tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post6870082094604315903..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए -- अनदेखा सचरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-91157742869631282792012-03-23T19:17:01.369+05:302012-03-23T19:17:01.369+05:30समाज की मर्जी से बने कानूनों मे आपको इतना विश्वास ...समाज की मर्जी से बने कानूनों मे आपको इतना विश्वास नहीं होना चाहिये जब सारा समाज नार्वे की घटना को भारतीय दम्पत्ति के दुर्भाग्य के तौर पर देख रहा है। माँ की बात हटा दे तो बात बच्चों की गलती पर आती है। उनका क्या कसूर है जो वो अपनी जडों से कट कर किसी और देश में पले बढे? जब वो बडे हो जायेंगे और अपने आप को वहाँ अजनबी की तरह पायेंगे, तब क्या? वहाँ के लोग इन बच्चों को कभी अपनापन नहीं दे सकते जिन की त्वचा का रंग इनके रंग से अलग है। भारत में भी चाइल्ड वेलफ़ेयर सर्विस चलती है यहाँ भी बच्चों की परवरिश हो सकती है। पहले बच्चों को भारत ले आना चाहिये, बाद में पति पत्नी के झगडों को देखना चाहिये। नार्वे में कानून कम तानाशाही ज्यादा नजर आ रही है।AMIT VERMAhttps://www.blogger.com/profile/07591954366456892947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-78429966190853801282012-03-23T17:17:18.844+05:302012-03-23T17:17:18.844+05:30इसके लिए समाज यानी जनता कि इच्छा को भी आपको महत्तव...इसके लिए समाज यानी जनता कि इच्छा को भी आपको महत्तव देना होगा.<br /><br />राजन समाज की मर्जी से ही कानून बनते हैं अपने को सुव्यवस्थित करने की समाज की इच्छा ही कानून को बनवाती हैं . <br /><br />जब कानून बन जाता हैं तो समाज के कुछ लोग उसको केवल इस लिये नहीं मानना चाहते क्युकी उसमे "बदलाव" होता हैंरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-89614264601813679502012-03-23T09:51:56.664+05:302012-03-23T09:51:56.664+05:30खैर इस मामले में अभी ज्यादा कुछ सामने नहीं आया हैं...खैर इस मामले में अभी ज्यादा कुछ सामने नहीं आया हैं.मैंने अभी तक जो भी कहा हैं वो केवल अभी तक आई खबरों के आधार पर ही कहा हैं और अभिे तक मुझे इसमें नार्वे सरकार ही पूरी तरह गलत नजर आ रही हैं कयास मैं नहीं लगाउँगा क्योंकि होने को तो कुछ भी हो सकता हैं.<br />कानून को समाज नहीं बल्कि उससे जुडे कुछ लोग ही बनाते हैं और वो कोई भगवान नहीं होते कि उनसे कोई गलती नहीं हो सकती.कानून समाज के हित में हैं तो उसकी पालना की जाएँ और नहीं हैं तो उस पर बहस की जाए,उसे बदला जाए न कि उसकी भक्ति की जाए कि कानून बन गया हैं इसलिए मानना ही पडेगा और इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता.वैसे ये अच्छी बात हैं कि हमारे यहाँ पर भी विभिन्न कानूनों को लेकर बहस और तर्क वितर्क होने लगे हैं.यही तो असली लोकतंत्र हैं.जहाँ कैसे भी कानून को हर हाल में मानने की बाध्यता हो वहाँ लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही होती हैं.जैसे कि अरब के अधिकांश मुल्कों में हैं और उनकी बात जाने दें चीन को ही देख लीजिए वहाँ भी कानून का ही राज चलता हैं लेकिन पता कीजिए कि समाज क्या इससे खुश हैं और इन कानूनों से उसका कितना भला हुआ हैं.<br />मुझे खुशी हैं कि भारत में लोकतंत्र बहुत अच्छी हालत में न सही पर ठीक ठाक काम कर रहा हैं हमें इसे और बेहतर बनाने कि कोशिश करनी चाहिए और इसके लिए समाज यानी जनता कि इच्छा को भी आपको महत्तव देना होगा.