नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

September 30, 2009

इस लड़की को पहचानते हैं ?? ज़रा नाम तो बताये ।


इस लड़की को पहचानते हैं ?? ज़रा नाम तो बताये । गर्व होता हैं ऐसी बेटियों पर और "INDIAN WOMAN HAS ARRIVED कहने का मन होता हें . नाम बताए जल्दी से और आप को भी गर्व हैं या नहीं । कोई संदेश कोई आदेश इस नयी रानी लक्ष्मी बाई के लिये .

September 26, 2009

टी वी के नारी पात्र --------------- सब कमेन्ट एक बार फिर से पाठको के पठन के लिये ।

इच्छा और तपस्या

इस पोस्ट पर ये टिपण्णी आयी हैं

6 Comments:

रेखा श्रीवास्तव said...

वास्तविकता से बहुत दूर होती हैं ये कहानियां. ये उच्च वर्ग और निम्न वर्ग का अंतर कभी मिटेगा ही नहीं. कभी अगर बहुत खुले दिल से किसी ने स्वीकार किया तो मजबूरीवश फिर दुनिया के सामने कुछ और होता है और पीछे कुछ और. पहले वाहवाही लूट ली दरियादिली की और फिर उस लड़की से पूछ कर देखिये. लडके तो ऐसे निर्णय ले सकते है और लेते भी हैं लेकिन घर में रहना है और पति हर वक्त तो साथ नहीं रहता है. पति के निर्णय के सम्मान के लिए वह बहुत कुछ सह लेती है.

अनिल कान्त : said...

दैनिक धारावाहिकों में ऐसी ऐसी कहानियाँ दिखाते हैं जिनका वास्तविक दुनिया से बिल्कुल भी तालमेल नहीं बैठता

MANVINDER BHIMBER said...

क्या ऐसी शादी अगर वास्तविक जीवन मे हो तो निभेगी ?? क्या इतने संभ्रांत परिवार मे एक बस्ती की लड़की का......
वास्तविकता से बहुत दूर होती हैं ये कहानियां.

शोभना चौरे said...

अक उच्च वर्ग परिवार निम्न वर्ग के परिवार को आर्थिक और सामाजिक द्रष्टी से मदद तो कर सकता है लेकिन जिस तारह से उतरण मे दिखया जा रहा है है वो कोरा आद्रश वाद है जो की रोजमर्रा की जिंदगी मे असम्भव है| और अब तो दोस्ती भी अमीर और ग़रीब मे नही होती ,और खुदाना ंखास्ता होती भी है ती ग़रीब एन केन प्रकारेन जल्दी से जल्दी अमीर बनने की जुगाड़ मे लग जाता है |

AAKASH RAJ said...

इस धारावाहिक के सभी पात्र और घटनाएँ काल्पनिक हैं इनका किसी भी वास्तविक घटना से कोई सम्बन्ध नही है, अगर किसी भी घटना से इनका सम्बन्ध दीखता है तो ये मात्र एक संयोग कहा जायेगा|

और आज तो ये घटनाएँ संयोग से भी नही घटित हो सकती हैं|

वाणी गीत said...

सच ही बहुत मुश्किल है वर्ग की खाइयों का पटना मगर फिर भी इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है ..एकता कपूर जैसे धारावाहिकों में तो बिलकुल भी नहीं
नवरात्री की बहुत शुभकामनायें ..!!


अब टी आर पी मे टॉप पर हैं तो मान लेना चाहिये कि ........

पर आयी टिपण्णी

6 Comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

Badhayi ho..achchi shuruaat hai..

अनिल कान्त : said...

रोना तो इसी बात का है

शोभना चौरे said...

kuch salo phle filmo me in sab cheejo ko peeche chod mhilao ne apni apni svtntrta se apni phchan banai thi sadgi se shadi hona apne nirny khud lena .jisme rjnigadha jaisi picture shamil hai kintu aaj un sbhi ko vapis peeche dhkelkar .ghar ghar me t. v. ke madhym se asvastvikta bnavtipan dikhava mhilao se apekshaye ashneey shnsheetlta prosi ja rhi hai .aur jo roj roj thali me aayega vhi khane aadt ho jati hai.

प्रवीण शाह said...

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सुमन जी,
यही तो विडंबना है हमारे समाज की...
एक बात और, इस तरह के धारावाहिकों को टी आर पी मिलती भी महिला दर्शकों से ही है।
क्या किया जाये ?

डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

yadi anyatha na liya jaaye to is vishay par bhi bahut kuchh hai bataane aur dikhane ko.
waise pravin shah ji kii baat men DAM hai.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

टीवी पर धारावाहिक टीआर्पी की सीढ़ी तेजी से चढ़ता है वह वास्तविकता से उतना ही दूर होता है। आजकल टीवी पर लोग केवल मनोरंजन के लिए जाते हैं। ज्ञानी-ध्यानी होने नहीं। अपने आस-पास की दुनिया से थोड़ा अलग माहौल पाने के लिए। टीवी वाले इस बात को समझते हैं और वही सब दिखाते हैं जो सच्ची दुनिया में कहीं नहीं होता। इसलिए चिन्ता की कोई बात नहीं। यह सब चालू विज्ञापनों की तरह देखिए। मन को भारी करने की कोई जरूरत नहीं है।


