tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post317277315320778991..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: लड़कियों को सुरक्षित रखने के ज्यादा अच्छा उपायरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger37125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-43138212760235936292010-11-26T19:59:32.146+05:302010-11-26T19:59:32.146+05:30I really enjoyed reading all this... :)
Great pos...I really enjoyed reading all this... :)<br /><br />Great post... aur comments ke to kya kehne !Rashmi Swaroophttps://www.blogger.com/profile/14615276585404778659noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-77362470255782082692010-11-26T13:20:56.219+05:302010-11-26T13:20:56.219+05:30आज की अधिकाँश नारी ( जो अपने को अधिक पढ़ा लिखा स...आज की अधिकाँश नारी ( जो अपने को अधिक पढ़ा लिखा समझती हैं )<br />अपने ऊपर किये हुए हर ज़ुल्म का ठिकड़ा पुरूषों पर ही फोड़ना अपना अधिकार समझती है , जबकि एक नारी की सबसे बड़ी दुश्मन अगर कोई है तो वो खुद नारी है, <br />जिसका उदहारण हम लड़की के पैदा होने से लेकर उसके विवाह तक देख सकते हैंTausif Hindustanihttps://www.blogger.com/profile/13794797683013534839noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-88041853194824030242010-11-26T13:13:32.934+05:302010-11-26T13:13:32.934+05:30नारी का जो सम्मान और हक है उसे अवश्य मिलना चाहिए ,...नारी का जो सम्मान और हक है उसे अवश्य मिलना चाहिए , और उसकी इज्ज़त का सम्मान तथा रक्षा किया जाना चाहिए और इसका आरंभ हम सभी को अपने घर अपने मोहल्ले से करना चाहिए <br />dabirnews.blogspot.comTausif Hindustanihttps://www.blogger.com/profile/13794797683013534839noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-39791998670476310062010-11-26T12:42:36.681+05:302010-11-26T12:42:36.681+05:30रचना दीदी,
ये नाम मेरा बनाया हुआ नहीं है ... संभ...<i>रचना दीदी, <br />ये नाम मेरा बनाया हुआ नहीं है ... संभवतया अपनेपन की भावना में लिखा हुआ कहीं पढ़ा था तब से मैंने भी अपना लिया , क्षमा चाहता हूँ .. मैं तो हमेशा मानसिकता पर ही गौर करता आया हूँ | पाण्डेय जी से भी क्षमा </i>एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-1243420410444979832010-11-26T09:30:48.702+05:302010-11-26T09:30:48.702+05:30विचार शून्य जी को विचारी जी ना कहे इस विषय पर उनकी...विचार शून्य जी को विचारी जी ना कहे इस विषय पर उनकी पोस्ट यहाँ हैं http://vichaarshoonya.blogspot.com/2010/11/blog-post_20.htmlरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-39851174107953554262010-11-25T22:01:08.581+05:302010-11-25T22:01:08.581+05:30jahan tak aisi manyata ka sawal hai yah hamare sam...jahan tak aisi manyata ka sawal hai yah hamare samaj me vyapt hai......