tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post503762118048818605..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: ऐसे में आप क्या कहेंगे ?रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-50919751962382123292010-06-16T23:53:21.705+05:302010-06-16T23:53:21.705+05:30तो अंततः क्या यह माना जाय कि-
१-आधुनिक नारी पेनीट्...तो अंततः क्या यह माना जाय कि-<br />१-आधुनिक नारी पेनीट्रेशन से प्रसव तक की कथित पीड़ा से अब मुक्ति चाहती है ?<br />२-क्या वह अब शिशु जनन के बजाय मात्र अंडज ही बनना चाहती है ?<br />३-फिर क्या जननं प्रक्रिया पूरी तरह कोख मुक्त हो जायेगी?<br />४-किराए की कोख(सरोगेसी ) का प्रचलन तो बढ़ ही रहा है ..<br />५-फिर मातृत्व का क्या होगा ?<br />बहरहाल आपके विचार को अगर मानव भविष्य का कोई संकेत माना जाय तो गैर प्रजनीय यौनानुभूति में भी फिर पुरुष की कोई भूमिका क्यों रहे ,वैकल्पिक उपाय आज ही उपलब्ध है<br />तो पुरुष की भूमिका बड़ी गौड़ होती नजर आ रही है -यह प्रजाति ही संकटापन्न होने वाली है !<br />.<br />सच है मुझे प्रसव पीड़ा कैसे पता होगा -मेरी स्थिति किसी बाँझ जैसी ही है ...<br />मुझे खुद आश्चर्य है कि विगत सदी के आठवें दशक में ये पूर्वाभास मुझे व्कैसे हो गए थे जब मैंने अपनी चर्चित साईंस फिक्शन -कथा<br />अन्तरिक्ष कोकिला लिखी थी --<br />पुरुषो सावधान अब अगली सदी आप पर बीस नहीं बाईस पड़ने वाली है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-4926593750205196082010-06-16T23:50:03.556+05:302010-06-16T23:50:03.556+05:30This comment has been removed by the author.Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61497605974186324182010-06-16T22:40:27.499+05:302010-06-16T22:40:27.499+05:30anshumala ji ka cmnt. padhkar to dimaag hi ghoom g...anshumala ji ka cmnt. padhkar to dimaag hi ghoom gaya hai.aur sahi bhi hai jara se sar dard me tilmila uthne wala purush prasav peeda ko anand kaipse maan p sakta hai?राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-64382435839305834982010-06-16T19:12:42.256+05:302010-06-16T19:12:42.256+05:30हमें व्यर्थ की बहस की अपेक्षा इस प्रकार के भेदभाव ...हमें व्यर्थ की बहस की अपेक्षा इस प्रकार के भेदभाव को निशाना बनाना चाहिये. <br />डा.राष्ट्रप्रेमी <br />bhedh bhaav har jagah haen ghar sae lae kar bahar tak aur usii ko samjhanae kaa prayaas hota haen is blog parAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-43627376476835187092010-06-16T18:48:09.932+05:302010-06-16T18:48:09.932+05:30नारी बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं है. यह जुमला बह...नारी बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं है. यह जुमला बहुत पुराना पढ चुका है. नर और नारी दोनों की ही संयुक्त जिम्मेदारी है यह तो. हां, प्रजनन प्राकृतिक व्यवस्था है, मेरा विचार है, नारी इस जिम्मेदारी से भागने की बात नहीं कर रही, हां, महिलाओं का ब्लोग है तो महिलाए अपना एकल पक्ष ही रखेंगी. अत्तः मिश्राजी बुरा मानने की बात नहीं है. जहां तक भेद-भाव की बात है, मैं अभी ISBT कश्मीरी गेट पर जाना हुआ. मेरी बहिन मेरे साथ थी. वह सुलभ शोचालय की सेवा का उपयोग करने गयी तो वहां खड़े कर्मचारी वहां लिखी इबारत मूत्रालय का प्रयोग निःशुल्क है, को तो व्यर्थ और बकवास बता ही रहा था, साथ ही महिलाओं से पांच रुपये तथा पुरुषॊं से मात्र दो रुपये वसूल रहा था. यह सार्वजनिक स्थान व देश की राजधानी का जेन्डर बायस है, हमें व्यर्थ की बहस की अपेक्षा इस प्रकार के भेदभाव को निशाना बनाना चाहिये.डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमीhttps://www.blogger.com/profile/01543979454501911329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-5264201227460282922010-06-16T17:58:34.059+05:302010-06-16T17:58:34.059+05:30गम्भीर मुद्दा है...
नारी ही नारी की भलाई कर सकती ह...गम्भीर मुद्दा है...<br />नारी ही नारी की भलाई कर सकती हैShabad shabad https://www.blogger.com/profile/09078423307831456810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-85188094804986384922010-06-16T17:38:49.672+05:302010-06-16T17:38:49.672+05:30blog sadsya ban jaayee plz
aaj to aap ka kament p...blog sadsya ban jaayee plz<br /><br />aaj to aap ka kament padh kar dil garden garden ho gayaaAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-80861145366172827862010-06-16T17:32:20.203+05:302010-06-16T17:32:20.203+05:30anshumalaji vah bahut hi achha .anshumalaji vah bahut hi achha .शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-58476361057977246462010-06-16T17:28:42.771+05:302010-06-16T17:28:42.771+05:30नारी ही नारी को पीड़ा देती है ये कहना कुछ लोगो के ल...नारी ही नारी को पीड़ा देती है ये कहना कुछ लोगो के लिए बड़ा आसान है जब भी कुछ मुद्दा होता है नारी से जुड़ा हुआ,नारी की बदलती परिस्थतियो को लेकर तो सबसे पहले यही कहा जाता है , लेकिन नारी ही नारी के दर्द को बखूबी समझती है इस चर्चा ने सिद्ध कर दिया है |<br />"जिसने प्रसव पीड़ा को झेला नहीं वह उसे पीड़ा न कहकर आनन्द कहना चाहता है! मैं और चाहे जो भी होऊँ मोसोचिस्ट तो बिल्कुल नहीं हूँ जो पीड़ा को आनन्द कहे। ये मेडिकल विज्ञान वाले भी न..... इसे प्रसव पीड़ा, लेबर पेन न जाने क्यों कहते हैं? कम से कम भारत में तो इसे प्रसव आनन्द ही कहना चाहिए। "<br />घुघूती जी आपने ये वाक्य कहकर मुद्दे से हटकर जाती हुई बात को अपनी जगह फिर से ला दिया |एक प्रसव पीड़ा झेलती हुई महिला को प्यार और अपनेपन की सख्त जरुरत होती है इसलिए पहली डिलीवरी मायके में करवाने की कई जगह प्रथा है |<br />घुघूतीजी ,अनुराधाजी, रश्मिजी ,रंजनाजी वाणीजी ,वंदनाजी ,शिवजी आप सबका धन्यवाद |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-71574051681786153112010-06-16T17:27:04.354+05:302010-06-16T17:27:04.354+05:30अंशुमाला जी, आनन्दम् आनन्दम् कर दिया आपने! हाहाहाह...अंशुमाला जी, आनन्दम् आनन्दम् कर दिया आपने! हाहाहाहा, सच में मन प्रसन्न हो गया! <br />may ur tribe increase!<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-5214664554259395832010-06-16T17:19:45.964+05:302010-06-16T17:19:45.964+05:30यहाँ ये नहीं कहा जा रहा है की नारी माँ बनना ही नही...