लड़की का दर्जा उसकी सुन्दरता और रंग से बनता हैं । बकौल धारावाहिक


इस पोस्ट पर आये कमेन्ट

6 Comments:

Yogesh Gulati said...

great! bu the question is who is responsible for this? and the answer you know very well........women! apke dono hi udaharano me ladaki ki maa, jo apani hi beti par ek bigade hue ladke se shaadi kaa dabav banati hai. vo khud bhi naari hi hai. ladke ki sas jo kahti hai ki sari galtiya ladki me hoti hai ladke valo ka koi dosh nahi. vo bhi ek naari hai. aur perfect bride me us ladke ki maa jise gori bahu chahiye vo bhi ek naari hai aur shayd vo khud bhi gehue rang ki hi hai. log ise pasand kar rahe hai kyoki ye bhi hamare samaj ka hi ek pahalu hai! ye hi hamari sachchai hai. kahi na kahi andar se ham sab aise hi hai! lekin shayad sach ka samana karane ko ham taiyar nahi hote. apane dil me jhak kar dekhiye kahi aap bhi to aisi hi soch nahi rakhati hai?

प्रकाश पाखी said...

सही प्रश्न उठाया हैआपने,शायद हमारे समाज में विवाह के लिए लड़की का परफेक्ट होना ही जरूरी है..लड़के के सौ गुनाह माफ़ ..इस मानसिकता को लड़किया ही बदल सकती है...आप जब तक लड़कों को रिजेक्ट करना नहीं शुरू कर देती तब तक इस जुल्म के लिए तैयार रहिये...!

वाणी गीत said...

बहुत सही सवाल..धारावाहिकों में ही क्यों..लगभग सारे विज्ञापनों में भी यही कुछ दिखाया और सराहा जाता है ..
जिस समाज में लड़की की योग्यता उसकी शादी हो जाने तक कुछ मान्यता नहीं रखती ..लड़कियों का आगे होकर रिश्ते को रिजेक्ट करना बहुत मुश्किल है..ऐसी कई जहीन और अच्छी खासी पढ़ी लिखी लड़कियों को कई बार रिजेक्ट कर दिए जाने के कारण मन मार कर माता पिता की ख़ुशी और छोटी बहनों की शादी में अड़चनों को देखते हुए अवांछित लड़कों को पसंद कर जिन्दगी निबाहते देखा है ..
जो माएं इस तरह रिजेक्ट करने का काम करती है..कभी न कभी उन्होंने भी ऐसा रिजेक्शन देखा और झेला है..और दूसरो को रिजेक्ट कर शायद अपने अपमान का बदला इस तरह लेती है ...

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहद उम्दा...सुन्दरता लड़कियों की ही क्यों देखी जाती है, लड़कों की क्यों नहीं...

Dipti said...

ये एक तरह का मनोविज्ञान है। जोकि हमारी भारतीय सोच को जकड़े हुए हैं। इससे उबर पाना मुश्किल है नामुमकिन नहीं। योगेश का कमेन्ट भी सही है कि बहुत हद तक लड़कियाँ भी ज़िम्मेदार होती हैं।

naveentyagi said...

is baat me pooree sachchai nahi hai.hamare samaj me ye vikrti videshiyon ke sath aayi. anytha apala, gargi,meera jaise vidushi mahilayen,aur padymini, jhansi ki rani jaise ver mahilayen apne roop ke karan nahi balki apne guno ke karan hamare man me basti hai.


सुमन की पिछली दो पोस्ट से कुछ आगे की बात आज

इस पोस्ट पर जो कमेन्ट आये

7 Comments:

निशाचर said...

मैं कोई भी टी0 वी० धारावाहिक नहीं देखता क्योंकि केबल टी0 वी० आने के बाद उन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों के एक- आध एपिसोड देखकर ही मन वितृष्णा से भर गया था. इन धारावाहिकों के पटकथा लेखको की अभिरूचि को देखकर क्षोभ और घृणा होती है इसीलिए इन्हें न देखना ही इनके विरोध का एकमात्र उपाय दीखता है.

जहाँ तक बात दिखाई गई प्रवृति की है तो इस विषय में यही कहना चाहूँगा की टी0 वी0 सूचना, संचार और शिक्षण का शशक्त माध्यम होते हुए भी ऐसे लोगों के हाथों में पड़ गया है जो इसे व्यापार से ज्यादा कुछ नहीं समझते. साथ ही इनका सदाबहार कुतर्क होता है कि हम तो वही दिखा रहे हैं जो दर्शक देखना चाहते हैं. मेरा इनसे विनम्र किन्तु ठेठ देशी भाषा में आग्रह है कि देखना तो दर्शक 'ब्लूफिल्म' भी चाहेंगे और वह भी उनकी बहन -बेटियों के किरदार वाली. क्या वे वह भी दिखायेंगे??

इस असभ्य आग्रह हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ परन्तु इनके कुतर्क का ठेठ जवाब मुझे यही सूझा.

suman said...

