नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

November 30, 2008

आम आदमी की जिंदगी की कोई सरकारी इंश्योरंस नहीं होती ??

मुंबई मे मरने वालो की संख्या २०० . शहादत का दर्जा मिला केवल ३ पुलिस कर्मियों को जो मुंबई के थे । ऐसा क्यूँ । क्यूँ केवल उनके ही परिवारों को आर्थिक सहायता दी जा रही रही हैं । वो आम आदमी जो स्टेशन पर , सडको पर , अस्पताल मे , होटल के अंदर और बाहर मरा हैं क्या उसकी जिन्दगी की कोई कीमत नहीं हैं ? क्यों बराबर के मुआवजे का अधिकारी वो नहीं हैं । सरकारी खजाने एक आम आदमी के टैक्स से भरे जाते हैं । हर विपदा आपदा मे प्रधान मंत्री कोष मे दान एक आम आदमी करता हैं फिर केवल और केवल सुरक्षाकर्मी को क्यूँ "ओन ड्यूटी " माना जाता हैं ।


हम हर शहीद को नमन करते हैं और दिल से आभारी हैं की उन्होने अपनी जान पर खेल कर लोगो की जान बचाई पर एक आम आदमी की जान की क्या कोई कीमत नहीं हैं । जो ड्यूटी पर थे वो अपना फ़र्ज़ निभा रहे थे पर जो आम आदमी मरा वो किसी की लापरवाही से मरा ?

अगर "ओन ड्यूटी " मरने पर मुआवजा हैं तो ड्यूटी मे कोताही पर कोई आर्थिक दंड क्यूँ नहीं हैं ? किस की ड्यूटी हैं की देश सुरक्षित हैं , देश की सीमाए सुरक्षित हैं ये जानकारी रखने की ? क्यूँ उनको दण्डित नहीं किया जाता ? क्यों उन पर आर्थिक दंड नहीं होता ?

और सब से बड़ी बात क्यूँ आम आदमी की जिंदगी की कोई सरकारी इंश्योरंस नहीं होती ??

November 28, 2008

ये चित्र हमारी कमजोरी का नहीं , हमारे विलाप का नहीं हमारे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक हैं ।



अपनी एक जुटता का परिचय दे रहा हैं हिन्दी ब्लॉग समाज । आप भी इस चित्र को डाले और अपने आक्रोश को व्यक्त करे । ये चित्र हमारे शोक का नहीं हमारे आक्रोश का प्रतीक हैं । आप भी साथ दे । जितने ब्लॉग पर हो सके इस चित्र को लगाए । ये चित्र हमारी कमजोरी का नहीं , हमारे विलाप का नहीं हमारे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक हैं । आईये अपने तिरंगे को भी याद करे और याद रखे की देश हमारा हैं ।


November 27, 2008

आज टिपण्णी नहीं साथ चाहिये ।


आज टिपण्णी नहीं साथ चाहिये । इस चित्र को अपने ब्लॉग पोस्ट मे डाले और साथ दे । एक दिन हम सब सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी ब्लॉग पर अपना सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे । चित्र आभार

November 26, 2008

२५ नवम्बर को विश्व नारी उत्पीड़न दिवस -- हैना फ़ॉस्टर

कल २५ नवम्बर को विश्व नारी उत्पीड़न दिवस मनाया गया और कल ही हैना फ़ॉस्टर{Hanaah Foster } का रेप और मर्डर करने वाले मनिंदर पल सिंह कोहली को २४ साल की सजा सुनाई गयी ।

हैना फ़ॉस्टर केवल १७ साल की थी जब ४१ के कोहली ने टूशन पढ़ कर रात को घर आते समय हैना फ़ॉस्टर को उसके घर के पास से जबरन अपनी संडविच डिलिवरी वैन मे खीच लिया । उसके बाद निर्ममता से उसका रेप और मर्डर किया और फिर उसके शरीर को एक जगह फ़ेंक कर कोहली अपने घर चला गया ।

कुछ दिन बाद पुलिस का शिकंजा जब कसने लगा तो बिना अपनी पत्नी को बताये कोहली इंडिया आगया और यहाँ नाम और भेष बदल कर अपनी जिन्दगी गुजारने लगा । हैना फ़ॉस्टर के माता पिता ने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी और कल पाँच साल बाद ठीक नारी विश्व नारी उत्पीड़न दिवस के दिन उनकी बेटी के कातिल को सजा सुनाई गयी । सजा यू के मे सुनाई गयी ।

कोहली को सजा दिलाने मे जो प्रूफ़ बहुत काम आये वो थे

सीसीटीवी का फुटेज जिसमे साउथ हैम्पटन की सडको पर संडविच डिलिवरी वैन चक्कर लगाती दीखी

हैना फ़ॉस्टर के मोबाइल का सिग्नल उसी जगह से उसी समय मिला

हैना फ़ॉस्टर के मोबाइल से की गयी कॉल ९९९ पर जिसमे कुछ बाते कंप्यूटर से रिकॉर्ड हुई ।

पूरी ख़बर पर मेरा ध्यान करीब दो साल से रहा हैं , कुछ दिन पहले मसिजीवी जी ने एक पोस्ट मे सीसीटीवी पर कुछ सवाल उठाये थे उसदिन टिपण्णी मे भी मै इस केस मे सीसीटीवी की भूमिका के बारे मे लिखना चाहती थी पर नहीं लिखा ।

कल जब इस के का फैसला आया तो लगा की न्याय हुआ ।

फिर दिमाग मे प्रश्न उठा क्या अगर ऐसा हादसा इंडिया मे होता तो भी यही फैसला होता ?

क्यों हमारी न्याय प्रणाली इतनी सशक्त नहीं हैं की इतना घिनोना अपराध करने वाले अक्सर bail पर खुले घुमते दिखाई देते हैं ।
क्यूँ हमारे समाज मे माता पिता केवल इस लिये लड़ाई नहीं लड़ते की अब तो बच्ची रही ही नहीं और रेप हुआ था ये नहीं बताओ { नॉएडा का चर्चित हत्या काण्ड ले ले } ।

भगवान् हैना फ़ॉस्टर की आत्मा को शान्ति दे और उसके माता पिता को आगे का जीवन जीने की ताकत दे । नमन हैं उनकी लड़ाई को जिसे उन्होने ६ साल तक निरंतर जारी रखा और तारीफ़ है ब्रिटइश न्याय प्रणाली और पुलिस की जिन के परिश्रम से ये केस सुलझा ।

आप क्या कहते हैं ??

November 25, 2008

खरीद कर पुस्तके पढे और हिन्दी लेखिकाओं का उत्साह वर्धन करे

"इन्द्रधनुष के पीछे पीछे " आर । अनुराधा के अथक परिश्रम का परिणाम हैं । ये एक डायरी हैं एक कैंसर के मरीज की और ये मरीज ख़ुद अनुराधा हैं । उन्होने ना केवल कैंसर को जीता वरन उसको जीया और उस एक एक पल को इस तरह से लिखा हैं की पढ़ने वाला अगर किसी भी बीमारी का मरीज़ हैं तो एक सिपाही की तरह उस बिमारी से लड़ना सीखेगा और अगर कैंसर का मरीज हैं तो उसको इस पुस्तक मे अपनी बीमारी के इलाज से सम्बंधित बहुत सी जानकारी मिल जाती हैं । ये पुस्तक किसी भी हिन्दी प्रेमी पाठक की लाइब्रेरी मे जरुर होनी चाहिये । पेपर बेक का मूल्य हैं मात्र ६०/- रुपए और हार्ड बाउंड का १५०/- रुपए । किताब कुरिएर से भेजी जायेगी उसके पैसे आर्डर मिलने पर बता दिये जायेगे. ।

"साया" कविता संग्रह हाल मे प्रकाशित हुआ हैं और इस पुस्तक को बहुत ही सरल हिन्दी मे हैं । अहिन्दी भाषी भी इन कविताओं को बहुत आसानी समझ सकते हैं । पुस्तक का मूल्य १२० रुपए हैं । किताब कुरिएर से भेजी जायेगी उसके पैसे आर्डर मिलने पर बता दिये जायेगे
रेकी स्पर्श तरंग { वैकल्पिक चिकित्सा } पुस्तक बहुत ही सरल हिंदी मे है । पुस्तक की कीमत मात्र २०० रुपये है । किताब कुरिएर से भेजी जायेगी उसके पैसे आर्डर मिलने पर बता दिये जायेगे

किताबे केवल अग्रिम राशि भेजने पर ही भेजी जायेगी ।
तीनो किताबे एक साथ मंगाने पर १०% की छुट हैं ।
खरीद कर पुस्तके पढे और हिन्दी लेखिकाओं का उत्साह वर्धन करे

किताब खरीदने के इच्छुक कमेन्ट मे अपना संपर्क सूत्र दे और जिन्होने ये किताबे पढी हैं अपनी विवेचनात्मक टिपण्णी दे ।
धन्यवाद
रचना

विश्व नारी उत्पीड़न दिवस!

