो लोग यह भी मानने को तैयार नहीं थे.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-21690302336721511812009-11-26T00:45:48.749+05:302009-11-26T00:45:48.749+05:30बिल्कुल सही जगह पर सही बात लिखी है आपने सुमन. मैं ...बिल्कुल सही जगह पर सही बात लिखी है आपने सुमन. मैं भी आज यह मुद्दा उठाना चाह रही थी. आज एक समाचार चैनल पर वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ ने नारी की यही स्टीरियोटाइप इमेज तोड़ने लिये राष्ट्रपति की प्रशंसा की है. राष्ट्रपति ने स्वयं यह कहकर कि औरतें भी सुखोई उड़ा सकती हैं अपनी राय भी जाहिर कर दी है कि औरतें किसी भी मामले में पीछे नहीं रहना चाहतीं.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-17258270930362390282009-11-26T00:35:00.444+05:302009-11-26T00:35:00.444+05:30kya kal apne office men MAHAMAHIM jeens men pahunc...kya kal apne office men MAHAMAHIM jeens men pahunchengin? <br />aapka BLOG bahut se saarthak muddon ko hamesha uthata rahaa hai, kripya apne SVABHAAV ko na badlen. <br />kapde jinke liye mudda hai wo rahega hi, kal ko wo ye bhi kahenge ki MAHILA nahaate samay bhi kapde na utaare, aise logon ko kaise rok saktin hain aap? <br />SAARTHAK BAHAS JAARI RAKHIYE. <br />ant men ek baat------ <br />MAHAMAHIM JI NE JITNE KAM SAMAY MEN TRAINING LEKAR CO-PILOT KI SEAT PAR BAITHANE KA GAURAV HAASIL KIYA HAI KYA KISII LADKE YA LADKI KO ITNE KAM SAMAY KI TRAINING KE BAAD CO-PILOT KI SEAT PAR BAITHANE KA MAUKA MILEGA? <br />----------------------- <br />SARTHAK MUDDE LAAYEN AUR KHULI BAHAS JARI RAKHEN.राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगरhttps://www.blogger.com/profile/16515288486352839137noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-53675992662969845932009-11-25T23:32:48.087+05:302009-11-25T23:32:48.087+05:30@ada
the issue that we raise at naari blog is ver...@ada<br /><br />the issue that we raise at naari blog is very simple <br /><br />its about why just critisize woman for what they wear , why make rules only for woman <br />why not make them for man also <br /><br />clothes is just an example citied again and again and the issue gets diverted lets come back on the issue please which i hv raised in my first post when i started this debate again on this blog <br /><br /><br />why run away for the real issue<br /><br />that is the disparity in indian society where there are no rules for man and every one wants to have rules for woman and it starts with her choice of clothesAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-37709916565503145042009-11-25T23:31:50.824+05:302009-11-25T23:31:50.824+05:30आपकी बात अपनी जगह सही लेकिन कोई बात कहना और उसे अम...आपकी बात अपनी जगह सही लेकिन कोई बात कहना और उसे अमल में लाना ये दो बाते हैं। आजादी का मतलब यह नहीं होता है कि आप सभ्यता की सारी लक्षमण रेखा पार कर दें। ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिये जो असभ्य लगे। लेकिन आप सवाल कर सकती है कि सभ्यता और असभ्याता की परिभाषा कौन तय करेगा। अमेरिका की एक शहर में बराबरी की दर्जा की मांग करते हुए लडकियों ने अदालत में एक याचिका दायर कर मांग की है कि उन्हें टोरलेस रहने की इजाजत दी जाये क्योंकि मर्द टोपलेस रहते हैं। यदि वे टोपलेस रहते हैं तो क्या महिला टोपेलस नहीं रह सकती । बरबारी की मांग एक सीमा और सभ्यता के तहत हो तो समझा जा सकता है।राजेश कुमारhttps://www.blogger.com/profile/03022479793930240428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-41312782399912315322009-11-25T23:28:51.116+05:302009-11-25T23:28:51.116+05:30bilkul vandana
