tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post6592130999811803902..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: आस्था और पाखण्डरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-76250544251396946272010-10-29T09:52:42.023+05:302010-10-29T09:52:42.023+05:30शब्द था 'इन रोगों की दवा' लेकिन दावा छप गय...शब्द था 'इन रोगों की दवा' लेकिन दावा छप गया है | नरेशdaddudarshanhttps://www.blogger.com/profile/11283228649319562916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-30183564414738174602010-10-29T09:47:48.217+05:302010-10-29T09:47:48.217+05:30हम जिस रास्ते को चलने के लिए चुनते हैं ,तो लाजमी ह...हम जिस रास्ते को चलने के लिए चुनते हैं ,तो लाजमी है किउन सभी चीजों से रू-ब-रू होना पड़ेगा जो उस रास्ते पर विद्यमान हैं | अब कौन खरा है ,कौन खोटा है ;इसका फैसला तो <br /><br />वे पैमाने या मानक करते हैं ,जो इसकी पहिचान के लिए बनाये गए हैं |एक गुरू के जागरूक शिष्यों ने सवाल किया कि "भगवन आपके रहते तो हमें सत-असत का पता चल रहा है ,पर जब आप नहीं होंगे तो हम कैसे पहिचानेंगे ?" गुरू ने कहा " यही वो सोच है जो हमें भीड़ से अलग करती है ,हम तुम्हें एक सम्यक-द्रष्टि देने कि कोशिश कर रहे हैं जो सत-असत को पहिचानेगी |" सम्यक-दृष्टि विवेक के जागृत होने के बाद आती है |विवेक चिंतन-मनन के जागता है | चिंतन ,जिजीविषा यानि जिज्ञाषा के वशीभूत है और जिज्ञाषा मनुष्य के पैदा होते ही घेर लेती है | खैर!<br /><br />आस्था को भय और लाचारी जैसे मानसिक-रोगों का पर्याय होना चाहिए था ,लेकिन दुर्भाग्य आस्था की पहिचान इन रोगों की दावा के रूप में होती है | आस्था अपने-आप में अधूरा शब्द है ,इसके पूरक स्वार्थ और अंधापन है | 'आस्था' भय और अनिष्ट-की-आशंका के गर्भ-नाल से पैदा होती है | विवेक को इसका अंधापन देख नहीं पाता है | पाखण्ड की जड़ें आस्था में होतीं हैं , खाद-पानी इसे आस्था से मिलाता है |आस्था और पाखण्ड का वर्गीकरण किया जा सकता है ,लेकिन दोनों जुड़वाँ ही जिन्दा रहतीं हैं | कमल कीचड़ से पैदा होता है ,यदि विवेक है तो पहिचान सकते हैं कि यहाँ तक कमल है और यहाँ से कीचड़;पर इनको अलग करना कमल के अस्तित्व को खतरे में डालने से कम नहीं | भगवान का रूप आदमी जैसा हो ये आदमी के भय और अनिष्ट कि आशंका ने गढ़ा| क्यों कि उनसे वरदान जो लेना है ,उनसे अपनी रक्षा जो करवानी है |यदि भगवान गधा के रूप में होते तो धेंचूं -धेंचूं में पता ही न चलता कि वरदान दे रहे हैं या गन्दी-गन्दी गालियाँ |हमारी रक्षा क्या करते जब अपनी रक्षा करने में अक्षम |<br /><br /> नरेश 'गौतम'daddudarshanhttps://www.blogger.com/profile/11283228649319562916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-79107527784124303582010-10-28T11:59:45.777+05:302010-10-28T11:59:45.777+05:30Achhi prastuti ke liye dhanyavaadAchhi prastuti ke liye dhanyavaadकविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-31328100335681939362010-10-28T09:09:52.078+05:302010-10-28T09:09:52.078+05:30sahi kaha aapnesahi kaha aapneसंजय कुमार चौरसियाhttps://www.blogger.com/profile/06844178233743353853noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-77097110070538908742010-10-27T23:47:30.821+05:302010-10-27T23:47:30.821+05:30मुझे किसी धर्म में कोई आस्था नहीं है. जन्म से हिन्...मुझे किसी धर्म में कोई आस्था नहीं है. जन्म से हिन्दू हूँ तो हूँ. पर ये मानती हूँ कि और लोगों की आस्था होती है किसी धर्म में तो होने दिया जाए और उनका सम्मान किया जाय. मेरे ख्याल से धर्म और आस्था किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला होता है, उसके विषय में बहस नहीं की जा सकती. पर आपने यहाँ बड़े सीधे-सादे ढंग से आस्था और पाखण्ड में अंतर समझाने की कोशिश की है. अच्छा लगा.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57165047791495960922010-10-27T15:38:39.649+05:302010-10-27T15:38:39.649+05:30व्यक्ति आस्था और पाखंड में भेद कर ले तब तो कोई समस...व्यक्ति आस्था और पाखंड में भेद कर ले तब तो कोई समस्या ही न बचे..परन्तु यह इतना भी सहज और सरल नहीं होता.इसलिए परेशानी बनी रहती है...<br />आपने जो भेद किये शत प्रतिशत सहमत नहीं हुआ जा सकता सबसे...लेकिन यह भी सत्य है कि किसी भी रीती रिवाजों के सभी पक्षों को देखकर,उसमे से कल्याणकारी बातों को छांटकर लोगों को ग्रहण करना चाहिए और आडम्बर से यत्न करके दूर रहना चाहिए....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-41546765415022358292010-10-27T14:48:17.029+05:302010-10-27T14:48:17.029+05:30रचना जी,
क्या आस्तिक क्या नास्तिक क्या हि...रचना जी,<br /> क्या आस्तिक क्या नास्तिक क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी आपकी इन बातों को समझ जाए तो शायद कहीं कोई समस्या ही ना रहे.परन्तु एक बात और बताना चाहता हूँ की आमतौर पर नास्तिक दूसरों की भावनाओं का ख़याल ज्यादा रखते है.आपके ही ब्लॉग पर नवरात्रों के समय एक पोस्ट दुर्गा को लेकर आई थी वहां मैं कहना चाहता था की हम बार बार स्त्री शक्ति के संधर्भ में दुर्गा का नाम लेकर कही उसी देवत्व को महिमामंडित तो नहीं कर रहे जिसकी परिणीती स्त्री को सिर्फ पूज्य बनाने में होती है.और वह अपनी वास्तविक शक्तियों को नहीं पहचान पाती.परन्तु मुझे लगा की मेरी बात से लेखिका की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है इसलिए आधी ही बात कह पाया.अब भी ये सब यहाँ इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है की लोगों में नास्तिकों के बारे में ये भ्रान्ति है की वे दूसरों की भावनाओं का ख़याल नहीं रखते.माफ़ कीजियेगा टिपण्णी थोड़ी लम्बी हो गई है परन्तु ये जरुरी लगा.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-77721350536695880062010-10-27T14:09:09.447+05:302010-10-27T14:09:09.447+05:30aapne aastha our andhviswaas ke beech kee rekha ko...aapne aastha our andhviswaas ke beech kee rekha ko badhiya dhang se spast kiya hai...aabhaar.arvindhttps://www.blogger.com/profile/15562030349519088493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-51611962123958535602010-10-27T09:05:55.589+05:302010-10-27T09:05:55.589+05:30पुनर्जन्म मेरे भाई का हो चुका है, इसलिये मैं इसे प...पुनर्जन्म मेरे भाई का हो चुका है, इसलिये मैं इसे पाखण्ड नहीं मानता. दौड़कर न जाते तो पता भी नहीं चलता..भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.com