आज विश्व नारी उत्पीड़न दिवस मनाया जा रहा है। बड़े-बड़े आयोजन होंगे, लंबे चौड़े भाषण दिए जायेंगे और दावे किए जायेंगे की हम इस नारी उत्पीड़न को शत प्रतिशत ख़त्म करने की कसम खाते हैं। इनमें महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग के कार्यक्रम भी जरूर होंगे। फिर क्या होगा , यही न कि आज के बाद एक साल तक ये सारे वादे भूल जायेंगे और फिर अगले साल भाषण के पुराने मुद्दों को उठा कर बोलना शुरू कर दिया जायेगा।

मैं इन सब की गतिविधियों पर प्रश्न चिह्न नहीं लगा रही हूँ , बल्कि यह सोच रही हूँ कि जितना इलाज किया मर्ज उतना ही बढ़ता गया। अगर खबरें उठा कर देखें तो हमें यह मिलता है।

कानपूर में दो बहनों की साथ विवाह के लिए पिता ने आयोजन किया और सिर्फ एक बेटी की बारात आई और दूसरे परिवार ने कह दिया की लड़का गायब हो गया और दूसरे बेटे के लिए बारात लाने के लिए उन्हें २ लाख रुपये और चाहिए।
उस पिता की मनःस्थिति को कौन समझ सकता है। बराबर सजे दोन मंचों पर एक ही जोड़ा बैठा था और दूसरा खाली पड़ा था । उस लड़की की मनःस्थिति तो शायद ही कोई समझ सकता है।
पुलिस को इस बारे में रिपोर्ट करने को कहा गया तो उनका जवाब था की शादी करना या न करना लड़के वाले की मर्जी की बात है इसमें पुलिस क्या कर सकती है। दूसरे दिन लड़का वापस घर आ गया और पुलिस को सूचित करने पर उसे थाने बुला कर छोड़ दिया गया। जब ऊपर अधिकारीयों के दरवाजे पर गुहार लगायी तो पुलिस हरकत में आई।

मिस्टर शर्मा ने अपनी बेटी का रिश्ता किया और सारी शर्तें के पूरी होने पर उन्होंने सगाई की रस्म पूरी की, लेकिन यह क्या बारात लाने के एक दिन पहले ही उन्होंने चार पहिये के गाड़ी की मांग कर दी। क्या हर पिता इतना सक्षम होता है की वह पूरी तयारी के बाद ३-४ लाख रुपये की गाड़ी खरीद कर दे दे, नहीं फिर भी अगर बेटी की डोली उठानी है तो उन्होंने गले तक कर्ज में डूब कर किश्तों पर गाड़ी उठा कर दी, क्योंकि बारात न आने या फिर लौट जाने का सदमा वे सहने के लिए तैयार नहीं थे। इसके बाद वर्षों तक इस कर्ज की अदायगी करते रहेंगे और रिटायर होने के बाद भी इससे मुक्त नहीं हो पायेंगे.


क्या सिर्फ दहेज़ के लिए इस तरह से लड़कियाँ रुसवा होती ही रहेंगी , मानवता और नैतिकता के मायने बदल गए हैं। इसको कोई भी क़ानून नहीं लागू करवा सकता है, इसको बदलने के लिए संकल्प इस समाज का ही होना चाहिए। सम्पूर्ण समाज गिरा हुआ नहीं है और न ही सम्पूर्ण परिवार ख़राब है। क्या करना है इसके लिए इस अन्याय के लिए एकजुट होना है। आप प्रबुद्ध है और इस बात का निर्णय करने का आपको पूरा हक़ है की ग़लत क्या है और सही क्या है? फिर ऐसे निकृष्ट व्यक्तियों का सामजिक बहिष्कार करने की आवश्यकता है। हम पूरे समाज को नहीं बदल सकते हैं लेकिन एक प्रयास और वह भी समाज और नैतिकता के हित में कर ही सकते हैं। मत कीजिये ऐसे परिवार में अपने रिश्ते जो एक रिश्ते को छोड़ चुके हों- आप क्या समझते हैं की वे कल आपको ऐसी स्थिति में लाकर नहीं कर सकते हैं और फिर जो रिश्ता उन्होंने तोडा है वे भी आपकी तरह से एक बेटी के माता - पिता हैं।

आज इस नारी उत्पीड़न दिवस के अवसर पर इतना तो संकल्प ले सकते हैं की जिनसे हम मिलते हैं जिन्हें हम जानते हैं उनको अपनी दलीलों से इतना मानसिक रूप से तैयार करें की वे भी इस नारी उत्पीड़न के इस रूप को हटाने में अपना सहयोग दें और एक स्वस्थ मानसिकता वाले समाज के निर्माण में अपना सहयोग दें। यही सबसे सार्थक प्रयास होगा आज के दिन का और आज के संकल्प का कि हम इस अन्याय और उत्पीड़न में शामिल लोगों को सम्मान देना बंद कर देंगे। सामाजिक बहिष्कार एक मानसिक दंड है और कारगर भी, बस इसका प्रयोग करके देखें।

November 15, 2008

दिल्ली हाट भाग ३ -- हर माँ का सपना है सुजाता जैसी बेटी

कल की पोस्ट पढ़ कर सुजाता ने कहा "किसी और के कहने को कुछ नही छोड़ा आपने !जम रही है ,आगे चलें !" । सो आगे की दास्ताँ सुजाता की लेखनी से कहां और कब !!!!!!!!!!!!! मिलेगी आप की तरह मै भी इंतज़ार करुगी और चैट बॉक्स पर आप को सुजाता मिल जाए तो उन तक मेरा भी ये संदेशा पहुचा दे की "रनिंग कमेंट्री " अभी बाकि हैं दोस्त।

सुजाता के अलावा रंजना , अनुराधा और मनविंदर के पास भी बहुत कुछ हैं जो लिख कर उनको हम सब से बांटना होगा क्युकी तभी इन्द्रधनुष के सातो रंग खुल कर चमकेगे .

मै आज आप सब से वो बाटना चाहती हूँ जो मीनाक्षी ने हमे बताया ।

मीनाक्षी ने बताया की जब शादी के बाद वो साउदी अरेबिया की राजधानी रियाध पहुची { आज के समय से २० साल पीछे जाए } तो उनके पति उनको एक दूकान मे ले गए और उनसे "अब्ब्या " खरीदने के लिये कहा । "अब्ब्या "यानी बुरका । रियाध मे "अब्ब्या " पहनना जरुरी हैं और महिला किसी भी देश की क्यों ना हो , किसी भी रंग की क्यों ना हो , किसी भी धर्म की क्यों ना हो , बिना "अब्ब्या" पहने बाहर नहीं निकल सकती । "अब्ब्या "भी ऐसा की सर के बाल तक ना दिखे । और रियाध मे आज भी इसको माना जाता हैं और इसका उलघन करने वालो को सख्त सजा दी जाती हैं । अगर वो दुसरे देश के नागरिक हैं तो उनके आई कार्ड पर निशान लगा दिया जाता हैं और तीन निशान लगने का मतलब होता हैं " पैक यौर बग्स एंड गो होम " ।

इसके अलावा जिन जिन मुस्लिम संस्कृति और सभ्यता और कानून को मानने वाले देशो मे रहने का मौका मीनाक्षी को मिला वहाँ ज्यादातर जगह महिला के लिये कानून बहुत सख्त हैं । शरीर का कोई हिस्सा नहीं दिखना चाहिये । होठ पर लाली यानी लिपस्टिक का प्रयोग नहीं होना चाहिये { मीनाक्षी ने बताया की वहाँ की औरते भी कम नहीं हैं और अगर कोई पुलिस वाला उनसे लिपस्टिक लगाने पर प्रश्न करता हैं तो वो उस की पिटाई भी कर देती हैं ये कह कर की " तुमने मुझे देखा कैसे , तुम मारे होठ देख रहे थे " }। लेकिन दूसरे देश के नागरिको को वहाँ कानून मानने के लिये बाध्य हैं ।

कार मे आगे की सीट पर केवल और केवल पति पत्नी ही बेठ सकते हैं । आप अपना धार्मिक संगीत नहीं बजा सकते हैं , एअरपोर्ट पर ही किसी भी प्रकार की सीडी या चित्र आप से ले लिया जाता हैं । बच्चो को पूरा ज्ञान दिया जाता हैं की किबला किस तरफ़ हैं और जन नामाज़ दरी पर बैठ कर नमाज कब पढी जाती हैं।

"अब्ब्या"के प्रचलन के बारे मे पता था पर रियाध मे इतनी सख्ती से इसका पालन होता हैं नहीं पता था । शायद इसके पीछे महिला और औरतो की सेफ्टी हो उस देश मे । कुछ कह नहीं सकती पर सुन कर लगा की हर देश की सभ्यता और संस्कृति का पता केवल किताबो से नहीं चलता हैं । शायद हर सभ्यता और संस्कृति की जरूरते वहाँ के लोगो की मानसिकता पर निर्भर हो गयी हैं ।

मानसकिता की बात से याद आया की ब्लोगिंग पर चर्चा कुछ बाते सामने आयी

हिन्दी ब्लॉग अग्ग्रीगेटर पर होने की वज़ह से ब्लॉग की निजता बिल्कुल समाप्त हो गयी हैं । अगर कोई भी ब्लॉगर अपनी डायरी लिखना चाहे तो नहीं लिख सकता । अनाम हो कर भी लिखने से कोई फायदा नहीं हैं क्युकी अग्ग्रीगेटर पर आने के बाद ब्लॉग ट्रैक हो जाता हैं । RSS फीड से ब्लॉग को कही भी जोड़ा जा सकता हैं । इस लिये अगर आप नहीं चाहते हैं की आप का ब्लॉग जुड़े तो RSS फीड बंद रखे ।

ये बात सब ने मानी की हिन्दी ब्लोगिंग मे दोहरी मानसिकता बहुत हैं और लोग ब्लॉग कम और ब्लॉग लेखक की जिंदगी के बारे मे ज्यादा जानना चाहते हैं । इस पर भी बहुत अफ़सोस जाहिर हुआ की हिन्दी ब्लोगिंग मे जो ब्लॉगर हैं वो एक परिपक्व उम्र के हैं और काफी पढे लिखे हैं पर सोच बहुत ही संकुचित और संकिण हैं जिस की वज़ह से किसी भी बात पर खुल कर बहस नहीं हो सकती ।

ब्लॉग लिखती महिला के ब्लॉग पर कमेन्ट का कंटेंट बहुत ही गिरा हुआ होता हैं कभी कभी , सो खुल कर व्यक्त करना बहुत ही कठिन होता जा रहा हैं ।

