tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post2435501140736218281..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: अश्लील विज्ञापन एक समाधान क्युकी हम थानेदार हैं !!!!!!रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-1745243196494594312010-03-21T09:11:06.258+05:302010-03-21T09:11:06.258+05:30@संजय
यहाँ मैने उन विज्ञापनों से निजात का तरीका बत...@संजय<br />यहाँ मैने उन विज्ञापनों से निजात का तरीका बताया हैं । लिंक देखे । और ये पोस्ट अनिल कि पोस्ट पर आये कमेन्ट के ऊपर हैं । हम से कहा गया अनिल कि पोस्ट परे आये कमेन्ट मे हम कुछ करे क्युकी हम थानेदार हैं लीजिये कर दिया ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-16060494380495867122010-03-21T07:44:16.127+05:302010-03-21T07:44:16.127+05:30रचना जी, विज्ञापनों का जो मुद्दा उठाया गया है वह अ...रचना जी, विज्ञापनों का जो मुद्दा उठाया गया है वह अपनी जगह ठीक है। वहाँ विचित्र व आपत्तिजनक विज्ञापनों की बात हो रही थी।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-69062499769794498042010-03-20T20:56:37.293+05:302010-03-20T20:56:37.293+05:30आपका यह विचार कितना सही है ?
"हिंदी ब्लॉगर क...आपका यह विचार कितना सही है ?<br /><br />"हिंदी ब्लॉगर कितना पढते हैं और कितना उनका पूर्वाग्रह हैं इसी से पता चलता हैं"डॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-73436223859641816062010-03-20T18:53:35.971+05:302010-03-20T18:53:35.971+05:30यहाँ बहुत ही सही विमर्श किया जा रहा है....
इस तरह...यहाँ बहुत ही सही विमर्श किया जा रहा है....<br />इस तरह के विज्ञापनों का बहिष्कार होना ही चाहिए...<br />मैंने भी अपने आलेख में यही आह्वान किया है कि ऐसी पत्रिकाओं, विज्ञापनों का बहिष्कार होना ही चाहिए...<br />अनिल जी की शुक्रगुजार हूँ मैं....उन्होंने यह मुद्दा बहुत ही जिम्मेदारी से उठाया...<br />यह कहना कि यह समस्या सिर्फ महिलाओं की है और उन्हें ही इसपर बात करनी चाहिए....ठीक बात नहीं है....<br />हर पुरुष महिला से भावनात्मक रूप से जुड़ा ही होता है ..फिर चाहे वो उसकी पत्नी हो, पुत्री, माँ, बहन या बेटी...इसलिए ना चाहते हुए भी यह समस्या सिर्फ महिलाओं की ही नहीं पुरुषों की भी है...और इसका बहिष्कार एकजुट होकर करना चाहिए...ऐसा मामलों में ये अलगावकी बात नहीं जंचती...<br />अनिल जी ने आखिर इस मूदे को उठाया एक पुरुष होकर..यह बताता है कि वो न सिर्फ एक जिम्मेदार नागरिक हैं अपितु वो सही मायने में बदलाव चाहते हैं...<br />एकबार फिर अनिल जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहूंगी..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-16128925652085493092010-03-20T17:06:37.779+05:302010-03-20T17:06:37.779+05:30उदारता हमारे चिन्तन और व्यबहार मे होनी चाहिये ना क...उदारता हमारे चिन्तन और व्यबहार मे होनी चाहिये ना कि सिर्फ़ निष्कर्ष निकालने मे.<br /><br />naariyonne hamesha yahii kiya aur iska khamiyaajaa wo aaj tak uthaa rahee haen isiiliyae agar ab wo apni galti sudharna chahtee haen to itni hayaa touba kyunAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-34221103342933689162010-03-20T16:21:03.585+05:302010-03-20T16:21:03.585+05:30@ रचना जी
GALAT SABKAE LIYAE GALAT HONA CHAIYAE