आप की बात को मान देते हुआ मे सिर्फ़ इतना कहना चाहूंगी कि "वह भी उनकी बहन -बेटियों के किरदार वाली" मानसिकता पर आप एक बार पुनर्विचार करे । बहिन बेटी किसी कि भी हो उस को "शरीर" ना बनाए । जिस दिन ये बात मन से निकल जायेगी किस किसी कुतर्क का जवाब देने के लिये "उसकी माँ बेटी " करना जरुरी हैं उसी दिन से स्वस्थ समाज कि संरचना शुरू हो जायेगी ।

रचना आप ने पोस्ट दी मेरी बात को आगे बढाते हुए शुक्रिया ।

रेखा श्रीवास्तव said...

रचना,
वैसे तो मैं टी वी देखने के लिए समय निकाल ही नहीं पाती हूँ, फिर भी कल किसी के यहाँ गयी तो परफेक्ट ब्राइड ' आ रहा था और देखा तो सोचा कि तुम्हारी पोस्ट के लिए ये कमेन्ट अच्छा रहेगा.
ये टी वी धारावाहिक तो बाजार का नजारा पेश करते नजर आ रहे हैं. 'परफेक्ट ब्राइड' क्या लगता है? लड़कियाँ यहाँ बिकाऊ है और उनको ठोक बजा कर सासें खरीदने के लिए आयीं हैं. फिर उसके ऊपर लड़कियों के ऊपर किये गए कमेन्ट उनको क्या लगता है कि वे ही एक बेटे कि माँ हैं , उनके अधिकार बहुत बड़े हैं और लड़कियों की माँ उनसे कमतर है. उन्हें भी हक़ है अपनी बेटी के लिए वर खरीदने का . ये काली है, इसके नैन-नक्श अच्छे नहीं या फिर इसको निकाल दिया जाना चाहिए. ये सार्वजनिक तमाशा बंद किया जाना चाहिए. वे यह भूल रही हैं कि वे सिर्फ किसी लड़की को ही आरोपित नहीं कर रही हैं बल्कि अपनी छवि प्रस्तुत करके अपने लडके के भविष्य के लिए भी बाधक बन रही हैं. ऐसी तेज तर्र्रार सास के साथ लड़कियाँ भी इनकार कर सकती हैं. देखती जाइए अभी आगे क्या होता है? और ये माँ के हाथ के कठपुतले भविष्य में क्या करेंगे? जो सारा काम छोड़ कर इस तमाशे में शामिल होने चले आये.

suman said...

रेखा जी उन लड़कियों का क्या तो इस तरह " परफैक्ट ब्राइड " बन रही हैं । सभी आधुनिक हैं और सभी पढ़ी लिखी ।

शोभना चौरे said...

t.v dharavahiko ke madhym se bajar aur apne ghre pav jmata ja rha hai .in dharavahiko ko dekhkar hi aajkal shadiyo me anap shnap kharch badh raha hai aur sbse bdi bat hai ptktha likhne vale bhi to madhaym vrggey parivar ke log hai jinka bazar chlane vale jmkar uyog kar rhe hai .

प्रकाश पाखी said...

मुझे ये धारवाहिक कभी पसंद नहीं आते पर श्रीमती जी देखती रहती है..गोया की महिलाएं ही उसको पसंद करती है.अब नारी तो अपने आपको बदले, उसको तर्कपूर्ण और समझदारी भरे निर्णय लेते क्यों नहीं दर्शाया जाता है...प्राय तो महत्वपूर्ण निर्णय लेते ही नहीं दर्शाया जाता है..अब जब हम लड़कियों को निर्णय लेने के संस्कार ही नहीं डालने देंगे तो फिर धारवाहिकों में नारी के यही चरित्र दिखाए जायेंगे..
बोधपूर्ण आलेख के लिए आभार.

mukti said...

जब धारावाहिकों की बात चली है तो मैं भी एक धारावाहिक की बात करती हूँ. मैं आजकल ना आना इस देश लाडो देख रही हूँ. हालाँकि इसमें भी सभी धारावाहिकों की तरह मिर्च-मसाला है. पर हाल ही में इसकी एक कड़ी में औरतों को एक पुरुष की कम्बल-परेड करते दिखाया गया है क्योंकि उसने अपनी पत्नी को बुरी तरह पीटा था. इस प्रसंग में एक बात गौर करने लायक है कि औरतें जब तक अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का विरोध खुद नहीं करतीं उनका शोषण रोकने कोई और नहीं आयेगा.


नारी पात्र आज के टी वी धारावाहिकों मे


इस पोस्ट पर पाठक राय

7 Comments:

संतोष कुमार said...

आज पेपर में पढ़ा की एकता कपूर अब घर बसाना चाहती हैं, और वे ऐसा पति चाहती हैं जो उनपर शासन कर सके. अब इसे क्या कहेंगे?

रचना गौड़ ’भारती’ said...

नारी आज भी नारी है बस भूमिका बदल गई है। क्या आप आगरा की रहने वाली है क्योंकि मैं भी श्रीवास्तव हूं और आगरा के डा० आशीर्वादि लाल श्रीवास्तव जी की पोती हूं।

रेखा श्रीवास्तव said...