<br />naak kaan chhidwana, payal pahanna, sindoor lagana har cheez ka prayog aisa mana jata hai kamukta ko niyantrit karta hai<br />yadi yah sach hai to purushon ko bhi inke prayog ke liye badhava diya jana chahiye....isse samaj nishchit roop se aur sabhya aur susanskrit banega<br />achchhi parampara ka vyapak istemal ho. sirf ek varg ko hi isse labhanvit kyun kiya jaye?Truth Eternalhttps://www.blogger.com/profile/09643246327233808252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-89935593264501400742010-11-25T09:09:24.943+05:302010-11-25T09:09:24.943+05:30http://my2010ideas.blogspot.com/2010/11/blog-post_...http://my2010ideas.blogspot.com/2010/11/blog-post_25.htmlएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-88590889340203822412010-11-25T07:43:05.070+05:302010-11-25T07:43:05.070+05:30इस विषय पर एक साइंटिफिक लेख जल्दी ही प्रकाशित करने...इस विषय पर एक साइंटिफिक लेख जल्दी ही प्रकाशित करने का प्रयास रहेगा [हो सका तो इस सन्डे] , मैं अगर इस पर कोई लेख लिखता हूँ तो उम्मीद है आप अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएंगी |एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-85570280415723896422010-11-25T06:14:41.444+05:302010-11-25T06:14:41.444+05:30ओहो अंशुमाला जी, आपने पुरुषवाद, समाज और धर्म को जो...ओहो अंशुमाला जी, आपने पुरुषवाद, समाज और धर्म को जोड़ा ही ऐसे है की कोई विद्वान ही समझ पायेगा ... व्यंग की दिशा तो सही हो, इसी पुरुषवादी समाज में पुरुषों के स्वास्थ्य के बारे में भी भ्रांतियाँ है और वो भी एक से बढ़ कर एक | इसमें पुरुषवादी समाज कहाँ बीच में आ गया ?? या शायद किसी भी मामले में अल्पज्ञानी को ही पुरुष कहा जाता हो ?<br />एक मनो वैज्ञानिक सा तरीका है| एक अँधेरी सी डिजाइन वाला कार्ड दिखा कर पूछा जाता है, "बताओ, आपको इसमें क्या नजर आ रहा है"? सामने वाले को वही नजर आता है जो वो सोचता है| नजर तो किसी की कमजोर नहीं होती ये बात अलग है की दिमाग में चल क्या रहा है ?<br /><br />मैं तो हर काम लोजिक से करने का ही प्रयास करता हूँ इसीलिए मैं अपने ब्लॉग का नाम my2010ideas रखा ताकि मुझे याद रहे की मैं सिर्फ एक साल के लिए ब्लोगिंग के मंच से जुडा हूँ| जब लोग तथ्यात्मक लेख से ही बहुत कम मात्रा में सुनते है और ना के बराबर अप्लाई करते हैं तो व्यंग लिखने का क्या सोशल इम्प्रूवमेंट होगा आप मुझसे बेहतर जानती हैं <br /><br />खैर ....छोडिये ये सब बातें .. इस वाली बात पर हँसियेगा मत .... मैंने इस लेख के हेडिंग को पढ़ कर इसे "मुक्ति जी" का लिखा लेख समझ लिया था, आश्चर्य के सागर में गोते लगाते हुए मैंने दो बार पढ़ कर बाद में आपका नाम देखा | अब इसके बाद मेरी प्रतिक्रियाएं आपको काफी हद तक समझ में आ जायेंगी | मैं भी गृह शान्ति में लगा हुआ हूँ इसीलिए आपके लेख पढने या आपके ब्लॉग पर जाने से बचता हूँ इस बार हेडिंग ने भ्रमित कर दिया :) <br />[पढने के बाद मैं खुद को प्रतिक्रिया देने से नहीं रोकता .. आगे से पहले लेखिका का नाम पढूंगा ... बस ]एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-17506332384741921322010-11-24T23:17:07.177+05:302010-11-24T23:17:07.177+05:30Great post and the resistance from some readers re...Great post and the resistance