यहाँ ये नहीं कहा जा रहा है की नारी माँ बनना ही नहीं चाहती कहा ये जा रहा है की वो कब माँ बनना चाहती है और कितने बच्चे चाह रही है ये अधिकार उसे दिया जाये क्योकि नौ महीने बच्चे को पेट में रखने से ले कर जीवन भर उसकी देखभाल का जिम्मा उसका है तो ये अधिकार भी उसे मिलना चाहिए की वो कब माँ बने वो बेहतर तरीके से जानती है की किस समय वो एक बेहतर माँ बन सकती है एक बच्चे को अच्छी परवरिश दे सकती है और कितने बच्चो की वो अच्छी तरह से देखभाल कर सकती है | सोचिये की यदि किसी पुरुष को उसका परिवार सिर्फ पैसे कमाने वाले के रूप में व्यवहार करे और कोई महत्व न दे तो उसे कैसा लगेगा उसी तरह नारी को भी सिर्फ बच्चे पैदा करने वाली मशीन के रूप में देख जाता है तो उस पर क्या गुजरती है उसके अस्तित्व को क्यों कोई और महत्व नहीं दिया जाता है | जहा तक सवाल नारी में बेटे की चाहत की बात है तो वो सामाजिक परिवेश के कारण है बेटा होने पर नारी को जो सम्मान और महत्व परिवार खास कर सयुक्त परिवारों में मिलाता है वो उसे पाने की लालच में बेटे की चाहत करती है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-48646361434981195482010-06-16T17:17:25.644+05:302010-06-16T17:17:25.644+05:30अच्छा है की भगवान ने माँ बनने की शक्ति नारी को दी ...अच्छा है की भगवान ने माँ बनने की शक्ति नारी को दी है यदि पुरुष को दी होती तो समाज में सेरोगेट बाप बनने का व्यापर शुरू हो गया होता लोग पैसे दे कर अपने बच्चे दूसरो से पैदा करवा रहे होते और कुछ दुसरे पुरुष "पैसे" के लिए ये कर रहे होते क्योकि प्रषव पीड़ा दो दूर की बात प्रेगनेंसी के पहले तीन महीनो की परेशानियों को भी वो झेल नहीं पाते और बच्चे पैदा करने का काम भी रेडीमेड बना देते | लेकिन फिर भी जो लोग इस तथा कथित प्रषव आनन्द का आन्नद लेना चाहते है तो उनको उसके पहले के आन्नदो का भी आन्नद लेना चाहिए | सुरुआत कीजिए की हर रोज खाना खाने से पहले नमक पानी का घोल पी लिजिए जब वमन आने लगे तो खाना खाने की कोशिश कीजिए हर रोज मई फेयर लेडी झूले के बीस चक्कर लगाइए जब आप को सारी दुनिया घुमती सी दिखे तो इसी अवस्था में सारे दिन काम कीजिए पैरो में दो दो किलो का वजन और पेट में चार से पांच किलो का वजन बांध कर सारे दिन काम कीजिए और फिर रात में उसी अवस्था में सोने की कोशिश कीजिए नीद आना दूर की बात कभी अभी तो इस अवस्था में किसी भी तरीके से लेटा भी नहीं जाता और पूरी रात एक आराम दायक अवस्था पाने में ही निकाल जाता है | ये सब कुछ नौ महीनो तक करिए फिर बताईये की किस किस को कितना आन्नद आया | प्रषव आन्नद का आनन्द कैसे लिया जाये ये तो मुसकिल है मेरे लिए बताना लेकिन उसके बाद बच्चो की देखभाल बता सकती हु सबसे पहले तो रोज रात में हर दो घंटे बाद का अलार्म लगा ले जब वो बजे तो उठ कर उसे बंद करे और फिर से दो घंटे बाद का अलार्म लगा दे जब तक आप वापस नीद के झोके में जायेंगे तब तक अलार्म दुबारा बज जायेगा ये क्रिया एक साल तक हर रात करे और सुबह बिलकुल फ्रेस मुड में उठिए| सिर्फ इतना ही कीजिए और फिर बताइये की कितना आन्नद आया | बाकि सारी परेशानिया छोड़ दे हफ्ते दस दिन में हीजो सिर्फ इन परेशानियों को झेल लेगा वो समझ जायेगा की पीड़ा और आन्नद में क्या अंतर है प्रषव पीड़ा को सहना तो दूर की बात है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-59458326121282683272010-06-16T17:17:25.184+05:302010-06-16T17:17:25.184+05:30रचना आप जेंडर बायस की जगह जेंडर insenstive कहा करे...रचना आप जेंडर बायस की जगह जेंडर insenstive कहा करे !!!