और चलते चलते ये तय हुआ की अगली मीटिंग जल्दी रअखी रखी जाये और कुछ सार्थक बाते हो जिस से ब्लॉग लेखन को हम सब उपयोगी तरीके से इस्तेमाल कर सके। उस के अलावा कोई ऐसा संगठन बनाया जाये जहाँ हम सब एक साथ सामाजिक रूप से पिछडे वर्ग की साहयता कर सके । इश्वर ने हम सब को बहुत दिया हैं सो उसमे से कुछ हम बाटे।

इस मीटिंग के बाद और मीनाक्षी की पोस्ट और अपनी पोस्ट पर हुई मनविंदर की टिपण्णी के बाद मैने पाया की एक बेटी के रूप मे " सुजाता जैसी बेटी " हर माँ चाहती हैं । मै , मनविंदर और मीनाक्षी उम्र के जिस पढाव पर हैं वहाँ सुजाता की उम्र की बेटी हमारी हो सकती हैं पर ब्लॉगर सुजाता जैसे बेटी यानि तीखा और सच कहने वाली , रुढिवादी परमपरा के विरोध मे बोलने वाली बहस करने से ना डरने वाली बेटी की चाहत मीनाक्षी को भी हैं । मुझे तो सुजाता मे अपना बचपन हमेशा दिखा पर उस जैसी बेटी कामना अगर किसी भी माँ की हैं तो सच मानिये समय को बदलने मे देर नहीं हैं । नारी ब्लॉग की पहली पोस्ट बदलते समय का आह्वान एक माँ की पाती बेटी के नाम आज फिर याद आगयी ।

नीचे लिखी चंद लाइन मेरी निज की विश्लेषनात्मक सोच की अभिव्यक्ति हैं और आप की राय की ज़रूरत हैं

हर माँ का सपना है सुजाता जैसी बेटी यानी हर नारी चाहती हैं एक चोखेर बाली बेटी । ये सौहार्द चर्चा इतनी सफल होगी कभी नहीं सोचा था । और नारी और चोखेर बाली केवल दो ब्लॉग नहीं हैं शायद दो पिढ़ियाँ हैं माँ और बेटी की जो सामाजिक बदलाव के लिये अग्रसर हैं ।

फिर मिलेगे क्युकी अभी मन नहीं भरा हैं

November 14, 2008

दिल्ली हाट - भाग २ .. चोखेर बाली और नारी गले मिली

यहाँ से आगे
तभी आर अनुराधा की तेजस्वी छवि दिखी और मन मे हर्ष की लहर दौड़ गयी । मेरे लिये अनुराधा एक आइडियल हैं , मुझे हमेशा लगा की जिंदगी अगर कभी अपनी लड़ाई हार जाए तो अनुराधा के पास आकर जिन्दगी भी दुबारा जीना सीख सकती हैं । अनुराधा ने बड़ी जोर से हाथ उठा कर वेव किया और रंजना एक दम से ऐसे खड़ी हो गयी जैसे एक स्प्रिंग लगी गुडिया । सबसे पहले अब तक हर आने वाले का स्वागत गले मिल कर रंजना ही कर रही थी । इतनी फुर्ती की मै , मीनाक्षी और मनविंदर सब पीछे !!!

मैने अनुराधा से हाथ मिलाया और मनविंदर और मीनाक्षी दोनों ने गले मिली अनुराधा से । सौहार्द चर्चा के निमंत्रण के समय से ही अनुराधा का आग्रह था की चर्चा ब्लॉग से बाहर निकल कर होगी सो उनके आते ही विषय परिवर्तन किया गया और मैने और रंजना ने हर सम्भव कोशिश की !!! की हम ब्लॉग , ब्लोगिंग की बात ना करे !!! ।

अनुराधा के आते ही मेरा पहला सवाल था " आप अपनी किताब लाई " मैने तुंरत ६० रुपए देकर किताब ली एक एक प्रति मीनाक्षी , रंजना और मनविंदर ने भी ली । मेरी मम्मी का ख़ास आग्रह था इस किताब को पढ़ना का सो मुझे लगा भाई तुंरत लेलो , पता नहीं बाद मे प्रति कम होगई तो घर कैसे जाउंगी । मेरे अलावा सबने अनुराधा के हस्ताक्षर लिये किताब पर ।

मीनाक्षी ने फिर पर्स खोला , फिर हलवे का पैकेट निकला , फिर अनुराधा को खिलाया , फिर तारीफ़ पाई और फिर रेसिपे बताई । फिर पैकेट बंद हुआ , फिर पर्स खुला , पैकेट अंदर । मै देखती रही , उन्होने पैकेट मेज पर एक बार भी नहीं छोड़ा ।

और उसके बाद किताबो पर बातचीत शुरू हुई , अनुराधा और मीनाक्षी ने काफी देर तक इस विषय पर जानकारी का आदान प्रदान किया की जहाँ मीनाक्षी रहती हैं और जहाँ अनुराधा काम करती हैं दोनों कैसे एक दूसरे की साहयता कर सकती हैं किताबो के आदान प्रदान और नयी किताबो के छपने मे ।

धूप बढ़ रही थी , गर्मी भी हो गयी थी और मनविंदर को भूख लग रही थी जो स्वाभाविक लगा मुझे क्युकी वो सुबह बहुत जल्दी निकली थी अपने घर से । तुंरत मीनू कार्ड मंगाया गाया । काफी देर से हम लोगो को घूरते हुए वेटर के होठो पर एक मुस्कराहट आई और सामने से मुस्कराती सुजाता आती दिखी ।

उनको देखते ही बाकि सब के चेहरों पर अलग अलग रंग आए । अनुराधा के चेहरे पर एक गर्म जोशी भरी मुस्कराहट , मनविंदर के चेहरे पर एक नई "फ्रेंड" से मिलने की खुशी , मीनाक्षी के चेहरे पर आश्चर्य और मुस्कान, रंजना के चेहरे पर एक गभीर चिंतन दिखा
और
मै तुंरत खड़ी हुई और सुजाता से गले मिली । मुझे उम्मीद नहीं थी की सुजाता आयेगी . उनको देख कर लगा नहीं की ये सुजाता हैं ।

मैने तुंरत अपना कैमरा निकला और फोटो रंजना या मनविदर {याद नहीं हैं} ने मेरी और सुजाता की खीची . अनुराधा का ताली बजाना आप को स्लाइड शो मे भी दिख सकता हैं . उसके बाद सब ने उठ कर सुजाता का स्वागत किया और खूब तस्वीरे खीची गयी अपने अपने मोबाइल के कैमरे से जो अभी तक भी किसी ने अपने ब्लॉग पर नही दी हैं !!!!!!!!

सुजाता के आते ही वेटर को भी लगा अब शायद वी आई पी गेस्ट आ गया हैं !! और उसने उनको तुंरत एक नया मेनू कार्ड दिया ।

मीनाक्षी ने फिर हलवा निकला और सुजाता का मुंह मीठा करवाया और तुंरत ६ ग्लास फ्रूट बियर का आर्डर दिया ये कहते हुए "ये मेरी तरफसे " । मनविंदर ने नॉन वेज थाली का आर्डर दिया और सुजाता ने अप्पम मंगाया जो शायद फिश कर्री के साथ था ।

ये भी विचार हुआ की चित्र ब्लॉग पर मै ना डालू क्युकी यहाँ मानसकिता अच्छी नहीं हैं काफी विकल्प सोचे गए जिसमे चेहरा ना दीखे और नाम तो बिल्कुल ही नही दिया जायेगा ।

मै सुनती भी रही और हाँ मै हाँ भी मिलाती रही । इस मिलन का कोई भी विवरण ना दिया जाए इस पर भी विचार किया गया फिर वही मानसिकता । अब नारी और चोखेर बाली की सद्स्याए भी मानसकिता से दुखी हैं ये एक दमसाफ़ नज़र आ रहा था ।

ख़ैर फ्रूट बियर के ग्लास आते ही माहोल भी ठंडा हुआ और फिर चर्चा शुरू हुई अपने विषय मे बताये" । सब ने खुल कर वो क्या कर रहे हैं और जीविका कैसे चलती हैं इत्यादि का विवरण दिया जिसको यहाँ नहीं बाँटूगी आप सबसे क्युकी वो सबकी निजता का प्रश्न हैं ।

लीजिये अभी सुजाता , मनविंदर और रंजना का परिचय हुआ ही था कि मुस्कान बिखेरती सुनीता आयी । आते ही उन्होंने देर से आने कि क्षमा मांगी ।

उसी समय खाना भी सर्व किया गया और मीनाक्षी ने एक प्लेट स्प्रिंग रोल्स वेज और एक प्लेट स्प्रिंग रोल्स नॉन वेज मंगवाए क्युकी बाकी लोग ज्यादा खाना नहीं खाना चाहते थे।

खाना खाते खाते अपने बारे मे विस्तार से जानकारी देने का सिलसिला चलता रहा जो मीनाक्षी पर आ कर ख़तम हुआ । बहुत से व्यक्तिगत प्रश्न भी एक दूसरे से पूछे गये और निस्कोंच जवाब भी तुंरत दिये गये । ऐसा लगा जैसे आवरण सब घर पर ही छोड़ कर आए हैं सो मैंने कहा अब सब ये बताए कि जब आप यहाँ आ रहे थे तो एक दुसरे के बारे मे क्या perceive कर के आए थे यानी आप को सच सच ये बताना हैं कि आप दूसरे के बारे मे क्या सोचते हैं और जब इस चर्चा के लिये आए तो उस व्यक्ति के प्रति आप के क्या भाव थे ।

सब को लगा ये मुश्किल होगा लेकिन फिर मीनाक्षी ने अनुराधा के बारे मे अपना परसेप्शन बताना शुरू किया
और
इस के आगे किसने क्या क्या perceive किया ये जरुर बताउंगी
कब ??
जब आप कहेगे "आगे क्या हुआ ? ""