सुमन,

जीवन का यथार्थ यही है की घर में आनेवाली बहू सुसंस्कारी, कुशल गृहणी , सुन्दर और उच्च शिक्षित हो . अगर प्रोफेशनल योग्यता धारक हो तो और भी अच्छा लेकिन घर में उसको इसी रूप में दिखना चाहिए. वैसे अब ससुर का कम सास का शासन अधिक नजर आता है. थोक के बाजार से जैसे चीजें बटोर कर लाती हैं वैसे ही बहू के लिए लिस्ट बना कर एक एक कर देख कर निर्णय लेती हैं. जैसे वह कोई खरीदने वाली चीज है. दहेज़ तो चाहिए ही क्योंकि आप सब कुछ अपनी बेटी के लिए दे रहे हैं हमको तो कुछ चाहिए ही नहीं.

लड़कियाँ चाहे आत्मनिर्भर हों या फिर दूसरों को भी पालने की क्षमता रखती हों, उन्हें बहू बनाने के पहले ठोक बजा कर देखने की प्रथा अब भी है. वह बात और है कि अब लड़कियों ने भी अपनी पसंद जाहिर करना शुरू कर दिया है और गलत निर्णय पर शादी से इनकार भी करने लगी हैं. उनका अपना जीवन है , मान - बाप सिर्फ शादी करके अपने दायित्व कि इति श्री न समझें. उनकी पसंद और परिवार के संस्कार और जीवन शैली पर भी ध्यान दें. ऐसा न हो कि कल विषम स्थितियों का सामना करना पड़े. विवाह संस्कार की पवित्रता को कायम रखना दोनों पक्षों का काम है.

शोभना चौरे said...

आपने धरावाहिको में दिखाई जाने वाली बातो पर खूब बारीकी से लिखा है और उसमे सबकी भूमिका निर्धरित है लेकिन लडकी की भूमिका एक मूक गुडिया सी होती है ऐसा ही एक धारावाहिक है भाग्य विधाता जिसमे बदूक की नोक पर शादी कराइ जाती है बहू जिस घर में रहती है वहां उसके चचेरे देवर द्वारा उसकी इज्जत लूटने का प्रयास किया जाता है जो की उसके पति को भी मालूम है क्योकि उसी की शह eहोती है कारन की पति को अपनी बीबी पसंद नही होती |यहाँ भी उस समय तो लड़की अपनी इज्जत बचा लेती है किंतु न तो वो किसी से इसका जिक्र करती है न ही उसे कोई करार जवाब देती है जबकि लडकी स्नातकोत्तर शिक्षा प्रप्त है |जब घर में ही भक्षक हो और इससे बड़ी ज्य्द्ती की लडकी कोई प्रतिवाद न kre येकैसी साहित्यिकी संस्क्रती है? और उस घर में दिन रात देवी माँ की पूजा होती है संस्कारो की बात होती है |
इस धरावाहिक में भी दहेज़ की लें देन की बात आम है |

PD said...

सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस टी.आर.पी. में सबसे ज्यादा सहयोग इन्हें महिलाओं से ही मिल रहा है..

वाणी गीत said...

अब जी उकता गया है घर तोड़ते ...साजिशें और षडयंत्र रचते ..तो क्यों ना संस्कारों और नारी दमन पर कुछ धारावाहिकों का निर्माण कर लिया जाये ....
इनके लेखकों की यही सोच है शायद ..!!

रेखा श्रीवास्तव said...

क्यों जी उकता गया? क्या आप और हम नहीं जानते हैं की ये सारी गतिविधियाँ परिवारों में भी हुआ करती हैं. हर तरह से षडयंत्र रचे जाते हैं, बड़ों की नजर में छोटों को गिराने के लिए और या सही को गलत सिद्ध करने के लिए. घर में रहने वालों को नए नए विचार मिलते रहते हैं, इन धारावाहिकों से. ये बात और है की इसमें पिसने वाला कौन हो? कभी सास बहू के षड्यंत्रों के चंगुल में फंस जाती है और कभी ननद और भाभी . जो जितना चालाक और चतुर हो.

September 23, 2009

नारी पात्र आज के टी वी धारावाहिकों मे

टी वी धारावाहिक मे महिला पात्र विषय पर बात चल रही हैं तकरीबन हर धारावाहिक जो आज कल चल रहा हैं और बेहतर टी आर पी ले रहा हैं उसमे किसी मे भी
  1. कोई भी महिला पात्र नौकरी करती नहीं दिख रही हैं ।
  2. बेटियों का विवाह बिना स्नातक हुए ही दिखाया जा रहा हैं ।
  3. हर बहू घर मे सुबह निर्जल रामायण का पाठ करती हैं ।
  4. हर बहू सारे टाइम सिर ढक कर रहती दिखाई देती हैं गहनों से लंदी ।
  5. हर बहू का काम अपने पति और बेटे की आरती करना होता हैं ।
  6. किसी भी निर्णय को लेने का अधिकार घर की बहू बेटी को नहीं हैं यही दिखाया जा रहा हैं ।
  7. खाना क्या बनेगा उसका निर्णय भी नहीं क्योकि जो पति और बेटे की पसंद का हो वही बनेगा ।
  8. नारी पात्र हर व्रत उपवास को करता दिखाया जा रहा हैं ।
  9. शादी मे दान दहेज़ की बात खुल कर होती हैं
  10. लड़की को रंग के आधार पर रिजेक्ट किया जाता हैं
क्या नारी का महज इतना ही योगदान रहा हैं हमारे समाज मे ?? अगर एकता कपूर के धारावाहिक जीवन की सचाईयों से दूर थे तो क्या जो अब हम देख रहे हैं वो सब सच और सही हैं ।

