नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

January 28, 2011

सावधान !


This is a true story of a lady at Mumbai.

A woman at a Gas nightclub (Mumbai) on Saturday night was taken by 5 men, who according to hospital and police reports, gang raped her before dumping her at Bandstand Mumbai. Unable to remember the events of the evening, tests later confirmed the repeat rapes along with traces of rohypnol in her blood.

Rohypnol, date rape drug is an essentially a small sterilization pill. The drug is now being used by rapists at parties to rape AND sterilize their victims. All they have to do is drop it into the girl's drink. The girl can't remember a thing the next morning, of all that had taken place the night before. Rohypnol, which dissolves in drinks just as easily, is such that the victim doesn't conceive from the rape and the rapist needn't worry about having a paternity test identifying him months later.

The Drug's affects ARE NOT TEMPORARY - they are PERMANENT. Any female that takes it WILL NEVER BE ABLE TO CONCEIVE. The weasels can get this drug from anyone who is in the vet school or any university, it's that easy, and Rohypnol is about to break out big on campuses everywhere.

Believe it or not, there are even sites on the Internet telling people how to use it. Please forward this to everyone you know, especially girls. Girls, be careful when you're out and don't leave your drink unattended.

(Added - Buy your own drinks, ensure bottles or cans received are Unopened or sealed; don't even taste someone else's drink)

There was already been a report in Singapore of girls drink been Spiked by Rohypnol.

 Please make the effort to forward this to everyone you know.

 For guys - Please inform all your female friends and relatives.

 "Your life is God's gift to you. What you do for others is your gift to God" I had been forwarded this mail you SHOULD do the same.


                       ये एक मेल मेरे पास आई थी, दुनियाँ बहुत सारे लोग हैं और उतनी ही तरह के हैं लेकिन आज के समय में सकारात्मक सोच के उदारहण अगर १० मिल जायेंगे तो नकारात्मक और विध्वंशात्मक तरीके के उससे कई गुण ज्यादा. हमारी सोच अब शायद एक स्थान पर आकर रुक गयी है. 
इसको नारी पर डालने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक ही है कि हम पढ़े और पढ़कर अपने परिचितों को बस इस बारे में जागरूक कर दें. कौन कब किस रूप में हमारा और हमारे शुभचिंतकों का बुरा सोच कर बैठा हो ये नहीं बताया जा सकता है क्योंकि आज कल होने वाली घटनाओं में न रिश्तों कि कोई गरिमा रह गयी है और न ही विश्वास तोड़ने कि कोई हद. 





January 26, 2011

गर फ़िरदौस बर रुए ज़मीन अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त ।






गर फ़िरदौस बर रुए ज़मीन अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त ।

सभी भारतीये नागरिको को अधिकार हैं कि वो तिरंगे को ससम्मान इस देश मे जहां चाहे फेहराये । फिर क्यूँ नहीं कश्मीर मे ? कश्मीर मे लाल चौक पर झंडा फेहराना राजनीति ना होकर अगर देश भक्ति होती तो सारा अवाम खडा हो जाता कश्मीर हमारा हैं और हमारा रहेगा ना केवल इस गणतंत्र पर अपितु आने वाले हर गणतंत्र पर ।

देशभक्त किसी राजनीति के तहत पैदा नहीं किये जा सकते । देशभक्त उठ खड़े होते हैं जब भी देश को उनकी जरुरत होती हैं । भ्रष्ट नेताओं कि राजनीति से ऊपर उठ कर अपने अन्दर देशभक्त होने के जज्बे को हम सब को जिन्दा रखना हैं ।

आज हमे कांग्रेस या बी जे पी कि झंडा राजनीति नहीं चाहिये आज फिर शायद हमे जरुरत हैं किसी "मंगल पाण्डेय या लक्ष्मी बाई" कि जो हमको निजात दिला सके अपने ही देश के कालाबाजारी , भ्रष्ट नेताओं से जो आज हर पार्टी मे मौजूद हैं । वो हिन्दू भी हैं , मुसलमान भी , सिख भी और ईसाई भी पर वो अब हिन्दुस्तानी नहीं हैं , वो अब भारतीये नहीं हैं । देश को बेचने मे उनको एक मिनट नहीं लगता । आम आदमी को मरवाने मे उनको एक सेकंड भी नहीं लगता । बस उनका पेट भरा होना चाहिये ।

आज के दिन
याद करिये वो कुर्बानियां जो एक आम आदमी ने दी थी इस देश को आज़ाद करने के लिये और तैयार करिये फिर उस आम आदमी कि फ़ौज को क्युकी अब दुश्मन घर के हैं कहीं बाहर के नहीं ।

आज के लिये इतना ही

वन्दे मातरम

January 20, 2011

भारतीय पति-पत्नी आपस में कम बातें करते हैं

यह लेख १८ जवारी को नव भारत टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर पढ़ अच्छा लगा तो सोचा आप लोगों के साथ भी इसे शेयर करू | ये लेख आप यहाँ पढ़ कर संजय कुंदन जी को भी टिप्पणी दे सकते है जिन्होंने ये लेख लिखा है |