सुमन जिंदलhttps://www.blogger.com/profile/15407930714166019745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-89777918549698997732010-06-16T16:16:45.339+05:302010-06-16T16:16:45.339+05:30अरे बाप रे ,,बढ़ी लम्बी चोडी बहस छिड़ गयी ...आप लोग ...अरे बाप रे ,,बढ़ी लम्बी चोडी बहस छिड़ गयी ...आप लोग ये क्यों नही समझते की इन दोनों के बीच कोई प्यार नाम की भी कोई चीज होती है,जंहा प्यार है बहा कोई दुःख नही कोई पीड़ा नही,अधिकारों का तो प्रश्न ही नही है,और जंहा तक मैं जनता हूँ तो दुनिया की हर ओरत एक बार तो जरुर माँ बनना चाहती है, माँ ना बन पाने का दुःख क्या होता है,ये जरा उनसे पूछो जिनके कोई ओलाद नही,,और कृपया इसे पीड़ा तो कतई न कहो,,,एक ओरत को सच्चा सुख और नर नारी के प्यार का मीठा फल इसी प्रक्रिया से ही नसीब होगा,किसी एक के हक़ का तो प्रश्न ही नही है ,ज्यादा जानकारी के लिए पढ़िए मेरा ब्लोग्स[नारी एक रूप अनेक]by lovely [http://lovelykankarwal2.blogspot.com ]lovely kankarwalhttps://www.blogger.com/profile/10551015361892852703noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-23921473444787953342010-06-16T16:05:07.494+05:302010-06-16T16:05:07.494+05:30विषय पर वृहत परिचर्चा चली...
पर मुझे लगता है ,समय ...विषय पर वृहत परिचर्चा चली...<br />पर मुझे लगता है ,समय प्रवाह में स्वतः ही बहुत कुछ बदलता जा रहा है...ऐसा कुछ भी नहीं जो धारा को अवरुद्ध कर सके...यह मुझे अधिक आशाजनक लगता है...प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री की स्थति बदल रही है...समय दूर नहीं जब प्रजनन पूर्णतः स्त्री के नियंत्रण में होगा...वही मुख्य रूप से निर्णय करेगी की उसे क्या करना है क्या नहीं...और तब संभवतः यह मुहिम चले कि सामाजिक व्यवस्था छिन्न हो रही है...बात यही है कि जिस के हाथ में निर्णय क्षमता होगी,वह जिस प्रकार से उसका उपयोग करेगा ,तदनुरूप जो परिणाम सामने आयेंगे,उससे साबित होगा कि सही हो रहा है या गलत... <br /><br />व्यक्तिगत तौर पर यह कह सकती हूँ कि प्रसव पीड़ा पीड़ा होते हुए भी किसी बीमारी की तरह कष्टकारी नहीं बल्कि सुखद ही लगा है...और माता पिता संतान की विष्ठा साफ़ करना भी सुखकर लगता है...क्योंकि बात नजरिये की है कि इसे किस तरह हम देखते हैं...और जहाँ तक मेरा मानना है,किसी की सेवा करने में,किसी को सुख देने में व्यक्ति छोटा नहीं बल्कि बड़ा होता है....और नहीं मानती कि किसी की सेवा करने से, कर्तब्य निर्वहन से अधिकार बाधित होते हैं...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-39772611887340400142010-06-16T16:04:54.792+05:302010-06-16T16:04:54.792+05:30बच्चे को जन्म देने या नहीं देने का फैसला नारी का ख...बच्चे को जन्म देने या नहीं देने का फैसला नारी का खुद का होना चाहिए ...क्यूंकि उससे जुडी सारी मानसिक और शारीरक तकलीफ या आनंद उन्हें ही झेलना पड़ता है ...(बच्चे को सीने से लगा कर वे सारी यंत्रनाएं भूल जाती है ये अलग बात है )<br />बेटियों के जन्म को लेकर तनाकसी और यंत्रणा अभी समाज में कायम है मगर इसमें पिछली पीढ़ियों के मुकाबले कमी आई है ...मैं खुद दो बेटियों की मां हूँ और ऐसी कितनी ही माओं को जानती हूँ , से परिचित हूँ , संपर्क में हूँ जो वंश बढ़ाने के लिए बेटों का इन्तजार नहीं कर रही है ...