tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post5150490091629678305..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: माँ , घर , बच्चेरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-66549941757125422852011-09-17T13:44:15.814+05:302011-09-17T13:44:15.814+05:30अपडेट
इस पोस्ट के अंशो से यहाँ पोस्ट बनाई गयी हैं
...अपडेट<br />इस पोस्ट के अंशो से यहाँ पोस्ट बनाई गयी हैं<br /><br />"क्या औरत की जिंदगी में विवाह का होना ज़रूरी है?"<br /><br />http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/09/blog-post_16.htmlरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-15824403488450064382011-09-16T17:41:59.270+05:302011-09-16T17:41:59.270+05:30रचना जी पहले सोचा वहीं कमेंट करूँ पर अब यहीं कर दे...रचना जी पहले सोचा वहीं कमेंट करूँ पर अब यहीं कर देता हूँ इसे आपकी नई पोस्ट मानकर.<br />@जहां आज़ादी का मतलब था वो सब ना करना जो कर रहे हैं .<br /> रचना जी आपने शायद मेरी बात का गलत मतलब निकाल लिया.मैं यदि ये कह रहा हूँ कि जो महिला बच्चे को जन्म नहीं देती तो ये उसका अधिकार है तब आपको लग रहा है कि मैं हर महिला को ऐसा ही करने को कह रहा हूँ और मान रहा हूँ कि ये ही महिला सशक्तिकरण भी है.नहीं ऐसा मैंने कभी नहीं कहा.और न ही नारीवाद ऐसा कह रहा है.अगर मैं कहता हूँ कि समलैंगिकों के प्रति हमें अपना नजरिया बदलना चाहिये तो क्या इसका मतलब ये है कि मैं बाकि सभी को भी समलैंगिक बना देना चाहता हूँ?रचना जी ये बात उतनी ही गलत है जितनी ये कि राहुल गाँधी अब परिपक्व और समझदार हो गये है.<br /> महिलाओं से जुडी हुई बातें उठाई जा रही है इसलिए इसे नारीवाद कहा जाता है.नारीवादियों में भी आपस में असहमति हो सकती है.हाँ कुछ गलत लोग भी जुडे हो सकते है.जैसे पश्चिम में कुछ महिलाओं ने नारीवाद के नाम पर ही ये कहना शुरु कर दिया कि महिलाओं को शारीरिक जरुरतों के लिए पुरुषों पर निर्भर रहने के बजाए आपस में ही संबंध बनाने पर जोर देना चाहिये.इस मूर्खतापूर्ण कदम का विरोध आम महिलाओं और नारीवादियों ने मिलकर किया.यदि कोई महिला मातृत्व विवाह के पक्ष में है तो उसे नारीवाद क्यों रोकने लगा.नारीवाद महिला की इच्छा को महत्तव देने की बात करता है.इस पोस्ट में मुक्ति जी की टिप्पणी सबसे अच्छी लगी.आपने कहा पहले महिला सशक्त हो जाए फिर जो चाहे करे.लेकिन महिला सशक्त होगी कैसे.मुक्ति जी ने रिश्तो के महिमामंडन के बारे में बिल्कुल सही कहा है.आज यदि कोई महिला सशक्त हो जाए या होने की कोशिश करे तो वह अच्छी पत्नी या अच्छी बेटी के दायरे से बाहर निकाल दी जाएगी.पत्नी है तो बहुत संभव है उसे इसकी बडी कीमत चुकानी पडे.क्या इस कीमत पर सशक्तिकरण चाहा था उसने जो आप कह रही है कि सशक्त होने के बाद जो चाहे करे.सशक्त महिला पर भी तो समाज के रवैये का असर पडता है.एक महिला जो हर तरह से आत्मनिर्भर है अपनी शर्तों पर जीती है लेकिन शहर कि किसी तंग गली से गुजरने से पहले महिला होने का एहसास हो जाता है तो इसका मतलब है कि वो सशक्त तो है पर समाज की मानसिकता का असर भी उस पर पड रहा है.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-92145104180957724072011-09-14T10:16:15.700+05:302011-09-14T10:16:15.700+05:30राजन