म...@ रचना जी <br />GALAT SABKAE LIYAE GALAT HONA CHAIYAE<br />मै यही मानता हू कि सही सही होना चाहिये और गलत गलत. दूसरे मै ये कभी पसन्द नही करता कि दूसरे तय करे कि किसी ( व्यक्ति या समूह )को क्या करना चाहिये. मेरा मत ये था कि किसी को लिन्ग के आधार पर ना तो गलत सही बताना चाहिये और ना ही किसी की इसी आधार पर की गई गलती के लिये उदार होना चाहिये. उदारता हमारे चिन्तन और व्यबहार मे होनी चाहिये ना कि सिर्फ़ निष्कर्ष निकालने मे.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13199219119636372821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-13581838998187721892010-03-20T10:37:50.118+05:302010-03-20T10:37:50.118+05:30@harisharma
किसी भी अनाचार के प्रति हमारी सोच लि...@harisharma <br /><br />किसी भी अनाचार के प्रति हमारी सोच लिन्ग भेद और पूर्वाग्रह रहित हो तभी सन्तुलित निष्कर्ष तक पहुच सकते है<br />is post mae yahii baat haen ki agar ham sammantaa ki baat karey to jo purush kae liyae sahii haen wahii stri kae liyae sahii hona chahiyae lekin kyaa esa haen nahin kyuki stri ka shareer purush kae liyae stri kae astitav sae jyadaa important hota haen <br />aap sab jagah samantaa lae aaye stri ko shareer sae upar uth kar daekhae phir stri ko samjhaaye kyaa sahii haen aur kyaa galat haen <br /><br />ling bhedh karna aur phir naetiktaa ki baat karna apane aap me virdohabaas haen <br /><br />GALAT SABKAE LIYAE GALAT HONA CHAIYAE ??Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-52537009039136077702010-03-20T09:44:29.166+05:302010-03-20T09:44:29.166+05:30घुघूती बासूती जी ने वहुत कुछ कह दिया है. लेख पर एक...घुघूती बासूती जी ने वहुत कुछ कह दिया है. लेख पर एक जगह जाकर थोडा रुक जाना पडा <br /><br />( किसी भी विज्ञापन मे काम कर रही महिला के प्रति असहिष्णु होने से पहले ये जरुर सोचे कि वो मात्र एक मोडल हैं और ये भी कि किसने सिखाया हैं नारी को कि वो अपने शरीर को जरिया बना कर पैसा / रोजी रोटी कमा सकती हैं । कौन पढता हैं प्ले बौय मैगजीन , कौन देखता हैं एफ टी वी और कौन लेता हैं किंग फिशेर कैलेंडर , कौन सा वर्ग हैं ?? )<br /><br />किसी भी अनाचार के प्रति हमारी सोच लिन्ग भेद और पूर्वाग्रह रहित हो तभी सन्तुलित निष्कर्ष तक पहुच सकते है. कोई अनाचार किसी की रोजी रोटी है तो भी वह दोष मुक्त कैसे हो सकता है ?<br /><br />मुझे नही लगता कि किसी भी मोडल के पास उस काम को करने के अलावा जीवन जीने के और सार्थक विकल्पो का अभाव रहा होगा.<br /><br />बहुत सोचने पर भी नही सोच पाया तब यहा अपनी बात रख रहा हू.<br /><br />यह बहस बहुत सार्थक है और मै हर स्तर पर बिना जरूरत महिला शरीर की बाजारू प्रस्तुतिकरन के खिलाफ़ हू.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13199219119636372821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-30348339754269452552010-03-20T01:01:52.717+05:302010-03-20T01:01:52.717+05:30कई दफा कुछ टिप्पणियां पोस्ट को सार्थक बना देती हैं...कई दफा कुछ टिप्पणियां पोस्ट को सार्थक बना देती हैं. घुघूती जी की टिप्पणी ऐसी ही है. उनसे सहमत.