<br />एक बार हॉस्पिटल में महिलाओं की आपसी बातचीत में निष्कर्ष यह निकल कर आया कि यदि प्रजनन का दर्द पुरुषों को झेलना पड़े तो जनसँख्या नियंत्रण बिना किसी प्रयास के ही हो जायेगा ...<br /><br />@ महिलायें संतान सुख से कभी भी वंचित नहीं रहना चाहतीं पर साथ में यह भी चाहती हैं कि उनका भी एक अस्तित्व हो...सिर्फ वंश चलाने वाली एक माध्यम के रूप में उन्हें नहीं समझा जाए.<br /><br />ज्यादातर महिलाएं इससे सहमत होंगी बिना हिचकिचाहट ..वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-55074029721659540272010-06-16T15:32:36.231+05:302010-06-16T15:32:36.231+05:30सभ्य होने, संपत्ति का अहसास होने और उस पर हक जमाए ...सभ्य होने, संपत्ति का अहसास होने और उस पर हक जमाए रखना सीखने के बाद से मनुष्य, खास कर पुरुष का एकमात्र मकसद रहा है, इस संपत्ति को बचाए रखना, किसी से न बांटना...मरने के बाद भी 'अपने' लोगों के संरक्षण मे ही उस संपत्ति का रहना सुरक्षित करना। और इसका जरिया यही हो सकता है कि अपना वारिस हो, एक से काम नहीं चलने वाला, क्योंकि कोई ठीक नहीं कि कब उसके साथ कोई दुर्घटना हो जाए, शिकार मारते जानवर मार डाले या भयानक प्राकृतिक घटनाएं या क्रूर प्रकृति ही जान लेले, बीमारी पकड़ ले, जिसका इलाज भी उसके पास नहीं था। इस तरह बच्चे, खास तौर पर लड़के पैदा करने का आग्रह बढ़ता गया। <br /><br />आज के समय में उस मानसिकता की कतई जरूरत नहीं है। हम अब जानवर की स्थिति से विकसित होकर 'होमो सेपिएंस' से भी आगे, शहरी मानव तक आ पहुंचे। अब प्रजनन वाला फंडा हम पर लागू नहीं हो सकता। अब उससे आगे बड़ कर सोचें।<br /><br />अब जब यह मानव समाज सभ्य, विकसित हो चुका है तो फिर हम अपने दिमागों, विचारों को कब तक पिछड़ा रखेंगे? फ्रिज आ गया है तो हर दिन शिकार करके खाने का जुगाड़ करना कतई जरूरी नहीं। व्यवस्थिक समाज- देश में हरेक काम बंट गया है। ये सब विकास की मिशानियां हैं।<br /><br />उत्तराधिकारी पाने की अवधारणा को खत्म करने का समय आ गया है, बल्कि बहुत पहले आ चुका है। अगर हम मानव प्रजाति का विवेकशील होना स्वीकार करते हैं तो विवेक का इस्तेमाल भी तो करें।!आर. अनुराधाhttps://www.blogger.com/profile/16394670775058734814noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-27221023040433124082010-06-16T15:16:35.993+05:302010-06-16T15:16:35.993+05:30इस 2010 में दो महीने पहले एक खबर पढ़ी...एक औरत ने ...इस 2010 में दो महीने पहले एक खबर पढ़ी...एक औरत ने बेटी को जन्म दिया और उसके पति ने यह शर्त रखी कि वह एक लाख रुपये अपने पिता के यहाँ से लेकर आए तभी उसे वापस घर में घुसने देगा...अब ऐसे हालातों में कौन स्त्री नहीं चाहेगी 'एक लड़के ' को जन्म देना?? और फिर स्त्री पर यह आरोप लगा दिया जाता है कि वो खुद 'एक बेटा' चाहती है.<br />महिलायें संतान सुख से कभी भी वंचित नहीं रहना चाहतीं पर साथ में यह भी चाहती हैं कि उनका भी एक अस्तित्व हो...सिर्फ वंश चलाने वाली एक माध्यम के रूप में उन्हें नहीं समझा जाए.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-75762778940612483152010-06-16T15:02:56.733+05:302010-06-16T15:02:56.733+05:30घुघूती जी से पूर्णतः सहमत. पीड़ा को वो परिभाषित क...घुघूती जी से पूर्णतः सहमत. पीड़ा को वो परिभाषित कैसे कर सकता है? जिसने इस पीड़ा को कभी सहा ही न हो? हम मूल विषय से बहुत भटक रहे हैं.