मैने सोचा था तुम्हारे सवालो से नयी पोस्ट बना ...राजन<br />मैने सोचा था तुम्हारे सवालो से नयी पोस्ट बना दूँ पर याद आया वो तो पहले ही दे चुकी हूँ<br />तुम ये पोस्ट दुबारा पढना http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/01/blog-post_08.html<br />असली में जिन बातो को तुम कह रहे हो वो सब शायद नारीवाद से जुड़ी हैं जहां आज़ादी का मतलब था वो सब ना करना जो कर रहे हैं . लेकिन सशक्तिकर्ण इस से ऊपर हैं जहां आर्थिक स्वतंत्रता से सशक्त बन कर जो चाहो वो कर सको यानी पहले सशक्त होना जरुरी हैं क्युकी वो आप को सब अधिकार खुद दिला देता हैं क्युकी आप किसी पर निर्भर नहीं होते अपनी लड़ाई के लिये .<br />अभी तो विवाहित स्त्री जो खुद कमाती नहीं वो ये निर्णय भी नहीं ले सकती हैं की वो आगर बच्चा ना चाहे तो अपना ओपरेशन करा ले क्युकी उसके लिये भी पैसा चाहिये .रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-22056484443380536972011-09-14T10:04:03.900+05:302011-09-14T10:04:03.900+05:30अंशुमाला
दत्तक कानून और उत्तरा अधिकार कानून कहीं न...अंशुमाला<br />दत्तक कानून और उत्तरा अधिकार कानून कहीं ना कहीं आपस में जुड़े हैं<br />विवाहित स्त्री बिना पति की सहमति के बच्चा नहीं ले सकती हैं क्युकी बहुत सी विवाहित स्त्रियाँ नौकरी नहीं करती यानी अपने बच्चे को आर्थिक सुरक्षा नहीं दे सकती हैं .<br />और जिस दिन किसी नौकरी पेशा विवाहित महिला को ऐसा लगेगा की उसको दत्तक बच्चा चाहिये तो वो कोर्ट में गुहार लगा कर अपनी आर्थिक क्षमता को प्रूव करके अपने लिये गुहार लगा कर कानून बदलवा लेगी<br />आप को ये भी बता दूँ की अगर सुष्मिता सेन शादी करती हैं तो उनकी लडकिया उस व्यक्ति की तब तक उत्तराधिकारी नहीं बनेगी जब तक वो भी उन्हे कानून गोद नहीं लेता . महज शादी करलेने से सुष्मिता के बच्चे उसके पति के नहीं हो जाते हैं . कुछ दिन पहले मैने दो तीन पोस्ट इन्हीं विषयों पर दी थी जिसमे दिनेश जी जो वकील हें उनकी पोस्ट का उल्लेख भी था .<br />और इसी विषय से जुड़ी बात हैं की अबोर्शन के लिए अब पति की सहमति आवश्यक नहीं रह गयी हैं .रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-68847512146595903332011-09-14T07:24:39.202+05:302011-09-14T07:24:39.202+05:30अंशुमाला जी,यदि कानून के नजरिये से देखें तो ये कोई...अंशुमाला जी,यदि कानून के नजरिये से देखें तो ये कोई विसंगति नहीं है.ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि बच्चे को गोद देने संबंधी नियम कानूनों में हर हाल में बच्चे का हित ही सबसे पहले देखा जाता है.शायद यही कारण है कि विवाहित महिला या पुरुष के माँ या पिता बनने की इच्छा पर आपसी सहमति को वरीयता दी गई है.पुरुष को भी पत्नी की अनुमती जरूरी होती है यदि पत्नी मानसिक रोगी नहीं है.लेकिन यदि सामाजिक नजरिये से देखें तो ये वास्तव में विसंगति ही है.क्योंकि महिलाओं की स्थिति अभी अच्छी नहीं है.कई नालायक पुरूष तो इसीलिए बच्चा लेने से इंकार कर देते होंगे कि ये दूसरे का खून है.यदि कानून बन जाए और इसका भरपूर प्रचार किया जाएँ तो पुरुष पहले ही ये मानकर चलेंगें कि उन्हें मना करने का अधिकार है ही नहीं और इसके लिए वो खुद ही अपने को मानसिक रूप से तैयार कर लेंगे.इसके अलावा तलाक का लंबा मुकदमा लडने वाली या सेपरेशन में रह रही महिला कौ भी पति की अनुमति बगैर बच्चा गोद लेने की अनुमती होनी चाहिये बाकि सारी शर्तें लागू हों.महिला की सामाजिक स्थिति को देखते हुए कुछ कानून उसीके पक्ष में थोडे ज्यादा झुके हुए होने चाहिए लेकिन समय समय पर इनकी समीक्षा होनी चाहिए (अरे वाह मैं तो कानून के जानकारों की तरह बात करने लगा :))<br />वैसे मैं अपनी सीमित जानकारी के आधार पर ही कह रहा हूँ.