tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post3778585880038692783..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: विवेचन : महिलाएं, मातृत्व अवकाश और पक्षपातरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-47675091586337334262010-03-21T08:10:23.956+05:302010-03-21T08:10:23.956+05:30सारे सवाल तब तक ही हैं जब तक स्त्री पुरुष एक दूसरे...सारे सवाल तब तक ही हैं जब तक स्त्री पुरुष एक दूसरे को अपने समान नहीं समझते।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-29909697748645072232008-10-02T11:38:00.000+05:302008-10-02T11:38:00.000+05:30मैं द्विवेदी जी की बात से सहमत हूँ. मैं भी यही मान...मैं द्विवेदी जी की बात से सहमत हूँ. मैं भी यही मानता हूँ. जब तक सोच नहीं बदलेगा तब तक कोई भी कानून न तो सही बन पायेगा, न सही समझा जायेगा और न ही सही फायदा दे पायेगा.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10037139497461799634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61795075162615452772008-09-30T16:16:00.000+05:302008-09-30T16:16:00.000+05:30सारे सवाल तब तक ही हैं जब तक स्त्री पुरुष एक दूसरे...सारे सवाल तब तक ही हैं जब तक स्त्री पुरुष एक दूसरे को अपने समान नहीं समझते।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-60944661398328315712008-09-30T11:51:00.000+05:302008-09-30T11:51:00.000+05:30आपको ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत मुबारकबादआपको ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत मुबारकबादrakhshandahttps://www.blogger.com/profile/08686945812280176317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-36806390980851050662008-09-30T11:45:00.000+05:302008-09-30T11:45:00.000+05:30कल को घर का पुरूष सदस्य यह कह सकेगा कि तुम्हें सरक...कल को घर का पुरूष सदस्य यह कह सकेगा कि तुम्हें सरकार से इसीलिए छूट मिली है कि घर में रहकर अपनी जिम्मेदारी निभाआ॓। इसी समझ के कारण परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिताओं के लिए कभी क्रैश/पालनाघर की सुविधा की बात नहीं सोची न ही पिताओं ने अपने लिए ऐसी सुविधा की मांग सरकार से की। दूसरी समस्या यह आयेगी कि प्राइवेट नियोक्ता यह सोचेगा या सोेचेगी कि यदि औरत को फलां समय तक बैठ बिठाये वेतन देना है तो उसे नियुक्त ही क्यों करे ?<BR/><BR/>काफी संजीदा सवाल उठाया है आपने...सोचने का विषय है...rakhshandahttps://www.blogger.com/profile/08686945812280176317noreply@blogger.com