from some readers reflects that the post brings a new perspective for an issue that affects everybody in the society. <br /><br />In addition, girls who hardly go out or wear modern clothes are also molested and abused. The solution is not to keep girls inside the house but to bring a positive change in the society as whole. People need to respect women and know their own moral limitations. <br /><br />Excellent post! Thanks so much.Anjana Dayal de Prewitt (Gudia)https://www.blogger.com/profile/13896147864138128006noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-4595258157235225592010-11-24T22:22:37.386+05:302010-11-24T22:22:37.386+05:30@ गौरव जी
आप मेरी उस जवाब को ...@ गौरव जी <br /><br /> आप मेरी उस जवाब को पढ़िये जो मैंने तदात्मानं सृजाम्यहम् जीको दिया है आप को समझ आ जायेगाकी क्यों मैंने ये कहा है कि मेरा ज्ञान अभी बढ़ा है | सुन पहले से रखा था पर कभी उन शब्दों को वो मतलब नहीं निकाल पाई थी मतलब अब पता चला है | यदि मुझे इसका अर्थ अब पता चला है तो इसका मतलब ये तो नहीं की ये बात पहले समाज में थी ही नहीं |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-65264644242654136782010-11-24T22:16:15.686+05:302010-11-24T22:16:15.686+05:30@ गौरव जी
आप के लिए क्या कह सकती ह...@ गौरव जी <br /><br /> आप के लिए क्या कह सकती हुं पहले ही कह चुकी हुं की इस पोस्ट को किसी संस्कार से या धर्म से ना जोड़े मैं लेख में लिख चुकी हुं | बाकी आप की मर्ज़ी आप अपनी इच्छा से कुछ भी समझने के लिए स्वतंत्र है | अब जबकि खुद दीप जी ने कह दिया है की ये उनके विषय को ही आगे बढाया है तो एक बार उनकी आखरी पोस्ट पढ़ लीजियेगा | <br /><br /><br />@ दीप जी <br /><br /> बिल्कूल मेरे मुह से भी यही निकला था जब मैंने आप की ये पोस्ट पढ़ी थी क्योकि इस बारे में मैंने काफी पहले सुन रखा था पर कभी भी उन शब्दों का मतलब निकालने की जहमत नहीं उठाई थी पर जब आप ने साफ लिखा तो दिमाग का बल्ब जल गया | यु पी तो नहीं जा सकी पर यहाँ मुंबई में तुरंत उन शब्दों के बारे में पूरी जानकारी ली तो उन्होंने भी वही बात कही जो आप ने लिखी थी | तब समझ में आया की वह ये बात तो पूरे भारत में प्रचलित है बस खुल कर सामने नहीं आती है | <br /><br />आप ने बिल्कूल सही कहा हम शायद किसी और ही ग्रह में रहते है जहा हमें ऐसी बाते सुनने को मिलती है और कुछ लोगों को ये सब ना कभी दिखाई देता है और ना कभी सुनाई देता है | धन्यवाद दीप जी |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-17114708881708807192010-11-24T22:06:17.245+05:302010-11-24T22:06:17.245+05:30मेरे पिछले कमेन्ट में
"तो मैं कैसे मान लिया ...मेरे पिछले कमेन्ट में<br /><br />"तो मैं कैसे मान लिया की ये समाज की मानसिकता है "<br /><br />को ये पढ़ें<br /><br />"तो मैं कैसे मान लूं की ये समाज की मानसिकता है"एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-14061958973552218252010-11-24T21:58:39.685+05:302010-11-24T21:58:39.685+05:30@विचारी जी