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-37499829307665779472010-03-19T18:53:48.551+05:302010-03-19T18:53:48.551+05:30घुघूती बासूती जी से शत-प्रतिशत सहमत. पुरुषों की भा...घुघूती बासूती जी से शत-प्रतिशत सहमत. पुरुषों की भाषा सदियों की सोशल कंडीशनिंग का परिणाम है. यह इतनी जल्दी दूर नहीं होने वाली. इसके लिये औरतों को अभी बहुत संघर्ष करना पड़ेगा. लेकिन तब तक जहाँ तक संभव हो सकेगा, हम इन बातों का विरोध करेंगे.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-47187067293717117022010-03-19T17:19:28.934+05:302010-03-19T17:19:28.934+05:30रचना जी, विज्ञापनों का जो मुद्दा उठाया गया है वह अ...रचना जी, विज्ञापनों का जो मुद्दा उठाया गया है वह अपनी जगह ठीक है। वहाँ विचित्र व आपत्तिजनक विज्ञापनों की बात हो रही थी। <br /> <br />समस्या रवैये या कहिए attitude की है। इसका कोई सरल उपाय नहीं है। यह रवैया ही टिप्पणियों में चाहे अनचाहे झलकने लगता है। यह सदियों के अनुकूलन/ conditioning का परिणाम है। स्त्रियों का यहाँ, वहाँ, हर ब्लॉग पर भ्रमण करना कुछ व्यक्तियों के अवचेतन मन पर वही प्रभाव छोड़ता है (प्रहार करता है ) जो एक दो पीढ़ी पहले स्त्रियों को अड़ोस पड़ोस में जाकर बैठने, बतियाने, या मेला देखने, घूमने जाने पर होता था। लगता था कि ये खाली (पंजाबी में वेल्ली जनानी ) औरत समय बरबाद कर रही है। यह फालतू, घटिया औरत है। स्त्री से हर समय स्वयं को काम में व्यस्त रखने की अपेक्षा की जाती थी। यदि सब काम खत्म हो जाएँ तो सिलाई, कढ़ाई, बुनाई तो कर ही सकती थी,(मैं भी करती रही हूँ।) किसी का सिर या पैर दबा सकती थी। <br /><br />लोग कहना तो शायद सही ही चाहते हैं किन्तु आदत ही ऐसी पड़ गई है कि यदि स्त्री की बात करनी है तो कुछ छोटा दिखाने वाले ( derogatory) शब्द या भाषा, या फिर सीख देने वाली भाषा अनचाहे ही अपने आप कूदकर चली आती है। मायावती, सोनिया,ममता व अपने कार्यक्षेत्रों में जब अधिक से अधिक सामना स्त्री बॉसेज़ से होने लगेगा तो यह सब अपने आप ही छूटता जाएगा। यह कुछ कुछ वैसा ही है जैसे छोटे बच्चे से बात करते समय बहुत से लोग तुतलाने वाली भाषा की मोड में आ जाते हैं, बच्चे के गाल नोचने लगते हैं आदि। हम हर समय चैतन्य नहीं रहते हैं, प्रायः स्वचालित/ औटो पायलेट वाली मोड में जीते हैं और यह उनकी स्वाभाविक यन्त्रवत प्रतिक्रिया होती है।<br /><br />जहाँ तक 'स्त्रियाँ कहाँ हैं, क्यों नहीं बोल रहीं' का उत्तर है तो क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप समाचारपत्र पूरा का पूरा बिना एक स्त्री के रूप में आहत हुए पढ़ लें? या फिर ढेर सारे ब्लॉग बिना आहत हुए पढ़ लें? हाँ, हमें आपत्ति करनी चाहिए किन्तु कब तक और किस किस की? हम करते हैं, परन्तु बीच बीच में चुप भी हो जाती हैं। कश्मीर में स्त्रियों की नागरिकता को लेकर, महाराष्ट्र में बच्चों के अधिवास को लेकर जहाँ डोमिसाइल उस ही को मिलेगा जिसका पिता महाराष्ट्र में पैदा हुआ हो,या न्यायाधीष जब कहें कि पीड़िता को अपने बलात्कारी से विवाह करने का अधिकार होना चाहिए? हाँ, अवश्य होना चाहिए। किन्तु तब जब वह अपनी सजा भी पूरी कर ले। घर, बाहर, सड़क, दफ्तर, कॉलेज कौन सा स्थान ऐसा है जहाँ हमें इस रवैये का सामना नहीं करना पड़ता? यदि सड़क पर पुरुष सीटी बजाता है,बुरा व्यवहार करता है तो हमें कपड़ों पर उपदेश मिल जाते हैं। यदि स्त्री का बलात्कार होता है तब भी। यदि घर पर स्त्री का उत्पीड़न होता है तो या तो यह कहा जाता