November 13, 2008

दिल्ली हाट भाग १ - जानने वालो को पहचानना

९ नवम्बर २००८ सुबह सुबह तैयार हो रही थी तो देखा मनविंदर जी की मिस्ड कॉल हैं । लगा शायद कुछ प्रोग्राम उनका बदल गया हैं और वो दिल्ली हाट नहीं पहुचेगी । सो तुंरत फ़ोन किया , लेकिन वो तब तक मेरठ से चल कर हिंडन नदी पार करके गाजियाबाद के आस पास थी । समय केवल सुबह के १०.०० ही बजे थे , यानि वो अपनी घर से तक़रीबन ८.३० बजे निकली होगी यानी सब से मिलने की तीव्र उत्सुकता उनमे भी थी ।
मनविंदर २ दिन से कह रही थी की वो मुझे मेरे घर से लेती हुई चलेगी सो मैने तुंरत उनको घर आने के लिया कहा क्युकी दिल्ली हाट मे मिलने का समय १२ - १२.३० तय था । १०.४५ सुबह मनविंदर घर पर थी , लगा ही नहीं की मे उनसे पहली बार मिल रही हूँ । बड़ी विनम्रता से उन्होने मेरी मम्मी के पैर छूये । कुछ देर मम्मी के साथ हिन्दी विषय , मनविंदर के पेपर , उनके परिवार के बारे मे मम्मी उनसे जानकारी लेती रही और फिर मम्मी ने अपनी लिखी कुछ किताबे मनविंदर को उपहार स्वरुप दी । इतनी देर मे हम सब एक एक प्याली गरम चाये पी चुके थे और चलने का समय भी हो गया था सो मनविंदर और मै निकल पड़े उनसब से मिलने जिन को जानते थे पर पहचानते नहीं थे ।

रास्ते मे हम दोनों ने ब्लोगिंग पर काफी बाते की । विषय था कम समय मे ज्यादा ब्लोगिंग करने के तरीके और हिन्दी ब्लोगिंग मे और महिला को कैसे आगे लाये ।

११.५५ सुबह हम दिल्ली हाट पहुच गए और १५ -१५ रुपए का टिकिट लेकर हम अंदर दाखिल हुए । एक पूरा चक्कर लगाया पर कोई ऐसा चेहरा नहीं दिखा जिस पर इंतज़ार की रेखा हो !!!

ख़ैर देखने के लिये बहुत कुछ था , सूट , साडी, पर्स , ताजमहल , दरी , पर्दे , मूर्तियाँ और ओरगेनिक दाल और सब्जियाँ और भी बहुत कुछ , एक तरह से भारत { इंडिया नहीं भारत यानी एक पारंपरिक सभ्यता } पूरा बिखरा था और बहुत से विदेशी उसको बटोर कर ले जा रहे थे । बहुत से भारतीये भी साज सज्जा का समान देख कर अपनी आदत अनुसार मोल भाव कर रहे थे ।

रंजना को फ़ोन किया पता लगा रास्ते मे हैं पहुच रही हैं । मनविंदर और मै एक ऐसी जगह बैठ गए जहाँ से आने वालो को हम दिखाई दे । कुछ देर बाद हमेशा मुस्कुराती , मंद मंद , रंजना आती दिखी । पहले हाथ मिलाया पर मन नहीं भरा सो फिर गले मिला गया । उनकी किताब साया देखी ।

जहाँ दो ब्लॉगर मिले ब्लोगिंग पर बात ना हो !!!!!!!!!! फिर यहाँ तो तीन थे सो ब्लोगिंग मे महिला ब्लॉगर की पोस्ट पर कमेन्ट का स्तर कितना गिरा हुआ होता हैं इस पर बात हुई । नारी और चोखेर बाली पर बहुत कम महिला नियमित लिखती हैं इस पर भी बात हुई ।

महिला आधारित मुद्दों पर और लिखना होगा जब तक हम इस पर चर्चा करे तबतक मीनाक्षी आती हुई दिखी , बड़े बड़े काले गोगल्स लगाए , हम लोगो को देखते ही उन्होने झट गोगल्स हटाये और अपना चश्मा पहना ताकि हम उनको पहचान ले !!!!!!!!!! अब जानने वालो को पहचाना शुरू हुआ ।

रंजना ने आगे बढ़ कर उनको गले लगा लिया और मनविंदर का नम्बर दूसरा हो गया । हम बैठे रहे की भाई तसल्ली रखो और मीनाक्षी को भी चांस दो की वो भी गले लगा सके सो मेरा नम्बर भी आया , बड़ी गर्म जोशी से मीनाक्षी मिली बहुत अच्छा लगा ।

मैने उनसे बैठते ही पूछा दुबई से आयी हैं क्या लाई { भाई घर के लोग जब विदेश से आते हैं तो यही सवाल होता हैं } !!!!

उन्होने तुरत पर्स खोला और अपने हाथ का बना हलवा निकाला । तुंरत चखा गया और कहा गया इसकी रेसिपी "दाल रोटी चावल " ब्लॉग पर दी जाए !!!!!!!!!!!

लेकिन सोने के सिक्के , डायमंड और दीनार के लालची ब्लॉगर मै और रंजना का मन हलवे से कहां भरता सो मीनाक्षी से वादा लिया गया की अगर हम दुबई उनके घर जायेगे तो वो अपनी बहनों की विदाई { यानि मै और रंजना , क्युकी मनविंदर तो हलवे से ही खुश हो गयी थी} डायमंड दे कर करेगी ।
बात चीत का सिलसिला चल निकला और मीनाक्षी ने तुरत "साया" और रेकी स्पर्श तरंग " किताबो को देखा और पैसे दे कर उन पर अपना नाम लिखवाया । किताबे देखते ही मीनाक्षी सब को भूल गयी और एक एक पन्ना पलटने लगी । याद दिलाने पर की हम भी हैं उन्होने बताया की बेटे वरुण की तबियत मे सुधार हैं और वो प्रो वूमन हैं और इस मीटिंग मे भी सबसे मिलने आना चाहता था । वरुण की तबियत को ले कर हम सब मे एक चिंता थी क्युकी सब ही उम्र की उस देहलीज पर हैं जहाँ बच्चे की तकलीफ से मन ज्यादा विचलित होता हैं और यूँ भी लड़की हो या महिला किसी भी आयु की हो ममत्व उसके अंदर होता ही हैं । काफी दे हम सब वरुण के बारे मे मीनाक्षी से पूछते रहे और वो निसंकोच बताती रही ।

तभी आर अनुराधा की तेजस्वी छवि दिखी और मन मे हर्ष की लहर दौड़ गयी । मेरे लिये अनुराधा एक आइडियल हैं , मुझे हमेशा लगा की जिंदगी अगर कभी अपनी लड़ाई हार जाए तो अनुराधा के पास आकर जिन्दगी भी दुबारा जीना सीख सकती हैं ।

आगे और क्या हुआ , कल बातउंगी वो भी तब जब इस पोस्ट पर आप कमेन्ट दे कर कहेगे की अभी आप बोर नहीं हुए हैं !!!!

November 11, 2008

सतरंगी चर्चा के बाद शायद हो पचरंगी खट्टी-मीठी अचारी

मिला हमें जब नेह निमंत्रण,
जा पहुँचे हम दिल्ली हॉट,
टिकिट कटा भागे भीतर को,
जहाँ सब देख रहे थे बाट।

सबने बोला हल्लो हाय
हाथ मिले और गले लगाय,
बैठा अपने पास हमें फ़िर
शुरू किया अगला अध्याय।

जान-पहचान हुई सबकी
नये पुराने सब फ़रमायें
कौन लगा किसको कैसा
बिना डरे सच-सच बतलायें।

प्रेम ही सत्य है प्रेम करो
मीनाक्षी जी ने समझाया
उठो नारी के सम्मान में सब
सुजाता जी ने फ़रमाया।

रन्जू जी कविता के जैसे
महक रही थी महफ़िल में
अनुराधा भी दिखा रही थी
रंग-बिरंगे जीवन के सपने।

मनविन्दर जी आई मेरठ से
सबका स्नेह बतायें
चेहरे से था रोब झलकता
भीतर-भीतर मुस्कायें।

रचना जी ने कहा सभी से
अब सक्रिय हो जायें
योगदान दें सभी लेखन में
अपना फ़र्ज निभायें।

काव्य की गंगा में बही जब
सुजाता जी की मीठी बोली
छेड़ा तार मीनाक्षी जी ने
गीतों में मिश्री सी घोली।

रन्जू जी की प्यारी कविता
सुनकर रचना जी भी जागी
सपने तो सपने होते है
झट पुरानी कविता दागी।

छेड़ हृदय की सरगम तब
मन पखेरू फ़िर उड़ चला
हुई सभा सम्पन्न और ये
सौहार्द मिलन लगा बहुत भला।

आधी मीटिंग ही कर पाये थे
सो चर्चा रही अधूरी हमारी
सतरंगी चर्चा के बाद शायद हो
पचरंगी खट्टी-मीठी अचारी।


सुनीता शानू

सतरंगी मुलाकात दिल्ली हाट मे

दिल्ली हाट की गुनगुनी धूप में ब्लॉग जगत की सतरंगी किरणों से मिलने का एक अलग ही आनन्द था. हर किरण की अपनी एक अलग चमक थी.
रचनाजी, मनविन्दरजी और रंजनाजी पहले से ही दिल्ली हाट पहुँच चुकी थीं. हमें देखते ही पहचान लिया. एक पल के लिए भी नहीं लगा कि सबसे पहली बार मिल रहे हैं.
रचनाजी को मिलकर ऐसा लगा जैसे दूर दूर तक फैली बर्फ पर सूरज की रोशनी पड़ते ही आँखें चौंधिया जाएं, गज़ब की उर्जा शक्ति दिखाई दी उनमें ... मनविन्दरजी का मुस्कुराता मौन उस मौसम में मन्द मन्द बयार जैसा दिल को लुभा रहा था. मौन में शक्ति साफ साफ दिख रही थी।

रंजनाजी, शांत सौम्य मुस्कान के साथ बैठी थीं. लग रहा था शायद मन ही मन कविता बुन रही हैं।