संजय कुंदन॥
अनेक देशों में दांपत्य जीवन को लेकर आए दिन सर्वेक्षण होते रहते हैं, जिनमें पति-पत्नी के संबंध के बारे में कुछ रोचक तथ्य सामने आते हैं। उनके आधार पर कोई धारणा बनाना तो मुश्किल है, लेकिन कम से कम से यह तो पता चलता है कि वे इस पहलू पर बात करने को तैयार हैं। हमारे देश में इस मामले में कोई कुछ कहने को तैयार नहीं होता। अंतरंग चर्चा में लोग प्रेम या सेक्स संबंधी अपनी इच्छाओं या फैंटेसी पर खूब बातें करते हैं। दूसरों के जीवन में ताकझांक की कोशिश भी खूब होती है, पर अपने दांपत्य की परतें खोलने का प्रयास कोई नहीं करता। महिलाएं अपनी करीबी सहेलियों से थोड़ा बहुत शेयर भी कर लेती हैं मगर पुरुष इस पर कुछ कहना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझता है। वह अपने दांपत्य को इस्पाती घेरों में रखना चाहता है।

साथ होकर भी दूर
भारतीय दांपत्य जीवन की एक विचित्र बात यह है कि यहां पति-पत्नी में संवाद बड़ा कम होता है। गांवों में तो कुछ ऐसे पुराने जोड़े भी मिल सकते हैं, जिनमें जीवन भर एक-दो जरूरी वाक्यों को छोड़कर कभी बात ही नहीं हुई। हालांकि इस बीच उनके बच्चे भी हुए। वे बड़े भी हो गए। उनकी शादी भी हो गई। ऐसा नहीं है कि पति-पत्नी में कोई तनाव या झगड़ा रहा। हो सकता है उनके भीतर एक-दूसरे के प्रति बड़ा प्रेम भी हो। लेकिन संवाद न के बराबर रहा है। ऐसे कुछ लोग शहरों में भी मिल सकते हैं। दरअसल सामंती मूल्यों वाले पारिवारिक ढांचे में स्त्री-पुरुष का संबंध कभी सहज नहीं रहा। स्त्री की दोयम दर्जे की स्थिति ही उसकी बुनियाद रही है। इसलिए स्त्री-पुरुष एक साथ रहते हुए भी दो अलग समानांतर दुनिया में जीते रहे हैं।

चहारदीवारी में जिंदगी
जिन संयुक्त परिवारों की महिमा का खूब बखान होता है, वहां स्त्रियों के लिए कभी कोई निजी स्पेस रहा ही नहीं। हालांकि वहां पुरुषों के लिए भी पर्याप्त पर्सनल स्पेस नहीं रहा, लेकिन उनके लिए बाहर की दुनिया खुली थी, जहां वे अपनी मर्जी से कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र थे। लेकिन उनकी स्त्रियों को तो चहारदीवारी ही नसीब हुई। चूंकि घर सामूहिक रूप से चलाया जाता था इसलिए किसी की कोई निजी जिम्मेवारी नहीं थी। बच्चों की देखभाल की चिंता करने की भी कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि यह कार्य भी सामूहिक रूप से हो रहा था। ऐसे में शारीरिक जरूरत के अलावा अपनी पत्नी के पास जाने का कोई मतलब ही मर्दों के लिए नहीं था। अगर कोई पुरुष इस दायरे से बाहर निकलकर अपनी पत्नी से जुड़ने और अपने सुख-दुख साझा करने की कोशिश करता, तो वह उपहास का पात्र बनता था। हमारे उत्तर भारतीय समाज में पुरुषों के लिए 'घरघुसरा', 'जोरू का गुलाम' और 'मउगा' जैसे संबोधन संयुक्त परिवार के मूल्यों के तहत ही बने होंगे। चूंकि समाज स्त्री को बच्चा पैदा करने वाली मशीन या घर की सेवा करने वाले रोबोट की तरह देखता था, इसलिए वह पचा ही नहीं पाता था कि कोई आदमी अपनी पत्नी से भला क्यों घुल-मिल रहा है।

ऐसे परिवारों में स्त्री - पुरुष संबंध में खासा पाखंड रहा है। एक परिवार में पांच भाई हैं। पांचों शादीशुदा हैं लेकिन वे रात के अंधेरे में सबकी नजर बचाकर पत्नी से मिलने जा रहे हैं , जैसे यह कोई अपराध हो। मंुह अंधेरे ही उन्हें बाहर निकल आना होता था। यही नहीं , कोई आदमी सबके सामने अपने बच्चे को प्यार तक नहीं कर सकता था। हम इस बात पर गर्व करते हैं कि भारत में वैवाहिक संबंध अटूट रहा है , उसमें पश्चिम की तरह कभी बिखराव नहीं आया। लेकिन गौर करने की बात है कि भारतीय दांपत्य कुल मिलाकर स्त्री के एकतरफा समझौते पर टिका हुआ है। जब एक पक्ष को कुछ बोलने की , अपनी अपेक्षाएं रखने की आजादी ही न हो तो तकरार की गुंजाइश क्यों होगी। वैसे जॉइंट फैमिली के खत्म होने के बावजूद संवादहीनता की समस्या खत्म नहीं हुई है। एकदम नई पीढ़ी को छोड़ दें तो आज शहरों में जो पढ़े - लिखे जोड़े हैं , उनमें भी डॉयलॉग की कमोबेश वही कमी बरकरार है। लेकिन इसका कारण समयाभाव नहीं है।