mudda kam kapadae pehnaa nahin hae...bilkul vandana <br />mudda kam kapadae pehnaa nahin haen <br />mudda haen ki kyaa stri ko yae adhikaar haen ki wo apni suvidha kae anusaar apnae vastr chun sake <br /><br />jo log behas mae daer sae aaye haen unko batna jaruri haen ham yahaan sti kae swantr ho kar apnae ichcha anusaar aur apni suvidha anusaar apane vastr pehnanae kaa adhikaar <br /><br />behas muddae sae naa bhatakae is kaa dhyaan rakhae kyuki baat hamesha stri ko kyaa karna sahii aur galt par khatam hotee kabhie bhi pursuh kae liyae kyaa sahii aur galat haen is par baat nahin hoteeAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-65894143260637460102009-11-25T23:10:25.127+05:302009-11-25T23:10:25.127+05:30मेरा मानना है कि कपडे हमेशा शालीनता की हद में पहने...मेरा मानना है कि कपडे हमेशा शालीनता की हद में पहने जाने चाहिये. निश्चित रूप से पहनावा ज़रूरत के हिसाब से बदलता है, लेकिन इसे अभद्र नहीं होना चाहिये. छोटे वस्त्र पहन के हम क्या जताना चाहते हैं? आधुनिकता इन कपडों से नहीं बल्कि हमारी सोच और हमारे प्रयासों से झलकनी चाहिये न कि कम कपडों से?वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-66328058280234214122009-11-25T23:05:20.125+05:302009-11-25T23:05:20.125+05:30हमें हमारी महामहिम राष्ट्रपति पर गर्व है!हमें हमारी महामहिम राष्ट्रपति पर गर्व है!प्रकाश पाखीhttps://www.blogger.com/profile/09425652140872422717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-54408664689987372412009-11-25T22:37:29.517+05:302009-11-25T22:37:29.517+05:30ये टिप्पणी अदा दीदी की है , वह अपनी टिप्पणी पोस्ट ...ये टिप्पणी अदा दीदी की है , वह अपनी टिप्पणी पोस्ट नहीं कर पा रहीं थी इसलिए उनकीं ये टिप्पणी मेरे द्वारा पोस्ट की जा रही है । <br /><br /> अदा<br /><br />सुमन जी...<br />आप विदेश नहीं आई हैं ...तो कोई बात नहीं आप ज़रूर आइये अब तो आपकी बहन का ही घर है यहाँ...मुझे बहुत ख़ुशी होगी..आइये और कुछ दिन रहिये....बहुत अच्छा लगेगा...<br />बस एक बात स्पष्ट करना चाहूंगी कि मैं नारी हूँ और नारी कि प्रगति कि हिमायती हूँ..मैं स्वयं एक प्रगतिशील महिला हूँ......लेकिन महिला कि स्वतंत्रता कि बात जब है तो फिर ...कपडे के चयन कि स्वतंत्रता क्यूँ...विचारों कि.....बौधिक विकास कि, आत्मनिर्भरता कि क्यूँ नहीं.....<br />समय और मौसम के अनुसार परिधान ज़रूर बदलना चाहिए...<br />लेकिन क्या खाना बनाते समय कम कपडे पहन लेने से महिला प्रगतिशील हो जाती हैं....???<br />इतनी छोटी बात को इतना बड़ा मुद्दा बनाने से बेहतर है......कोई सार्थक मुद्दा सोचा जाये......<br />नारी कि प्रगति में कपडे कि लम्बाई चौड़ाई बाधक है......मैं यह नहीं मानती....कम कपडे पहनने से हम प्रगशील हो जायेंगे इस बात से कतई सहमत नहीं हूँ...<br />हम भी जब भारत में थे तो गर्मी में सूती और जाड़े में जाड़े के कपडे पहनते थे.....तब भी गर्मी थी अब भी है...<br />आप लोग खुश किस्मत हैं कि कई मौसम का स्वाद ले सकते हैं हमारे यहाँ सिर्फ दो मौसम हैं...जाड़ा और जुलाई...Mithilesh dubeyhttps://www.blogger.com/profile/14946039933092627903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-10309993937042986452009-11-25T22:35:35.431+05:302009-11-25T22:35:35.431+05:30very good!very good!स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-27717290139744985552009-11-25T21:05:47.348+05:302009-11-25T21:05:47.348+05:30वाह सुमन आप ने इतनी जल्दी ये तस्वीर डाल भी दीवाह सुमन आप ने इतनी जल्दी ये तस्वीर डाल भी दीAnonymousnoreply@blogger.com