कुछ देर में इन्द्रधनुष ब्लॉग की आर. अनुराधा आ गईं. उस दौरान किताबों पर चर्चा होने लगी. रंजनाजी के कविता संग्रह ‘साया’ पर बात हुई तो रचनाजी की माताजी डा.मंजुलता की रेकी की किताब पर चर्चा हुई. कैंसर विजेता आर. अनुराधा द्वारा लिखी किताब ‘इन्द्रधनुष के पीछे पीछे’ देखकर पढ़ने की उत्सुकता जागी. लिखने पढ़ने वालों का किताबों से स्वाभाविक मोह होता है सो फौरन पुस्तकों का आदान प्रदान हुआ.
रचनाजी के कारण यह सभा सम्भव हो पाई तो बाकि सदस्यों ने उस सभा की रौनक बढ़ा दी।

चोखेरबाली ब्लॉग की सुजाता को सामने से आते देखकर एक पल को लगा जैसे साँझ की बेला में दामिनी दमक उठी हो. मेरी बेटी होती तो ऐसी होती की पुरानी चाह फिर से चहक उठी।

वैसे कुछ वक्त के बाद तो दो बेटियाँ घर की रौनक बन कर आ ही जाएँग़ी. (आप सबको जानकर हैरानी होगी कि चोखेरबाली की नियमित पाठिका होते हुए एक बार भी टिप्पणी न देना शायद एक रिकॉर्ड कहा जा सकता है. ऐसा करने का कोई खास कारण नहीं है, शायद बिना चीनी या शहद के कड़वी दवा खाने या खिलाने की आदत नहीं हैं।)

खैर कुछ इंतज़ार के बाद उत्तरी दिल्ली से सुनिता ‘शानू’ भी पहुँच गई.. खाने-पीने के दौरान सुनिता ‘शानू’ ने अपनी मधुर आवाज़ में कविता पाठ किया तो सुजाता ने अपने मीठे सुर में गीत गुनगुनाया. हम कहाँ पीछे हटने वाले थे, हम भी उसी के सुर में सुर मिलाने लगे. रंजना ने अपने साया कविता संग्रह से एक कविता सुनाई. रचना और अनुराधा अपनी मीठी मुस्कान बिखेरते हुए स्वर लहरी का आनन्द ले रही थीं.
किताबों का आदान प्रदान तो हुआ लेकिन किताब लिखने पर भी चर्चा हुई. अनुराधा ने अलग अलग विषयों पर किताब लिखने की बात करके किसी भी तरह की सहायता का आश्वासन दिया. सुजाता ने हिन्दी ब्लॉग जगत की मानसिकता पर बात की जिसे बदलने में अभी बहुत वक्त लगेगा. सभी किसी न किसी रूप में समाज में कमज़ोर पक्ष की सहायता के लिए तत्पर लगे।

अभी आगे बहुत कुछ हैं और भी हैं मंजिले , कारवां बन रहा हैं , समय कम हैं काम ज्यादा फिर कहूंगी क्या क्या पाया किस किस से , अभी इंतज़ार हैं बाकि सब के मौन के टूटने का , सुजाता , रंजना , मनविंदर , अनुराधा और सुनीता आलेखों का ।

November 10, 2008

"वॉर ऑफ द वर्ड्स"

हाउस वाइफ क्यों, हाउस मेकर क्यों नहीं। हमारे शब्दकोष में बहुत से ऐसे शब्द हैं जो लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। गृहणी यानी हाउसवाइफ शब्द स्त्री की मेहनत, उसकी घर-समाज के प्रति उत्पादकता को नहीं दर्शा पाता और उसकी दिनरात की मेहनत का गृहणी शब्द में कोई मायना नहीं है। अगर हाउस वाइफ की जगह हाउस मेकर शब्द का इस्तेमाल करें तो ये घर के अंदर औरत के दिन-रात की मेहनत को ज्यादा बेहतर तरीके से बता पाता है। एक रिसर्च के बारे में पढ़ा था कि कुछ बच्चों को एक वैज्ञानिक की तस्वीर बनाने का काम दिया गया। ज्यादातर बच्चों ने एक अधेड़ व्यक्ति का चित्र बनाया जिसके हाथ में टेस्ट ट्यूब थी,किसी भी बच्चे के दिमाग़ में वैज्ञानिक के नाम पर किसी औरत का चित्र नहीं उभरा। स्कूल की किताबों में भी सीता सिलाई करती है और राम स्कूल जाता है, जैसे उदाहरण होते हैं। बचपन से ही gender dicrimination का बीज दिमाग़ में बो दिया जाता है।
लंदन में ऐसे शब्दों को पॉलीटिकली करेक्ट करने की मुहिम शुरू हुई है। एक समाचार एजेंसी की ये ख़बर मैंने पढ़ी।
क्लीनिंग लेडी, टेन मैन टीम, वन मैन शो जैसे शब्दों की जगह क्लीनर, टेन स्ट्रॉंग टीम, वन परसन शो जैसे टर्म का इस्तेमाल किया जा सकता है। हमारे यहां पत्नी को अर्धांगिनी तो कहते हैं लेकिन वो पति का आधा हिस्सा बन जाती है, अगर पति-पत्नी को पार्टनर शब्द से रिप्लेस कर दिया जाए तो बराबरी का भाव आता है।
शब्द से भाव उपजते हैं, बनते हैं-बिगड़ते हैं, शब्दों को सुधार कर भाव को भी सुधार जा सकता है। वन मैन शो होता है, वन वुमन शो नहीं। वन परसन शो ज्यादा बेहतर अभिव्यक्ति देता है। अपने शब्दकोष में हम भी कुछ सुधार कर सकते हैं।

November 09, 2008

आज एक दिन बहुत सार्थक बीता । महिला जो ब्लॉग लिखती हैं दिल्ली हाट मे मिली ।

सात एक बहुत अच्छी संख्या मानी जाती हैं ।
षड़ज, ऋषभ, गांधोर, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद ये सात स्वर
अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल ये सात तल
मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलह, केतु, पौलस्त्य और वैशिष्ठ ये सात ऋषि
भू, भुवः स्वः, महः, जन, तप और सत्य नाम के सात लोकों
गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि सात पदार्थ
इन्द्रधनुष के सात रंग और सात समुद्र
आज एक दिन बहुत सार्थक बीता । महिला जो ब्लॉग लिखती हैं दिल्ली हाट मे मिली । संख्या ७ थी !!
नाम हैं
मनिवंदर ,रंजना ,सुजाता ,अनुराधा ,सुनीता , मीनाक्षी और रचना
अभी के लिये एक स्लाइड शो , विस्तृत रिपोर्ट बहुत शीघ्र ।

Your pictures and fotos in a slideshow on MySpace, eBay, Facebook or your website!view all pictures of this slideshow

November 08, 2008

क्या आप ब्लॉग लिखती महिला हैं ??

सभी ब्लॉग लिखती महिला को नेह निमन्त्रण हैं सौहार्द चर्चा मे आने का ।
स्थान दिल्ली हाट
समय दोपहर १२.३० बजे से
गेट से टिकिट लेकर सीधा अंदर गोलाकार बैठक स्थल पर पहुचे ।
ये मिलन केवल नारी ब्लॉग के सदस्यों के लिये नहीं है अपितु है उस महिला के लिये हैं जो ब्लॉग लिख रही हैं ।

November 07, 2008

अनदेखा उत्पीडन!

हम संकल्प करते हैं कि नारी को घरेलू हिंसा से बचाया जाए, लेकिन कभी यह भी सोचा है कि किस तरह से, कितने घरेलू हिंसा के मामले सामने आते हैं। सब तक पानी सिर से नहीं गुजर जाता , वह सब कुछ सहती रहती है और वे घर से कितना निकल पाती हैं, पहरे बैठे हुए हैं उनके लिए। कभी कभी तो ताले में बंद भी कर के रखा जाता है। जो घर से बाहर निकलती हैं , वे घर के स्थायित्व , सामजिक सम्मान और बच्चों के मुंह देखकर खामोश रहती हैं। रामायण युग कि सीता से लेकर आज की सीतायें निर्दोष होकर भी खामोशी से सब कुछ सह रही हैं।

आज सवाल इस बात का है की आत्मनिर्भर और उच्चपदस्थ महिलायों में कितनी ऐसी हैं - जिन्हें अपने वेतन को इच्छानुसार बिना किसी रोका-टोकी के खर्च करने का हक़ है? चाहे वे डाक्टर , इंजीनियर , प्रोफेसर या अन्य पदों पर। उनके प्रतिशत अँगुलियों पर गिने जा सकते हैं। वे उत्पीडन के तमगे से बाहर हैं - वे आत्मनिर्भर हैं - वे एक प्रतिष्ठित स्थान रखती हैं। किंतु ऐसा प्रतिशत भी कम नहीं है, जहाँ उन्हें अपना पूरा वेतन पति या सास -ससुर को ही देना होता है। फिर उनको मिलता है मात्र जेबखर्च। बैंक से निकालने के नाम पर मात्र चैक पर साइन करने होते हैं। कहाँ है हमारा नारी सशक्तीकरण का उद्देश्य ? क्या हमें मुंह नहीं चिढा है ? हम कलम चला कर सिर्फ मुद्दों को उठा सकते हैं, उनका हल तो यह समाज खोजेगा और समाज किन लोगों से बना है - क़ानून भी इसे नहीं खोज सकता है।