क्षमा चाहूँगा , यहाँ भी उत्तर दे रहा ह...@विचारी जी<br /><br />क्षमा चाहूँगा , यहाँ भी उत्तर दे रहा हूँ मुझे लगता है <br />आपकी कही बात पर नहीं आपके मित्र की कही बात पर विचार हो रहा है<br />दूसरी बात ये है की <br /><br />इस लेख में ये पंक्ति है<br />@अभी हाल में मेरा ज्ञान बढ़ा की लड़कियों के नाक कान इस लिए छिदवाए जाते है<br />...और आपके लेख में भी<br />@इस विषय में मेरे एक मित्र ने मुझे बड़ी रोचक बात बताई.<br /><br />जब आप दोनों लेखकों का ज्ञान [और मेरा भी ]अभी अभी बढ़ा है तो मैं कैसे मान लिया की ये समाज की मानसिकता है , आप लोग अभी तक इसी समाज का तो हिस्सा थे ना ? :) .... रही जानकारी की कमी की बात तो वो तो पुरुषों के स्वास्थ्य के प्रति भी समाज में उतनी ही है जितनी स्त्रियों के स्वास्थ्य विषय में<br /><br />[इस कमेन्ट के लिए क्षमा चाहता हूँ पर ये बात भी सोचने वाली है ना !]एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-25948366478181653282010-11-24T21:12:54.241+05:302010-11-24T21:12:54.241+05:30उई माँ ये तो मेरी कही बात पर ही विचार हो रहा है......उई माँ ये तो मेरी कही बात पर ही विचार हो रहा है........ <br /><br />भाइयों नाक कान छिदवाने के पीछे के मनोविज्ञान कि बात मैंने ही शुरू कि थी और ये मानसिकता किसी दुसरे ग्रह कि नहीं बल्कि अपने समाज कि है. थोडा समाज के अलग अलग वर्गों में विचरण करें आपको आसानी से ऐसी बातें करते लोग मिल जायेंगे. वैसे मेरे ब्लॉग पर दी गए टिप्पणियों को ध्यान से पढ़े तो भी बहुत जगहों पर आपको इस मानसिकता का समर्थन करते इशारे मिलेंगे. <br /><br />वैसे मैं किसी बेनामी कि इस टिप्पणी के लिए तैयार हूँ जिसमे वो कहेगा कि बेटा जिस समाज में तू विचरता है वही होती होंगी ऐसी बातें अपने यहाँ नहीं होती.VICHAAR SHOONYAhttps://www.blogger.com/profile/07303733710792302123noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-46277096346475488532010-11-24T21:01:14.011+05:302010-11-24T21:01:14.011+05:30@सभी धर्म में विश्वास या समझ या दोनों न रखने वालों...@सभी धर्म में विश्वास या समझ या दोनों न रखने वालों से अनुरोध <br /><br />जिस बात [धर्म/संस्कार] को आप मानते या जानते नहीं है उसे अपने व्यंग में शामिल ना करें और करें तो कुछ सकारात्मक तथ्य भी लिख दें. गूगल तो सभी के घर पर ओपन होता है <br />[इससे आप व्यंग करने के साथ साथ अपने देश के लिए भी अच्छा काम कर देंगे और लेख संग्रह योग्य हो जाएगा और उसके साथ आपके विचार भी ] <br />जिस समाज की आप बात कर रहे हैं उसके युवा [ स्त्री पुरुष दोनों ] तो अब पता नहीं कहाँ कहाँ छिदवाने लगे हैं , महानगर में रहने वाले बेहतर जानते होंगे | संस्कृति भी स्त्री की तरह ही है, अपने ही व्यंगो से अनजाने में उसे धराशाही ना करें, उस संस्कृति नाम के गुब्बारे की हवा तो वैसे ही बहुत से लोग निकाल रहे हैं और वही एक गुब्बारा है जो हम सब को बचा सकता है |<br /><br />बस यही निवेदन है ..... आगे जैसा आप चाहें<br /><br /> ~~~~~~शुभकामनाएं~~~~~~~~एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-56830392951695792662010-11-24T20:59:09.290+05:302010-11-24T20:59:09.290+05:30ठीक है .... काफी इतंजार हो गया ......