अगर आप लोग गौर करेगे तो एक बदलाव जरुर महसूस करेगे इन सब धारावाहिक मे हर पुरूष पात्र बहुत प्रोग्रेसिव बाते करता दिखता हैं ।
  1. ससुर , सास को समझाता हैं की बहू बेटी होती हैं ,
  2. पिता माँ को समझता हैं बेटी पर सकती मत करो , कुछ ही दिनहमारे साथ हैं
  3. पति पत्नी की शिक्षा के लिये आतुर हैं और रात रात भर जग कर पढाई पूरी करवा रहा हैं
बदलाव तो आया हैं टी वी मे जो परोसा जा रहा हैं उसमे पर दिशा का तो कोई पता ही नहीं चल रहा हैं । हम आगे जा रहे हैं या पीछे या केवल अटक गये हैं और फैसला ही नहीं कर पा रहे की कैसी कहानिया लिखी जाये । धारावाहिक भी साहित्य की ही देन हैं । कहीं ना कहीं कोई पट कथा तो होती हैं जिस पर ये धारावाहिक बनते हैं । कौन हैं वो कथाकार जिनकी कलम से ये कहानिया निकल रही हैं ।

धारावाहिक पर ये श्रंखला कल खतम हो जायेगी उसके बाद विज्ञापनों मे नारी पात्रो पर बात होगी । नारी ब्लॉग के सदस्यों से अनुरोध हैं की समय निकाल कर अपनी पोस्ट नारी ब्लॉग पर दे और पाठको की राय जरुर चाहिये ।

September 22, 2009

सुमन की पिछली दो पोस्ट से कुछ आगे की बात आज

एक और धारावाहिक की बात करे तो वो हैं "आप की अंतरा " कहानी autism की . इसी धारावाहिक मे एक पात्र हैं अन्तर की बुआ जिसने अभी पढाई ख़तम की हैं और उसका विवाह होने वाल हैं । अंतरा की ये बुआ जिनके माता पिता नहीं हैं अपने भाई और भाभी के साथ रहती हैं और वही इनका विवाह भी कर रहे हैं । वो अपने भाई की आर्थिक स्थति से पूर्णता अवगत हैं पर शादी मे हो रहे किसी भी खर्चे का विरोध करना तो दूर अपने भाई से जितना ज्यादा खर्चा करा सके इसके लिये आतुर दिखती हैं । उनको भाई का बैंक से क़र्ज़ लेकर उनकी शादी मे खर्च करहा इस बात को जानते हुए भी वो ज्यादा से ज्यादा समान खरीदने के लिये और महंगे से मंहगे शादी के इंतजाम के लिये तत्पर हैं । उनके लिये अपनी शादी से ज्यादा कोई बात जरुरी नहीं हैं । अपने भाई और भाभी से उनकी अपेक्षा हैं की वो "कर्तव्य " की तरह उनकी शादी करे। इस लड़की का होने वाला पति बार बार उनको माना भी करता हैं पर वो साधिकार शादी मे हो रहे खर्चे को बढाते जाने के लिये तत्पर लगती हैं ।
उनके होने वाले ससुर भी हर रीति रसम को खर्चे के साथ करना चाहते हैं और इसमे कुछ ग़लत भी नहीं समझते क्युकी शादी तो एक बार ही होती हैं ना !!
किस और ले जा रहे ये धारावाहिक समाज को ?
सुमन की पिछली दो पोस्ट से कुछ आगे की बात आज

September 20, 2009

लड़की का दर्जा उसकी सुन्दरता और रंग से बनता हैं । बकौल धारावाहिक

कल शंविआर को १२/२४ करोल बाग़ की कहानी अब तक देख रही थी । कहानी एक मध्यम वर्ग के परिवार की जहाँ एक साधारण रूप रंग वाली बेटी की माँ उसका रिश्ता ये जानते हूँ भी नहीं तोड़ती की होने वाला लड़का , कॉल गर्ल्स के साथ पकडा जा चुका था और जेल भी जा चुका है ।
माँ अपने आप रिश्ते के नहीं तोड़ती , अपनी बेटी से ये कहती हैं की उसकी सास ने ये वचन दिया हैं की वो बेटी को अपनी बेटी बना कर रखेगी । लड़का बिगडा हैं तो क्या हुआ , शादी के बाद ठीक हो जायेगा । बेटी को ये अधिकार हैं की अगर उसको रिश्ता नहीं करना हैं तो तोड़ दे पर ध्यान दे की उसको कई लड़के ना पसंद कर चुके हैं क्युकी वो पढ़ी लिखी तो हैं पर सुंदर नहीं हैं और उसकी दो छोटी बहने भी हैं और सब से जरुरी बात उसका छोटा भाई जो नौकरी करता हैं एक अमीर लड़की से उसकी शादी तभी हो पायेगी जब बड़ी बहिन विवाह कर ले ।

होने वाले दामाद की माँ हर बात मे ये कहती नज़र आती हैं बेटो का कोई दोष नहीं होता और लड़की वालो को हर वो बात माननी होते हैं जो लड़के वाले कहे