तुलसीदास जी की यह पंक्तियाँ सदियों पहले भी शायद आज की कहानी कहने में सक्षम थीं और आज भी हैं -- "नारी न मोहि नारि के रूपा" नारी - चाहे जिस भी वर्ग की हो - आज भी पीड़ित है और उसके उत्पीड़न के कारण और स्वरूप कुछ भी हो सकते हैं। इसी उत्पीड़न के खिलाफ जंग छेदी गई है - विभिन्न संस्थाओं और समूहों के द्वारा। नारी ही तो नारी सशक्तिकर्ण की जंग लड़ रही है, किंतु इस नारी उत्पीडन की जनक नारी ही क्यों बन रही है। ९०% मामलों में नारी उत्पीडन किसके द्वारा होता है - सास, भाभी, ननद, जेठानी, सौतेली माँ - माँ और बहन भी इसका अपवाद नहीं है। ससुर , जेठ, देवर , नंदोई,पति - पिता ,भाई या शरणागत का प्रतिशत मात्र १०% ही होता है।

आज नारी अपने उत्पीडन के खिलाफ आवाज उठाती है, समाज उसे कितना सम्मान देता है? माँ के घर में ससुराल से आई हुई लड़की में कमियां खोजी जाती हैं॥ उसकी संबेदनाओं और झेले गए कष्टों से किसा का सरोकार नहीं होता है। बेटी की जगह तो ससुराल में ही होती है -न सिर्फ समाज के लिए नहीं बल्कि घर में भी यही धारणा बनी हुई है। वह ससुराल में कष्ट सहकर रहे क्योंकि अभी छोटी बहनों की शादी होनी बाकि है। यह एक दलील है, माँ बाप की।

'रेनू' ससुराल में जला दी गई, विद्रूप चेहरा लेकर और गोद में ६ महीने के बेटी लेकर माँ के घर आ गई। घर-घर काम करके अपना खर्च निकालती है - शेष बहनें पढ़ती है, माँ भी काम करती है, किंतु 'रेनू' घर के सारे काम के बाद दूसरों का काम करने जाती है। दोहरा भार उठाये जिसके हाथ जले होने के कारण पूरे तरह से मुड़ भी नहीं पाते हैं। उसके बाद भी उसके विद्रूप चेहरे को देखकर लोग काम पर भी नहीं रखते हैं? माँ - बाप, अपने घर में शरण देने की पूरी कीमत घर के सारे काम करवा कर वसूल करके भी अहसान दिखाते हैं।

'दीपा ' सम्भांत परिवार की बहू है - महानगर की लड़की एक कसबे में बहू बनाकर भेज दी गई। आत्मसात नहीं कर पायी कस्बाई संस्कृति और कई बार मायके बिना बताये चले गई , फिर वापस भेज दी गई। दो पुत्रियों की माँ अपनी इन हरकतों के कारण पति की नजरों में इतनी गिरा दी गई की परित्यक्ता होकर घर में रहती है। न किचेन में जाती है और न उसके हाथ का खाना पति खाता है। सिर्फ 'मेट' बनकर रह गई है 'अपने ' ही घर में। घर में इसलिए है क्योंकि प्रतिष्ठित परिवार की बहू जो है।

बडे घर की कीमत चुकाती हुई - 'रम्या'। खूबसूरत रम्या निम्न मध्यम वर्गीय परिवार की बेटी थी। बडे परिवार ने उसके सौन्दर्य पर रीझ कर उसे बहू के लिए चुना। माँ - बाप शायद सपने में भी ऐसा घर न खोज पाते । सारी शादी के लडके वालों ने उठाया क्योंकि करोड़पति परिवार जो था - सबने भूरि-भूरि प्रशंसा की । रम्य के भाग्य और ससुरालवालों की सहृदयता की बस कमी थी तो यह की वह एक गूंगे-बहरे पति की पत्नी बनकर आई थी। बहुत सारे नौकर - चाकर है घर में - लेकिन रम्या 'हैड' की तरह सारे दिन उनके पीछे पीछे लगी रहती है , काम करवाने के लिए भी एक आदमी चाहिए। सारी विरासत के मालिक जेठ जी है सो जिठानी भी मालिकिन से कम नहीं । माँ के घर खुली हवा में कुछ घंटे जाने के लिए भी तरसती है। जब कभी नसीब होता है तो गाड़ी सुबह छोड़ आएगी और कुछ घंटे बाद ले आएगी। इसे क्या रूप देंगे हम उत्पीड़न का। सब सुख तो हैं, नौकर चाकर गाड़ी बंगला पर नहीं है तो कि अपनी बात भी अपने पति से नहीं कह सकती है। जेवरों और भारी-भारी साड़ियों से लड़ी नौकरानी ही तो है वह।
क्या कोई क़ानून उन्हें उनके इस मानसिक उत्पीडन से निजात दिलवा सकता है या इसको क्या नाम दिया जाय। एक सामान्य नारी जीवन में इसे सुखी जीवन तो नहीं कह सकती है।

एक बार पढे जरुर और बताये क्यूँ खफा हैं सब भारतीये अपनी डेमोक्रेसी से ?

आज कल हर जगह फिजा "ओबमामई" हो रही हैं । अमेरिका के नए राष्ट्रपति अश्वेत हैं इसका जश्न भारत मे भी हैं । और सब से ज्यादा चर्चा जिस बात की हो रही हैं वो हैं हमारी डेमोक्रेसी झूठी हैं अमरीकी लोग हम से ज्यादा सच्चे हैं क्यूँ की उन्होने ओबामा की कार्यकुशलता को देखा उसके रंग , उसकी जाति और उसके परिवार को नहीं देखा । एक जुट होकर अपने देश के लिये एक सही नेता का चुनाव किया ।

एक तरफ़ हम अपनी पारिवारिक संरचना की तरफदारी करते हैं । परिवार और शादी के महत्व को आने वाली पीढी को समझाते हैं और दूसरी तरफ़ हम अमरीकी लोगो के एक ऐसे नेता को चुने की तारीफ़ करते हैं जिसके परिवार मे ये नहीं पता चलता की कौन पिता की तरफ़ से हैं कौन माता की तरफ़ से ।

ओबामा की माता का विवाह केन्या के नागरिक से हुआ

माता पिता का अलगाव हुआ

पिता ने केन्या लड़की से पुनः विवाह किया

माता ने इंडोनेशिया के नागरिक से विवाह किया

आज ओबामा के लिये तीन देशो मे जश्न हैं उनके पास एक माता , एक पिता , एक सौतली माता , एक सौतेले , एक दादा - दादी , एक नाना - नानी , एक सौतेले दादा -दादी , एक सौतेले नाना - नानी की धरोहर हैं ।

क्या आप को ये सब मंजूर होगा ??

जिस देश मे एक गलत शादी से निकल कर दुबारा जिंदगी शुरू करने को तो छोड़ ही दे , उसकी सलाह या उसकी बात करने वालो को "परिवार" नाम की संस्था का विरोधी बताया जाता हो वहाँ अमेरिका मे लोकतंत्र और वहाँ की जनता के वोट देने के लिये सब का करतल ध्वनि करना समझ नहीं आता हैं ।

और चलते चलते एक नाम ना भूल जाए

सोनल शाह जो ओबामा की १३ मेंबर टीम की सदस्य हैं । इस टीम का काम होगा ओबामा के सरकार मे सीनिअर पद पर आसीन होने वाले लोगो के नामो का चुनाव करना ।

November 06, 2008

यह अधिकार बेटी का भी है

इस पोस्ट को पढ़ कर एक ब्लॉगर मित्र ने ये ख़बर भेजी हैं । मित्र नहीं चाहते थे की उनका नाम दिया जाए सो नाम नहीं दे रही हूँ । अगर वो इस पोस्ट को पढे तो मे ये जरुर कहना चाहूंगी कि धन्यवाद मित्र इस जानकारी को हम सब से बांटने के लिये। बस मन मे एक ही प्रश्न हैं आप ने अपना नाम बताने से क्यूँ माना किया ?? मै लेखक राजीव शर्मा का भी आभार मानती हूँ की इतनी प्रेरणा दायक ख़बर को उन्होने हम तक पहुचाया । ख़बर का लिंक है http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4961792/

यह अधिकार बेटी का भी है

बेटियां अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार क्यों नहीं कर सकतीं? सवाल
असुविधाजनक है, इसलिए उत्तर देने से लोग बचते हैं। बस यह कह दिया जाता है कि 'ऐसा
होता नहीं।' लेकिन कुछ लड़कियां हैं, जिन्होंने सदियों पुराने इस प्रश्न का जवाब खुद
तलाशा..और जवाब था कि '.कर सकती हैं।'

कुछ पहले चलें तो सीतापुर में भी दो बहनों ने अपने पिता की
अंत्येष्टि की थी। छिटपुट उदाहरण और शहरों में भी मिल जाएंगे, पर बरेली की लड़कियों
में यह जागृति शायद सर्वाधिक है। यहां एक वर्ष में कई बेटियों ने अपने पिता, मां और
दादा की चिता को मुखाग्नि देकर उन धार्मिक परंपराओं को तोड़ा, जो लड़कियों को अंतिम
संस्कार की इजाजत नहीं देतीं। इन शिक्षित बेटियों ने सिद्ध किया कि वे किसी से कम
नहीं। पिछले वर्ष 21 नवंबर को मढ़ीनाथ की कविता ने अपने दादा सूरतराम सक्सेना की
चिता को मुखाग्नि दी। यह एक बेटी का निर्णय था- स्तब्धकारी। लोगों ने टिप्पणी की,
लेकिन 25 वर्षीया कविता अडिग रही, कह दिया- बाबा ने मुझे बेटा बनाकर पाला। इतना
प्यार दिया, अब कैसे मुंह मोड़ लूं।' कविता की पहल को आगे बढ़ाया नूतन सक्सेना ने।
पिता रामबहादुर की चिता को अग्नि देने उनके दूर के कुछ रिश्तेदार आगे भी आए, लेकिन
नूतन नहीं डिगी। कह दिया- '..अंतिम संस्कार मैं ही करूंगी।' नूतन के बाद डा.
इंद्रजीत कौर अपने पिता व स्वतंत्रता सेनानी ज्ञानी हरनाम सिंह की चिता को अग्नि
देने के लिए आगे आई। तीन भाइयों की सबसे बड़ी और इकलौती बहन डा. इंद्रजीत के भाई
विदेश में रहने के कारण समय पर नहीं पहुंच सके, तो बहन ने अंत्येष्टि कर दी। दिल्ली
विश्वविद्यालय में पढ़ा रहीं डा. इंद्रजीत कौर के मुताबिक 'पापा कहते थे कुरीतियां
दूर होनी चाहिए। उन्होंने बेटा और बेटी हमेशा बराबर समझे।' इसी तरह एक और बेटी हेमा
ने अपनी मां सुशीला देवी की चिता को मुखाग्नि दी। मोहल्ला बजरिया पूरनमल में रहने
वाली पीलीभीत कलेक्ट्रेट में कार्यरत हेमा का कहना था कि 'मैंने तो मां की इच्छा
पूरी की। अपने पति या बेटे से भी अंतिम संस्कार करा सकती थी, लेकिन तब मां की आत्मा
को शांति नहीं मिलती।' खास बात यह कि हेमा की मां सुशीला देवी भी 15 वर्ष पहले अपने
पति रमेश चंद्र गुप्ता की चिता को मुखाग्नि देकर परंपराएं तोड़ चुकी थीं।