@रचना दीदी,...ठीक है .... काफी इतंजार हो गया ......<br /><br />@रचना दीदी,<br /><br />आपकी दी गयी डेफिनिशन वाली टिप्पणियाँ नहीं पढ़ रहा हूँ, मैं बस इतना जानता हूँ अगर किसी दुर्जन के मन में व्यंग भाव आता होगा तो उसके लिए अक्सर द्वीअर्थी संवाद हथियार बन जाते होंगे| किसी सज्जन के मन में व्यंग करने की इच्छा होने पर मुझ जैसे अल्पज्ञानियों का ज्ञान वर्धन ही होता है (अक्सर तथ्यों द्वारा)<br />[सज्जनता के सबसे उत्तम उदाहरण के तौर पर आदरणीय अमर कुमार जी, सुज्ञ जी, प्रवीण शाह जी की टिप्पणियाँ पढ़ी जा सकती हैं] <br />@ .... wahii hotaa haen jo aap pichchlee post mae padh chukae haen<br />पिछली पोस्ट की एक दिशा थी (एक से ज्यादा नहीं ) ..... सन्दर्भ था और आप गौर करें मैंने वहां सिर्फ एक टिप्पणी की है इसका क्रेडिट लेखिका (आपको) जाता है ... सभी लोगों ने वहां सोचा ज्यादा लिखा कम | <br />@.... jawaab is liyae nahin daetee hun kyuki dartee hun aap kae jazbae sae jo nirantar kament par kament daetaa haen<br />दीदी, यहाँ "जज्बे" की जगह आप "पागलपन" भी लिख देती तो भी मैं बुरा नहीं मानता |मैं तो टिप्पणी प्रकाशित ना होने पर भी बुरा नहीं मानता सिर्फ लेखक/लेखिका तक अपनी बात पहुंचाना ही मेरा मकसद होता है इसीलिए हटाने का ऑप्शन भी साथ में लिखता हूँ <br /><br />इस वाक्य.....<br />@ aur isko mera sneh hi smajhae<br />और इस वाक्य में बहुत फर्क है ना.....<br />@ लेख को एक बार फिर ध्यान से पढ़िए <br />[मैं तो वैसे भी शुभकामनाएं दे कर चला ही गया था ]<br /><br />अब टिप्पणी टुकड़ों में नहीं कर रहा हूँ , अब तो ठीक हैं ना :)<br /><br />सस्नेह<br /><br />गौरवएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-86263641567506372702010-11-24T20:13:24.771+05:302010-11-24T20:13:24.771+05:30लेख लिखने का अर्थ बस इतना है की समाज में ऐसी सोच भ...लेख लिखने का अर्थ बस इतना है की समाज में ऐसी सोच भी प्रचलित है थोड़े ही सही पर लोगों के मन में ऐसी बाते है | ये एक सोच है कई अन्य विषयों पर भी कई लोगो की ऐसी ही सोच है और यही थोड़े थोड़े लोग मिल कर बहुत ज्यादा लोग बन जाते है | कोई किसी विषय पर तो कोई किसी विषय पर महिलाओ के लिए इस तरह की सोच रखता है उन्हें घर से बाहर निकालने से रोकने के लिए उन्हें अपने नियंत्रण में रखने के लिए | मै भी ये बात नहीं मानती हु की नारी पर सारे अत्याचार पुरुष ही करता है या वो ही जिम्मेदार है मैंने हमेसा व्यवस्था समाज की बात की है | ये कुछ ऐसे मुद्दे है जो कभी भी सामने नहीं आते है और समाज के अन्दर ही अन्दर फैलाते रहते है और आने वाली पीढ़ी को भी अपने गिरफ्त में ले लेते है | ये लेख ऐसे मुद्दों को सामने लाने के लिए है बस इससे ज्यादा कुछ नहीं |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-27268478553185541452010-11-24T20:05:49.944+05:302010-11-24T20:05:49.944+05:30@ तारकेश्वर गिरी जी