शैक्षिक और सामाजिक विकास के बावजूद पुरुषवादी मानसिकता पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। आज भी मर्द स्त्री को बराबरी का दर्जा देने के लिए मन से तैयार नहीं हैं। अब जैसे कई लोग यह कहते मिल जाएंगे कि ' पत्नी को हर बात नहीं बतानी चाहिए। ' शायद इसी आग्रह के कारण कई लोग दफ्तर की बात घर में नहीं करते। नौकरी हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। कोई व्यक्ति इसके तनावों , द्वंद्वों को पत्नी से शेयर नहीं करेगा तो किससे करेगा ? हो सकता है आपसी बातचीत में कोई रास्ता निकले। लेकिन लोग ऐसा नहीं करते क्योंकि वे पत्नी को इस लायक मानते ही नहीं कि उससे मिलकर कोई हल निकाला जा सके। पुरुष सोचता है कि उसकी पत्नी खाना बनाए , घर सजाए और बच्चों की देखभाल करे , भले ही वह नौकरीपेशा क्यों न हो।

वह दोस्त क्यों नहीं
कई विवाहित लोग एक महिला मित्र की तलाश में लगे रहते हैं। इसके पीछे उनकी दलील यह होती है कि चूंकि उनकी पत्नी बहुत सी चीजों में दिलचस्पी ही नहीं लेती इसलिए उन्हें एक ऐसे दोस्त की जरूरत है कि जिससे वे मन की बात कह सकें। दिक्कत यह है कि पुरुष अपनी पत्नी को दोस्त का दर्जा देने को तैयार ही नहीं है। वह मानता है पत्नी अलग होती है , दोस्त अलग और प्रेमिका अलग। लेकिन अब स्त्री पहले की तरह मजबूर नहीं रही इसलिए वह चुप रहने के बजाय आवाज उठाती है। इस कारण दांपत्य जीवन में तनाव आने लगा है। अगर पत्नी भी दोस्त बन सके तो शायद वैवाहिक संबंधों में मजबूती आएगी।




January 17, 2011

नारी ब्लॉग पर इस पोस्ट का कोई औचित्य नहीं हैं फिर भी ........

आज कल हिंदी ब्लॉग / ब्लॉगर , आभासी दुनिया मे रोमांस के परिणाम देख रहा हैं । रोमांस यानी प्रेम , यानी आत्मिक प्रेम , यानी एक दूसरे के प्रति वो भाव जो किसी और के लिये ना उपजा हो
उफ़ इतना समझाना जब एक दूसरे को पडे कि प्रेम क्या हैं तो प्रेम तो करने का समय कितना मिलता होगा । वो भी आभासी दुनिया मे ।

आज कल तो टीन एजर भी "मूव अहेड " मे विश्वास करते हैं फिर ब्लॉगर प्रेमी युगल या प्रेमी तीकोंड क्यूँ नहीं "मूव अहेड " करते हैं ।
क्यूँ बार बार आप उन्ही ब्लोग्स पर जा कर उन्ही पोस्ट्स को पढते हैं जिनमे आप के विफल प्रेम प्रसंग का विवरण हैं ।

और क्यूँ बार बार आप अपने प्रेम प्रसंगों को ब्लॉग पर डालते हैं , अपनी विफलताओ का इतना प्रचार कौन करता हैं । आप अपना चरित्र हनन खुद कर रहे हैं । आप अपने को उपहास का पात्र खुद बना रहे हैं ।

रोमांस एक fantacy मात्र हैं ये समझना इतना कठिन क्यूँ हैं ??
ब्लॉग पर मुद्दे पर लिखिये शायद कहीं किसी को कोई मुद्दा भा जाए और आप के पास एक "समान सोच " रखने वाला "आत्मिक मित्र " हो जाए ।

ये पोस्ट किसी के भी समर्थन और विरोध मे नहीं हैं हां जिस प्रकार का माहोल यहाँ बनाया जा रहा हैं महिला / पुरुष कि मित्रता को लेकर वो अशोभनीये । प्रेम करिये तो प्रेम कि मर्यादा को निभाना भी सीखिये ।

नारी ब्लॉग पर इस पोस्ट का कोई औचित्य नहीं हैं पर रोमांस मे कहीं ना कहीं नारी पुरुष संबंधो का मिश्रण होता हैं और कुछ दिनों से जो सुनने मे आ रहा हैं वो बेहद गलोच भरा हैं । प्रेम ईश्वर का वरदान हैं अगर आप को मिला हैं तो उसका सम्मान करिये । प्रेम मे लेना नहीं देना सीखिये । प्रेम करिये तो सबसे पहले उसको महसूस करने के लिये चुप रहना सीखिये । और सबसे बड़ी बात अगर प्रेम किया हैं तो "ना " को भी स्वीकारना सीखिये ।

प्रेम जब आप कर रहे थे तो आप बस दो लोग थे फिर आप को प्रेम ख़तम होने के बाद एक "खेमा " क्यूँ चाहिये अपनी बात कहने के लिये ।

January 13, 2011

औरत ही औरत की दुश्मन हैं ।

"औरत ही औरत की दुश्मन हैं ।" जब भी कही नारी सशक्तिकरण की बात करो ये जुमला सामने आ जाता हैं ।

कल रात सोनी टी व़ी पर नया कार्यक्रम शुरू हुआ हैं , एक नया रीयल्टी शो जिस मे दो माँ अपना घर अपना परिवेश बदल कर कुछ दिन दूसरे घर मे बिताती हैं । उस परिवेश मे वो कैसे सामंजस्य बिठाती हैं और कैसे उस घर के लोग उनसे सामंजस्य बिठाते हैं ख़ास कर बच्चे ।