वास्तविक स्थिति अलग हो सकती है.रचना जी या कोई और कुछ बता सकें कि क्या होना चाहिये.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-69878987449397385512011-09-13T22:46:18.255+05:302011-09-13T22:46:18.255+05:30विवाह करना स्त्री और पुरुष दोनों के लिए ये नियति न...विवाह करना स्त्री और पुरुष दोनों के लिए ये नियति नहीं होनी चाहिए और माँ बनना भी | माँ बनना भावना के साथ ही जिम्मेदारी की बात भी जो नहीं करना चाहता उसे उसकी पूरी छुट मिलने चाहिए जैसा की रचना जी और राजन जी ने कहा की चुनने का अधिकार सभी के पास होना चाहिए चाहे स्त्री हो या पुरुष | इस बात से बिल्कुल सहमत हु की माँ बनना ( पिता बनना भी ) बस जन्म देने से नहीं जुड़ा है आज एकल माँ और पिता जो बच्चे गोद ले कर बने है की संख्या बढ़ रही है | किन्तु आज भी एक विवाहित महिला बिना पति के सहमती से बच्चा गोद नहीं ले सकती है | यदि किसी जोड़े को बच्चा नहीं हो रहा है और पत्नी बच्चा गोद लेना चाहे तो उसके लिए पति की सहमती जरुरी है यदि पति ना कह दे तो वो चाह कर भी कभी माँ नहीं बन पायेगी ऐसा क्यों है ये भी हमारे कानून में एक विसंगति है इसके लिए भी कम किया जाना चाहिए |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-15171813900986823122011-09-13T22:10:46.612+05:302011-09-13T22:10:46.612+05:30@ यानी हम को इतना सशक्त होना होगा की हम चुन सके की...@ यानी हम को इतना सशक्त होना होगा की हम चुन सके की हम क्या करना चाहते हैंमाँ बनना ना तो क़ोई बड़ी बात हैं और ना ही इसके लिये जनम देना ही आवश्यक हैं जो नहीं बनती या नहीं चाहती वोभी कमतर नहीं हैं जो .बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदलता हैं और जो लोग बदलते समय की आहट को नहीं पहचानतेवो अटक कर रह जाते हैं<br />यही...बस यही कहना चाहता था मैं.यदि समाज भी इस बात को समय रहते समझ ले तो कोई प्रश्न ही न रहे.नहीं तो इससे पहले उठने वाले सवालों को नहीं रोका जा सकता.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-44236522238054736672011-09-13T18:11:01.667+05:302011-09-13T18:11:01.667+05:30आपकी बातों से सहमत कि विवाह या माँ बनने का चुनाव ह...आपकी बातों से सहमत कि विवाह या माँ बनने का चुनाव हर व्यक्ति का अपना अधिकार है । जब आप विवाह कर लेते हैं तो ये अधिकार आप दूसरे व्यक्ति के साथ बांट लेते हैं ये केवल आपका अपना नही रह जाता । पर हमारे पुरुष प्रधान समाज में पुरुष का अधिकार हावी रहता है ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-27423310988355608252011-09-13T14:32:41.743+05:302011-09-13T14:32:41.743+05:30स्कूल के बच्चों की जिला स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगि...स्कूल के बच्चों की जिला स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है-<br />'घर के दैनिक कामकाज में माता-पिता दोनों की भूमिका समान होनी चाहिए'<br />आपके मूल्यवान विचारों का पक्ष या विपक्ष में योगदान अपेक्षित है।रोहित बिष्टhttps://www.blogger.com/profile/00332425652423964602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-84585134679209460832011-09-13T13:37:32.906+05:302011-09-13T13:37:32.906+05:30राजन