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-47467515029558175592012-03-23T09:26:27.768+05:302012-03-23T09:26:27.768+05:30रचना जी,मैं पहले भी कह चुका हूँ कि उस व्यक्ति ने य...रचना जी,मैं पहले भी कह चुका हूँ कि उस व्यक्ति ने ये कभी नहीं कहा कि बच्चे नार्वे में ही रहे तो अच्छा हैं.ये सब मीडिया के एक हिस्से ने खुद ही झूठ फैलाना शुरू कर दिया.यहाँ तक कि अब तो ये भी साबित हो गया कि उसने तलाक की बात भी कभी नहीं कही खुद मीडिया ही कहानियाँ गढ रहा हैं.और पता नहीं मानसिक बीमारी वाली बात भी सच हैं या नहीं.उस व्यक्ति ने बस ये बात मानी हैं कि हम पति पत्नीके बीच मतभेद हैं लेकिन तलाक जैसी कोई बात नहीं.<br />लेकिन मैं जो बात कह रहा था उस पर अभी भी कायम हूँ कि माँ बाप बच्चे को वापस चाहते हैं.यदि मान लीजिए आपसी मतभेद को छुपाकर उन्होने झूठ भी बोला हैं तो इसलिए ताकि बच्चों को वापस पाने में कोई दिक्कत न हो और अब देखिये नार्वे वाले केवल मतभेद के चलते ही बच्चों को वापस देने से इंकार कर रहे हैं.इसलिए इस दंपत्ति ने जो किया मुझे उसमें कुछ भी गलत नहीं लगा.जबकि आपका ये कहना था कि आर्थिक कारणों से माता पिता बच्चों को नहीं चाहता जो कि कम से कम अभी तक तो पूरी तरह गलत साबित हुआ हैं.<br />और यदि किसी पति पत्नी में बनती नहीं हैं तो इसका मतलब ये नहीं हैं कि वो तलाक ही लेना चाहते होंगे और उन्हें अलग ही हो जाना चाहिए.और यदि फिर भी कोई अलग नहीं हो रहा हैं तो इसका कारण ये ही नहीं हैं कि समाज का दबाव ही उन्हें रोक रहा हैं.मतभेद ज्यादातर स्थाई नहीं होते हैं.पश्चिम में भी पति पत्नी कोई एक झटके में ही तलाक नहीं ले लेते बल्कि इसे अंतिम विकल्प के रूप में ही बहुत सोच समझकर अपनाते हैं जबकि वहाँ सामाजिक दबाव ना के बराबर हैं.और आप कानून की दुहाई दे रही हैं तो वह भी तलाक को टालने की हरसंभव कोशिश करता हैं.मेरा मानना हैं कि इसमें किसीका दखल नहीं होना चाहिए जो पति पत्नी को ठीक लगे वो करें.आप चाहती हैं कि विवाह को बनाए रखने का दबाव नहीं होना चाहिए तो मैं कहूँगा विवाह को तोडने का दबाव भी उन पर नहीं होना चाहिए.उन्हें खुद फैसला करने दिया जाए.और नार्वे के कानून के बारे में क्या कहूँ इन लोगों को ये भी नहीं पता हैं कि पति पत्नी में यदि मतभेद हैं या माँ को कोई मानसिक बीमारी है तो भी इनका दूसरा इलाज हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं हैं कि उनसे उनके बच्चे ही छीन लिए जाएँ वो भी अठारह वर्ष की आयु तक.ऐसे बचकाने कानून को यदि दुनिया के सभी देश मानने लग जाए तो दुनिया में हाहाकार मच जाएगा.लोग तो बच्चे पैदा करना ही बंद कर देंगे.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-4531853297195990782012-03-22T16:41:51.118+05:302012-03-22T16:41:51.118+05:30bachcho ko vapas laanae ki baat hamesha naanaa naa...bachcho ko vapas laanae ki baat hamesha naanaa naani ne kahi haen jaesa maene smaachar mae padhaa haen <br /><br />is kae peechhae bahut see baatae ho saktee haen <br />ho saktaa haen unkae vaaris ho yae bachchae <br />ho saktaa haen unko lag rahaa ho bachcho kaa pitaa divorce chahtaa haen maa nahin <br /><br />aur sabsae badii baat bhartiyae kanun me bachchae maa kae adhikaar me rahegae to "maintenance" kaa kharcha bhi pitaa ko dena hogaa <br /><br />is case ko mae follow karugi aur jaese hi kuchh niskarsh hoga phir is par charcha karugiरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-40237908367879130262012-03-22T16:37:12.689+05:302012-03-22T16:37:12.689+05:30राजन