पहले एपिसोड मे पूजा बेदी जो एक सिंगल मदर हैं और अनुराधा निगम जो एक हास्य कलाकार की पत्नी हैं को अपने घर बदलने थे ।
पूजा बेदी का घर एक upper middle class और अनुराधा का घर एक middle class का लगता हैं टी व़ी पर । पूजा बेदी के दो बच्चे हैं और अनुराधा के एक । पहनावे मे पूजा बेदी वेस्टर्न पहनावा पहनती हैं और अनुराधा भारतीये ।

कल के एपिसोड मे पूजा बेदी अनुराधा निगम के घर आकर जो बदलाव लाने की इच्छुक दिखी वो थे
अनुराधा के पति को घर का काम मे हाथ बटाना चाहिये
अनुराधा के पति को अनुराधा के लिये एक मैड रखनी चाहिये ताकि अनुराधा को अपने लिये सोचने का समय मिले
अनुराधा के बेटे की पढाई पर ख़ास ध्यान देना चाहिये क्युकी उसके नंबर बहुत कम आते हैं

निरंतर पूजा , अनुराधा के "हक़ " की लड़ाई के लिये लडती देखी गयी ।

कल के एपिसोड मे अनुराधा निगम , पूजा बेदी के घर आकर बदलाव की बात जो की उसमे सबसे सर्वोपरि बात थी की पूजा के बच्चो को "पिता का प्यार " नहीं मिल रहा ।
पूजा के बच्चो की upbringing सही नहीं हो रही क्युकी पूजा सिंगल मदर हैं ।
अनुराधा ने पूजा की मेड को उकसाया की वो बच्चो के पिता से बात करे इस विषय मे क्युकी मेड भी माँ होती हैं ।

आगे क्या होता हैं क्या नहीं ये तो अलग विषय हैं हां आज भी मिडल क्लास की गृहणियों मे एक सिंगल माँ निशाने पर हैं । उनके लिये सबसे जरुरी विषय हैं की बच्चो की परवरिश सही नहीं हैं अगर पिता से अलग हो कर कोई महिला कर रही हैं , जबकि पूजा बेदी के बच्चों के नंबर अनुराधा निगम के बच्चे के नंबर से कहीं बेहतर दिखाये गए हैं । पूजा बेदी की बेटी ने तो कह भी दिया अनुराधा निगम से की आप को मेरी माँ की अप ब्रीन्गिंग को खराब कहने का कोई अधिकार नहीं हैं और अगर आप ऐसा कहती हैं तो आप की अपनी अप ब्रिंगिंग सही नहीं हैं ।

दोनों महिला का परिवेश एक दम फरक हैं लेकिन एक सशक्त महिला { पूजा बेदी } के रूप मे उभर कर आ रही हैं जो दूसरी महिला के अधिकारों के लिये लड़ रही हैं वही दूसरी महिला { अनुराधा निगम } एक ऐसी महिला के रूप मे उभर कर आ रही हैं जो दूसरी महिला की निजी जिंदगी मे दखल दे कर उसको नीचा दिखाना चाहती हैं । उनके हिसाब से पुरुष / पति के बिना स्त्री और बच्चों का अस्तित्व नहीं हैं और अगर हैं तो अधुरा ही नहीं गलत परिपाटी का सूचक हैं ।


जहां पूजा बेदी जिन्हें समाज उनके नाम से पहचानता हैं " औरत ही औरत की दोस्त हैं" के रूप मे उभर कर रही हैं
वही अनुराधा जिनको समाज मे लोग केवल राजीव निगम की पत्नी के रुपमे पहचानता हैं "औरत ही औरत की दुश्मन हैं " के रूप मे उभर कर रही हैं


रीअल्टी शो केवल पैसे के लिये किये जाते हैं पर इनके पोपुलर होने की वजह से कुछ लोग जिनकी छवि समाज ने गलत बना दी हैं इस प्लेटफोर्म को अपनी छवि को सही दिखने के लिये इस्तमाल करने लगे हैं जैसे पूजा बेदी इस शो मे या श्वेता तिवारी बिग बॉस मे


तलाक शुदा और सिंगल होना क्यूँ गलत हैं ?? कब तक उम्मीद की जा सकती हैं कि औरत कि छवि औरत औरत की दोस्त हैं के रूप मे उभरेगी फिर चाहे वो समाज के किसी भी तबके से हो