माँ शब्द केवल जनम देने की प्रक्रिया से जोड़...राजन <br />माँ शब्द केवल जनम देने की प्रक्रिया से जोड़ कर देखा जाता हैं जब की माँ शब्द की मेहता इस से बहुत बड़ी हैं .<br />मै नारी सश्क्तिकर्ण की बात करती हूँ और उसमे सबसे पहले ये समझना होगा की हम यानी स्त्री को किसी भी काम को इसलिये नहीं छोड़ना चाहिये की वो हमारा काम नहीं हैं , हम को अपना हर काम बेहतर से बेहतर करना चाहिये और उसके अलावा उन सब कामो को करने की चेष्टा करनी चाहिये जिनको लिंग के आधार पर पुरुषो के लिये माना जाता हैं यानी हम को इतना सशक्त होना होगा की हम चुन सके की हम क्या करना चाहते हैं<br />माँ बनना ना तो क़ोई बड़ी बात हैं और ना ही इसके लिये जनम देना ही आवश्यक हैं जो नहीं बनती या नहीं चाहती वो भी कमतर नहीं हैं जो .<br />बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदलता हैं और जो लोग बदलते समय की आहट को नहीं पहचानते वो अटक कर रह जाते हैं<br />चलो इस विषय पर पोस्ट ही लिखती हूँ जल्दीरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-91636513773001099552011-09-13T11:57:46.886+05:302011-09-13T11:57:46.886+05:30बेहतरीन प्रस्तुति ।बेहतरीन प्रस्तुति ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-45983936421882963962011-09-13T11:46:25.283+05:302011-09-13T11:46:25.283+05:30रचना जी,
स्पष्ट करने के लिए धन्यवाद.आपकी बात समझ र...रचना जी,<br />स्पष्ट करने के लिए धन्यवाद.आपकी बात समझ रहा हूँ.लेकिन बात तो आप महिला जीवन की सम्पूर्णता की कर रही थी.सुष्मिता के जिक्र के कारण आपका सवाल दरअसल ये हो गया-मातृत्व सुख विवाह के बिना भी सम्भव है या नहीं.जबकि मैं अभी भी ये पूछ रहा हूँ कि मातृत्व सुख के बिना भी महिला(जो ऐसा चाहती है) का जीवन सम्पूर्ण या सार्थक है या नही चाहे वो विवाहित हो अविवाहित.और अगर नहीं है तो ये बात पितृत्व के संबंध में पुरुषों पर लागू क्यों नही होती खासकर अविवाहित पुरुषों पर.वैसे तो सुष्मिता की लडाई ज्यादा मायने रखती है लेकिन उनके अलावा चंडीगढ की कल्पना डेनियल ने भी मातृत्व के अधिकार के लिए प्रयास किया था.तब भी ये कहा गया था कि माँ बनना यदि महिला का अधिकार है तो इसमें माँ न बनने का अधिकार अपने आप शामिल हो गया है.ये ही बात अविवाहित महिलाओं पर भी लागू होती है.सुष्मिता सेन के प्रयास से यदि अविवाहित महिलाओं को 'चुनने का अधिकार' मिला है तो 'न चुनने का अधिकार' भी मिला है और यदि नहीं मिला है तो मिलना चाहिये.लेकिन बात तो वही है कि इस संबंध में विवाहित और एक हद तक अविवाहित महिला की 'हा' को तो समाज स्वीकार करने को तैयार है लेकिन 'ना' को नहीं.जबकि पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं है.और बात केवल कानूनी अधिकारों की नहीं है समाज के रवैये की भी है तभी तो 'नारी' जैसे प्रयास हो रहे है वर्ना कानून तो महिला पुरुष को समान मान ही रहा है.नहीं मैं ये नहीं कहता कि जो माँ है उससे ये पूछा जाए कि वो माँ क्यों है लेकिन जो माँ नहीं है या नहीं बनना चाहती उससे भी ये न पूछा जाऐं की वो माँ क्यों नहीं है क्योंकि ये उसके अधिकार पर प्रश्न ही नहीं लगाता वरन् उसे एक कमतरी का एहसास भी कराता है.अभी इसे मैं अन्ना के शब्दों मेँा आधी जीत कहूँगा.और ये बात मैं इसलिए भी कह रहा हूँ कि बिना शादी या बच्चों के रहने वाली महिलाओं की ठीक ठाक संख्या देश दुनिया में आज भी है और आप भी समझती है कि हमारे देश में भी आने वाले समय में ऐसी महिलाओं की संख्या और बढेगी.तब ये सवाल और भी उठेंगें.<br />हो सकता है आपकी पोस्ट से विषय थोडा अलग हो गया हो लेकिन ये प्रश्न मुझे जरूरी तो लगते है.