इस पोस्ट को लिखने के दो मकसद हैं
एक ये बतान...राजन <br />इस पोस्ट को लिखने के दो मकसद हैं <br />एक ये बताना की झूठ बोला हैं इस दंपत्ति ने <br />दो बच्चो के साथ उनकी मानसिक रूप से बीमार माँ गलत व्यवहार करती थी और यही मूल कारण हैं बच्चों को फोस्टर कएर में रखने का <br /><br />आज दंपत्ति डिवोर्स चाहते हैं पर समाज के डर से नहीं ले पाते , निभा लो की सीख समाज देता हैं लेकिन खामियाजा सबसे ज्यादा बच्चे उठाते हैं . लोग कहते हैं हमने बच्चो के लिये अपनी जिन्दगी लगा दी ऐसे व्यक्ति के साथ अपना जीवन बीता दिया जो मन माफिक नहीं था पर क्या ये हैं सही वास्तविकता . <br /><br />इस पूरी घटना मे अब पिता खुद कह रहा बच्चे नोर्वे में ही रहे तो ठीक हैं भारत का कानून उनको माँ को सौप देगा और बच्चो के लिये गलत होगा . क्या पिता को ये पिछले ८ महीने से नहीं पता था <br /><br />बाकी एक बात ध्यान दे समाज अपने व्यवहार से कानून लाता हैं , कानून सामाजिक व्यवस्था की ही देन होते हैं फिर उनको न मान कर समाज कैसे अपना भला कर सकता हैं ??? <br />और कानून हर पुरानी बात जो इस समय किसी भी कारण से गलत प्रतीत होती हैं उनके लिये बनाया जाता हैं <br />कानून से सामाजिक व्यवस्था सुधरती हैं लेकिन अगर समाज उन कानून को माने तोरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61264959054857755602012-03-22T05:36:01.603+05:302012-03-22T05:36:01.603+05:30बाते तो सही हैं...... खास कर विदेशों में क़ानून को...बाते तो सही हैं...... खास कर विदेशों में क़ानून को लेकर आपके विचार सटीक हैं ..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-31361720240415161132012-03-22T00:57:39.820+05:302012-03-22T00:57:39.820+05:30रचना जी,मुझे ये बात समझ में नहीं आती कि आपको ऐसा क...रचना जी,मुझे ये बात समझ में नहीं आती कि आपको ऐसा क्यों लगता हैं कि कानून समाज के लिए नहीं बल्कि समाज कानून के लिए होता हैं.मैंने पहले भी कहा था कि कानून की भूमिका से इंकार नहीं हैं लेकिन कानून कैसे हों इसको लेकर सबके विचार अलग अलग हो सकते हैं साथ ही मैंने ये भी कहा था कि कानून हमेशा सही नहीं होता घरेलू हिंसा का उदाहरण देकर इस बात को समाझाया भी था.<br />बच्चों के लिए कानून बनें इससे कौन इंकार कर सकता हैं.लेकिन ऐसा कोई कानून कि बच्चे को हाथ से खिलाने,उसके साथ सोने या अच्छे कपडे या अच्छे खिलौने न होने की वजह से ही उसे माँ बाप से छीनकर अठारह सालों तक अलग रखा जाए तो ऐसे मूर्खतापूर्ण कानून का मैं तो विरोध करूँगा भले ही कानून भारत सरकार बनाएँ या फिर खुद भगवान(यदि कहीं हैं तो) ही क्यों न बनाएँ.और ऐसा नहीं हैं कि पश्चिम में सब लोग ही हर कैसे कानून को मान ही लेते हों.नार्वे में बच्चों के लिए बने ऐसे कानूनों का विरोध होता रहा हैं यहाँ तक कि अमेरिका जैसे देश में भी बच्चों के लिए शुरु कि गई हेल्पलाइन का अभिभावक विरोध करते रहे हैं क्योंकि इससे पेरेंट्स की समस्याएँ बढ ही रही हैं. <br />हाँ राज्य यदि गरीब माँ बाप के बच्चों की आर्थिक मदद करने का कोई कानून लाए और इस पैसे को बच्चों पर खर्च करने को बाध्य करें तो ऐसे किसी भी कदम का स्वागत हैं हालाँकि मैं आपकी इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ कि बच्चों पर अच्छा खर्च करना मात्र ही अच्छी परवरिश करना होता हैं.