January 12, 2011

दहेज़ मृत्यु व कानूनी रुख-३

ऐसी ही स्थिति को देखते हुए अभी हाल में ५ अगस्त २०१० को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दहेज़ हत्या के मामले में आरोप ठोस और पक्के होने चाहिए ,महज अनुमान और अंदाजों के आधार पर ये आरोप नहीं लगाये जा सकते खासकर पति के परिजनों पर ये आरोप महज अनुमान पर नहीं गढ़े जा सकते कि वे एक ही परिवार के हैं इसलिए ये मान लेना चाहिए कि उन्होंने ज़रूर  पत्नी को प्रताड़ित किया होगा .जस्टिस आर.ऍम.लोढ़ा और ऐ .के. पटनायक की खंडपीठ ने यह कहते हुए पति की माँ और छोटे भाई के खिलाफ लगाये गए दहेज़ प्रताड़ना और दहेज़ हत्या के आई.पी.सी. की धारा ४९८-ए तथा ३०४-बी आरोपों को रद्द कर दिया .आरोपियों को बरी करते हुए खंडपीठ ने कहा "वधुपक्ष के लोग पति समेत उसके सभी परिजनों को अभियुक्त बना देते हैं चाहे उनका दूर तक इससे कोई वास्ता ना हो .ऐसे में मामलों  में अनावश्यक रूप से परिजनों को अभियुक्त बनाने से केस पर प्रभाव नहीं पड़ता वरन असली अभियुक्त के छूट  जाने का खतरा बना रहता है .
  इस प्रकार उल्लेखनीय है कि दहेज़ मृत्यु व वधुएँ   जलने की  समस्या के निवारण हेतु सन १९६१ में दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम पारित किया गया था परन्तु यह कानून विशेष प्रभावी न सिद्ध हो सकने के कारण सन १९८३ में दंड सहिंता में धारा ४९८-क जोड़ी गयी जिसके अंतर्गत विवाहिता स्त्री के प्रति क्रूरता को अपराध मानकर दंड का प्रावधान रखा गया .साथ ही साक्ष्य अधिनियम में धारा ११३-क जोड़ी गयी जिसमे विवाहिता स्त्री द्वारा की गयी आत्महत्या के मामले में उसके पति और ससुराल वालों की भूमिका के विषय में दुश्प्ररण सम्बन्धी उपधारना के उपबंध हैं परन्तु इससे भी समस्या का समाधान कारक हल ना निकलते देख दहेज़ सम्बन्धी कानून में दहेज़ प्रतिषेध संशोधन अधिनियम १९८६ द्वारा महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए .साथ ही दंड सहिंता में धारा ३०४-ख जोड़ी गयी तथा साक्ष्य अधिनियम में नई धारा ११३-ख जोड़ी गयी जिसमे दहेज़ मृत्यु के सम्बन्ध  में उपधारना सम्बन्धी प्रावधान हैं .इन सब परिवर्तनों के बावजूद दहेज़ समस्या आज भी सामाजिक अभिशाप के रूप में यथावत बनी हुई   है जो अपराध विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है.
अब मैं आपसे ही पूछती हूँ कि आप इस सम्बन्ध में क्या दृष्टिकोण रखते हैं? जहाँ तक मैं लोगों को जानती हूँ वे बेटी के विवाह पर दहेज़ की चिंता से ग्रसित रहते हैं और इसकी बुराइयाँ करते हैं किन्तु जब समय आता है बेटे के विवाह का तो कमर कस कर  दहेज़ लेने को तैयार हो जाते हैं यही दोहरा व्यवहार हमारी चिंता बढ़ाये जा रहा है.यदि बेटे की पढाई पर माँ-बाप खर्चा करते हैं तो क्या बेटी मुफ्त में पढ़ लिख जाती है?उसे पालने पोसने में उनका कोई खर्चा नहीं होता फिर लड़की के माँ -बाप से लड़के के पालन-पोषण का खर्चा क्यों लिया जाता है?इसके साथ ही एक स्थिति और है जहाँ अकेली लड़की है वहाँ तो उसके ससुराल वाले ये चाहते हैं की लड़की के माँ=बाप से उनका जीने का अधिकार भी जल्दी ही छीन लिया जाये और इस जल्दी का परिणाम ये है कि अकेली लड़कियां दहेज़ का ज्यादा शिकार हो रही हैं.ये समस्या हमारे द्वारा ही उत्पन्न कि गयी है और कानून इस सम्बन्ध में चाहे जो करे सही उपाय हमें ही करने होंगे और हम ऐसा कर सकते हैं.
     पिछली पोस्ट में राजन जी ने जो पूछा था बता रही हूँ-
१-सजा कम से कम ७ साल और अधिक से अधिक आजीवन कारावास है,
२-सात वर्ष के बाद के मामले की  खोज कर रही हूँ जल्द ही बताने की कोशिश करूंगी.
३-मायके वालों के बयानों की पुष्टि आवश्यक है.महत्व कोर्ट हर विश्वसनीय बयान को देती है.