इन लड़कियों में अदम्य साहस है, विपरीत परिस्थितियों में भी निर्णय
लेने की क्षमता है। नूतन कहती हैं- जिन लोगों की परवाह किए बिना मैंने पिता का
अंतिम संस्कार किया, अब वे ही मेरी सराहना करते हैं। मुझे खुशी उन लड़कियों की बातें
सुनकर होती है, जो कहती हैं कि भाई नहीं आएंगे, तो वे भी अपने माता-पिता का अंतिम
संस्कार करेंगी। हालांकि नूतन के साथ ऐसा नहीं था। नूतन कहती हैं, परंपराएं इंसान
ने बनाई हैं, लेकिन आत्मा भगवान ने और आत्मा न लड़का देखती है और न लड़की-उसे केवल क‌र्त्तव्य देखना चाहिए।

बरेली, [राजीव शर्मा]।

आप को याद हैं ना की आप को आना हैं ??

नीचे दिये लिंक को देखे और अपना नाम और अपने ब्लॉग नाम यहाँ जोड़े । नाम कैसे जोड़ना हैं राइट पेनल पर दिया हैं ।
http://womanwhobloginhindi.blogspot.com/

सौहार्द चर्चा दिल्ली मे दोपहर १२-१२.३० बजे से शुरू हैं । मिलने का प्रोग्राम हैं सो स्नेह निमन्त्रण दे रही हूँ उन सब महिला को जो अपने व्यस्त जीवन से समय निकाल कर ब्लॉग भी लिखती हैं । आप अपनी स्वीकृति इस पोस्ट के कमेन्ट मे भी दे सकती । मिनाक्षी दुबई से आयी हैं उनसे भी मिलना हो जाएगा । ये सौहार्द चर्चा नारी ब्लॉग के सदस्यों के लिए ही नहीं हैं हर वो महिला जो ब्लॉग लिखती हैं उसको आना चाहिये । नारी ब्लॉग केवल और केवल एक मंच हैं इस निमन्त्रण को आप तक पहुचाने का ।

November 05, 2008

कन्या भ्रूण हत्या मत करो




ईमेल पर मिली ये तस्वीर। ज्यादा से ज्यादा लोग देखें।

November 03, 2008

दहलीज़ से सियासत तक ख्वातीन

फ़िरदौस ख़ान
सदियों की गुलामी और दमन का शिकार रही भारतीय नारी अब नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार है। इसकी एक बानगी अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में बसे अति पिछड़े मेवात ज़िले के गांव नीमखेडा में देखी जा सकती है। यहां की पूरी पंचायत पर महिलाओं का कब्जा है। ख़ास बात यह भी है कि सरपंच से लेकर पंच तक सभी मुस्लिम समाज से ताल्लुक़ रखती हैं। जिस समाज के ठेकेदार महिलाओं को बुर्के में कैद रखने के हिमायती हों, ऐसे समाज की महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर गांव की तरक्की विकास के लिए काम करें तो वाक़ई यह काबिले-तारीफ़ है। गुज़श्ता 30 अक्टूबर को नीमखेडा को आदर्श गांव घोषित किया गया है।
गांव की सरपंच आसुबी का परिवार सियासत में दखल रखता है। करीब 20 साल पहले उनके शौहर इजराइल गांव के सरपंच थे। इस वक्त उनके देवर आजाद मोहम्मद हरियाणा विधानसभा में डिप्टी स्पीकर हैं। वे बताती हैं कि यहां से सरपंच का पद महिला के लिए आरक्षित था। इसलिए उन्होंने चुनाव लडने का फैसला किया। उनकी देखा-देखी अन्य महिलाओं में भी पंचायत चुनाव में दिलचस्पी पैदा हो गई और गांव की कई महिलाओं ने पंच के चुनाव के लिए परचे दाखिल कर दिए।
पंच मैमूना का कहना है कि जब महिलाएं घर चला सकती हैं तो पंचायत का कामकाज भी बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं, लेकिन उन्हें इस बात का मलाल जरूर है कि पूरी पंचायत निरक्षर है। इसलिए पढाई-लिखाई से संबंधित सभी कार्यर्ों के लिए ग्राम सचिव पर निर्भर रहना पडता है। गांव की अन्य पंच हाजरा, सैमूना, शकूरन, महमूदी, मजीदन, आसीनी, नूरजहां और रस्सो का कहना है कि उनके गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। सडक़ें टूटी हुई हैं। बिजली भी दिनभर गुल ही रहती है। पीने का पानी नहीं है। महिलाओं को करीब एक किलोमीटर दूर से पानी लाना पडता है। नई पंचायत ने पेयजल लाइन बिछवाई है, लेकिन पानी के समय बिजली न होने की वजह से लोगों को इसका फायदा नहीं हो पा रहा है।सप्लाई का पानी भी कडवा होने की वजह से पीने लायक नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत भी यहां बेहद खस्ता है। अस्पताल तो दूर की बात यहां एक डिस्पेंसरी तक नहीं है। गांव में लोग पशु पालते हैं, लेकिन यहां पशु अस्पताल भी नहीं है। यहां प्राइमरी और मिडल स्तर के दो सरकारी स्कूल हैं। मिडल स्कूल का दर्जा बढाकर दसवीं तक का कराया गया है, लेकिन अभी नौवीं और दसवीं की कक्षाएं शुरू नहीं हुई हैं। इन स्कूलों में भी सुविधाओं की कमी है। अध्यापक हाजिरी लगाने के बावजूद गैरहाजिर रहते हैं। बच्चों को दोपहर का भोजन नहीं दिया जाता। करीब तीन हजार की आबादी वाले इस गांव से कस्बे तक पहुंचने के लिए यातायात की कोई सुविधा नहीं है। कितनी ही गर्भवती महिलाएं प्रसूति के दौरान समय पर उपचार न मिलने के कारण दम तोड देती हैं। गांव में केवल एक दाई है, लेकिन वह भी प्रशिक्षित नहीं है। पंचों का कहना है कि उनकी कोशिश के चलते इसी साल 22 जून से गांव में एक सिलाई सेंटर खोला गया है। इस समय सिलाई सेंटर में 25 लडक़ियां सिलाई सीख रही हैं।
गांववासी फातिमा व अन्य महिलाओं का कहना है कि गांव में समस्याओं की भरमार है। पहले पुरुषों की पंचायत थी, लेकिन उन्होंने गांव के विकास के लिए कुछ नहीं किया। इसलिए इस बार उन्होंने महिला उम्मीदवारों को समर्थन देने का फैसला किया। अब देखना यह है कि यह पंचायत गांव का कितना विकास कर पाती है, क्योंकि अभी तक कोई उत्साहजनक नतीजा सामने नहीं आया है। खैर, इतना तो जरूर हुआ है कि आज महिलाएं चौपाल पर बैठक सभाएं करने लगी हैं। वे बडी बेबाकी के साथ गांव और समाज की समस्याओं पर अपने विचार रखती हैं। पंचायत में महिलाओं को आरक्षण मिलने से उन्हें एक बेहतर मौका मिल गया है, वरना पुरुष प्रधान समाज में कितने पुरुष ऐसे हैं जो अपनी जगह अपने परिवार की किसी महिला को सरपंच या पंच देखना चाहेंगे। काबिले-गौर है कि उत्तत्तराखंड के दिखेत गांव में भी पंचायत पर महिलाओं का ही कब्जा है।
गौरतलब है कि संविधान के 73वें संशोधन के तहत त्रिस्तरीय पंचायतों में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था है। केंद्रीय पंचायती राज मंत्री मणिशंकर अय्यर द्वारा जारी एक रिपोर्ट केमुताबिक पंचायती राज संस्थाओं में 10 लाख से ज्यादा महिलाओं को निर्वाचित किया गया है, जो चुने गए सभी निर्वाचित सदस्यों का लगभग 37 फीसदी है। बिहार में महिलाओं की यह भागीदारी 54 फ़ीसदी है। वहां महिलाओं के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण लागू है। मध्यप्रदेश में भी गत मार्च में पंचायत मंत्री रुस्तम सिंह ने जब मध्यप्रदेश पंचायत राज व ग्राम स्वराज संशोधन विधेयक-2007 प्रस्तुत कर पंचायत और नगर निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 फ़ीसदी आरक्षण देने की घोषणा की। पंचायती राज प्रणाली के तीनों स्तरों की कुल दो लाख 39 हजार 895 पंचायतों के 28 लाख 30 हजार 46 सदस्यों में 10 लाख 39 हजार 872 महिलाएं (36।7 फ़ीसदी) हैं। इनमें कुल दो लाख 33 हजार 251 पंचायतों के 26 लाख 57 हजार 112 सदस्यों में नौ लाख 75 हजार 723 (36.7 फ़ीसदी) महिलाएं हैं। इसी तरह कुल छह हजार 105 पंचायत समितियों के एक लाख 57 हजार 175 सदस्यों में से 58 हजार 328 (37.1 फ़ीसदी) महिलाएं हैं। कुल 539 जिला परिषदों के 15 हजार 759 सदस्यों में पांच हजार 821 (36.9 फ़ीसदी) महिलाएं हैं।काबिले-गौर यह भी है कि भारत में पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू होने की वजह से ही वे आगे बढ़ पाईं हैं।
हालांकि देश की सियासत में आज भी महिलाओं तादाद उतनी नहीं है, जितनी कि होनी चाहिए। यह कहना भी क़तई गलत नहीं होगा कि अपने पड़ौसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन के मुकाबले संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है। दुनियाभर में घोर कट्टरपंथी माने जाने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश में महिलाएं प्रधानमंत्री पद पर आसीन रही हैं। यूनिसेफ द्वारा कई चुनिंदा देशों में 2001-2004 के आधार पर बनाकर जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 8।3 फ़ीसदी, ब्राजील में 8.6 फ़ीसदी, इंडोनेशिया में 11.3 फ़ीसदी, बांग्लादेश में 14.8 फ़ीसदी, यूएसए में 15.2 फ़ीसदी, चीन में 20.3 फ़ीसदी, नाइजीरिया में सबसे कम 6.4 फ़ीसदी और पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा 21.3 फ़ीसदी रहा। इस मामले में पाकिस्तान ने विकसित यूएसए को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 1996 में भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7.3 फ़ीसदी और 1999 में 9.6 फ़ीसदी था। हालांकि चुनाव के दौरान कई सियासी दल विधानसभा और लोकसभा में भी महिलाओं को आरक्षण देने के नारे देते हैं, लेकिन यह महिला वोट हासिल करने का महज़ चुनावी हथकंडा ही साबित होता है। बहरहाल, उम्मीद पर दुनिया कायम है। फिलहाल यही कहा जा सकता है कि नीमखेडा और दिखेत की महिला पंचायतें महिला सशक्तिकरण की ऐसी मिसालें हैं, जिनसे दूसरी महिलाएं प्रेरणा हासिल कर सकती हैं।