जहाँ तक बात हैं भारतीयों के कंजूस होने की तो इतने बडे देश में हर तरह के लोग होंगे और आप ऐसा कोई स्पष्ट विभाजन नहीं कर सकती पश्चिम में भी बहुत से लोग फिजूलखर्च हैं तो बहुत से कंजूस भी.लेकिन वो यदि केवल भारतीय को ही कंजूस समझते हैं तो ये उनकी गलतफहमी हैं.<br />वैसे मैंने आपकी एक पोस्ट पर ये भी कहा था कि अब भारत में बच्चों का पालन पोषण करने के तरीकों में पहले की अपेक्षा कहीं सकारात्म बदलाव आए हैं.अब बच्चों की पिटाई पहले की तुलना में बहुत कम की जाती हैं उनकी इच्छाओं का ध्यान पहले से ज्यादा रखा जाता है लडके लडकी में भेद भी खासकर शहरी मध्यमवर्गीय परिवारों में पहले की तुलना में कम हुआ हैं.ये सारा बदलाव शिक्षा व सूचना के क्षेत्र में वृद्धि के कारण आया है.किसी कानून की इसमें कोई भूमिका नहीं रही हैं.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-69797989894828597052012-03-21T23:28:59.490+05:302012-03-21T23:28:59.490+05:30रचना जी,
रुकिये तो सही!
इतनी जल्दी भी क्या हैं निर...रचना जी,<br />रुकिये तो सही!<br />इतनी जल्दी भी क्या हैं निर्णय सुनाने की.जरा हमारी भी तो सुन लीजिए.<br />@मेरी आशंका निर्मूल नहीं साबित हुई।आज बच्चो की पिता ने खुद कहा हैं वो चाहता हैं की बच्चे नोर्वे में रहे और अब इस के लिये उसने अपनी पत्नी को मनोरोगी कह दिया हैं।<br /><br />उस आदमी ने ये बात कही हैं या आप ऐसा कह रही हैं?<br />चलिए पहले इसे ही साफ कर देता हूँ.जागरण की ये खबर देखें.इसमें बताया गया हैं कि उस आदमी ने पत्नी के मनोरोगी होने की बात क्यों छिपाई,बच्चों को पाने के लिए या उन्हें जानबूझकर अपने से दूर रखने के लिए ताकि उसे बच्चों का खर्च न उठाना पडे(जैसा आप कह रही है.).इसे पढें और यदि लिंक न खुले तो इसे ही एड्रेस बार में पेस्ट करें-<br />http://www.jagran.com/news/national-norway-custody-row-father-does-not-want-children-to-return-to-india-9037377.html<br />वैसे उसकी बात में दम भी हैं जरा सोचिये यदि वह पहले ही अपनी पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य की बात स्वीकार कर लेता तब क्या नार्वे सरकार के सामने उसका बच्चों को लेकर दावा कमजोर नहीं पड जाता बल्कि तब तो सारी संभावनाएँ ही खत्म हो जाती यही नहीं वह जानता था कि ये बात उसने पहले जाहिर कर दी तो भारत सरकार का भी सहयोग उसे नहीं मिलेगा जैसा कि अब सच में हो भी रहा हैं.भारत सरकार अब आनाकानी करेगी.इसलिए यदि उसने बच्चे पाने के लिए ये बात छुपाई तो इसमें कोई दोष नजर नहीं आता.और हाँ बच्चों के पिता ने इस बात से साफ इंकार कर दिया हैं कि उसने बच्चों के नार्वे में ही रहने की इच्छा जताई थी.<br />लेकिन मुझे हैरानी हैं कि आप ये कैसे मान रही हैं कि इन बच्चों का पिता इस बात से खुश था कि उसे बच्चों का खर्च नहीं उठाना पड रहा.यदि ऐसा ही था तो उसे बच्चों को छुडाने का कोई भी प्रयास करने की जरुरत ही नहीं थी यहाँ तक कि भारत सरकार से अनुरोध करने की भी कोई जरूरत नहीं थी.लेकिन अब चूँकि उसे लगा कि ये बात भारतीय प्रतिनिधियों के वहाँ पहुँचने पर सामने आनी ही हैं तो उसे मजबूरी में बताना ही पडा.और वैसे भी कानूनन तलाक यदि लेना पडा तो ये बात बतानी ही पडती.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-72737338188048532822012-03-21T23:13:07.321+05:302012-03-21T23:13:07.321+05:30रचना जी,
रुकिये तो सही!