दहेज़ मृत्यु व कानूनी रुख-२

आपने मेरी पहली पोस्ट में दहेज़ मृत्यु के सम्बन्ध में भा.दंड सहिंता की धारा और इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णय पढ़े .अब आगे मैं इसी सम्बन्ध में की गयी कुछ और व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी आपको दे रही हूँ आशा है कि आप लाभान्वित होंगी.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा ११३-अ उन दशाओं का वर्णन करती है जब कोई विवाहिता स्त्री विवाह की तिथि से ७ वर्ष के अन्दर आत्महत्या कर लेती है.धारा ११३-अ कहती है-
"जब यह प्रश्न है कि क्या स्त्री द्वारा आत्महत्या करने की उत्प्रेरणा उसके पति या उसके पति के किसी सम्बन्धी -रिश्तेदार द्वारा दी गयी थी और यह प्रदर्शित किया गया  कि उसने अपने विवाह के दिनांक से सात वर्ष कि अवधि के अन्दर आत्महत्या कारित की थी और यह कि उसके पति या उसके पति के ऐसे सम्बन्धी ने उसके प्रति क्रूरता का व्यवहार किया था तो न्यायालय मामले की सभी अन्य परिस्थितियों में ऐसे को ध्यान में रखते हुए यह उपधारना कर सकेगा कि   ऐसी आत्महत्या उसके पति या उसके पति के ऐसे सम्बन्धी द्वारा उत्प्रेरित की गयी थी ."
इसी तरह साक्ष्य अधिनियम की धारा ११३-बी दहेज़ मृत्यु के बारे में उपधारना के बारे में उपबंध करती है.जो निम्नलिखित है:-
"यह प्रश्न है कि क्या किसी व्यक्ति ने किसी स्त्री कि दहेज़ मृत्यु कारित की है और यह दर्शित किया जाता है कि मृत्यु से ठीक पहले उसे उस व्यक्ति द्वारा दहेज़  की मांग के सम्बन्ध में परेशान किया गया था या उसके साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार किया गया था न्यायालय यह उपधारना करेगा कि ऐसा व्यक्ति दहेज़ का कारण रहा था."
    अब आते है कोर्ट के दृष्टिकोण पर तो ऐसा भी नहीं है कि कोर्ट इस विषय में एकपक्षीय होकर रह गयी  हों .न्यायालय हमेशा न्याय के साथ होते हैं और इस विषय में भी ऐसा ही है .दहेज़ मामलों में वधु-पक्ष द्वारा वरपक्ष के लगभग सभी लोगों को आरोपित कर दिया जाता है इससे एक तो वरपक्ष पर दबाव बढ़ जाता है तो दूसरी और वधुपक्ष का ही मामला कमजोर पड़ जाता है .साथ ही ऐसे मामले बहुत लम्बे खिंच जातें हैं और न्याय में देरी का आक्षेप न्यायलय पर आ जाता है.
अभी आगे और..................

January 08, 2011

नारीवादी नहीं नारी सशक्तिकरण की ध्वजवाहिका हैं आज की नारी

नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं ।

नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं ।

नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब पुरूष की नक़ल करना भी नहीं हैं , ये सब महज लोगो के दिमाग बसी भ्रान्तियाँ हैं ।

नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का बहुत सीधा अर्थ हैं की नारी और पुरूष इस दुनिया मे बराबर हैं और ये बराबरी उन्हे प्रकृति से मिली है। नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट के तहत कोई भी नारी किसी भी पुरूष से कुछ नहीं चाहती और ना समाज से कुछ चाहती हैं क्योकि वह अस्वीकार करती हैं की पुरूष उसका "मालिक " हैं । ये कोई चुनौती नहीं हैं , और ये कोई सत्ता की उथल पुथल भी नहीं हैं ये "एक जाग्रति हैं " की नारी और पुरूष दोनो इंसान हैं और दोनों समान अधिकार रखते हैं समाज मे ।

बहुत से लोग "सशक्तिकरण" से ये समझते हैं की नारी को कमजोर से शक्तिशाली बनना हैं नहीं ये विचार धारा ही ग़लत हैं । "सशक्तिकरण " का अर्थ हैं की जो हमारा मूलभूत अधिकार हैं यानी सामाजिक व्यवस्था मे बराबरी की हिस्सेदारी वह हमे मिलना चाहिये ।

कोई भी नारी जो "नारी सशक्तिकरण " को मानती हैं वह पुरूष से सामजिक बराबरी का अभियान चला रही हैं । अभियान कि हम और आप {यानि पुरूष } दुनिया मे ५० % के भागीदार हैं सो लिंग भेद के आधार पर कामो / अधिकारों का , नियमो का बटवारा ना करे ।

नारी पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं , इस सन्दर्भ मे उसका कोई औचित्य नहीं हैं क्योकि वह केवल नारी - पुरूष के वैवाहिक रिश्ते की परिभाषा हैं जबकि नारी -पुरूष और भी बहुत से रिश्तो मे बंधे होते हैं जहाँ लिंग भेद किया जाता हैं ।


"नारी सशक्तिकरण " पुरूष को उसके आसन से हिलाने की कोई पहल नहीं हैं अपितु "नारी सशक्तिकरण " सोच हैं की हम तो बराबर ही हैं सो हमे आप से कुछ इसलिये नहीं चाहिये की हम महिला हैं । नहीं चाहिये हमे कोई इसी "लाइन " जिस मे खडा करके आप हमारे किये हुए कामो की तारीफ करके कहे "कि बहुत सुंदर कम किया हैं और आप इस पुरूस्कार की हकदार हैं क्योकि हम नारी को आगे बढ़ाना चाहते हैं " । ये हमारे मूल भूत अधिकारों का हनन हैं ।


"नारी सशक्तिकरण " की समर्थक नारियाँ किसी की आँख की किरकिरी नहीं हैं क्योकि वह नारी और पुरूष को अलग अलग इकाई मानती हैं , वह पुरूष को मालिक ही नहीं मानती इसलिये वह अपने घर को कुरुक्षेत्र ना मान कर अपना कर्म युद्ध मानती हैं ।


"नारी सशक्तिकरण " की समर्थक महिला चाहती हैं की समाज से ये सोच हो की " जो पुरूष के लिये सही वही नारी के लिये सही हैं ।

"नारी सशक्तिकरण " के लिये जो भी अभियान चलाये जा रहे हैं वह ना तो पुरूष विरोधी हैं और नाही नारी समर्थक । वह सारे अभियान केवल मूलभूत अधिकारों को दुबारा से "बराबरी " से बांटने का प्रयास हैं ।