धारावाहिक मे लड़की पढी लिखी दिखाई हैं ।

एक रियलिटी शो परफेक्ट ब्राइड मे लड़कियों का रिजेक्शन सबसे पहले लड़को की माता इस लिये करती हैं क्युकी रंग गेहुयाँ हैं या कहे गोरा नहीं हैं । शादी के लिये पहली जरुरत सुंदर होना हैं । लड़का कह रहा हैं की नहीं कम्प्टीबिलिटी जरुरी हैं पर जो माँ फैसला करेगी वही सही हैं ।

टी वी पर दिखया जा रहे धारावाहिकों से तो लगता हैं की आज भी हमारे समाज मे लड़की का दर्जा उसकी सुन्दरता और रंग से बनता हैं । आज भी लड़की को अगर शादी करनी हैं तो माँ पिता के पास असीम दौलत और लड़की के पास असीम सुन्दरता होनी जरुरी हैं ।

और सबसे ध्यान देने वाली बात हैं की ये सब धारावाहिक पसंदीदा धावाहिको मे से हैं यानी लोग ये सब पसंद करते हैं

September 19, 2009

अब टी आर पी मे टॉप पर हैं तो मान लेना चाहिये कि ........

आज कल एक धारावाहिक की टी आर पी सब से ज्यादा हैं । नाम हैं ये रिश्ता क्या कहलाता हैं । पात्रो मे हैं एक ददा जी जो जब तक खाने की मेज पर खाना शुरू ना कर दे दूसरे लोग नहीं खा सकते { बालिका वधु की दादी सा जैसे } । बहू के हाथ का खाना खा कर जब तक वो "चोखो हैं " ना कहे तब तक किसी के लिये भी खाना नहीं परोसा जा सकता । नयी ब्याहता , पढ़ी लिखी बहू हैं उम्र १९ साल , जब तक वो अलसुबह उठ कर भजन ना गाये ददा जी का सवेरा नहीं होता और फिर अब वो रोज उससे सस्वर रामायण पाठ भी सुनेगे ।
बहू सीधे पल्ले की साड़ी मे , जेवरों से लद्दी , सहमी , सकुचाई पूरे घर मे घुमती नज़र आती हैं । अभी स्नाकोत्तर परीक्षा का एक साल बाकी हैं पर वारिस ज्यादा जरुरी हैं ।
शादी पूरे ताम झाम के साथ , दान देहेज के साथ वही सदियों पुराना लें देन


अब टी आर पी मे टॉप पर हैं तो मान लेना चाहिये कि लोग ऐसा ही परिवार चाहते हैं जहाँ नारियां , पति के आगे पीछे घुमती हैं , जहाँ बहू तुलसी के चौरे की पूजा , नहा धोकर निर्जल करती हैं और फिर भजन गा कर अपने ससुर को खुश करती हैं । जहाँ शादी पर लाखो रुपए खर्च होते हैं ।

September 18, 2009

इच्छा और तपस्या

मै टी वी ज़रा ज्यादा देखती हूँ हिन्दी पात्र पत्रिकाए पढ़ने का भी शौक हैं पर टी वी का शौक बहुत ज्यादा हैं । शायद ही कोई प्रोग्राम रह जाता हो । कंप्यूटर के साथ साथ टी वी भी चलता ही रहता हैं । पति और बच्चे सुबह ही चले जाते हैं और रात को ९ से पहले कोई नहीं वापस आता सो टी वी और मै ।

आज कल "उतरन" धारावाहिक मे "तपस्या और इच्छा " दोनों लड़किओं को देख रही हूँ । इच्छा एक नौकरानी की बेटी और तपस्या के घर मे पली / बढ़ी । विदेश से शिक्षा प्राप्त एक युवक वीर , ठाकुर , प्रतिष्ठित खानदान का वारिस तपस्या को देखने आता हैं और तपस्या को वो बहुत नीरस लगता हैं । तपस्या उसको ना पसंद कर देती हैं । वीर को इच्छा के साथ वक्त बिताते हुए इच्छा मे इतना कुछ दिखता हैं की वो इच्छा को अपनी पत्नी बनाने की बात कर लेता हैं । क्या ये सब असल जिन्दगी मे हो सकता हैं । एक बस्ती मे रहने वाली लड़की क्या एक रईस , संभ्रांत परिवार की बहू बन सकती हैं ?? क्या ऐसे युवक असल ज़िन्दगी मे होते हैं जो किसी लड़की के गुन पर इतना मर मिटे की वो ये भी ना देखे की किस खानदान मे वो विवाह कर रहा हैं ?

क्या ऐसी शादी अगर वास्तविक जीवन मे हो तो निभेगी ?? क्या इतने संभ्रांत परिवार मे एक बस्ती की लड़की का
निर्वाह हो सकता हैं ? क्या परिवार मे उसको मान सम्मान मिलना सम्भव हैं , क्या कभी कोई नहीं उसकी माँ पर
ऊँगली उठाये गा उसकी ससुराल मे ??