इतनी जल्दी भी क्या हैं निर...रचना जी,<br />रुकिये तो सही!<br />इतनी जल्दी भी क्या हैं निर्णय सुनाने की.जरा हमारी भी तो सुन लीजिए.<br />@मेरी आशंका निर्मूल नहीं साबित हुई।आज बच्चो की पिता ने खुद कहा हैं वो चाहता हैं की बच्चे नोर्वे में रहे और अब इस के लिये उसने अपनी पत्नी को मनोरोगी कह दिया हैं।<br /><br />उस आदमी ने ये बात कही हैं या आप ऐसा कह रही हैं?<br />चलिए पहले इसे ही साफ कर देता हूँ.जागरण की ये खबर देखें.इसमें बताया गया हैं कि उस आदमी ने पत्नी के मनोरोगी होने की बात क्यों छिपाई,बच्चों को पाने के लिए या उन्हें जानबूझकर अपने से दूर रखने के लिए ताकि उसे बच्चों का खर्च न उठाना पडे(जैसा आप कह रही है.).इसे पढें और यदि लिंक न खुले तो इसे ही एड्रेस बार में पेस्ट करें-<br />http://www.jagran.com/news/national-norway-custody-row-father-does-not-want-children-to-return-to-india-9037377.html<br />वैसे उसकी बात में दम भी हैं जरा सोचिये यदि वह पहले ही अपनी पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य की बात स्वीकार कर लेता तब क्या नार्वे सरकार के सामने उसका बच्चों को लेकर दावा कमजोर नहीं पड जाता बल्कि तब तो सारी संभावनाएँ ही खत्म हो जाती यही नहीं वह जानता था कि ये बात उसने पहले जाहिर कर दी तो भारत सरकार का भी सहयोग उसे नहीं मिलेगा जैसा कि अब सच में हो भी रहा हैं.भारत सरकार अब आनाकानी करेगी.इसलिए यदि उसने बच्चे पाने के लिए ये बात छुपाई तो इसमें कोई दोष नजर नहीं आता.और हाँ बच्चों के पिता ने इस बात से साफ इंकार कर दिया हैं कि उसने बच्चों के नार्वे में ही रहने की इच्छा जताई थी.<br />लेकिन मुझे हैरानी हैं कि आप ये कैसे मान रही हैं कि इन बच्चों का पिता इस बात से खुश था कि उसे बच्चों का खर्च नहीं उठाना पड रहा.यदि ऐसा ही था तो उसे बच्चों को छुडाने का कोई भी प्रयास करने की जरुरत ही नहीं थी यहाँ तक कि भारत सरकार से अनुरोध करने की भी कोई जरूरत नहीं थी.लेकिन अब चूँकि उसे लगा कि ये बात भारतीय प्रतिनिधियों के वहाँ पहुँचने पर सामने आनी ही हैं तो उसे मजबूरी में बताना ही पडा.और वैसे भी कानूनन तलाक यदि लेना पडा तो ये बात बतानी ही पडती.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-88467428049949875572012-03-21T22:24:32.761+05:302012-03-21T22:24:32.761+05:30विचारणीय.विचारणीय.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.com