"नारी सशक्तिकरण " को मानने वाले ये जानते हैं की इस विचार धारा को मानने वाली नारियाँ फेमिनिस्म का मतलब ये मानती हैं की हम जो कर रहे हैं या जो भी करते रहे हैं हमे उसको छोड़ कर आगे नहीं बढ़ना हैं अपितु हमे अपनी ताकत को बरकरार रखते हुए अपने को और सक्षम बनाना हैं ताकि हम हर वह काम कर सके जो हम चाहे । हमे इस लिये ना रोका जाये क्युकी हम नारी हैं


और हाँ वो लोग जो बार बार मुझे नारीवादी कहते हैं उनकी सूचना हेतु बता दूँ मैने नारीवाद पर कोई किताब कभी नहीं पढी हैं और ना पढुगी । मै नारी पुरुष समानता जो वस्तुत नारी सशक्तिकरण हैं की पुरोधा हूँ सो बार बार मुझे नारीवादी कह कर अपने नारीवाद के ज्ञान का मखोलिकरण ना करे ।


गलत का प्रतिकार करना नारीवाद नहीं हैं अगर आप को ये नारीवाद लगता हैं तो ये महज आप का अल्प ज्ञान हैं । नारीवाद/फेमिनिस्जिम से समय बहुत आगे जा चुका हैं ।

January 05, 2011

दहेज़ मृत्यु व कानूनी रुख

भारतीय समाज का एक वीभत्स स्वरुप   दहेज़ के रूप में दिखाई देता hai .न्यायालय और कानून इस सम्बन्ध में कठोर रुख रखते हैं.जो कि निम्नलिखित है:
  धारा ३०४-ख भारतीय दंड संहिता दहेज़ मृत्यु से सम्बंधित है-
१-जहाँ किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति ने या उसके पति के किसी नातेदार ने ,दहेज़ कि किसी मांग के लिए ,या उसके सम्बन्ध में ,उसके साथ क्रूरता कि थी या उसे तंग किया था वहाँ ऐसी मृत्यु को "दहेज़ मृत्यु "कहा जायेगा और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जायेगा.
२-जो कोई दहेज़ मृत्यु कारित करेगा वह कारावास से ,जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा .
  ये तो हुई अधिनियम की बात ,इसके साथ ही न्यायालय ने भी इस सम्बन्ध में कठोर रुख अपना रखा है
पवन कुमार बनाम हरियाणा राज्य ऐ .आई .आर.१९९८ सु.कोर्ट में यह अभिनिर्धारित किया गया की दहेज़ के लिए करार किया जाना आवश्यक नहीं है .यदि विवाह के तुरंत पश्चात् वधु अथवा उसके माता पिता से रेफ्रीजेरेटर ,स्कूटर आदि की मांग की जाती है तो यह कहा जायेगा की यह विवाह से सम्बंधित है तथा इससे भा.दंड सहिंता के अंतर्गत "दहेज़ की मांग"का मामला गठित होगा.
शांति बनाम हरियाणा राज्य ऐ.आई.आर.१९९१ सु.को.१२२६ के मामले में विनिश्चित किया गया की इस अपराध के लिए मिम्नालिखित तत्वों का होना आवश्यक है:-
१-महिला की मृत्यु अप्राकृतिक दशा में जलने के कारण या शारीरिक चोट के कारण हुई हो.
२-ऐसी मृत्यु मृतका के विवाह के सात वर्ष के अन्दर हुई हो .
३-मृतका को उसके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किया गया हो.
४-ऐसी प्रताड़ना दहेज़ की मांग को लेकर की जा रही हो.
   मृतका की मृत्यु होते ही उसके मायके वालों को कोई सूचना दिए बिना उसका शीघ्रता से दाह संस्कार कर देना एक ऐसी परिस्थिति है जो अप्राकृतिक मृत्यु के संदेह की पुष्टि के लिए एक उचित कारण मानी जा सकती है .
   अभी आगे और मेरी दूसरी पोस्ट में;

January 03, 2011

आखिर कब तक.....

आखिर कब तक......


पुणे में एक माँ ने अपनी दो साल की बेटी को नदी में फेंक दिया। यह उसकी सबसे छोटी बेटी थी। इससे बड़ी दो बेटियां और हैं। उसने जो कुछ किया इसकी सूचना बच्ची की नानी यानी उस मां की मां ने पुलिस को दी। पुलिस का कहना कि महिला डिप्रेशन से पीड़ित थी, पर वो डिप्रेशन से पीड़ित क्यों थी इस बारे में अभी तक किसी ने कुछ नहीं कहा। संभव है कि पहली दो बेटियों के बाद परिवार ने एक बेटे का सपना देखा हो...हो सकता इसके लिए उन्होंने कई मंदिरों और मस्ज़िदों में माथा भी टेका हो, इसलिए तीसरी बेटी के जन्म पर घर में किसी ने खुशी का इज़हार न किया हो। उल्टे परिवार में गहरा सन्नाटा पसर गया हो और मां ने इस बेटी के जन्म देने के लिए स्वयं को बार-बार दोषी ठहराया हो। उसने देखा हो कि किस तरह उसके पति की पेशानी पर पड़ने वाली लकीरें इस बेटी के जन्म के बाद और गहरी हो गईं हैं। भले ही उसने कहा कुछ न हो, पर उसकी खामोशी बहुत कुछ बयां कर गई होगी। और संभव है उसने महसूस किया हो कि अब उसकी बाकी की ज़िदगी इन बच्चियों को बड़ा करने और उनके दहेज का सामान जुटाने में खत्म हो जाएगी। पति की खामोशी और परिवार की उस बच्ची को लेकर बेरुखी के कारण मां के हृदय में एक मर्मात्क पीड़ा ने जन्म लिया होगा। एक ऐसी पीड़ा जिसे वह शब्द तो कभी नहीं दे पाई, परंतु अंदर ही अंदर घुटती रही और एक दिन डिप्रेसन के दौरे में उसने निश्चय कर लिया कि अगर यह बेटी उसके जीवन से निकल जाए, तो उसके परिवार में खुशियां लौट आएंगी और उसने उस बच्ची को नदी में फेंक दिया...क्योंकि अगर वह डिप्रेशन में थी तो उससे किसी सकारात्मक सोच की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। हां, परिवार साथ होता तो स्थितियां कुछ और होती।