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-44682832688942379402011-09-13T08:55:55.264+05:302011-09-13T08:55:55.264+05:30Rachna jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभका...Rachna jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...<br />आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...<br /><a href="http://neelkamaluvaach.blogspot.com/" rel="nofollow"> BINDAAS_BAATEN </a>कृपया यहाँ चटका लगाये<br /><a href="http://neelkamal5545.blogspot.com/" rel="nofollow"> MADHUR VAANI </a>कृपया यहाँ चटका लगाये<br /><a href="http://neelkamalkosir.blogspot.com/" rel="nofollow"> MITRA-MADHUR </a>कृपया यहाँ चटका लगायेNeelkamal Vaishnawhttps://www.blogger.com/profile/11181440546086719343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-14419633864713706132011-09-13T08:39:28.061+05:302011-09-13T08:39:28.061+05:30राजन
आप इस ब्लॉग के पाठक हैं और मै आप पर स्नेह भी ...राजन<br />आप इस ब्लॉग के पाठक हैं और मै आप पर स्नेह भी इसलिये रखती हूँ क्युकी जो मन आता हैं सन्दर्भ के अन्दर आप निसंकोच कह देते हैं<br />मै सुष्मिता सेन का सन्दर्भ शायद आप को समझा नहीं पायी<br />१९९४ से पहले किसी भी अविवाहित महिला को हमारा कानून बच्चे गोद लेने का अधिकार नहीं देता था . यानी अगर क़ोई स्त्री बिना शादी के बच्चा लेना चाहे { जो उसकी इच्छा हैं यानी चुनने का अधिकार } तो उसको ये अधिकार ही नहीं था . यानी माँ बनने के लिये "पुरुष " का उसके जीवन में होना बहुत जरुरी था . पुरुष के इस वर्चस्व को चुनौती दी सुष्मिता सेन ने और न्याय प्रणाली को मजबूर किया की वो स्त्री को उसका ये अधिकार दे .<br />ये एक प्रकार का क्रातिकारी कदम था जो एक महिला ने उठाया जो अविवाहित थी . इस लिये मेरी नज़र में उसने "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की " और इस लिये वो दूसरो से फरक हैं .<br />मै कभी ये नहीं कहती विवाह मत करो , लेकिन मै ये जरुर कहती हूँ की विवाह क़ोई नियति नहीं स्त्री के लिये .<br />उसी तरह बच्चो का सवाल हैं , बहुत से स्त्रियाँ बच्चे चाहती हैं पर शादी नहीं चाहती तो उनको इस अधिकार से क्यूँ वंचित होना चाहिये .<br />नारी सशक्तिकरण का अर्थ हैं हम इतने मजबूत हो की जो चाहे { कानून और संविधान के दायरे के अन्दर } वो ले सके .<br />हम ये नहीं कह सकते हैं की जो माँ हैं वो क्यूँ हैं क्युकी तब हम उनके चुनने के अधिकार पर ऊँगली उठा रहे हैं<br />अगर अब भी मेरी बात साफ़ ना हुई हो तो फिर प्रशन करिये मै कोशिश करुँगी की अपने लिखे को बेहतर समझा सकूँरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-44640578947351599342011-09-13T07:28:10.077+05:302011-09-13T07:28:10.077+05:30एक हमसफ़र और बच्चों का साथ स्त्री पुरुष के जीवन को...एक हमसफ़र और बच्चों का साथ स्त्री पुरुष के जीवन को आनंददायक बनाता है , मगर जो लोंग इसके बिना भी खुश है , रहना चाह्ते हैं , उन पर किसी प्रकार के दबाव को मैं अनुचित मानती हूँ .वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-3762659804283692872011-09-13T04:01:35.079+05:302011-09-13T04:01:35.079+05:30मातूत्व को महिला की सम्पूर्णता ही नहीं बल्कि समाज ...मातूत्व को महिला की सम्पूर्णता ही नहीं बल्कि समाज के प्रति एक जिम्मेदारी के रूप में भी देखा जाता है.यूँ तो विवाहित पुरुष की भी पिता के रुप में कुछ जिम्मेदारियाँ तय की गई हैं लेकिन कम से कम एक अविवाहित पुरुष को पितृत्व को लेकर उस तरह के सवालों का सामना नहीं करना पडता.