tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post5821217210955747440..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: हम नारी को देवी मानते हैं जिसकी मूर्ति को हम जब चाहते हैं खंडित करके विसर्जित कर देते हैं रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-24974691537251953162012-12-23T14:18:39.448+05:302012-12-23T14:18:39.448+05:30रचना जी,आपकी पोस्ट में जहाँ जहाँ भी व्यंग्य है मैं...रचना जी,आपकी पोस्ट में जहाँ जहाँ भी व्यंग्य है मैं उन्हें पकड पाया हूँ।लेकिन टिप्पणी में आपको जवाब नहीं दे रहा था बल्कि तथ्य बता रहा था।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57711933683600179312012-12-23T11:49:04.858+05:302012-12-23T11:49:04.858+05:30शर्मसार हैं सब पुरुष, ये समाज ओर देश जो ऐसे अमानवी...शर्मसार हैं सब पुरुष, ये समाज ओर देश जो ऐसे अमानवीय कृत्य को रोकने में समर्थ नहीं है ... ऐसे दरिंदों को फांसी ओर फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिये १-२ साल में फांसी हो ... घर स्कूल में लड़कों को सही शिक्षा दि जाए ... नारी का सम्मान आदर ओर सामान हक देने की घुट्टी पिलाए जाए ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-25882459808076533112012-12-23T11:29:46.972+05:302012-12-23T11:29:46.972+05:30आप को अपने ब्लॉग पर हुई वो राजकुमारी और मेढक की बह...आप को अपने ब्लॉग पर हुई वो राजकुमारी और मेढक की बहस याद आगयी होंगी . एक बार वो पूरा प्रकरण पढ़े दुबारा और नयी पोस्ट दे . रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-26783433655733232472012-12-23T11:28:25.415+05:302012-12-23T11:28:25.415+05:30राजन
विज्ञान की तरक्की की जो बात मेने कही हैं वो ...राजन <br />विज्ञान की तरक्की की जो बात मेने कही हैं वो महज और महज एक सटायर हैं की हम कितना खुश हो रहे हैं की विज्ञान की प्रगति पर लेकिन जो रेप हुआ हैं वो मानसिकता वही हैं , कल उस लड़की को विज्ञान नए अंग दे सकता हैं , शीला दीक्षित उसको विदेश भेज कर करवा देंगी पर क्या ये खुश होने की बात हैं ??? आप ने उस व्यंग को पकड़ा नहीं . रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-70958667440966066262012-12-23T10:37:05.790+05:302012-12-23T10:37:05.790+05:30मुक्ति ३४ साल पहले भी यही आक्रोश था सड़को पर , कॉले...मुक्ति ३४ साल पहले भी यही आक्रोश था सड़को पर , कॉलेज से लेकर गवर्नर के यहाँ तक हुजूम था लेकिन क्या फरक पडा , कुछ नहीं , क्युकी मानसिकता वही हैं की औरत का शरीर पुरुष की मर्दानगी को साबित करने का जरिया हैं <br /><br />इस ब्लॉग जगत में एक बहस की थी कन्यादान के खिलाफ , एक बहस थी रंडापा टाईप स्यापा के खिलाफ , एक बहस थी ब्लोगारा के खिलाफ , और एक बहस हुई थी सलूट वाक पर , एक बहस हुई थी पिंक चड्ढी पर और हर बहस के अंत में हमें ही गालियाँ मिली थी <br />और पुरुषो की बात क्यूँ करते हैं यहाँ सब , औरते खुद इन मुजरिमों को अपने घर में पनाह देती हैं . इस ब्लॉग जगत में एक औरत को एक ब्लोगर माँ कह कर उसी के ब्लॉग पर कमेन्ट में माँ टेरीसा को गाली देता , और उसको पनाह दी जाती<br />यही ब्लॉग जगत में एक ब्लॉगर को कतहि कुतिया कहा जाता हैं और कहने वाला आज ब्लॉग जगत में अपील कर रहा हैं नये साल में महिला उत्पीडन के खिलाफ लिखने के लिये <br />लोग पुलिस