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-44314936270019523442010-06-16T14:28:18.472+05:302010-06-16T14:28:18.472+05:30पीड़ा को पीड़ा भी न कहना किस मानसिकता को दर्शाता है?...पीड़ा को पीड़ा भी न कहना किस मानसिकता को दर्शाता है? जिसने प्रसव पीड़ा को झेला नहीं वह उसे पीड़ा न कहकर आनन्द कहना चाहता है! मैं और चाहे जो भी होऊँ मोसोचिस्ट तो बिल्कुल नहीं हूँ जो पीड़ा को आनन्द कहे। ये मेडिकल विज्ञान वाले भी न..... इसे प्रसव पीड़ा, लेबर पेन न जाने क्यों कहते हैं? कम से कम भारत में तो इसे प्रसव आनन्द ही कहना चाहिए। <br /> यह भी मानती हूँ कि बहुत सी स्त्रियाँ इस पीड़ा को झेलना चाहती हैं। स्वाभाविक है। जो वर्षों से बच्चों की प्रतीक्षा में हों वे ऐसा चाहेंगी ही। किन्तु जिनके बच्चे हैं , जिन्हें उनके लिए तरसना नहीं पड़ा वे क्यों ऐसा सोचेंगी? विदेश में रहता हुआ कोई बनारसी बनारस के ट्रैफिक को भी स्नेह से नराई के साथ याद करता होगा। किन्तु इसका यह अर्थ तो नहीं कि बनारसी लोग कहें कि बनारस का ट्रैफिक सर्वश्रेष्ठ है, आदर्श है? (यहाँ बनारस की जगह भारत के किसी भी पुराने दूसरे या तीसरे टायर के शहर को लिया जा सकता है।) जब कोई बच्चा घर छोड़कर चला जाता है तो माता पिता विज्ञापन निकालते हैं कि घर आ जाओ जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा। तुम्हे कोई कुछ नहीं कहेगा। किन्तु इसका यह अर्थ तो नहीं कि घर में बैठे बच्चों के माता पिता भी उनकी हर धृष्टता सहने लगें। सो जो नहीं है उसका मूल्य तो सदा अधिक होगा ही।<br />और दुख से कहना पड़ता है कि मैं जनन की पीड़ा को पीड़ा ही मानती हूँ और मेरे पासपोर्ट में भारतीय नागरिक ही लिखा गया है। जिसे समस्या है यत्न करे सिद्ध करने का कि मैं भारतीय नहीं हूँ। क्या यह कहेगा कि देखो जी यह घूबा प्रसव आनन्द को प्रसव पीड़ा कहती है चलिए इसकी भारतीय नागरिकता कैन्सिल कीजिए। कुछ को जानकर दुख होगा किन्तु मैंने दूसरी सन्तान जन्म के बाद यह भी कहा था कि अब यदि साक्षात भगवान या भगवती भी कहे कि तेरी कोख से जन्म लेना है तो कहूँगी सॉरी, बहुत देर कर दी, अब नहीं। सो यह भी मेरे भारतीय नारित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। लगाइए।<br />वैसे बन्धु, कभी पथरी का कष्ट सहा है? कभी कुछ मि मी के पत्थर को मूत्र नली से निकालने का कष्ट झेला है? कभी देखा है कि पुरुष इस कष्ट के लिए कितने दर्द निवारक इन्जेक्शनों की माँग करता है?<br /><br />समाज में यह एक आदत सी बन गई है कि जिस तिस बात के लिए कह दिया जाए कि इसमें स्त्री को सुख मिलता है। जैसे बच्चे की विष्ठा साफ करने में, परिवार की सेवा करने में, पति के लिए भूखे बैठे रहने में, त्याग करने में, पति की आज्ञा मानने में, शायद कुछ तबके यह भी कहेंगे कि पति से पिटने में आदि आदि। विश्वास कीजिए इसमें आनन्द की कोई बात नहीं होती बस एक काम करना होता है जो और कोई नहीं करना चाहता। स्त्री बच्चों से लेकर माता पिता, सास ससुर की विष्ठा भी आवश्यकता पड़ने पर साफ करती है किसी आनन्द के लिए नहीं इसलिए कि उन्हें उसमें पड़ा नहीं रहने दिया जा सकता। और स्त्री को पल्ला झाड़कर तफ़री करने जाने का अभ्यास अभी नहीं हुआ है। वैसे क्या कह सकती हूँ हो सकता है कि कुछ मसोचिस्ट स्त्रियाँ सुख मिलता है कहते हुए हाँ में सिर हिला रही हों। ब्रिटिश साम्राज्य केवल गोरों के बलबूते पर तो चला नहीं था उनका साथ देने वाले भारतीयों को निकृष्ट मानने वाले भूरों की एक फौज उनके साथ थी वैसे ही...........