पता नहीं कभी कभी लगता हैं जैसे वीर , को क्युकी तपस्या ने मना करदिया मात्र इस लिये वो इच्छा से विवाह कर रहा हैं ।

इस प्रकार की कहानिया दिखा कर कब तक वास्तविकता के धरातल से दर्शक को दूर रखा जाता रहेगा ??

September 17, 2009

अतिथि देवो भव !

यही हमने अपनी संस्कृति से सीखा है , अतिथि सत्कार की भारत जैसी मिशाल कहीं और नहीं मिल सकती है.
जो यहाँ आता है यही कहता है, किंतु अगर हम ही अपने हाथ से अपने मुंह पर कालिख पोत लें तो हमें कौन क्या कह सकता है? हम स्वतंत्र है और कुछ ही कर और कह सकते हैं। ये संविधान से हमें अधिकार प्राप्त है। हम इस अस्त्र के सहारे बहुत कुछ कर और कह जाते हैं।

काया एनरिक - एक विदेशी लड़की , जो एन जी ओ में काम करने के लिए यहाँ अहमदाबाद आई है। उसके साथ किए गए बलात्कार के असफल प्रयास के मामले की अदालत में सुनवाई और उस विदेशी बाला की इज्जत की वकील के द्वारा उड़ाई गई धज्जियाँ क्या इस बलात्कार के प्रयास से कहीं अधिक नहीं है?

इस देश में इस आधी दुनिया कही जानेवाली मानवजाति के इस हिस्से को इतिहास से ही पूज्यनीय बताया जाता रहा है और सभी वर्गों ने इसको स्वीकार किया है और कर रहे हैं। फिर क्यों उस लड़की की इज्जत को इस तरह से सरेआम तमाशा बना दिया जाता है। वह अपने अपमान और शोषण के विरुद्ध अदालत जाती है तो वहां भी बेइज्जत की जाती है और शब्दों के बाणों से - भरी अदालत में उन बेहूदा सवालों को सुनकर शेष आधी दुनियाँ ठहाके लगाती है। इन ठहाके लगाने वालों के बीच में शेष आधी दुनियाँ सर झुकाए बैठी होती है ,जिसे वे बेइज्जत करने पर तुले होते हैं। वह नहीं हंसती है। क्या उसको हँसी नहीं आती है या फिर अपनी बेबसी पर आंसू बहने के लिए मजबूर होती है।

क्या कोई वकील ऐसे ही सवाल अपनी माँ और बहन से कर सकता है या फिर उसके सामने किए जाएँ तो वह बैठ कर हँस सकता है - नहीं क्यों। क्या उनकी माँ और बहन किसी खास दर्जे की होती हैं। अदालत भी ऐसे बेहूदा सवालों - जिनका की मामले से कोई लेना देना नहीं है चुपचाप सुनती रहती है। क्यों - अरे आँख पर क़ानून के पट्टी बंधी होती है, कान तो खुले होते हैं। अदालत में ऐसे मामलों की सुनवाई के समय बहुत लोग बैठे होते हैं क्यों? क्या वे रिश्तेदार होते हैं वादी और प्रतिवादी के या फिर किसी को बेइज्जत करने के लिए किराये पर लाये जाते हैं।

मैं लानत भेजती हूँ, उस वकील पर जिसका नाम है संजय प्रजापति। वह लड़की जो तुम्हारी भाषा भी नहीं जानती है, उससे क्या पूछ रहे हो उसे नहीं मालूम बस इन ठहाके लगाने वालों को मालूम है या फिर सर झुका बैठी हुई इन महिलाओं को , जो उस समय उससे अधिक अपने को अपमानित होता हुआ महसूस कर रही होती है।

मेरा अनुरोध है की ऐसे मामलों की सुनवाई बंद कमरों में होनी चाहिए और तमाशबीनों को तो बिल्कुल भी अनुमति नहीं होनी चाहिए । अदालत सक्षम है और श्लील और अश्लील शब्दों से वाकिफ भी। उसको अनर्गल सवालों पर आपत्ति करनी चाहिए। ऐसे यह पहला मामला नहीं है। बहुत मामले सामने आते हैं, लेकिन उस विदेशी लड़की की विवशता देख कर अपने पर भी नियंत्रण नहीं रहा।

September 16, 2009

विवेक जी ने किस अधिकार से मुझसे ये जानना चाहा हैं ??

विवेक जी ने किस अधिकार से मुझसे ये जानना चाहा हैं ??
विवेक सिंह said...

इससे पहले आपका अनुभव कितना और कहाँ का रहा ?

इतने अनुभवी और सीनियर सदस्यों को आप कैसे बाईपास सकती हैं ?

रचना जी क्यों हट गईं ?

क्या आप छ्द्म नाम से रचना जी ही हैं ?