यदि तिल का ताड़ बनना हो...@ तारकेश्वर गिरी जी <br /><br /> यदि तिल का ताड़ बनना होता तो इस पर एक लंबा लेख लिख दिया जाता और पुरुषों को दुनिया जहान की बाते सुना दी जाती | पर उद्देश्य बस इतना था कि लोगों का ध्यान इस तरह कि सोच पर भी जाये |<br /><br /> <br /><br />@ तदात्मानं सृजाम्यहम् जी <br /><br /> प्रतिपादन छोटा और केवल एक ही विषय पर इसीलिए रखा गया ताकि कोई वो ना कहे जो ऊपर गिरी जी ने कह दिया मैं बात को लंबा खींचने के बजाये सिर्फ मुद्दे तक ही रखना चाहती थी |<br /><br />रही बात मान्यता कहा की ये कोई मान्यता है ही नहीं , ये सिर्फ पुरुषवादी सोच है और मैंने लेख में साफ लिखा है की ये सिर्फ सोच है मान्यता नहीं | ये सोच मैंने काफी साल पहले यूपी में सुनी फिर मुंबई में भी सुनी शब्द ज़रूर थोड़े अलग थे जैसे गर्मी निकलना और नियंत्रित रहना मैं कभी इन शब्दों का ये मतलब नहीं निकाल पाई थी | जब एक ब्लॉग पर उन का मतलब साफ लिखा गया तो मुझे भी समझ आया की ओह तो इन शब्दों का ये मतलब है | उन ब्लॉगर ने भी यही बात कही थी की ये बे मतलब की बात है और मैं भी यहाँ यही कह रही हुं |<br /><br />आप को ये कहने की जरुरत ही नहीं है की@ "नाक-कान छिदवाने की तो संभव है कि इससे स्त्री का स्त्रीपन-उसका सौंदर्य निखरता है" आप शायद कह रहे है मै तो साफ कह रही हु की ये केवल सजना सवरना ही है मै तो इसे धर्म से भी नहीं जोड़ रही हु और ना ही इस पर आपत्ति उठा रही हु | <br />@सच तो यह है कि स्त्री-पुरुष दोनों में समान गर्मी होती है। फिजिकल एक्ट हों अथवा सेक्सुअल एक्ट्स-नर-नारी अपनी बनावट के अनुरूप व्यवहार करते हैं।<br /><br /> जी हा मै भी यही मानती हु और पुरुष के नाक कान छेदने की बात करना केवल एक व्यंग्य है कि यदि लड़कियों कि सुरक्षा का सवाल है तो उनकी ही गर्मी निकाल दी जाये |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-72423379529675052652010-11-24T20:01:21.241+05:302010-11-24T20:01:21.241+05:30hamesha se nari ki durgati ke liye purush ko jimme...hamesha se nari ki durgati ke liye purush ko jimmedar thahraya jata rahahai bahut had taq yeh sahi bhi hai kintu kuchh had taq nari khud bhi iske liye jimmedar hai .apna adhikansh samay nari shringar melaga deti hai.roz chain lut-ti hain aur tab bhi chain pahanna chhodti nahi ye kya hai.isliye purush ki taraf se dhyan hata kar yadi apna dhyan pragti path par lagaye to purane dukh bhoolne me aasani hogi aur unnati path gami hogi.Shalini kaushikhttps://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-45410827201173620262010-11-24T18:52:21.062+05:302010-11-24T18:52:21.062+05:30विचारणीय...विचारणीय...फ़िरदौस ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/09716330130297518352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-28644222703992244582010-11-24T18:22:11.319+05:302010-11-24T18:22:11.319+05:30विषय तो अच्छा है, परंतु इसका प्रतिपादन दो कौड़ी का...