न तो पुरुष को ये लगता है कि पिता न बनकर वह सम्पूर्ण होने से रह गया और न ही इस बात को लेकर उसे कोई ग्लानि महसूस होती है कि उसने अपने सामाजिक दायित्व नहीं निभाए क्योंकि उन पर कोई सामाजिक दबाव नहीं है.अविवाहित पुरुषों के संदर्भ में कभी ये क्यों नहीं कहा जाता कि देखो पिता तो तुम बच्चे को गोद लेकर भी बन सकते हो.<br />कहने का मतलब है कि माँ बनना न बनना महिला की इच्छा पर ही छोड दिया जाए चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित जैसा कि पुरुषों के मामले में भी है.और सामाजिक दायित्वों की जहाँ तक बात है तो ये कई दूसरे तरीकों से बिल्कुल निस्वार्थ भावना से(बच्चे गोद लेकर पालने में तो कोई अपना स्वार्थ भी हो सकता है) बहुत से अविवाहित भी निभाते ही है यदि वे सक्षम है तो.<br /> माँ बनने न बनने का अधिकार महिला को होना चाहिये ऐसे ही अविवाहित महिला को भी बच्चा गोद लेने न लेने का फैसला भी महिला का स्वयं का हो जैसे कि पुरुषों को भी है लेकिन किसी भी कारण से यदि बच्चों के बिना अधूरेपन या दायित्व निर्वहन संबंधी सवालों पर केवल महिला को अलग थलग जब तक महसूस कराया जाता है तब तक ये सवाल उठते रहेंगे.लगता है मैं कुछ ज्यादा ही कह गया हूँ आपको लगता है कि ये सब कहना सही नहीं तो ठीक है.आगे तो बढा ही जा सकता है.और भी कई मसले है उन पर बात करेंगें.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-26178789169003642702011-09-13T02:41:01.288+05:302011-09-13T02:41:01.288+05:30हाँ ये बात तो है रचना जी स्पष्ट बोलने के लिए ही जा...हाँ ये बात तो है रचना जी स्पष्ट बोलने के लिए ही जानी जाती है.और आमतौर पर अपनी छवि की चिंता नहीं करती.एक हद तक इस श्रेणी में मै सुरेश चिपलूनकर जी ओर प्रवीण शाह जी को भी रखता हूँ लेकिन फिर भी रचना जी की तुलना किसीसे नहीं की जा सकती उनके विरोधी भी इस बात को मानते है.हाँ कुछ मामलों मेँ असहमति अपनी जगह होती है.और क्या रचना जी को भी लगता है कि मुझे सच्चाई हजम करने में मुश्किल हो रही है?<br />खैर विषय पर आते है.मेरे कमेंट मैं जो सवाल है वो रचना जी के लिए ही नहीं है और न ही उसमें सुष्मिता सेन से मतलब सिर्फ सुष्मिता सेन है.ये बात रचना जी भी समझ रही होंगी.ये सवाल मैंने इसलिए पूछा कि जब हम कहते है कि मातृत्व ही महिला कि जिंदगी की सम्पूर्णता नहीं है तो इसका मतलब होता है कि बिना बच्चों के भी महिला का खुद का स्वतंत्र अस्तित्व है और बिना मातृत्व सुख या बच्चों के उसे अपने जीवन में कोई आधूरापन महसूस नहीं होता और यदि होता भी है तो ईसलिए क्योंकि मातृत्व को ही समाज ने महिमामंडित किया है और अब इस महिमामंडन से छुटकारा पाने की जरूरत है.लेकिन जब आप सुष्मिता सेन जैसे उदाहरण देकर ये बताते है कि देखो माँ तो ऐसे भी बना जा सकता है तो कहीं न कहीं आप भी मातृत्व का ही बखान कर रहे है और उसी पुरुषवादी समाज की सोच पर मोहर लगा रहे है कि बच्चों के बिना महिला को अपने जीवन में अधूरापन महसूस होता है.और इसके बाद ही महिल को किसी भी त्याग या समझौते के लिए तैयार किया जाता है.अभी और स्पष्ट करता हूँ...राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-5546044335799280322011-09-12T23:47:48.210+05:302011-09-12T23:47:48.210+05:30विचारणीय प्रश्न।विचारणीय प्रश्न।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61831334715552631932011-09-12T22:20:00.348+05:302011-09-12T22:20:00.348+05:30:)
impressive!