हम लाख कहे कि समाज बदल रहा है। लड़के और लड़कियों में अब भेद नहीं किया जाता, पर यह आंशिक सत्य हो सकता है, पूर्ण नहीं। समाज में आज भी विवाह किसी व्यापार से कम नहीं है। बदस्तूर लड़कों की बोलियां लगाई जा रही है। हमारे एक मित्र ने अपनी बेटी की शादी तय की और हमें निमंत्रित करने घर आए। हमने साधारण तरीके से पूछा कितने में हुई। कहने लगे छह लाख में। लड़का नगर निगम में काम करता है। मां-बाप का अकेला है। बिटिया को कोई तकलीफ नहीं होगी। वैसे हमने पहले से उनसे कह दिया है कि अगर हमारी बेटी चाहे तो वो उसे नौकरी करने से नहीं रोकेगे। और वे लोग इस बात पर सहमत है। पर इतना दहेज...उन्होंने बात पूरी करने से पहले ही मुझे टोक दिया। आपको नहीं पता आजकल यही रेट चल रहा है। यह कहते हुए पति या पत्नी के चेहरे पर किसी प्रकार का तनाव नहीं था। दोनों ही बेहद सहज लग रहे थे, ठीक वैसे ही जैसे एक व्यापारी अच्छा सौदा होने पर अपनी खुशी व्यक्त करता है।

यह भारत वर्ष है। जहां औरत को देवी के रूप में पूजा जाता है और दहेज कम लाने के ज़ुर्म में जला कर मार दिया जाता है। कभी-कभी तो जन्म लेने ही नहीं दिया जाता है...साथ ही यह भी कहा जाता है कि लड़की जात जान की बहुत जीकड़ होती है सर्दी-गर्मी सब सह जाती है पर उसे कुछ नहीं होता। सभ्य समाज में लड़कियों का ज़िक्र बहुत ही मार्मिक तरीके से किया जाता है। उन पर कविताएं लिखी जाती हैं, लेख लिखे जाते हैं, वाद-विवाद भी होता है, पर उसे एक मुकम्मल ज़िदगी जीने का हक अभी तक नहीं दिया है।

-प्रतिभा वाजपेयी

January 01, 2011

२०११ का आगमन हो चुका हैं

२०११ मे , मै अपनी हर संभव कोशिश करुँगी की हिंदी ब्लॉग मे किसी भी प्रकार के अश्लील चित्र देखूं तो आपत्ति जाता दू और नारी ब्लॉग पर उस लिंक को देकर लोगो को भी आपत्ति जताने का एक सार्थक मौका दूँ
२०११ मे , मै अपनी हर संभव कोशिश करुगी की हिंदी के किसी भी ब्लॉग पर महिला के ऊपर आपत्तिजनक कुछ भी लिखा जाए उसका विरोध करुँगी और नारी ब्लॉग के सदस्यों से भी आग्रह करुँगी की ऐसे ब्लॉग का बहिष्कार करे लेकिन आपत्ति दर्ज करा कर
२०११ में , नारी ब्लॉग की यही सार्थक और सकारात्मक ब्लोगिंग रहेगी कि हिंदी ब्लॉग मुक्त हो अश्लील तस्वीरो से और ऐसे हास परिहास से जो नारी को दोयम का दर्जा दिलाते हैं

ऐसा कर के ,ना केवल नारी को समान अधिकार होगे अपितु हिंदी ब्लोगिंग भी साफ़ सुथरी होगी जो लोग विदेशी भाषा और पाश्चात्य सभ्यता के विरोधी हैं वो मेरा इस मे पुर जोर साथ देगे ये मेरा विशवास हैं

इसके अलावा , मदिरा पान , धूम्रपान और कोई भी व्यसन जिसको हम नयी पीढ़ी के लिये निषेध करते हैं उसका महिमा मंडन भी हिंदी ब्लोगर ना करे ब्लोगिंग एक सार्वजनिक मंच हैं और यहाँ वही दिखे जो एक सार्वजनिक मंच पर होना चाहिये १८ वर्ष की आयु के ऊपर का हर व्यक्ति स्वतंत्र हैं लेकिन सार्वजनिक मंच की एक गरिमा होती हैं उसको निभाना जरुरी हैं।
मेरा विश्वास हैं कि मेरे इस आग्रह को वो सब जरुर मानेगे जो भारतीये संस्कृति की पैरवी करते हैं और ब्लॉग मे परिवार खोजते हैं

२०११ का आगमन हो चुका हैं चलिये इंतज़ार करे २०१२ का

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