सौहार्द चर्चा के लिये नेह निमन्त्रण

सभी ब्लॉग लिखती महिला को नेह निमन्त्रण हैं सौहार्द चर्चा मे आने का । मिलने का दिन रविवार ९ नवम्बर तय किया गया हैं । समय और स्थान पता करने के लिये रंजना भाटिया अथवा रचना सिंह से संपर्क करे ।
अब तक जिन लोगो की स्वीकृत मिल गयी हैं

अनुराधा
मिनाक्षी
सुनीता शानू
मनविंदर
रंजना भाटिया
रचना

November 02, 2008

सौहार्द चर्चा के लिये नेह निमन्त्रण

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गुलाबी रिबन के लिए साल भर हो सकता है अक्टूबर: पुरुष भी शामिल हैं इस महिला केंद्रित आयोजन में

अक्टूबर का महीना स्तन कैंसर जागरूकता को समर्पित किया गया है। अक्टूबर को राष्ट्रीय स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाने की शुरुआत अमरीका में हुई। अब इसे कई देशों ने अपना लिया है।
व्हाइट हाउस ने इस बार ऐसे मनाया अक्टूबर 2008 स्तन कैंसर जागरूकता माह


स्तन कैंसर के मरीजों, उनके इलाज और रिसर्च में अपना आर्थिक, भावनात्मक, मॉरल सहयोग जताने के लिए लोग इस माह के किसी एक दिन या पूरे महीने ही कुछ न कुछ गुलाबी पहनते हैं। कपड़े, रुमाल, कड़े, जूते, रिबन, कॉफी मग, घड़ी का पट्टा... कुछ भी। और इसमें पुरुष भी पीछे नहीं। गुलाबी रंग स्तन कैंसर से कैसे जुड़ा, यह किस्सा अलग है।

फिलहाल एक और किस्सा आपके साथ बांटना चाहती हूं कि गुलाबी सिर्फ महिलाओं का रंग नहीं है। पुरुष भी उससे गहरे जुड़े हुए हैं।

एक अधेड़ उम्र का सुदर्शन पुरुष कैफे में पहुंचा और शांति से कोने की एक टेबल पर बैठ गया। कुछ देर में उसका ध्यान बगल वाली टेबल पर बैठे कुछ नौजवानों की तरफ गया जो उसे ही देख कर हंस रहे थे। फिर अचानक उसे कुछ ख्याल आया और वह समझ गया कि वे क्यों हंस रहे हैं। उसे याद आया कि उसने कोट के कॉलर वह गुलाबी रिबन टांका था, जिसे देख कर वे नौजवान उसका मज़ाक उड़ा रहे थे।

थोड़ी देर तो वह उनकी ठिठोली को नज़रअंदाज़ करता रहा। फिर रिबन पर अंगुली रखी और उनमें से सबसे उच्श्रृंखल लगने वाले लड़के की तरफ देख कर पूछा- “क्या इस पर हंस रहे हो?”

वह लड़का बोला,- “माफ करें, लेकिन नीले कोट पर यह गुलाबी रिबन बिल्कुल नहीं जंच रहा है।“

उस अधेड़ ने उसे इशारे से बुलाया और पास बैठने का न्यौता दिया। नौजवान असहज होकर उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। उस अधेड़ ने धीमी आवाज़ में कहा- “मैं स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए, अपनी मां के सम्मान में इसे पहनता हूं।”

“मुझे अफसोस है। क्या स्तन कैंसर ने उनकी जान ले ली थी?”

“नहीं, वह मरी नहीं हैं। लेकिन शैशवकाल में उनके स्तनों से मेरा पोषण हुआ, और लड़कपन में जब भी मैं डर या अकेलापन महसूस करता था तो अपना सिर उन पर रख कर आश्वस्त हो जाता था। मैं उनका शुक्रगुज़ार हूं।”

“अच्छा!।”

“मैं यह रिबन अपनी पत्नी के सम्मान में भी पहनता हूं।”

“उम्मीद है, अब वे भी ठीक हो गई होंगी?”

“हां, उन स्तनों ने 23 साल पहले मेरी प्यारी सी बेटी को पोषित किया, दिलासा दिया। वे हमारे स्नेहिल संबंधों में खुशी का स्रोत रहे हैं। मैं उनका भी आभारी हूं।”

“और आप इसे अपनी बेटी के सम्मान में भी पहनते होंगे?” नौजवान ने उकता कर कहा।

“नहीं। उसके सम्मान में इसे पहनने के लिए बहुत देर हो चुकी है। मेरी बेटी एक माह पहले स्तन कैंसर से मर गई। उसका ख्याल था कि इस कम उम्र में उसे स्तन कैंसर नहीं हो सकता। इसलिए जब एक दिन अचानक उसने गांठ महसूस की तो भी वह चैतन्य नहीं हुई, उसे नज़रअंदाज़ करती रही। उसे लगा कि चूंकि उसे दर्द नहीं होता है, उसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।”

इस कहानी से विचलित नौजवान बरबस बोल उठा- “ओह, मुझे बहुत दुख हुआ जानकर।“

अधेड़ बोला- “अब मैं अपनी बेटी की याद में गर्व से यह रिबन लगाता हूं। यह मुझे, दूसरों को इस बारे में सतर्क और जागरूक करने में मदद करता है। अब घर जाकर अपनी पत्नी, मां, बेटी, रिश्तेदारों और मित्रों को इस बारे में बताना।

और यह लो ”- कहते हुए उस अधेड़ ने अपनी कोट की जेब से एक गुलाबी रिबन निकाल कर उसे थमा दिया।

November 01, 2008

"मनविंदर" को थैंक्स और "चुलबुल" का स्वागत

अभी तक कही भी हिन्दी ब्लोगिंग की बात होती थी प्रिंट मीडिया मे तो केवल कुछ ही गिने चुने ब्लोगर्स का नाम प्रिंट मीडिया मे दिया जाता था । किसी भी लेख मे ब्लोगिंग करती महिलाओं का जिक्र नहीं होता था । मनविंदर ने अपने अथक परिश्रम से ब्लोगिंग करती महिलाओ के ब्लोग्स को अपने अखबार हिन्दुस्तान के माध्यम से बहुत से लोगो तक पहुचाया हैं । मै मनविंदर की दिल से आभारी हूँ की उन्होने इस विषय को इतनी गंभीरता से लिया हैं और मै तारीफ़ करती हूँ उनकी लगन की । मनविंदर केवल कुछ ही महीनो से हिन्दी ब्लॉगर बनी हैं पर उनका योगदान हिन्दी ब्लोगिंग को आगे ले जाने मे बहुत हैं । मनविंदर के अपने ब्लॉग का नाम हैं मेरे आस पास । मनविंदर सरीखी सखियाँ हो तो जिन्दगी आसन हो जाती हैं और बहुत सी नारियों और चोखेर बालियों को अपनी घुटन से आज़ादी मिल जाती हैं । हिन्दी ब्लॉग लेखन मे ब्लॉग लिखती महिला और उनके ब्लॉग को "ब्लॉग फेमिनिस्म " कह कर एक नेगेटिव सोच से बांधना मुझे कभी सही नहीं लगा क्युकी मैने कभी नारी के हक़ मे की गयी बात को पुरूष के विरोध मे की बात नहीं माना । मनविंदर की तरह एक अनकहे मकसद की तरह इस मुहीम को आगे ले जाना कि " नारी को आगे बढ़ाने के लिये हम जो कर सकते हैं हम अपनी अपनी जगह और अपने अपने तरीके से करे " एक बहुत ही पोसिटिव नजरिया हैं ।






मनविंदर की नज़र से रचना { सूत्रधार } का कम्युनिटी ब्लॉग नारी












मनविंदर की नज़र से सुजाता { सूत्रधार } का कम्युनिटी ब्लॉग चोखेर बाली










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