को दोष देते हैं , लेकिन अपने को नहीं देखते . <br />पति घर में मेड के साथ यौन शोषण करता हैं पत्नी मेड को दोषी मानती हैं , बेटे को माँ बेटी से ज्यादा छुट देती हैं , पिता बेटी का बलात्कार करता हैं माँ छुपाती हैं <br />क्या क्या बदलोगी मुक्ति क्या क्या , ३४ साल से कुछ नहीं बदला अभी तो सदियाँ बीत जाएगी . अभी कल ही एक महिला ब्लोग्गर की पोस्ट हैं की बेचारे बेटे करके , उन्हे इस माहोल में भी बेटे के अधिकार दिख रहे हैं रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-43381415727550110962012-12-23T09:02:32.308+05:302012-12-23T09:02:32.308+05:30रचना जी, जब हम, आप और बहुत सी स्त्रियाँ चिल्ला-चिल...रचना जी, जब हम, आप और बहुत सी स्त्रियाँ चिल्ला-चिल्लाकर कहती रहती थीं कि समाज में औरतों के प्रति दोयम नजरिये का परिणाम औरतें रोज़ भुगतती हैं, तो कोई नहीं सुनता था. आज जब लोग सड़कों पर हैं, तो मेरी एक जूनियर ने पूछा कि 'दीदी, क्या इनलोगों की नींद खुलने के लिए उस लड़की की बलि चढनी ज़रूरी थी? क्या बिना पानी सर के ऊपर पहुँचे लोगों को नहीं जगाया जा सकता?' तो मैं निरुत्तर थी. <br />जवाब वही कि हम तो कोशिश करते रहते हैं बताने की कि हम महिलाएँ किन-किन परिस्थितियों का सामना करती हैं और अपने स्तर पर कोशिश करती रहती हैं कि हमारी अगली पीढ़ी को वो सब न झेलना पड़े. पर फर्क कहाँ पड़ता है? न तब पड़ता था, न अब पड़ता है. फर्क पड़ने के लिए पानी के सर से ऊपर निकलने का इंतज़ार किया जाता है.<br />ये लोग जो सड़कों पर आज निकले हैं, 34 साल पहले निकलते तो क्या इस लड़की के साथ जो हुआ, वो होता?muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-23829385857376428122012-12-22T23:31:42.883+05:302012-12-22T23:31:42.883+05:30.
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रचना जी,
आपका और बाकी सभी का भी, यह आक्रोश ....<br />.<br />.<br />रचना जी,<br /><br />आपका और बाकी सभी का भी, यह आक्रोश जायज है... यह एक ऐसा मौका है जब मुझे अपने पुरूष होने व सार्थक कुछ कह-कर पाने की असमर्थता पर शर्म आ रही है।<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-76566420645413673402012-12-22T23:04:30.115+05:302012-12-22T23:04:30.115+05:30आज कुछ कहने की स्थिति में नहीं फिर भी पुरुष होने क...आज कुछ कहने की स्थिति में नहीं फिर भी पुरुष होने के प्रायश्चित स्वरूप मन की बात कहूँगा .... ऐसा लगता है ... पूरी पुरुष जाति कलंकित हो चुकी है इस घटना से। और मैं भी उस वर्ग का हिस्सा हूँ जो शर्मसार है। आँखों में आँसू हैं और मन की पीड़ा अपने मौजूदगी को इतना धिक्कारती है और अवचेतन में एक ही बात रह-रहकर आती है कि किस असभ्य समाज में तेरा जन्म हुआ है। पहले बहुत इतराता था कि मैं पूरे विश्व में 'भारत' नामक देश में पैदा हुआ ... 'जिसकी संस्कृति में स्त्रियों को गरिमापूर्ण स्थिति रही, पूरा मान दिया गया, जो विश्वगुरु रहा, वेदों की भूमि रहा आदि आदि।' लेकिन जब इस जैसे दुष्कर्मों की गंदगी ज़ाहिर हुई तब जान गया समाज का दूसरा पक्ष घिनौना भी है। बहुत समय तक उजले पक्ष पर ही मोहिता था इसलिए दूसरा पक्ष देख ही न सका। खुद के मन के कुविचारों से जरूर परिचित था। समाज की एक भाषा में स्त्रियों के अपमान वाली गाली-गलौज से भी परिचित था। लेकिन पुरुष का स्त्रियों के प्रति इतना अमानवीय व्यवहार (पाशविक