<br />हाँ और व्यक्तिपरकता की चिन्ता तब तो नहीं होती जब पुरुष अपनी पसन्द की पढ़ाई करता है और पिताजी की दुकान, खेत या ज्योतिषी या जजमानी का धन्धा देखने की जगह बड़ी बड़ी नौकरियों के लालच में घर से हजारों मील दूर चले जाता है। दादा दादी या माँ कहते ही रह जाते हैं कि लला, घर में खाने की क्या कमी है? यह व्यक्तिपरकता का लॉजिक स्त्री को प्रजनन के लिए इस न केवल बढ़ती अपितु सुरसा सा मुँह बाए जनसंख्या के जमाने में भी दिया जाना कुछ अति नहीं है क्या?<br />कुछ अभारतीय सी(?)<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-88509455077311266682010-06-16T14:25:56.986+05:302010-06-16T14:25:56.986+05:30naari machine hai yaa nahi.....ise naari hi sahi/g...naari machine hai yaa nahi.....ise naari hi sahi/galat saavit kar sakati hai..........aapki baat vyavahaarik nahi lagati.........purushon ke baare me purvaagrah n paalen.arvindhttps://www.blogger.com/profile/15562030349519088493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-9156079685866669832010-06-16T13:44:26.368+05:302010-06-16T13:44:26.368+05:30Mukti has given the reply so there is no point in ...Mukti has given the reply so there is no point in being repetitive and Dr Mishra most woman remain silent on these issues and dont go into discussions with you because they feel "its useless "Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-55292083317452427392010-06-16T12:51:43.342+05:302010-06-16T12:51:43.342+05:30बेहद गम्भीर मुद्दा और सोच आज भी जड ही है………………जरूर...बेहद गम्भीर मुद्दा और सोच आज भी जड ही है………………जरूरत है आज मानसिकता को बदलने की ना की स्त्री या पुरुष पर तोहमत लगाने की ………………दोनो की ही सोच मे जंग लगा हुआ है पुराने संस्कारों का ……………उन ही संस्कारों को बदलने की जरूरत है और वो भी समाज के हर वर्ग की , हर स्त्री और पुरुष की ना की किसी एक को बदलने से कुछ बदलेगा।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-32943940754827856162010-06-16T12:51:22.439+05:302010-06-16T12:51:22.439+05:30पोस्ट में जो कुछ लिखा हुआ है उसमें कुछ भी ऐसा नहीं...पोस्ट में जो कुछ लिखा हुआ है उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिसकी वजह से पोस्ट से या पोस्ट लिखने वाले असहमत हुआ जा सके. <br />हमें यह क्यों लगता है कि हर समस्य का समाधान बहस ही है? इतनी लम्बी-चौड़ी बहस हो गई.<br />जय हो.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-10208172061272919712010-06-16T12:31:51.580+05:302010-06-16T12:31:51.580+05:30घुघूती बासूती जी, आपने उनलोगों को अच्छा जवाब दिया ...घुघूती बासूती जी, आपने उनलोगों को अच्छा जवाब दिया है, जो ये कहते हैं कि 'औरत ही औरत की दुश्मन होती है'... बात ये नहीं है कि पीडक कौन है... बात शक्ति की है, जो जिसके हाथ में होगी वही उसका प्रदर्शन खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए करेगा. और इसी अनुचित शक्ति-सम्बन्ध का विरोध हम करते हैं... यही बात मैं भी कह रही थी कि बिना समाज की संरचना को ठीक से समझे लोग आरोप औरतों पर मढ़ देते हैं.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.com