tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post3321231597822996222..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: अपना नज़रिया निसंकोच दे ताकि इस मानसिक उथल पुथल से बाहर आने का रास्ता मिलेरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-18810764754826647472012-03-02T16:41:35.536+05:302012-03-02T16:41:35.536+05:30रचना जी
इसके लिए कई कारण है हर व्यक...रचना जी <br /><br /> इसके लिए कई कारण है हर व्यक्ति के साथ अलग अलग कारण है ।<br /><br /> माँ बाप क्या करे आज कल के बच्चे ही काफी होशियार होते है उन्हें पता होता है की घर पर किन मित्रो के बारे में बताना है और किन के बारे में नहीं या मित्रो की किन हरकतों के बारे में घर पर बताना है और किन के बारे में नहीं इस में बेचारे माँ बाप क्या करे उन्हें तो कई बार पता ही नहीं होता है की बच्चे घर के बाहर क्या कर रहे है कई बार तो वो स्कुल कालेज के लिए निकलते है और कही और पहुँच जाते है ।<br /><br /> कई बार ये भी होता है की पूरा ग्रुप गलत नहीं होता है लेकिन कोई एक गन्दी मछली सभी को गलत करने के लिए उकसा देती है शांति से सोचिये तो उनकी आयु ही कितनी होती है है ये सोचने की की सामने वाला हमें बहका रहा है या ये काम गलत है ।<br /><br /> एक समस्या माँ बाप की तरफ से ये है की अब भी लोग बच्चो को वही पुरानी सोच के साथ पालते है की बच्चा खुद से परिवार वालो को और परिवार की सोच को देख कर सब कुछ समझ जायेगा सारे संस्कार उसमे अपने आप आ जायेंगे इसलिए हमें उन्हें औपचारिक रूप से कुछ भी बताने की जरुरत नहीं है । या कुछ बातो के लिए जिनके बारे में हमें बच्चो को एक समय पर खुल कर समझा देना चाहिए वो भारतीय माध्यम वर्गीय परिवार करता ही नहीं है संस्कारो के नाम पर । पर ये सोचते समय वो ये भूल जाते है की आज के बच्चे केवल अपने परिवार तक सिमित नहीं है उनकी पहुँच आज स्कुल कालेज और टीवी इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया से है तो वो परिवार से ज्यादा वहा देख और सुन रहे चीजो को सिख सकते है ।anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-4108302557949838302012-03-01T19:50:28.711+05:302012-03-01T19:50:28.711+05:30बच्चों को ऊँची फीस वाले स्कूल और कोचिंग इंस्टिट्यू...बच्चों को ऊँची फीस वाले स्कूल और कोचिंग इंस्टिट्यूट के भरोसे छोड़ने का एक दिन यही नतीजा होना था. आज गार्जियन के पास बाक़ी सब है-सिवाय बच्चों के लिए समय के. बच्चा भी धीरे-धीरे जान जाता है कि कैसे अपनी गतिविधियों से माता-पिता को अँधेरे में रखा जाता है. अब तो ३ idiots जैसी फिल्म भी सिखा रही है कि पैसे के पीछे भागो,बाकी सब अपने आप चला आएगा.संस्कार अर्जित करना पड़ता है,अपने आप नहीं मिलता.कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-40242248193641303222012-03-01T19:49:35.778+05:302012-03-01T19:49:35.778+05:30This comment has been removed by the author.कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-90550454354201598612012-02-29T13:39:59.432+05:302012-02-29T13:39:59.432+05:30अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना हर अभिभावक का कर...अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना हर अभिभावक का कर्तव्य है . उनमें ऐसी विवेक-बुद्धि का विकास करना कि वे सही और ग़लत की ,अच्छे और बुरे की पहचान कर सकें ,और इतना संरक्षण भी कि बच्चे दूसरों के प्रलोभन में न आयें.व्यवहार में पारदर्शिता होना भी -दोनों ओर से- अपेक्षित है .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-51204892132181979542012-02-29T13:19:16.786+05:302012-02-29T13:19:16.786+05:30@ उसके अभिभावक और शिक्षक भी उतने ही दोषी नहीं हैं ...@ उसके अभिभावक और शिक्षक भी उतने ही दोषी नहीं हैं जितना वो खुद ??<br /><br />आजका अभिभावक दुविधा में है। नई पौध सजग न होते हुए भी एकतरफा अतिशय व्यक्तिगत अधिकार सोच ग्रसित है। प्रत्येक अभिभावक बच्चों के जीवनहित में सूचनाएँ अवश्य प्रेषित करता है,पर अनुशासन को अक्सर बाध्यता या बंधन में ले लिया जाता है। आज का अभिभावक इसीलिए दुविधा में है कि क्या पता कौन सी हितकर सलाह बच्चों द्वारा अनावश्यक नियंत्रण मान ली जाय। और बार बार की टोका-टाकी समझ ली जाय। और बच्चे उलट प्रतिक्रिया करे और जिस बात के लिए रोका जा रहा है उलट वही काम करे। ऐसी दशा में अभिभावक अपने अनुशासन पर भी नियंत्रण रखता है। यह भी सर्वसामान्य सफल हो जरूरी नहीं, इसे बच्चे सामान्य छूट की तरह भी ले सकते है।<br /><br />मैं तो मानता हूँ यह सब स्वयं बच्चे के बौधिक समझ और जागृत विवेक पर निर्भर करता है। कानूनी तौर पर भले बच्चे की व्यस्कता या अव्यस्कता की उम्र निश्चित हो, पर समझ का यह आधार सही नहीं है, विधिवेता भी जानते थे कि समझ और विवेक परखने का कोई पेरामीटर नहीं है कोई आधार तो निश्चित करना ही था, अतः उम्र को आधार बनाया गया, सही भी है अन्य कोई तरीका भी तो नहीं। पर यह सत्य है कि एक आठ साल के बच्चे में भले बुरे का विवेक हो सकता है और एक 25 साल के युवा में ऐसी विवेक-बुद्धि न भी हो। इसीलिए कहते है कि सभी का स्वभाव ही काम करता है।<br /><br />हमनें समाज में अधिकार-बुद्धि को बहुत अधिक ही प्रसारित कर दिया है, उसके सामने कर्तव्य-बुद्धि का स्तर लगभग नदारद ही है।<br /><br />अभिभावको पर बच्चों को अच्छा बनाने का कर्तव्य तो लोग थोपते है, पर क्या किसी भी उपाय से अच्छा बनाने के अधिकार देने पर सहमत है?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-38228138078940416562012-02-29T09:32:56.119+05:302012-02-29T09:32:56.119+05:30अभिभावकों की अहम भूमिका है बच्चों को इनसे दूर रखने...अभिभावकों की अहम भूमिका है बच्चों को इनसे दूर रखने में , मगर यह भी ठीक है हर बार अभिभावक या बच्चे ही जिम्मेदार नहीं होते . भोली मासूम शक्लों में छिपे शातिरों की संगत में वे कब इस दलदल से घिर जाते हैं , पता नहीं चलता . अधिकतर यौन शोषण मामलों की तरह यह एक चेन सिस्टम की तरह होता है!<br />अभिभावकों और बच्चों के बीच इतनी समझ और पारदर्शिता अवश्य होनी चाहिए कि बच्चे अपनी समस्या उनके सामने रख सकें !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com