व्यवहार से भी बदतर) कल्पना में भी नहीं था। <br /><br />आपको अधिकार है युगों से चली आ रही स्त्रियों के प्रति पुरुषवादी संकीर्ण सोच पर वाचिक चाबुक चलाने का। <br /><br />आप अत्यंत आत्मीयता से पूरी सूचनाएं दे रहें हैं और हमारी ऊँघती हुई संवेदनशीलता को बार-भार झकझोर दे रही हैं। आप वर्षों से उस कटु सत्य से परिचित हैं जिसे हम तब जान पाते हैं जब कोई घटना का सचित्र वर्णन कर हमें बताता है। अब जरूर धिक्कारता हूँ अपनी सो-कॉल्ड संवेदनशीलता को जो स्त्रियों को केवल साज-सज्जा, शृंगार और सेवा से जोड़कर ही जानता था। उसके दुःख-दर्दों का उसका नसीब मानता था। लेकिन उसके आधे से अधिक दुःख-दर्द पुरुष द्वारा ही जुटाए गए हैं। कुछ सामाजिक बन्धनों के द्वारा, कुछ धर्म के अति-शिष्टाचार वाले कायदों से, कुछ तीज-त्योहारों के बहाने तो कुछ विरासत में मिलती आयी सीखों से। <br /><br /> <br /><br />आज केवल अपने को धिकारने आया हूँ यहाँ। ऐसा लग रहा है कि पूरे ब्लॉग परिवार में मातम है और सभी पुरुष शर्मसार होकर इधर-उधर छिपने के लिए कोना तलाश रहे हैं। <br /><br />जब पत्नी को यह घटना पता चली तो उसने गुस्से में भर कर मुझे कह दिया .... 'सभी आदमी कमीने होते हैं।' मैंने उसे स्वीकार लिया क्योंकि ऐसे अपराध में मैं कोई सफाई देने की स्थिति में नहीं था।' <br /><br />बाद में अपराधी को दंड देने पर हुई बातचीत में पत्नी के क्रोध ने अमानवीय तरीके को अपनाए जाने की बात की। लेकिन मेरा मानना था कि अपराधी को सार्वजनिक फांसी जरूर हो लेकिन अमानवीय तरीके से नहीं क्योंकि इससे समाज की असभ्य तस्वीर प्रस्तुत होती है। प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-26501382958024977812012-12-22T20:27:23.546+05:302012-12-22T20:27:23.546+05:30जब तक इन विकृत मानसिकता के लोगों में इस कृत्य के अ...जब तक इन विकृत मानसिकता के लोगों में इस कृत्य के अंजाम के प्रति खौफ पैदा नहीं होगा...तब तक यह यूहीं होते रहेंगे ......ज़रुरत है ऐसी सज़ा तज़बीज़ करने की जिससे इनकी रूह कापें ......Sarashttps://www.blogger.com/profile/04867240453217171166noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-86570371583382425792012-12-22T20:16:33.472+05:302012-12-22T20:16:33.472+05:30मन इतना व्यथित हो चुका है कि कुछ कहने का मन ही नही...मन इतना व्यथित हो चुका है कि कुछ कहने का मन ही नही होता …………अब तो अति हो चुकी है। vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-19912148684003128202012-12-22T19:56:23.831+05:302012-12-22T19:56:23.831+05:30यह समाज हमने ही बनाया है और वह समाज भी हमी को बनान...यह समाज हमने ही बनाया है और वह समाज भी हमी को बनाना होगा जहाँ ऐसी शर्मनाक घटनाएं न हों..कोई चमत्कार नहीं होगा। ईश्वर इस मामले में साथ देने से रहा। उसने दुनियाँ बना दी कैसे रहना है यह हमें ही तय करना होगा। देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-91900604545601989272012-12-22T19:32:45.279+05:302012-12-22T19:32:45.279+05:30फास्ट ट्रैक कोर्ट एक समाधान तो कहा जा सकता है, लेक...फास्ट ट्रैक कोर्ट एक समाधान तो कहा जा सकता है, लेकिन जब तक "पुरुषवादी" मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा, यह समस्या कम/अधिक स्वरूप में बनी रहेगी. फाँसी तो आसान सजा होगी उसके लिए, कुछ ऐसा दंड होना चाहिए कि बलात्कारी भी उस पीडित लड़की की तरह आजीवन भोगे... Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-40326920456869549392012-12-22T18:37:41.234+05:302012-12-22T18:37:41.234+05:30ये सब घटनायें, जब कि मैं अपने होने पर शर्मिंदा होत...ये सब घटनायें, जब कि मैं अपने होने पर शर्मिंदा होता हूं :(उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-46837224490432781732012-12-22T18:15:03.760+05:302012-12-22T18:15:03.760+05:30 हाँ रचना रंगा - बिल्ला फाँसी चढ़ा दिए जाने के बाद... हाँ रचना रंगा - बिल्ला फाँसी चढ़ा दिए जाने के बाद किसी ने सबक लिया क्या ? तब ऐसे सामने आते थे क्योंकि टीवी मीडिया विकसित रूप में न था लेकिन हम उनसे वाकिफ थे। आज तो अख़बार में रोज ही दुष्कर्म के किस्से सामने आते हैं और अपराधी कुछ दिन बाद बाहर घूम रहे होते हैं। फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट और सीमित समय में कठोर दंड का प्रावधान होने की लड़ाई शुरू हो चुकी है।<br />रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-28068391535419352622012-12-22T17:56:02.772+05:302012-12-22T17:56:02.772+05:30राजन ने बहुत सही बात कह दी है।
दरअसल मानसिकता बदल ...राजन ने बहुत सही बात कह दी है।<br />दरअसल मानसिकता बदल रही है, और उसी का परिणाम स्त्रियाँ भुगत रहीं हैं। कोई भी बदलाव इतनी आसानी से एक्सेप्ट नहीं होता है, किसी भी समाज में। आज जो इस तरह के हादसों में बढ़ोतरी हुई है, इसका एक कारण है, स्त्रियों का अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता। जिसे झेल पाने में दूसरा वर्ग सक्षम नहीं हो पाया है।<br />मानसिकता बदलने के लिए स्त्रियों को पूरा जोर लगाना होगा, उन्हें अपनी बेटियों को सक्षम बनाना होगा, बेटियों को 'आत्मकेंद्रित' नहीं विचारों से आधुनिका बनाना होगा। तभी बदलाव संभव है।स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-2784636375099273142012-12-22T17:19:26.104+05:302012-12-22T17:19:26.104+05:3034 साल क्या देखा जाए तो चौँतीस सौ सालों में भी कुछ...34 साल क्या देखा जाए तो चौँतीस सौ सालों में भी कुछ नहीं बदला है।और विज्ञान ने तरक्की भले की हो लेकिन हमने तो इसका भी गलत इस्तेमाल नारी के खिलाफ किया है आज भ्रूण हत्या करना कितना आसान हो गया है।विज्ञान की सहायता से एक को बचा भी रहे तो क्या लाखों को मार भी तो रहे हैं।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-89388691099632690662012-12-22T15:47:14.219+05:302012-12-22T15:47:14.219+05:30अब कुछ कहने सोचने का वक़्त नहीं सहनशीलता ख़त्म ,कु...अब कुछ कहने सोचने का वक़्त नहीं सहनशीलता ख़त्म ,कुछ करने का वक़्त है ,जब तक इन कीड़ों को कुचला नहीं जाएगा ये आग नहीं बुझनी चाहिए हमारे बहुत सारे भाई ,बहन देश में इस मिशन पर लग गए हैं अब जरूरत है समाधान की जिससे जितना बन पड़े आवाज उठाओ आवाज को दबाएँ तो तलवार उठाओ !!!Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-26030282601227310932012-12-22T15:39:28.654+05:302012-12-22T15:39:28.654+05:30NO WORD TO EXPRESS OUR ANGER हम हिंदी चिट्ठाकार है...NO WORD TO EXPRESS OUR ANGER <a href="http://www.facebook.com/HINDIBLOGGERSPAGE" rel="nofollow">हम हिंदी चिट्ठाकार हैं </a>Shikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.com