विषय तो अच्छा है, परंतु इसका प्रतिपादन दो कौड़ी का। अव्वल तो लेखिका ने यह नहीं बताया कि कौन से लोग हैं, कहां पर यह मान्यता है कि नाक-कान छिदवाने से लड़कियों की गर्मी निकल जाएगी। लेखिका का दृष्टिकोण उचित नहीं लगता। वह पुरुषों की बात पर मुंह चिढ़ाकर लिख रही हैं। इससे एक अनावश्यक द्वंद्व उत्पन्न होता है। रही बात नाक-कान छिदवाने की तो संभव है कि इससे स्त्री का स्त्रीपन-उसका सौंदर्य निखरता है, इसलिए यह प्रचलन हो। अब तो लड़के भी छिदवाते नजर आते हैं, परंतु यह बचकानापन ही लगता है। सबके पास नौ छेद हैं, चाहे स्त्री हो या पुरुष और उन्हीं का व्यवहार किया जाना चाहिए। प्रकृति ने कोई बेदभाव नहीं किया है। पुरुष का अपना सौंदर्य है, स्त्री का अपना। दोनों को अलग करने का प्रयास बेतुका है। विपरीत लिंग का ही तो सारा खेल है-सारा आकर्षण है। लेखिका का कहना है, पुरुषों में दो-चार छेद और करके उनकी गर्मी क्यों न निकाल दी जाए। सच तो यह है कि स्त्री-पुरुष दोनों में समान गर्मी होती है। फिजिकल एक्ट हों अथवा सेक्सुअल एक्ट्स-नर-नारी अपनी बनावट के अनुरूप व्यवहार करते हैं। सामाजिक जीवन में बहुत सी अंध मान्यताएं पहले भी थीं, अब नए-नए रूप में प्रचलित हो रही हैं। तथाकथित माडर्निटी ने बेड़ा ही गर्क किया है चाहे स्त्री हो या पुरुष। जहां तक स्त्री को दोषी ठहराए जाने की बात कही गई है, तो हर संभ्रात को लगता है कि नग्नता अच्छी बात नहीं। न स्त्रियों को उत्तेजक विज्ञापन बनना चाहिए न पुरुषों को। सेक्स का निमंत्रण देकर किसी घटना को बलात्कार कहने का प्रचलन बढ़ रहा है, ठीक दहेज निरोधक कानून के दुरुपयोग की तरह। आचरण प्रभावी उन्नत न होगा तो दुर्गति तय़ है। नुकसान न स्त्री का है, न पुरुष का। यह सभ्यता का नुकसान है, चाहे बलात्कार के रूप में हो चाहे बलात्कार के मिथ्या आरोप के रूप में।तदात्मानं सृजाम्यहम्https://www.blogger.com/profile/17998161682045005502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-51133706741524358342010-11-24T18:06:27.080+05:302010-11-24T18:06:27.080+05:30This comment has been removed by the author.फ़िरदौस ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/09716330130297518352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-41638935239824946162010-11-24T15:57:39.385+05:302010-11-24T15:57:39.385+05:30एक बात और जब भी बात धर्म समाज या संस्कृति का नाम ऐ...एक बात और जब भी बात धर्म समाज या संस्कृति का नाम ऐसे मामलो मे लिया जाता है तो अक्सर ये कहा जाता है कि आपको सब नकारात्मक ही क्यो दिखाई देता है तो यह बिल्कुल वैसे ही है कि जब हम अपने शरीर के एक हिस्से मे पीडा का अनुभव करते है तो सिर्फ उसी के बारे मे दूसरो को बताते है ताकि कोई समाधान सुझाया जाए न कि अच्छे से कार्य कर रहे अंगो की तारीफ करते है ।धर्म मे बहुत सी अच्छी बाते भी है मै जानता हूँ परँतु बहूत सा विरोधाभास भी है ।और व्यवहार मे जो गलत है उसे ही ज्यादा अपनाया गया है वैसे भी धर्म या संस्कृति के नाम पर कुछ गलत होता है तो समस्या उससे है न कि खुद धर्म से ।फिलहाल ये बात स्त्री मुद्दो के संदर्भ मे कह रहा हूँ आगे जरूरी लगा तो और सपष्ट करेंगे ।राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57833167071908513752010-11-24T15:49:18.901+05:302010-11-24T15:49:18.901+05:30idhar to TIL ka TAD banaya jaa raha haiidhar to TIL ka TAD banaya jaa raha haiTaarkeshwar Girihttps://www.blogger.com/profile/06692811488153405861noreply@blogger.com