aur haan.. reactions bilkul expe...:)<br /><br />impressive! <br /><br />aur haan.. reactions bilkul expected the.. ab sacchai hajam hone me mushkile to hoti hi hain.... lekin lekin hats off ki aap itna spasht bol bhi leti hain aur reactions jhelne ko bhi taiyar!Rashmi Swaroophttps://www.blogger.com/profile/14615276585404778659noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-39044260434932765912011-09-12T21:23:05.722+05:302011-09-12T21:23:05.722+05:30सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
देत बधाई प्रेम से, ...सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |<br />देत बधाई प्रेम से, हो प्रस्तुति-अविराम ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-14913490926134529402011-09-12T20:44:21.360+05:302011-09-12T20:44:21.360+05:30मुझे कविता अच्छी लगी. और भाव भी. वैसे इन चीजों का ...मुझे कविता अच्छी लगी. और भाव भी. वैसे इन चीजों का चलन अब धीरे धीरे कम होता जा रहा है.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-13140980888029468832011-09-12T20:38:49.390+05:302011-09-12T20:38:49.390+05:30चूड़ी, बिंदी , सिंदूर और बिछिये से सजायेगे
जिस दिन...चूड़ी, बिंदी , सिंदूर और बिछिये से सजायेगे<br />जिस दिन हम जायेगे<br />उस दिन नारी से ये सब भी उतरवा ले जायेगे<br />हमने दिया हमने लिये इसमे बुरा क्या किया<br />....<br /><br />बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाये हैं. शायद आज समाज इनके उत्तर देने को तैयार न हो, लेकिन पुरुष प्रधान समाज को एक न एक दिन अपनी सोच बदलनी होगी. नारी को केवल नारी बन कर क्यों नहीं जीने दिया जाता ? सामाजिक नियम उसी पर क्यों ज़बरदस्ती थोपे जाते हैं? बहुत ही सार्थक प्रश्न और बहुत मर्मस्पर्शी कविता. बहुत सटीक और सार्थक. आभारKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-2328142021227314852011-09-12T19:28:09.831+05:302011-09-12T19:28:09.831+05:30रचना जी अब आप भी वहीं पहुँच गई है आपने सुष्मिता से...रचना जी अब आप भी वहीं पहुँच गई है आपने सुष्मिता सेन का महिमा मंडन कर डाला है.यानी महिला किसी भी तरह माँ बने ही वर्ना वो कुछ कमतर है.कोई महिला किसी भी तरह किसी भी वजह से माँ न बनना चाहे तो भी आप उसे जबरदस्ती सुष्मिता सेन क्यों बनाना चाहती है.ये तो फिर एक तरह का विभाजन ही है.किसी अविवाहित पुरुष की तरह ही कोई महिला भी बिना बच्चों के खुश रहना चाहती है तो इसमें क्या समस्या है.वैसे सम्भव हुआ तो मैं जल्दी ही दुबारा लौटता हूँ.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-5292687255081657692011-09-12T18:45:35.697+05:302011-09-12T18:45:35.697+05:30माफ कीजिएगा यहाँ मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत न...माफ कीजिएगा यहाँ मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। क्यूकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। चाहे औरत हो या मर्द हम समाज में रहते हैं और इसलिए हमको समाज के नियमों का जहां तक संभव हो पालन करना चाहिए। रही माँ बनने की बात तो बिना विवाह के भी औरत माँ बन सकती है। जैसे सुष्मिता सेन जी, जिनका आप ने स्वयं ही example दिया है। कहने का अर्थ है सही तरीके से यदि बिना शादी के माँ बना जाए तो कोई हर्ज नहीं .... अन्यथा जो गलत है वो गलत ही रहेगा। <br /> कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है <br />http://mhare-anubhav.blogspot.com/Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.com