tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post4018301460708237660..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: यह अधिकार बेटी का भी हैरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57165597696485351312008-11-09T15:09:00.000+05:302008-11-09T15:09:00.000+05:30@परंपराएं इंसान ने बनाई हैं, लेकिन आत्मा भगवान ने ...@परंपराएं इंसान ने बनाई हैं, लेकिन आत्मा भगवान ने और आत्मा न लड़का देखती है और न लड़की- उसे केवल कर्त्तव्य देखना चाहिए।<BR/><BR/>यही यथार्थ है. आपके मित्र का धन्यवाद, ऐसे उदाहरण सब के साथ बांटने के लिए. इन से सही राह पर चलने का प्रोत्साहन मिलता है.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10037139497461799634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-54068847863229513842008-11-07T13:09:00.000+05:302008-11-07T13:09:00.000+05:30बहुत अच्छा लगा पढकर... ऐसे समाचार समाज के लिए प्रे...बहुत अच्छा लगा पढकर... ऐसे समाचार समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनते हैं...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-67109603181188096252008-11-06T23:41:00.000+05:302008-11-06T23:41:00.000+05:30ठीक है ठीक है .ठीक है ठीक है .विवेक सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06891135463037587961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-56534902664668358852008-11-06T22:26:00.000+05:302008-11-06T22:26:00.000+05:30अब उन माता पिताओं को चिंता करने की आवश्यकता नहीं ह...अब उन माता पिताओं को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है जिनके लड़के नहीं हुए. प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने का कार्य पुत्रियाँ भी कर सकती हैं और कर भी रही हैं. परंपराएँ एकदम रूढ नहीं होतीं. वे भी समय के साथ बदलती रहती हैं. आभार. <BR/>http://mallar.wordpress.comP.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-8499017766501274582008-11-06T21:58:00.000+05:302008-11-06T21:58:00.000+05:30रचना जी,पोस्ट तो मैने पढ़ ली।रही बात आपके प्रश्न की...रचना जी,<BR/>पोस्ट तो मैने पढ़ ली।<BR/><BR/>रही बात आपके प्रश्न की, तो मेरा यह कहना है कि जो वस्तु/ विषयवस्तु सर्वसुलभ उपलब्ध है, उसे उचित स्थान तक पहुँचाना कोई ऐसी बात नहीं, जिसका नामोल्लेख जरूरी हो।<BR/><BR/>हाँ, किसी दुर्लभ या एकाधिकार विषयक स्थिति में तो हम जरूर आगे रहेंगे क्रेडिट लेने के लिये, नाम के साथ:-)<BR/><BR/>आप इसे एक तरह का गुप्तदान ही समझ लें!<BR/><BR/>आपने मेरे द्वारा भेजी गयी लिंक का सम्मान किया, धन्यवाद।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-70019451671585911442008-11-06T20:22:00.000+05:302008-11-06T20:22:00.000+05:30need to be implemented sociallyneed to be implemented sociallymakrandhttps://www.blogger.com/profile/14750141193155613957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-65823927756086002872008-11-06T19:40:00.000+05:302008-11-06T19:40:00.000+05:30correction---हर स्टेज परcorrection---हर स्टेज परAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-22334857307615340922008-11-06T19:38:00.000+05:302008-11-06T19:38:00.000+05:30बम्बई में ये कोई नयी बात नहीं। जिनके लड़के नहीं हो...बम्बई में ये कोई नयी बात नहीं। जिनके लड़के नहीं होते या नहीं आ सकते, वहां लड़कियां ही ये कर्तव्य निभायेगीं ये अन्डरस्टुड होता है । हमने खुद भी अपने भाइयों के साथ बराबरी की हिस्सेदारी में ये जिम्मेदारी निभाई थी जब हमारे माता और पिता का देहांत हुआ था, भाइयों ने भी खुद आगे आकर हमें स्टेज पर साथ साथ रखा था। घर की औरतें पूरा समय मुक्तिधाम में साथ बैठी थीं।और अपने खुद के अनुभव की बात कर रहे हैं इंदौर की।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-72092491576537118872008-11-06T18:23:00.000+05:302008-11-06T18:23:00.000+05:30समाज को आगे बढ़ाना है तो लिंग भेद भुला कर आगे आना ह...समाज को आगे बढ़ाना है तो लिंग भेद भुला कर आगे आना हो होगा ..अच्छा लगा पढ़ कर ..रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-58583600458764521872008-11-06T16:18:00.000+05:302008-11-06T16:18:00.000+05:30साहस को कोटि कोटि नमन कुछ परम्पराओं को तोड़ने मैं ...साहस को कोटि कोटि नमन <BR/><BR/>कुछ परम्पराओं को तोड़ने मैं लडकियां सामने आ सकती हैं <BR/>क्योंकि वो माँ भी हैं, बहन भी, पत्नी और बेटियाँ भीदिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-18278255976852428292008-11-06T16:05:00.000+05:302008-11-06T16:05:00.000+05:30यह ख़बर जागरण में मैंने भी पढ़ी थी। वाकई हिम्मत का...यह ख़बर जागरण में मैंने भी पढ़ी थी। वाकई हिम्मत का काम है। बेटियां महान हैं।Anshu Mali Rastogihttps://www.blogger.com/profile/01648704780724449862noreply@blogger.com