आदि सवालों का जवाब दिया जाय,

क्या हिन्दी मे ब्लॉग लिखने के लिये या किसी ब्लॉग को मॉडरेशन करने के लिये हमें रेग किया जाएगा ? आज कल तो रैगिंग पर हर जगह बैन हैं फिर क्यों इस प्रकार का प्रश्नं यहाँ पूछा गया ।? क्या ब्लॉग लेखेन किसी परिचय का मोहताज हैं ??
लेखक लिखता हैं हम पढ़ते हैं पर इस प्रकार के कमेन्ट देना किस परम्परा का द्योतक हैं ? क्या इस ब्लॉग जगत मे कोई सेटिंग हैं जिसके तहत हम सब की जवाब देही विवेक जी को हैं ।
नारी ब्लॉग से विवेक जी का कोई लेना देना नहीं लगा था जब मैने २००८ में इसकी सदस्यता ली थी । फिर मेरी पोस्ट पर विवेक जी क्या ये दर्शाना चाहते हैं की वो पुरूष हैं और इस लिये जिसको चाहे प्रश्नं के घेरे मे ले सकते हैं ?
एक साल मे हिन्दी ब्लॉग बहुत पढे हैं पर किसी भी पोस्ट पर इस प्रकार का बेहूदा पन नहीं दिखा कमेंट मे । बात शब्दों की नहीं हैं बात हैं किस अधिकार के तहत ये प्रश्न मेरी पोस्ट पर किया गया जिसको सामयिक भी कहा गया हैं बाद मे आने वाले कमेन्ट मे ।
जानती हूँ की नयी हूँ पर ब्लॉग लेखन क्या हैं और कैसे करना हैं इस विषय मे जवाब देही देने से तो अच्छा हैं की ब्लॉग ही बंद कर दिया जाए

मेरी पोस्ट जहाँ ये प्रश्न हैं उसका लिंक हैं

September 13, 2009

नारी गूगल ग्रुप के लिये नयी सुविधा

कोशिश हैं की नारी गूगल ग्रुप के सदस्यों को नयी प्रविष्टि की सूचना ईमेल से मिले इस पोस्ट को यही सुविधा सही तरह से चालू हुई हैं या नहीं देखने के लिया डाला गया हैं ।अन्य पाठक असुविधा के किये क्षमा करे।


टेस्टिंग पुरी हुई , सुविधा चालू होगई हैं । ग्रुप ईमेल पर नयी पोस्ट आयेगी और स्वतःही सदस्यों के ईमेल पर पहुच जायेगी ।

आशा हैं सुविधा अच्छी लगेगी ।

September 12, 2009

नारी ब्लॉग की नयी सूत्रधार --- सुमन

रचना अब नारी ब्लॉग की सूत्रधार नहीं हैं । ये कार्य अब मै करुँगी । जो भी नारियां ब्लॉग लेखन मे अपना योगदान कर रही हैं वो नारी आधारित विषयों पर अपनी प्रविष्टि नारी ब्लॉग पर भेज सकती हैं । नारी ब्लॉग पर केवल गद्य मे ही प्रविष्टि होगी । नारी कविता ब्लॉग मे आप नारी आधारित विषयों पर अपनी कविता भेज सकती हैं । दाल रोटी चावल पर आप की रेसिपी का इंतज़ार होता हैं ।

सभी ब्लॉग लेखिकाओ से स्नेह आग्रह हैं की नारी ब्लॉग पर अपनी सदस्यता ले और निरंतर प्रविष्टियाँ भेजे । नारी ब्लॉग के सदस्यों से आग्रह हैं की अपना स्नेह मेरे साथ और नारी ब्लॉग के साथ बनाए रहे । नारी ब्लॉग के सदस्य अपना दिन निश्चित कर ले और अपनी पोस्ट भेजे ।



विषय वही हैं नारी

मै सुमन केवल नारी ब्लॉग पर ही लिखूगी और आपके प्रोत्साहन की आभारी रहूंगी

September 04, 2009

बलात्कार का हर्जाना क्यों मिलना चाहिये ?

बलात्कार का हर्जाना क्यों नहीं मिलना चाहिये ?
बड़ी अजीब बात हैं एक ट्रेन एक्सीडेंट होता हैं , पुल गिर जाता हैं , गड्ढे मे एक बच्चा गिर जाता हैं और सरकारी खजाना खोल दिया जाता हैं और बलात्कार पर हर्जाने पर प्रश्न चिन्ह ? वो शील जिस पर सारी भारतीये सभ्यता टिकी हैं उसके भंग होने पर कोई हर्जाना ना दिया जाए । क्यूँ ??

बलात्कारी को सजा हो , बलात्कारी की प्रोपर्टी पर जिसका बलात्कार हुआ हो उसका बराबर का हिस्सा हो और सरकार को चाहिये की हर बेटी के पैदा होते ही उसका बीमा करवा दे की अगर इसका बलात्कार होगा तो इसको इतना हर्जाना मिलेगा । क्यूँ ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता , अगर बेटी होने पर बिहार सरकार ५००० रुपए का अफ डी दे सकती हैं तो इस प्रकार की सहूलियत क्यूँ नहीं मुहिया करा सकती हैं ।

हमारे समाज मे बेटी होना ही ग़लत हैं और अगर खुदा ना खस्ता आप स्त्री हैं और आप ने विदेशी वस्त्र पहन लिये तो भारतीये संस्कृति धरातल मे चली जाती हैं , और आप का बलात्कार होना मेंडेटरी हो जाता हैं । इस प्रकार का बीमा आप की सुरक्षा तो नहीं कर सकता पर आप को आर्थिक रूप से सुरक्षा दे सकता हैं ।

राज किशोर जी बहुत आसन हैं कहना की हर्जाना नहीं होना चाहिये पर फिर हर चीज़ का हर्जाना बंद करवा दे ।

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