है कि तुमने ही पति को मारने को उकसाया होगा या यदि सास द्वारा उत्पीड़न हो तो यह सुनने को मिलता है कि 'स्त्री ही स्त्री की शत्रु है।' <br /><br />तो जब आप रैगिंग का विरोध करते हैं तो क्या हम च च च कहने की बजाए यह कहती हैं कि 'पुरुष ही पुरुष का शत्रु है?' या फिर जब आप कहते हैं कि नगर में अपराध बढ़ गया है, हत्याएँ हो रही हैं, खुले आम घूस माँगी जा रही है या फिर जब कहीं पुरुषों पर लाठी चार्ज होता है तो क्या वही ब्रह्म वाक्य 'पुरुष ही पुरुष का शत्रु है' कह देते हैं? या फिर यदि पति दफ्तर से परेशान सताया हुआ,पुरुष बॉस की झाड़ खाकर आता है तो गरम चाय देने या उसके घावों पर मरहम लगाने की बजाए यह कह देती हैं कि 'पुरुष ही पुरुष का शत्रु है।'<br /><br />स्त्री दफ्तर से आती है तो आते से ही उसे रसोई में घुसना चाहिए, पति, ससुर सास को चाय देकर भोजन बनाना चाहिए। क्योंकि वह नौकरी करके किसी पर उपकार नहीं कर रही। बड़ी अफसर होगी तो दफ्तर में। किन्तु जब पति उस ही दफ्तर से उस ही पद से काम करके आता है तो वह थका होता है, उससे उलझना नहीं चाहिए, उसे एक मुस्कान के साथ चाय देनी चाहिए। फिर निर्बाध टी वी देखने देना चाहिए।<br /><br />समाज को बदलने में समय लगेगा। यदि बदलाव में उन्हें अपना लाभ दिखेगा तो जल्दी बदलेंगे यदि हानि तो देर लगाएँगे। खैर बदलना तो पड़ेगा ही। हमें क्रोध आना स्वाभाविक है किन्तु साथ साथ इस समाज की मानसिकता को भी समझना ही होगा। यह समझना होगा कि वे हम पर आक्रमण नहीं कर रहे,हमारे प्रति उनकी भाषा ही ऐसी है,लहजा ही ऐसा है। यदि स्त्री शक्तिशाली बनें,ऊँचे पदों पर बैठें तो देखिए लहजा, भाषा सब बदल जाएँगे, कम से कम स्त्री के सामने तो।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-58717501903670768942010-03-19T17:06:59.806+05:302010-03-19T17:06:59.806+05:30anil ji maene kewal woi kament liyae haen jo naari...anil ji maene kewal woi kament liyae haen jo naari par lakshit haen <br /><br />baat aap ki post ki nahin haen <br />baat haen un kaments ki jo aap ki post par aayae haen <br /><br />aap ki post sae meri haemsha sehmati rhaee haen aur mera kament aap ko wahaan jarur dikhtaa hogaa <br /><br />saadarAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-54058567828130734872010-03-19T16:57:25.216+05:302010-03-19T16:57:25.216+05:30maaf kariyega,mera un post ko likhane ka uddeshya ...maaf kariyega,mera un post ko likhane ka uddeshya mahilaaon ko neecha dikhana nahi balki vigyapan dene vali company ki dushit mansikata ko samane laanaa tha bas.ab is mamle me kisne kya kaha ye uski baat hai,lekin aapne sirf do hi comment liye aur baaki ko undekha kar diyaa ye meri samajh me nahi aayaa.aap chahti to unko bhi jagah de deti,khair ye aapka blog hai aur aap is baare me shayad mujhase behtar samajhati hain.aapne meri post ko zikr ke laayak samjhaa aabhar aapka.Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-74123240740168224432010-03-19T14:37:35.616+05:302010-03-19T14:37:35.616+05:30आप के लेख से पूरी तरह तो सहमत नहीं हूँ
लेकिन जो आप...आप के लेख से पूरी तरह तो सहमत नहीं हूँ<br />लेकिन जो आप ने कहा है वो अपनी जगह ठीक हैAnonymousnoreply@blogger.com